अजमल खां कसाब को फाँसी होने के बाद यह बहस फिर शुरू होगी कि फाँसी की सजा खत्म होनी चाहिए या नहीं। दुनिया के 140 देशों ने मृत्यु दंड खत्म कर दिया है। अब केवल 58 देशों में मृत्यु दंड दिया जाता है। पर भारत में भी सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था है कि फाँसी रेयर ऑफ द रेयरेस्ट केस में दी जानी चाहिए। इस वक्त लगभग 300 मृत्युदंड प्राप्त कैदी जेलों में हैं। इनमें राजीव गांधी की हत्या से जुड़े तीन व्यक्ति भी हैं। कसाब को दी गई फाँसी पिछले पिछले सत्रह साल में दी गई पहली फाँसी है। ऐसा लगता है कि भारतीय व्यवस्था फाँसी को खत्म करने की दिशा में बढ़ रही है। पर कसाब का मामला गले की हड्डी था। यदि उसे फाँसी नहीं दी जाती तो सरकार के लिए राजनीतिक रूप से यह खुद को फाँसी देने की तरह होता। वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी ने शुरू में ही कहा था कि कसाब को फाँसी देने से उसे क्या सजा मिलेगी? उसे जीवित रखने से ही वह अपनी गलती को समझेगा।
हम यह समझते हैं कि फाँसी की सजा डिटरेंट हैं। दूसरे अपराधियों को अपराध करने से रोकती है तो यह भी गलत फहमी है। जिन देशों में फाँसी की सजा नहीं है, वहाँ हमारे देश के मुकाबले कम अपराध होते हैं। हमारे यहाँ भी फाँसी की सजा जिन्हें होती है उनमें से ज्यादातर साधनहीन, गरीब लोग होते हैं, जो न्याय हासिल करने के लिए वकीलों को फीस नहीं दे सकते।