Sunday, October 27, 2019

एग्जिट पोल हास्यास्पद क्यों?


महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव परिणाम आने के बाद एक पुराना सवाल फिर उठ खड़ा हुआ है कि हमारे यहाँ एग्जिट पोल की विश्वसनीयता कितनी है? यह सवाल इसलिए क्योंकि अक्सर कहा जाता है कि ओपीनियन पोल के मुकाबले एग्जिट पोल ज्यादा सही साबित होते हैं, क्योंकि इनमें वोट देने के फौरन बाद मतदाता की प्रतिक्रिया दर्ज कर ली जाती है। कई बार ये पोल सच के करीब होते हैं और कई बार एकदम विपरीत। ऐसा क्यों होता है? सवाल इनकी पद्धति को लेकर उतना नहीं हैं, जितने इनकी मंशा को लेकर हैं। भारतीय मीडिया अपनी विश्वसनीयता को खो रहा है। इसमें एग्जिट और ओपीनियन पोल की भी भूमिका है।
इसबार महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनाव में एग्जिट पोल ने जो बताया था, परिणाम उससे हटकर आए। एक पोल ने परिणाम के करीब का अनुमान लगाया था, पर उसके परिणाम को भी बारीकी से पढ़ें, तो उसमें झोल नजर आने लगेगा। एक्सिस माई इंडिया-इंडिया टुडे के पोल ने महाराष्ट्र में बीजेपी-शिवसेना की सरकार बनने के संकेत तो दिए थे, लेकिन प्रचंड बहुमत के नहीं। इस पोल ने भाजपा-नीत महायुति को 166-194, कांग्रेस-एनसीपी अघाड़ी को 72-90 और अन्य को 22-34 सीटें दी थीं। वास्तविक परिणाम रहे 161, 98 और 29। यानी भाजपा+ को अनुमान की न्यूनतम सीमा से भी कम, कांग्रेस+ को अधिकतम सीमा से भी ज्यादा और केवल अन्य को सीमा के भीतर सीटें मिलीं।

Wednesday, October 23, 2019

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव की पाँच खास बातें


एक्ज़िट पोल एकबार फिर से महाराष्ट्र में एनडीए की सरकार बनने की भविष्यवाणी कर रहे हैं। सभी का निष्कर्ष है कि विधानसभा की 288 सीटों में से दो तिहाई से ज्यादा भाजपा-शिवसेना गठबंधन की झोली में गिरेंगी। देश की कारोबारी राजधानी मुंबई के कारण महाराष्ट्र देश के सबसे महत्वपूर्ण राज्यों में एक है। लोकसभा में सीटों की संख्या के लिहाज से उत्तर प्रदेश के बाद दूसरा सबसे महत्वपूर्ण राज्य महाराष्ट्र है। चुनाव में मुख्य मुकाबला भाजपा—शिवसेना की ‘महायुति’ और कांग्रेस—राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ‘महा-अघाड़ी' के बीच है। फिलहाल लगता है कि यह मुकाबला भी बेमेल है। चुनाव का विश्लेषण करते वक्त परिणामों से हटकर भी महाराष्ट्र की कुछ बातों पर ध्यान में रखना चाहिए।
1.भाजपा-शिवसेना संबंध
महाराष्ट्र की राजनीति का सबसे रोचक पहलू है भारतीय जनता पार्टी के रिश्तों का ठंडा-गरम पक्ष। इसमें दो राय नहीं कि इनकी ‘महायुति’ राज्य में अजेय शक्ति है, पर इस युतिको बनाए रखने के लिए बड़े जतन करने पड़ते हैं। इसका बड़ कारण है दोनों पार्टियों की वैचारिक एकता। एक विचारधारा से जुड़े होने के बावजूद शिवसेना महाराष्ट्र केंद्रित दल है। शिवसेना ने 2014 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी का साथ छोड़कर अकेले चुनाव लड़ा, पर इससे उसे नुकसान हुआ। भारतीय जनता पार्टी ने इस बीच अपने आधार का विस्तार भी कर लिया। एक समय तक राज्य में शिवसेना बड़ी पार्टी थी, पर आज स्थिति बदल गई है और भारतीय जनता पार्टी अकेले सरकार बनाने की स्थिति में नजर आने लगी है। एक जमाने में जहाँ सीटों के बँटवारे में भाजपा दूसरे नंबर पर रहती थी, वहाँ अब वह पहले नंबर पर रहती है। एक जमाने में मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री पद का फैसला भी सीटों की संख्या पर होता था। इस चुनाव के बाद महायुति की सरकार बनने के पहले का विमर्श महत्वपूर्ण होगा। सन 2014 में दोनों का गठबंधन टूट गया था, पर इसबार दोनों ने फिर से मिलकर चुनाव लड़ा है। दोनों पार्टियों के अनेक बागी नेता भी मैदान में हैं।
2.कांग्रेस-राकांपा रिश्ते
महायुति के समांतरमहा-अघाड़ी के दो प्रमुख दलों के रिश्ते भी तनाव से भरे रहते हैं। शरद पवार ने सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे पर कांग्रेस छोड़कर 1999 में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का गठन किया था। दोनों दलो के बीच तबसे ही दोस्ती और दुश्मनी के रिश्ते चले आ रहे हैं। दोनों पार्टियों ने राज्य में मिलकर 15 साल तक सरकार चलाई। एनसीपी केंद्र में यूपीए सरकार में भी शामिल रही, पर दोनों के बीच हमेशा टकराव रहा। संयोग से कांग्रेस और एनसीपी दोनों की राजनीति उतार पर है। दोनों ही दलों में चुनाव के ठीक पहले अनुशासनहीनता अपने चरम पर थी। यह बात चुनाव परिणामों को प्रभावित करेगी। यह बात दोनों दलों के केंद्रीय नेतृत्व की कमजोरी को भी व्यक्त करती है। 

