पिछले साल जब सरकार ने योजना
आयोग की जगह ‘नेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया’ (राष्ट्रीय भारत परिवर्तन संस्थान) यानी ‘नीति’ आयोग बनाने
की घोषणा की थी तब कुछ लोगों ने इसे छह दशक से चले आ रहे नेहरूवादी समाजवाद की
समाप्ति के रूप में लिया. यह तय करने की जरूरत है कि वह राजनीतिक प्रतिशोध था या
भारतीय रूपांतरण के नए फॉर्मूले की खोज. वह एक संस्था की समाप्ति जरूर थी, पर क्या
योजना की जरूरत खत्म हो गई? नेहरू का हो या मोदी का ‘विज़न’ या दृष्टि की जरूरत
हमें तब भी थी और आज भी है.