लगातार अलोकप्रिय होते जा रहे इमरान खान को लेकर पाकिस्तान में अनिश्चय बढ़ता जा रहा है। पर्यवेक्षक वर्तमान व्यवस्था को बदलने का सुझाव देने लगे हैं। हालांकि उनका कार्यकाल अगले साल अगस्त तक है, पर उसके पहले ही उनके हटने की बातें हो रही हैं। नवंबर में सेनाध्यक्ष कमर जावेद बाजवा का कार्यकाल खत्म हो रहा है, जिसे इमरान सरकार ने खींचकर बढ़ाया था। बाजवा का कार्यकाल बढ़ने से जो अंतर्विरोध पैदा हुए हैं, वे भी इमरान के गले की हड्डी हैं। तालिबान के काबिज होने के बावजूद अफगानिस्तान को लेकर पाकिस्तानी मुराद पूरी नहीं हुई है। आर्थिक-संकट सिर पर है, और अंदरूनी राजनीति हिचकोले खा रही है। इन हालात में वे 3 फरवरी को चीन जा रहे हैं।
इमरान-समर्थक साबित करने में लगे हैं कि बस
वक्त बदलने ही वाला है। चीन-रूस-पाकिस्तान की धुरी बनने वाली है, चीनी उद्योग
सीपैक में आने वाले हैं, स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन बनेंगे और पाकिस्तान स्टील मिल्स का
उद्धार चीनी कंपनियाँ करेंगी वगैरह-वगैरह। इमरान खान चीन में हो रहे विंटर ओलिम्पिक्स के उद्घाटन समारोह में हाजिरी
देने जा रहे हैं। अमेरिका समेत पश्चिमी देशों ने इस आयोजन का राजनयिक बहिष्कार
करने की घोषणा की है। बहरहाल पाकिस्तान में इस चीन-यात्रा को बहुत महत्वपूर्ण माना
जा रहा है। इसके लिए सेनाध्यक्ष कमर जावेद बाजवा ने उन्हें विशेष ब्रीफिंग
दी। इमरान के करीबी पर्यवेक्षक शगूफे छोड़ रहे हैं कि नए ध्रुवीकरण का केंद्र
पाकिस्तान बनने जा रहा है। चीन में न केवल राष्ट्रपति पुतिन के साथ इमरान खान की
मीटिंग होगी, बल्कि एक त्रिपक्षीय-मुलाकात भी होगी, जिसमें चीन-रूस और पाकिस्तान
के शासनाध्यक्ष होंगे।
उम्मीद पर पानी फिरा
रूस-सरकार ने इन शिगूफों पर पानी डाल दिया है और स्पष्ट किया है कि पुतिन की केवल चीनी के राष्ट्रपति से भेंट होगी, किसी और के साथ नहीं। त्रिपक्षीय तो दूर की बात है, पुतिन से द्विपक्षीय बात भी होने वाली नहीं है। बात होने या नहीं होने से ज्यादा महत्वपूर्ण है पाकिस्तान की घटती साख। चीन के साथ ‘हिमालय से ऊँची और समुद्र से गहरी’ दोस्ती की असलियत से भी पाकिस्तान इस समय रूबरू है। इमरान खान की यात्रा के ठीक पहले पाकिस्तान ने पिछले साल आतंकवादी हमले में हताहत दासू बिजली परियोजना से जुड़े 36 चीनी नागरिकों को मुआवजा देने का फैसला किया है।