हरियाणा विधानसभा चुनाव की पाँच खास बातें


हरियाणा में मतदान हो चुका है। गुरुवार को पता भी लग जाएगा कि कौन जीता और कौन हारा। हार और जीत के अलावा कुछ ऐसी बातें हैं, जिनपर गौर करने की जरूरत होगी।
1.भावी राजनीति की दिशा
हरियाणा विधानसभा के 2014 के चुनाव परिणामों से कई मायनों में सबको हैरत हुई थी। लोकसभा चुनाव में बीजेपी में कुल दस में से सात सीटें जीती थीं। प्रेक्षक यह समझना चाहते थे कि यह जीत कहीं तुक्का तो नहीं थी। लोकसभा चुनाव के बाद हुए 13 राज्यों के उप चुनावों से कुछ प्रेक्षकों ने निष्कर्ष निकाला कि ‘मोदी मैजिक’ ख़त्म हो गया। हरियाणा ने इस संभावना को गलत सिद्ध किया था। हरियाणा विधानसभा चुनाव के परिणाम विस्मयकारी थे। इनके बाद ही लगा कि केवल लोकसभा में ही नहीं उत्तर भारत में राज्यों की राजनीति में भी बड़ा उलट-फेर होने वाला है। गठबंधन सहयोगियों के बगैर हरियाणा में मिली सफलता से भाजपा का आत्मविश्वास और महत्वाकांक्षाएं बढ़ीं। इसबार का चुनाव भारतीय जनता पार्टी की इस ताकत का परीक्षण है। हरियाणा के जातीय समीकरण पिछले चुनाव में बिगड़ गए थे। उनकी स्थिति क्या है, इस चुनाव में पता लगेगी। राज्य की 90 में से 35 सीटों पर जाट मतदाता का वर्चस्व है। सवाल है कि वह है किसके साथ?
2.विरोधी ताकत कौन?
एक्ज़िट पोल बता रहे हैं कि राज्य में बीजेपी पिछली बार से भी ज्यादा बड़ी ताकत बनकर उभरेगी। ऐसे में सवाल पैदा होता है कि मुख्य विरोधी दल कौन सा होगा? हरियाणा में पार्टियों के बनने और बिगड़ने का लंबा इतिहास है। यहाँ विशाल हरियाणा पार्टी, हरियाणा विकास पार्टी, हरियाणा जनहित कांग्रेस और इनेलो बनीं और फिर पृष्ठभूमि में चली गईं। पाँच साल पहले तक कांग्रेस और इनेलो दो बड़ी ताकतें होती थीं। पर 2014 के विधानसभा में दोनों का पराभव हो गया। जनता पार्टी के लोकदल घटक की प्रतिनिधि इनेलो सीट और वोट प्रतिशत के आधार पर पिछले विधानसभा चुनाव के पहले तक दूसरे नंबर की ताकत थी। बाद में इनेलो और कांग्रेस दोनों आंतरिक टकराव की शिकार हुईं हैं। इस चुनाव से पता लगेगा कि इन दलों की ताकत क्या है और राज्य की राजनीति किस दिशा में जा रही है। लोकसभा के पिछले चुनावों के पहले उम्मीद थी कि विरोधी दल कोई बड़ा मोर्चा बनाने में कामयाब होंगे। ऐसा नहीं हुआ। चुनाव के ठीक पहले प्रदेश कांग्रेस के शिखर नेतृत्व में हुए बदलाव के परिणामों पर भी नजर रखनी होगी।

