भारत, दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा खनिज-तेल आयातक देश है। ईरान पर अमेरिकी पाबंदियों के कारण वाजिब कीमत पर तेल की खरीद को धक्का लगा था, पर सऊदी अरब का सहारा था। इस तेल-डिप्लोमेसी ने सऊदी अरब के साथ हमारे दीगर-रिश्ते भी सुधारे थे। अब तेल की कीमतों की गर्मी में ये रिश्ते पिघलते दिखाई पड़ते हैं।
पिछले छह महीनों
से अंतरराष्ट्रीय तेल-बाजार में सुर्खी आने लगी है। इस वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था
को नुकसान होने लगा। इस तेजी के पीछे है ओपेक प्लस देशों का उत्पादन घटाने का
फैसला। इसमें खासतौर से सऊदी अरब की भूमिका है। पिछले साल अप्रेल से दिसम्बर के
बीच भारत ने औसतन 50 डॉलर से कम कीमत पर तेल खरीदा था। पर पिछले महीने कीमत 60
डॉलर के ऊपर पहुँच गई।
पेट्रोल पर भारी टैक्स के कारण भारत के खुले बाजार में पेट्रोल की कीमत 100 प्रति लिटर से ऊपर चली गई है। इससे सरकार की फज़ीहत होने लगी है। ब्रेंट-क्रूड की कीमतें पिछले साल अक्तूबर में 40 डॉलर प्रति बैरल थीं, जो इस महीने 64 डॉलर के आसपास आ गईं। भारत जैसे विकासशील देशों को महामारी के इस दौर में इसकी वजह से अपनी अर्थव्यवस्थाओं को पटरी पर लाने में दिक्कतें पैदा होने लगी हैं।