आज यानी 8 जनवरी के दैनिक भास्कर में चेतन भगत ने रोमन हिन्दी के बारे में एक लेख लिखा है। इस लेख को पढ़कर अनेक लोगों की प्रतिक्रिया होगी कि चेतन भगत के लेख को गम्भीरता से नहीं लेना चाहिए। यह प्रतिक्रिया या दंभ से भरी होती है या नादानी से भरी। जो वास्तव में उपस्थित है उससे मुँह मोड़कर आप कहाँ जाएंगे? भाषा अपने बरतने वालों के कारण चलती या विफल होती है, विशेषज्ञों के कारण नहीं। विशेषज्ञता वहाँ तक ठीक है जहाँ तक वह वास्तविकता को ठीक से समझे। बहरहाल आपकी जो भी राय हो, यदि आप इस लेख को पढ़ना चाहें तो यहाँ पेश हैः-
हमारे भारतीय समाज में हमेशा चलने वाली एक बहस हिंदी बनाम अंग्रेजी के महत्व की रही है। वृहद स्तर पर देखें तो इस बहस का विस्तार किसी भी भारतीय भाषा बनाम अंग्रेजी और किस प्रकार हमने अंग्रेजी के आगे स्थानीय भाषाओं को गंवा दिया इस तक किया जा सकता है। यह राजनीति प्रेरित मुद्दा भी रहा है। हर सरकार हिंदी के प्रति खुद को दूसरी सरकार से ज्यादा निष्ठावान साबित करने में लगी रहती है। नतीजा ‘हिंदी प्रोत्साहन’ कार्यक्रमों में होता है जबकि सारे सरकारी दफ्तर अनिवार्य रूप से हिंदी में सर्कुलर जारी करते हैं और सरकारी स्कूलों की पढ़ाई हिंदी माध्यम में रखी जाती है।
इस बीच देश में अंग्रेजी लगातार बढ़ती जा रही है। बिना प्रोत्साहन कार्यक्रमों और अभियानों के यह ऐसे बढ़ती जा रही है, जैसी पहले कभी नहीं बढ़ी। ऐसा इसलिए हो रहा है, क्योंकि इसमें कॅरिअर के बेहतर विकल्प हैं, समाज में इसे अधिक सम्मान प्राप्त है और यह सूचनाओं व मनोरंजन की बिल्कुल नई दुनिया ही खोल देती है तथा इसके जरिये नई टक्नोलॉजी तक पहुंच बनाई जा सकती है। जाहिर है इसके फायदे हैं।
हिन्दुस्तान के 24 मार्च 2010 के अंक में प्रकाशित मेरा लेख भी पढ़ें
नव संवत्सर और नवरात्र आरम्भ के मौके पर सुबह से मोबाइल फोन पर शुभकामना संदेश आने लगे। पहले मकर संक्रांति, होली-दीवाली, ईद और नव वर्ष संदेश आए। काफी संदेश हिन्दी में हैं, खासकर मकर संक्रांति और नवरात्रि संदेश तो ज्यादातर हिन्दी में हैं। और ज्यादातर हिन्दी संदेश रोमन लिपि में।
मोबाइल फोन पर चुटकुलों, शेर-ओ-शायरी और सद्विचारों के आदान-प्रदान का चलन बढ़ा है। संता-बंता जोक तो हिन्दी में ही मज़ा देते हैं। रोमन के इस्तेमाल से हिन्दी और अंग्रेजी की मिली-जुली भाषा भी विकसित हो रही है। क्या ऐसा पहली बार हो रहा है?