कल आज़ादी की 75 वीं वर्षगाँठ और 76वाँ स्वतंत्रता दिवस है। यह साल हम ‘आज़ादी के अमृत महोत्सव’ के रूप में मना रहे हैं। इस साल केंद्र सरकार ने ‘हर-घर तिरंगा अभियान’ की शुरुआत भी की है। 11 से 17 अगस्त के बीच यह अभियान चलाया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 22 जुलाई को इस अभियान की घोषणा की थी। इस अभियान के तहत 13 से 15 अगस्त तक घरों पर कम से कम 20 करोड़ झंडे लगाने का लक्ष्य भी है। इस कार्यक्रम को बढ़ावा देने के पीछे सरकार का जो भी इरादा रहा हो, उसपर उंगली उठाना या राजनीति का विषय बनाना समझ में नहीं आता। देश में राष्ट्र-ध्वज से जुड़े नियम अभी तक बहुत कड़े थे। उन्हें आसान बनाने और पूरे देश को एक सूत्र में बाँधने की कोशिश करने में कोई खराबी नहीं है। बहरहाल झंडे लगाएं, साथ ही राष्ट्रीय-ध्वजों की अवधारणा, अपने ध्वज के इतिहास, उससे जुड़े प्रतीकों और सबसे ज्यादा ध्वजारोहण से जुड़े नियमों को भी समझें। तभी इसकी उपादेयता है।
राष्ट्रीय-भावना
फिराक गोरखपुरी की पंक्ति है, ‘सरज़मीने हिन्द पर अक़वामे आलम के फ़िराक़/ काफ़िले बसते गए हिन्दोस्तां
बनता गया।’ भारत को उसकी विविधता और विशालता में ही परिभाषित किया जा सकता है। पर चुनावी
राजनीति ने हमारे सामाजिक जीवन की इस विविधता को जोड़ने के बजाय तोड़ा भी है।
पिछले कुछ वर्षों से भारतीय राष्ट्र-राज्य को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं। राहुल गांधी ने इस साल
फरवरी में संसद में कहा कि भारत राष्ट्र नहीं, राज्यों का संघ है।
ऐसा कहने के पीछे उनकी मंशा क्या थी पता नहीं, पर इतना स्पष्ट है कि राजनीतिक
कारणों से हमारे अंतर्विरोधों को खुलकर खोला जा रहा है। भारत की अवधारणा पर हमलों
को भी समझने की जरूरत है। सच है कि भारत विविधताओं का देश है। आजादी के काफी पहले
अंग्रेज गवर्नर जनरल सर जॉन स्ट्रेची ने कहा था, ‘भारतवर्ष न कभी राष्ट्र था, और न है, और न उसमें यूरोपीय विचारों के अनुसार
किसी प्रकार की भौगोलिक, राजनैतिक, सामाजिक
अथवा धार्मिक एकता है।’ यूरोप के कुछ विद्वान मानते हैं कि भारतवर्ष एक राजनीतिक नाम नहीं, एक
भौगोलिक नाम है जिस प्रकार यूरोप या अफ़्रीका। इन विचारों और नजरियों को तोड़ते
हुए ही भारत में राष्ट्रवाद का उदय और विकास हुआ, जिसका प्रतीक हमारा राष्ट्रीय-ध्वज है। अनेकता में एकता ही भारत की पहचान है, जिसे यूरोपीय-दृष्टि से
समझा नहीं जा सकता।
राष्ट्रवाद का इतिहास
राष्ट्रीय-एकता को स्थापित करता है हमारा राष्ट्रीय-ध्वज। इसके विकास का लंबा इतिहास है। आपने महाभारत के युद्ध का विवरण पढ़ते समय रथों पर फहराती ध्वजाओं का विवरण भी पढ़ा होगा। देशों और राज-व्यवस्थाओं के विकास के साथ राज्य के प्रतीकों का विकास भी हुआ, जिनमें राष्ट्रीय-ध्वज सबसे महत्वपूर्ण हैं। यह ध्वज भारत के राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान विकसित, हुआ है। 1857 के पहले स्वतंत्रता-संग्राम के सेनानियों ने एक ध्वज की योजना बनाई थी। आंदोलन असमय ही समाप्त हो गया और उसके साथ ही वह योजना अधूरी रह गई।