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Monday, November 7, 2016

अखिलेश और पीके की मुलाकात तो हुई

कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर उर्फ पीके की रविवार की यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से सोमवार 7 नवम्बर को आखिरकार मुलाकात हो गई। इसके पहले खबरें थीं कि अखिलेश ने उनसे मिलने से मना कर दिया है। बहरहाल इस मुलाकात के बाद समाजवादी पार्टी के साथ कांग्रेस के गठबंधन के कयासों को और हवा मिल गई है।

प्रशांत इससे पहले दिल्ली में और फिर लखनऊ में मुलायम सिंह यादव और शिवपाल यादव से मुलाकात कर चुके हैं। वहीं पीके को लेकर कांग्रेस के भीतर असमंजस है। दिल्ली में राहुल गांधी को पार्टी का अध्यक्ष बनाने की तैयारियाँ हो रहीं है। उधर खबरें हैं कि कांग्रेस के प्रदेश सचिव सुनील राय समेत कई पदाधिकारियों ने उपाध्यक्ष राहुल गांधी को लिखे पत्र में यूपी में गठजोड़ का विरोध किया है।

अब तलवार तो अखिलेश के हाथ में है

समाजवादी पार्टी ने अपना रजत जयंती समारोह मना लिया और यूपी में बिहार जैसा महागठबंधन बनाने की सम्भावनाओं को भी जगा दिया, पर उसकी घरेलू कलह कालीन के नीचे दबी पड़ी है। जैसे ही मौका मिलेगा बाहर निकल आएगी। पार्टी साफ़ तौर पर दो हिस्सों में बंट चुकी है। पार्टी सुप्रीमो ने एक को पार्टी दी है और दूसरे को सरकार। पार्टी अलग जा रही है और सरकार अलग। मुलायम सिंह असहाय खड़े दोनों को देख रहे हैं। बावजूद बातों के अभी यह मान लेना गलत होगा कि उत्तर प्रदेश में महागठबंधन बनने वाला है। धीरे-धीरे साफ हो रहा है कि तलवार अब अखिलेश के हाथ में है।

Monday, October 31, 2016

सपा के तम्बू में वर्चस्व का संग्राम

कुछ दिन पहले तक समाजवादी पार्टी पर वंशवाद का आरोप था। अब उसके भीतर प्रति-वंशवाद जन्म ले रहा है। बारह दूने आठ का यह नया पहाड़ा  वंशवाद का बाईप्रोडक्ट है। सवाल उत्तराधिकार का है। समझना यह होगा कि सन 2012 में जब मुलायम सिंह ने अखिलेश को अपना उत्तराधिकारी बनाया था तब वजह क्या थी और आज उन्हें अपने किए पर पछतावा क्यों है?

Sunday, October 30, 2016

बिहार के रास्ते पर यूपी की राजनीति?

क्या उत्तर प्रदेश बिहार के रास्ते जाएगा?

प्रमोद जोशी
वरिष्ठ पत्रकार, बीबीसी हिंदी डॉटकॉम के लिए

उत्तर प्रदेश के राजनीतिक आकाश पर जैसे शिकारी पक्षी मंडराने लगे हैं. चुनाव नज़दीक होने की वजह से यह लाज़िमी था. लेकिन समाजवादी पार्टी के घटनाक्रम ने इसे तेज़ कर दिया है. हर सुबह लगता है कि आज कुछ होने वाला है.

प्रदेश की राजनीति में इतने संशय हैं कि अनुमान लगा पाना मुश्किल है कि चुनाव बाद क्या होगा. कुछ समय पहले तक यहाँ की ज्यादातर पार्टियाँ चुनाव-पूर्व गठबंधनों की बात करने से बच रही थीं.

भारतीय जनता पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने दावा किया था कि वे अकेले चुनाव में उतरेंगी. लेकिन अब उत्तर प्रदेश अचानक बिहार की ओर देखने लगा है. पिछले साल बिहार में ही समाजवादी पार्टी ने 'महागठबंधन की आत्मा को ठेस' पहुँचाई थी. इसके बावजूद ऐसी चर्चा अब आम हो गई है.