Tuesday, October 22, 2019

अयोध्या पर क्यों न हम सकारात्मक रूप से सोचें?


दुर्भाग्य है कि पिछले 27 साल से हमारे सामाजिक जीवन में कुछ लोग 6 दिसम्बर को ‘शौर्य दिवस’ मनाते हैं और कुछ ‘यौमे ग़म.’ एक गहरा सामाजिक विभाजन एक घटना के कारण हमारे जीवन में पैदा हो गया है. अयोध्या में राम जन्मभूमि को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस साल 6 दिसंबर के पहले ही आ जाएगा. इस फैसले को लेकर कई तरह के कयास हैं. क्या अदालत इसे केवल स्वामित्व के रूप में देखेगी? क्या वह आस्था के सवाल पर फैसला करेगी? क्या उसपर जनमत का दबाव होगा? ऐसे बीसियों सवाल हैं. उम्मीदें भी हैं और अंदेशे भी. बेहतर यही होगा कि हम उम्मीद करें कि फैसला ऐसा होगा कि सभी पक्ष इसे स्वीकार करेंगे और हम इस साल से इस फैसले की तारीख को ‘राष्ट्र निर्माण दिवस’ के रूप में मनाना शुरू करेंगे.
इस मामले की सुनवाई के आखिरी दिन तक और अब भी यह सवाल हमारे मन में है कि क्या इसका निपटारा आपसी समझौते से संभव नहीं था? क्या अब भी यह संभव नहीं है? दुर्भाग्य से ऐसा संभव नहीं हुआ. संभव था, तो अबतक हो चुका होता. अब मनाना चाहिए कि यह निपटारा सामाजिक बदमज़गी पैदा न करे. इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में 40 दिन की लगातार सुनवाई के दौरान यह बदमज़गी भी किसी न किसी रूप में व्यक्त हुई थी. सुनवाई के आखिरी दिन भी कुछ ऐसे प्रसंग आए, जिनसे लगा कि कड़वाहट कहीं न कहीं बैठी है और बहुत गहराई से बैठी है.

Sunday, October 20, 2019

मामल्लापुरम से निकले चीनी डिप्लोमेसी के इशारे


चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग की यात्रा के ठीक पहले भारतीय और चीनी मीडिया में इस बात को रेखांकित किया गया कि तमिलनाडु के प्राचीन नगर मामल्लापुरम (महाबलीपुरम) का चयन क्यों किया और किसने किया। खबरें थीं कि चीन ने खासतौर से इस जगह को चुना। चीनी डिप्लोमेसी की विशेषता है कि वे संकेतों का सोच-समझकर इस्तेमाल करते हैं। तमिलनाडु के साथ चीन के ईसा की पहली-दूसरी सदी के रिश्ते हैं। छठी-सातवीं सदी में पल्लव राजाओं ने चीन में अपने दूत भेजे थे। सातवीं सदी में ह्वेनसांग इस इलाके में आए थे।
सन 1956 में तत्कालीन चीनी प्रधानमंत्री चाऊ-एन-लाई भी मामल्लापुरम आए थे। क्या चीन ने जानबूझकर ऐसी जगह का चुनाव किया, जो भगवा मंडली के राजनीतिक प्रभाव से मुक्त है? शायद इन रूपकों और प्रतीकों की चर्चा होने की वजह से ही हमारे विदेश मंत्रालय ने सफाई पेश की कि इस जगह को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुना था। मोदी ने शी के स्वागत में खासतौर से तमिल परिधान वेष्टी को धारण किया।

