पश्चिम बंगाल सरकार और पत्रकारों के रिश्तों से जुड़ी दो खबरें हाल में पढ़ने को मिलीं। दोनों हालांकि दो विपरीत दिशाओं में थीं, पर दोनों के पीछे इरादा एक ही नज़र आ रहा था। सत्ताधारी की तारीफ करोगे तो वह आपको खुशी देगा, नहीं करोगे तो वह आपको खुश नहीं रहने देगा। सिद्धांत तो यह कहता है कि पत्रकार की जिम्मेदारी तथ्यों के आधार पर समाचार और विचारों को प्रकाशित करने की होती है। विज्ञापन पाना या प्रचार करना उसका काम नहीं है। दूसरी तरफ विचार और अभिव्यक्ति की मर्यादा को बनाए रखने के लिए उसकी जिम्मेदारियाँ भी हैं, जो उसे सकारात्मकता से जोड़ती हैं। जरूरी होने पर ताकतवर से भिड़ने का साहस भी रखता है। दूसरी तरफ राजनीति और सत्ता की सैद्धांतिक-मर्यादा कहती है कि राज-शक्ति का इस्तेमाल न तो वैचारिक दमन के लिए हो और न प्रचार को ‘खरीदने’ के लिए।
सेवा करो,
मेवा पाओ
हाल में ममता बनर्जी का एक वीडियो वायरल हुआ है, जिसमें वे कह रही हैं कि अखबारों को विज्ञापन चाहिए, तो ‘सकारात्मक’ खबरें लिखें। सकारात्मक का मतलब है सरकार के पक्ष में। यह बात उन्होंने छिपाकर नहीं, एक सम्मेलन में खुलेआम कही है। उन्होंने यह भी कहा है कि स्थानीय अखबारों को विज्ञापन हासिल करने हैं, तो ज़िला मजिस्ट्रेट के दफ्तर में पॉजिटिव खबरों वाली प्रतियाँ जमा करें। फिर उन्हें विज्ञापन मिलेंगे। ‘सकारात्मक’ और ‘नकारात्मक’ खबरों का अर्थ बहुत व्यापक है। किसी भी सकारात्मक सूचना को तथ्यों में तोड़-मरोड़ करके नकारात्मक बनाया जा सकता है। जीवन के सकारात्मक और नकारात्मक पक्ष भी होते हैं। पर यह चर्चा फिलहाल कवरेज के राजनीतिक निहितार्थ तक सीमित है।