बहरहाल, अब उत्तर प्रदेश में पार्टी संकट में फँसी है तो महागठबंधन की बातें फिर से होने लगीं हैं.
सवाल है कि क्या यह गठबंधन बनेगा? क्या यह कामयाब होगा?

सपा और बसपा के साथ कांग्रेस के तालमेल की बातें फिर से होने लगी हैं. इसके पीछे एक बड़ी वजह है 'सर्जिकल स्ट्राइक' के कारण बीजेपी का आक्रामक रुख.

उधर कांग्रेस की दिलचस्पी अपनी जीत से ज्यादा बीजेपी को रोकने में है, और सपा की दिलचस्पी अपने को बचाने में है. कांग्रेस, सपा, बसपा और बीजेपी सबका ध्यान मुस्लिम वोटरों पर है. बीजेपी का भी...

मुस्लिम वोट के ध्रुवीकरण से बीजेपी की प्रति-ध्रुवीकरण रणनीति बनती है. 'बीजेपी को रोकना है' यह नारा मुस्लिम मन को जीतने के लिए गढ़ा गया है. इसमें सारा ज़ोर 'बीजेपी' पर है.

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Monday, October 24, 2016

बादशाह अकबर के खिलाफ खड़े हैं 'सलीम' अखिलेश

मुलायम 'अकबर' के सामने 'सलीम' अखिलेश?
सलमान रावी
बीबीसी संवाददाता, दिल्ली

समाजवादी पार्टी में हालात कुछ मुग़लिया सल्तनत के उस दौर जैसे हैं जब अकबर हिन्दुस्तान के शहंशाह हुआ करते थे और सलीम को ख़ुद की पहचान के लिए बग़ावत करनी पड़ी थी.

राजनीतिक विश्लेषक समाजवादी पार्टी की बैठक के दौरान अखिलेश यादव के तेवर में बग़ावत की बू पाते हैं.
बैठक के दौरान पार्टी सर्वेसर्वा मुलायम सिंह यादव द्वारा पुत्र को सार्वजनिक फटकार, और अखिलेश यादव की चाचा शिवपाल यादव से हुई नोक झोंक से समझ साफ है कि समाजवादी पार्टी में सबकुछ ठीक नहीं है.

राजनीतिक विश्लेषक प्रमोद जोशी कहते हैं कि अखिलेश यादव का राजनीतिक भविष्य उनकी बग़ावत में ही है.

प्रमोद जोशी कहते हैं, "अखिलेश यादव की बग़ावत उसी तरह की है जैसी शहज़ादे सलीम ने अकबर के ख़िलाफ़ की थी. अगर वो झुक जाते हैं तो उनका राजनीतिक भविष्य ख़त्म हो जाएगा."

पूरा आलेख पढ़ें बीबीसी हिन्दी डॉट कॉम पर 

Sunday, September 18, 2016

सवाल तो अब खड़े होंगे

देश के सबसे बड़े समाजवादी परिवार की कलह फिलहाल दबा दी गई है, पर अपने पीछे कुछ सवाल छोड़ गई है। अखिलेश और शिवपाल यादव ने इस विवाद को सार्वजनिक रूप से और ज्यादा न बढ़ाने का फैसला करके कलह पर पर्दा डाल दिया है, पर किसी न किसी सतह पर विवाद कायम रहेगा। मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश की महत्वाकांक्षा की आलोचना की है। उन्होंने शिवपाल को मंत्री के रूप में प्रतिष्ठित करने के साथ-साथ पार्टी का अध्यक्ष पद भी सौंपा है। पर एक इंटरव्यू में यह भी कहा है कि रामगोपाल यादव पार्टी में नम्बर 2 हैं। बहरहाल सपा के भीतर जो सवाल उठ रहे हैं वे केवल समाजवादी पार्टी ही नहीं उन सभी पार्टियों के भीतर उठेंगे, जो व्यक्ति केन्द्रित हैं। देश के ज्यादातर दल इस रोग के शिकार हैं।