अयोध्या पर कड़वाहट खत्म होने की घड़ी


अयोध्या मामले पर सत्तर साल से ज्यादा समय से चल रहा कानूनी विवाद तार्किक परिणति तक पहुँचने वाला है। न्याय-व्यवस्था के लिए तो यह मामला मील का पत्थर साबित होगा ही, देश के सामाजिक ताने-बाने के लिए भी युगांतरकारी होगा। मामले की सुनवाई के आखिरी दिन तक और अब फैसला आने के पहले इस बात को लेकर कयास हैं कि क्या इस मामले का निपटारा आपसी समझौते से संभव है? ऐसा संभव होता तो अबतक हो चुका होता। न्यायिक व्यवस्था को ही अब इसका फैसला करना है। अब मनाना चाहिए कि इस निपटारे से किसी किस्म की सामाजिक बदमज़गी पैदा न हो।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में 40 दिन की लगातार सुनवाई के दौरान यह बदमज़गी भी किसी न किसी रूप में व्यक्त हुई थी। अदालत में सुनवाई के आखिरी दिन भी कुछ ऐसे प्रसंग आए, जिनसे लगा कि कड़वाहट कहीं न कहीं गहराई तक बैठी है। अदालत के सामने अलग-अलग पक्षों ने अपनी बात रखी है। उसके पास मध्यस्थता समिति की एक रिपोर्ट भी है। इस समिति का गठन भी अदालत ने ही किया था।

Tuesday, October 15, 2019

करतारपुर कॉरिडोर से खुलेगा नया अध्याय


भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में ज्वार-भाटा जैसा तेज उतार-चढ़ाव आता है. यह जितनी तेजी से आता है, उतनी ही तेजी से उतर जाता है. पिछले एक साल में दोनों देशों के बीच तनाव और टकराव की बातों के साथ-साथ करतारपुर कॉरिडोर के मार्फत दोनों को जोड़ने की बातें भी चल रही हैं. उम्मीद है कि नवम्बर में गुरुनानक देव की 550वीं जयंती के अवसर पर यह गलियारा खुलने के बाद एक नया अध्याय शुरू होगा. केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने जानकारी दी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 8 नवंबर को करतारपुर कॉरिडोर का उद्घाटन करेंगे.72 साल की कड़वाहट के बीच खुशनुमा हवा का यह झोंका आया है.

करतारपुर गलियारा सिखों के पवित्र डेरा बाबा नानक साहिब और गुरुद्वारा दरबार साहिब करतारपुर को जोड़ेगा. करीब 4.7 किलोमीटर लम्बे इस मार्ग से भारत के श्रद्धालु बगैर वीजा के पाकिस्तान स्थित गुरुद्वारे तक जा सकेंगे. इस गलियारे का प्रस्ताव एक अरसे से चल रहा है, पर पिछले साल दोनों देशों ने मिलकर इस गलियारे के निर्माण की योजना बनाई. दोनों देशों के बीच धार्मिक पर्यटन की बेहतरीन संभावनाएं हैं, पर किसी न किसी कारण से इनमें अड़ंगा लग जाता है. 

