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Tuesday, November 1, 2016

सिमी एनकाउंटर से जुड़े सवाल

रविवार और सोमवार के बीच यानी 30-31 अक्तूबर की आधी रात प्रतिबंधित संगठन सिमी (स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया) से जुड़े आठ युवक भोपाल के केन्द्रीय कारागार से भाग निकले। सरकारी जानकारी के अनुसार जेल की चारदीवारी को फांदने के लिए इन कैदियों ने चादरों का इस्तेमाल किया। जाते-जाते उन्होंने एक हैड कॉन्स्टेबल की हत्या भी कर दी। इन कैदियों के भागने की खबर सुबह भारतीय मीडिया में प्रसारित होने के कुछ देर बाद ही आठों के मारे जाने की खबर आई। यह खबर ज्यादा विस्मयकारी थी। इतनी तेजी से यह कार्रवाई किस तरह हुई, यह जानने की इच्छा मन में है। 
जितनी तेजी में एनकाउंटर की खबर आई उतनी तेजी से तमाम सवाल भी उठने लगे। देखते ही देखते कुछ वीडियो भी सोशल मीडिया में अपलोड हो गए। भोपाल के आईजी योगेश चौधरी के मुताबिक जेल से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ईंटखेड़ी गांव में इन आठों ‘आतंकियों’ को पुलिस मुठभेड़ में मार गिराया गया। पुलिस के मुताबिक इन कैदियों के पास हथियार मौजूद थे, जिनकी वजह से यह एनकाउंटर लगभग एक घंटे तक चला। कैदियों और पुलिस के बीच क्रॉस-फायरिंग में पुलिस के दो जवान भी घायल हुए हैं।
जो कैदी फरार हुए उनके नाम हैं : अमज़द, ज़ाकिर हुसैन सादिक़, मुहम्मद सालिक, मुजीब शेख, महबूब गुड्डू, मोहम्मद खालिद अहमद, अक़ील और मजीद। मध्य प्रदेश सरकार ने पुलिस की पीठ थपथपाई है,  साथ ही जेल से भागने की घटना की जांच कराने की घोषणा भी की है। फिलहाल लगता है कि यह मामला तूल पकड़ेगा। इसका राजनीतिक निहितार्थ जो भी हो, देश की पुलिस और न्याय-व्यवस्था से जुड़े सवाल अब उठेंगे। कोई आश्चर्य नहीं कि मामला सबसे ऊँची अदालत तक जाए। कांग्रेस इस मामले को राजनीतिक नजरिए से उठा रही है, पर यह केवल बीजेपी-कांग्रेस का मामला नहीं है। यह हमारी पुलिस व्यवस्था से जुड़ा मसला है। इस बात को नहीं भुलाना चाहिए कि एनकाउंटरों की यह शैली कांग्रेसी शासन में ही विकसित हुई है। यदि प्रशासन ने उसी वक्त पुलिस के खिलाफ कार्रवाई की होती तो यह इतनी नहीं बढ़ती।