Monday, October 14, 2019

पाकिस्तान में घहराती घटाएं


Image result for business community meet army chiefसंयुक्त राष्ट्र में इमरान खान के भावुक प्रदर्शन के बाद पाकिस्तान में सवाल उठ रहा है कि अब क्या? इस हफ्ते जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट ने नियंत्रण रेखा पर मार्च किया। शहरों, स्कूलों और सामाजिक-सांस्कृतिक संस्थाओं में कश्मीर को लेकर कार्यक्रम हुए। पर सवाल है कि इससे क्या होगा? पाकिस्तानी शासकों का कहना है कि हम इस मामले के अंतरराष्ट्रीयकरण में कामयाब हुए हैं। दूसरी तरफ एक और सवाल उठ रहा है कि क्या देश में एक और सत्ता परिवर्तन होगा? सवाल उठाने वालों के पास कई तरह के कयास हैं। जमीयत उलेमा—इस्लाम (फज़ल) के प्रमुख फज़लुर रहमान ने 31 अक्तूबर को ‘आज़ादी मार्च’ निकालने का ऐलान कर दिया है। इस मार्च का केवल एक उद्देश्य है सरकार को गिराना। क्या विरोधी दल एक साथ आएंगे? उधर तालिबान प्रतिनिधियों से इस्लामाबाद में अमेरिकी दूत जलमय खलीलज़ाद की हुई मुलाकात के बाद लगता है कि डिप्लोमेसी के कुछ पेच और सामने आने वाले हैं।

पाकिस्तान की आंतरिक राजनीति में बदलाव समर्थकों का अनुमान है कि इमरान के कुछ मंत्रियों पर गाज गिरेगी। संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान की स्थायी प्रतिनिधि मलीहा लोधी की छुट्टी कर दी गई है। उन्हें हटाए जाने को लेकर भी चिमगोइयाँ हैं। सरकार ने स्पष्ट किया है कि यह सामान्य बदलाव  है, पर इस फैसले के समय और तरीके को लेकर कई तरह के अनुमान हैं। कयास तो यह भी है कि इमरान साहब की छुट्टी भी हो सकती है। कौन करेगा छुट्टी? इसके दो तरीके हैं। देश का विपक्ष एकजुट होने की कोशिश भी कर रहा है। दूसरा रास्ता है कि देश की सेना उनकी छुट्टी कर दे।
भला सेना छुट्टी क्यों करेगी?  इमरान तो सेना के ही सिपाही साबित हुए हैं। सेना ने ही उन्हें स्थापित किया है। बाकायदा चुनाव जिताने में मदद की है। सबसे बड़ा सच यह है कि देश के सामने खड़ा आर्थिक संकट बहुत भयावह शक्ल लेने वाला है। अब लगता है कि सेना ने अर्थव्यवस्था को ठीक करने का जिम्मा भी खुद पर ओढ़ लिया है। अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने जानकारी दी है कि हाल में सेनाध्यक्ष कमर जावेद बाजवा ने देश के प्रमुख कारोबारियों के साथ निजी तौर पर कई बैठकें की हैं। गत 2-3 अक्तूबर की रात हुई बैठक के बारे में तो सेना ने आधिकारिक रूप से विज्ञप्ति भी जारी की है।
व्यापारियों के साथ बैठकें
बिजनेस मीडिया हाउस ब्लूमबर्ग के अनुसार देश की व्यापारिक राजधानी कराची और सेना के मुख्यालय रावलपिंडी में कम से कम तीन बैठकें हो चुकी हैं। इन बैठकों की खबरें आने के पहले जुलाई में जब इमरान खान अमेरिका की यात्रा पर गए थे, तब उनके साथ सेनाध्यक्ष बाजवा और आईएसआई के चीफ फैज़ हमीद भी गए थे। उस वक्त माना गया कि शायद वे इसलिए गए होंगे, क्योंकि अफगानिस्तान में शांति समझौते के लिए तालिबान के साथ बातचीत चल रही थी। पाकिस्तानी सेना की तालिबान के साथ नजदीकियों से सब वाकिफ हैं।

Sunday, October 13, 2019

मामल्लापुरम से आगे का परिदृश्य


चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग की दो दिन की भारत यात्रा के बाद दोनों देशों के बीच पैदा हुई कड़वाहट एक सीमा तक कम हुई है। फिर भी इस बातचीत से यह निष्कर्ष नहीं निकाल लेना चाहिए कि हमारे रिश्ते बहुत ऊँचे धरातल पर पहुँच गए हैं। ऐसा नाटकीय बदलाव कभी संभव नहीं। दिसम्बर 1956 में भी चीन के तत्कालीन प्रधानमंत्री चाऊ-एन-लाई इसी मामल्लापुरम में आए थे। उन दिनों हिन्दी-चीनी भाई-भाई का था। उसके छह साल बाद ही 1962 की लड़ाई हो गई। दोनों के हित जहाँ टकराते हैं, वहाँ ठंडे दिमाग से विचार करने की जरूरत है।  विदेश नीति का उद्देश्य दीर्घकालीन राष्ट्रीय हितों की रक्षा करना होता है।
भारतीय विदेश नीति के सामने इस समय तीन तरह की चुनौतियाँ हैं। एक, राष्ट्रीय सुरक्षा, दूसरे आर्थिक विकास की गति और तीसरे अमेरिका, चीन, रूस तथा यूरोपीय संघ के साथ रिश्तों में संतुलन बनाने की। मामल्लापुरम की शिखर वार्ता भले ही अनौपचारिक थी, पर उसका औपचारिक महत्व है। पिछले साल अप्रेल में चीन के वुहान शहर में हुए अनौपचारिक शिखर सम्मेलन से इस वार्ता की शुरुआत हुई है, जिसका उद्देश्य टकराव के बीच सहयोग की तलाश।
दोनों देशों के बीच सीमा इतनी बड़ी समस्या नहीं है, जितनी बड़ी चिंता चीनी नीति में पाकिस्तान की केन्द्रीयता से है। खुली बात है कि चीन न केवल पैसे से बल्कि सैनिक तकनीक और हथियारों तथा उपकरणों से भी पाकिस्तान को लैस कर रहा है। भारत आने के पहले शी चिनफिंग ने इमरान खान को बुलाकर उनसे बात की थी। सही या गलत यह एक प्रकार का प्रतीकात्मक संकेत था। सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता और एनएसजी में चीनी अड़ंगा है। मसूद अज़हर को लेकर चीन ने कितनी आनाकानी की।

Friday, October 11, 2019

नए आत्मविश्वास के साथ तैयार भारतीय वायुसेना


इस साल फरवरी में हुए पुलवामा हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान को माकूल जवाब देने के लिए कई तरह के विकल्पों पर विचार किया और फिर ऑपरेशन बंदर की योजना बनाई गई। इसकी जिम्मेदारी वायुसेना को मिली। भारतीय वायुसेना ने सन 1971 के बाद पहली बार अपनी सीमा पर करके पाकिस्तानी सीमा में प्रवेश किया।
सन 1999 के करगिल अभियान के बाद यह अपनी तरह का सबसे बड़ा और जटिल अभियान था। तकनीकी योजना तथा आधुनिक अस्त्रों के इस्तेमाल के विचार से यह हाल के वर्षों में इसे भारत के ही नहीं दुनिया के सबसे बड़े अभियानों में शामिल किया जाएगा। दिसंबर 2001 में संसद पर हुए हमले के बाद अगस्त 2002 में एक मौका ऐसा आया था, जब वायुसेना ने नियंत्रण रेखा के उस पार पाकिस्तानी ठिकाने पर हवाई हमला और किया था, पर उसका आधिकारिक विवरण सामने नहीं आया। अलबत्ता पिछले वायुसेनाध्यक्ष ने उसका उल्लेख जरूर किया।  
वायुसेना का संधिकाल
भारतीय वायुसेना के सामने बालाकोट अभियान एक बड़ी चुनौती थी, जिसका निर्वाह उसने सफलतापूर्वक किया। वह आधुनिकीकरण की प्रक्रिया से गुजर रही है। एक अर्थ में वह अपने संधिकाल में है। नए लड़ाकू विमान उसे समय से नहीं मिल पाए। पुराने विमान सेवा-निवृत्त होते चले गए। उसके पास लड़ाकू विमानों के 42 स्क्वॉड्रन होने चाहिए, पर उनकी संख्या घटते-घटते 32 के आसपास आ गई है।

Thursday, October 10, 2019

स्विस बैंकों की सूची क्या तोड़ेगी काले धन का जाल?


अंततः भारत सरकार को स्विस बैंकों में जमा धन के बारे में आधिकारिक जानकारियों का सिलसिला शुरू हो गया है. इसी हफ्ते की खबर है कि सरकार को स्विस बैंकों में भारतीय खाता धारकों के ब्यौरे की पहली लिस्ट मिल गई है.  यह सूचना भारत को स्विट्ज़रलैंड सरकार ने ऑटोमेटिक एक्सचेंज ऑफ इनफॉर्मेशन (एईओआई) की नई व्यवस्था के तहत दी है. यह जानकारी केवल भारत के लिए विशेष नहीं है, बल्कि स्विट्जरलैंड के फेडरल टैक्स एडमिनिस्ट्रेशन ने 75 देशों को दी है. भारत भी इनमें शामिल है.

इस सूची से भारत को कितने काले धन की जानकारी मिलेगी और हम कितना काला धन वसूल कर पाएंगे, ऐसे सवालों का जवाब फौरन नहीं मिलेगा. इन विवरणों की गहराई से जाँच करने की जरूरत होगी. अलबत्ता महत्वपूर्ण वह व्यवस्था है, जिसके तहत यह जानकारी मिली है. यह एक अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था है, जिसका उद्देश्य दुनियाभर में टैक्स चोरी को रोकना तथा काले धन पर काबू पाना है. भारत ने काफी संकोच के बाद 3 जून 2015 को स्विट्ज़रलैंड के साथ इस समझौते पर दस्तखत किए थे और यह व्यवस्था इस साल सितंबर से लागू हुई है.

Monday, October 7, 2019

गांधी की बातें, जो हमने नहीं मानीं


कुछ लोग कहते हैं, मजबूरी का नाम महात्मा गांधी। उनके जन्मदिन को राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाने और तमाम शहरों की सड़कों को महात्मा गांधी मार्ग बनाने के बावजूद हमें लगता है कि उनकी जरूरत 1947 के पहले तक थी। अब होते भी तो क्या कर लेते? वैश्विक अर्थव्यवस्था को लेकर हम उनकी धारणाओं पर विचार करते भी नहीं हैं, पर आज जब समाजवाद के बाद पूँजीवाद के अंतर्विरोध सामने आ रहे हैं, हमें गांधी याद आते हैं। गांधी अगर प्रासंगिक हैं, तो दुनिया के लिए हैं, केवल भारत के लिए नहीं
गांधी उतने अव्यावहारिक नहीं थे, जितना समझा जाता है। हमने उनकी ज्यादातर भूमिका स्वतंत्रता संग्राम में ही देखी। और उन्हें प्रतिरोध के आगे देख नहीं पाते हैं। स्वतंत्र होने के बाद देश के सामने जब प्रशासनिक-राजनीतिक समस्याएं आईं तबतक वे चले गए। फिर भी गांधी की प्रशासनिक समझ का जायजा उनके लेखन और व्यावहारिक गतिविधियों से लिया जा सकता है। देखने की जरूरत है कि कौन से ऐसे क्षेत्र हैं, जिनमें हमने गांधी की सरासर उपेक्षा की है। कम से कम तीन विषय ऐसे हैं, जिनमें गांधी की सरासर उपेक्षा हुई है। 1.स्त्रियाँ, 2.भाषा और 3.शिक्षा।

Sunday, October 6, 2019

चुनाव के पहले लड़खड़ाती कांग्रेस


इस साल हुए लोकसभा चुनाव के बाद के राजनीतिक परिदृश्य का पता इस महीने हो रहे महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा के चुनावों से लगेगा। दोनों राज्यों में सभी सीटों पर प्रत्याशियों के नाम तय हो चुके हैं, नामांकन हो चुके हैं और अब नाम वापसी के लिए एक दिन बचा है। दोनों ही राज्यों में एक तरफ भारतीय जनता पार्टी के बढ़ते हौसलों की और दूसरी तरफ कांग्रेस के अस्तित्व-रक्षा से जुड़े सवालों की परीक्षा है। एक प्रकार से अगले पाँच वर्षों की राजनीति का यह प्रस्थान-बिंदु है।
कांग्रेस के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए कहीं न कहीं अपने पैर जमाने होंगे। ये दोनों राज्य कुछ साल पहले तक कांग्रेस के गढ़ हुआ करते थे। अब दोनों राज्यों में उसे अपने अस्तित्व को कायम रखने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। इन चुनावों में उसकी संगठनात्मक सामर्थ्य के अलावा वैचारिक आधार की परीक्षा भी है। पार्टी कौन से नए नारों को लेकर आने वाली है? क्या वह लोकसभा चुनाव में अपनाई गई और उससे पहले मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों में तैयार की गई रणनीति को दोहराएगी?

Saturday, October 5, 2019

कांग्रेस के लिए अशनि संकेत



लोकसभा चुनाव में मिली भारी पराजय के बाद कांग्रेस पार्टी को संभलने का मौका भी नहीं मिला था कि कर्नाटक और तेलंगाना में बगावत हो गई। राहुल गांधी के इस्तीफे के कारण पार्टी के सामने केंद्रीय नेतृत्व और संगठन को फिर से खड़ा करने की चुनौती है। फिलहाल सोनिया गांधी को फिर से सामने लाने के अलावा पार्टी के पास कोई विकल्प नहीं था। अब पहले महाराष्ट्र और हरियाणा और उसके बाद झारखंड और फिर दिल्ली में विधानसभा चुनावों की चुनौती है। इनका आगाज़ भी अच्छा होता नजर नहीं आ रहा है।
महाराष्ट्र में संजय निरुपम और हरियाणा में अशोक तँवर के बगावती तेवर प्रथम ग्रासे मक्षिका पातः की कहावत को दोहरा रहे हैं। महाराष्ट्र में संजय निरुपम भले ही बहुत बड़ा खतरा साबित न हों, पर हरियाणा में पहले से ही आंतरिक कलह के कारण लड़खड़ाती कांग्रेस के लिए यह अशुभ समाचार है। संजय और अशोक दोनों का कहना है कि पार्टी के वफादार कार्यकर्ताओं की उपेक्षा हो रही है। दोनों की बातों से लगता है कि पार्टी में राहुल गांधी के वफादारों की अनदेखी की जा रही है।

Friday, October 4, 2019

बदलते मौसम का संकेत है बिहार की बाढ़


बिहार इन दिनों बारिश और बाढ़ की मार से जूझ रहा है. पटना शहर डूबा पड़ा है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सुशासन पर तंज कसे जा रहे हैं. उन्होंने भी पलट कर कहा है कि क्या बिहार में बाढ़ ही सबसे बड़ी समस्या है? कभी हम सूखे का सामना करते हैं और कभी बाढ़ का. जब उनसे बार-बार सवाल किया गया तो वे भड़क गए. उन्होंने कहा, ‘मैं पूछ रहा हूं कि देश और दुनिया के और कितने हिस्से में बाढ़ आई है. अमेरिका का क्या हुआ?
उनकी पार्टी बिहार में बाढ़ प्रबंधन की आलोचना होने पर मुंबई और चेन्नई की बाढ़ का हवाला दे चुके हैं. अब नीतीश कुमार ने अमेरिका का जिक्र करके मौसम की अनिश्चितता की ओर इशारा किया है. बेशक इससे बाढ़ प्रबंधन और जल भराव से जुड़े सवालों का जवाब नहीं मिलता, पर यह सवाल इस बार शिद्दत के साथ उभर कर आया है कि जब मॉनसून की वापसी का समय होता है, तब इतनी भारी बारिश क्यों हुई? इससे जुड़ा दूसरा सवाल यह है कि मौसम दफ्तर की भविष्यवाणी थी कि इस साल सामान्य से कम वर्षा होगी, तब सामान्य से ज्यादा वर्ष क्यों हुई?

केवल बिहार ही नहीं उत्तर प्रदेश में भी इस साल आखिरी दिनों की इस बारिश ने जन-जीवन अस्त-व्यस्त कर दिया. देश के मौसम दफ्तर के अनुसार दक्षिण पश्चिम मॉनसून को इस साल सोमवार 30 सितंबर को समाप्त हो जाना चाहिए था, बल्कि आधिकारिक तौर पर वह वापस चला गया है. पर सामान्य के मुकाबले 110 प्रतिशत वर्षा के बावजूद बरसात जारी है और अनुमान है कि मॉनसून की वापसी 10 अक्तूबर से शुरू होगी. संभवतः यह पिछले एक सौ वर्षों का सबसे लंबा मॉनसून साबित होगा. इसके पहले सन 1961 में मॉनसून की वापसी 1 अक्तूबर को हुई थी और 2007 में 30 सितंबर को.