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Thursday, October 2, 2025

इन नौ रावणों का भी अंत होना चाहिए


रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथों के लेखन का उद्देश्य वेद के गूढ़ ज्ञान को सरल करना था. कोशिश यह थी कि आम लोगों को ये बातें कहानियों के रूप में सरल भाषा में समझाई जाएँ, ताकि उन्हें उनके कर्तव्यों की शिक्षा दी जा सके.

भारतीय संस्कृति के प्राचीन सूत्रधारों ने ज्ञान को कहानियों, अलंकारों और प्रतीकों की भाषा में लिखा. ऐसी घटनाएँ और ऐसे पात्र हर युग में होते हैं. उनके नाम और रूप बदल जाते हैं, इसलिए इनके गूढ़ार्थ को आधुनिक संदर्भों में भी देखने की ज़रूरत है.

तुलसी के रामचरित मानस और वाल्मीकि की रामायण में रावण को दुष्ट व्यक्ति के रूप में दिखाया गया है, जिसका वध राम ने किया. यह कहानी प्रतीक रूप में है, जिसके पीछे व्यक्ति और समाज के दोषों से लड़ने का आह्वान है.

हमारे पौराणिक ग्रंथों में वर्णित रावण के दस सिरों की अनेक व्याख्याएँ हैं. मोटे तौर पर वे दस नकारात्मक प्रवृत्तियों के प्रतीक हैं. ये प्रवृत्तियाँ हैं काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, घृणा, ईर्ष्या, द्वेष एवं भय. इन प्रवृत्तियों के कारण व्यक्ति रावण है.

रावण के पुतले का दहन इन बुराइयों को दूर करने और अच्छाई के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है. एक परिभाषा से नौ प्रकार के रावण नौ प्रकार की दुष्प्रवृत्तियों के प्रतिनिधि हैं, जिन्हें रावण के दस सिरों से समझा जा सकता है. ऐसा भी माना जाता है कि रावण का एक सिर सकारात्मक ज्ञान का प्रतीक है, और शेष नौ नकारात्मक प्रवृत्तियों के प्रतिनिधि.  

सैकड़ों साल से रावण के पुतलों का हम दहन करते आए हैं, क्या उसी रावण को हम आज भी मारना चाहते हैं? क्या उन्हीं प्रवृत्तियों से हम लड़ते रहेंगे? क्या हमें उन नई प्रवृत्तियों के विरुद्ध लड़ाई नहीं लड़नी चाहिए, जो आज के संदर्भ में प्रासंगिक हैं.

रामायण बताती है कि रावण विद्वान व्यक्ति था और नीति का विशेषज्ञ, पर उसके अवगुण उसे दुष्ट व्यक्ति बनाते थे. उसके दस सिरों में केवल एक सकारात्मक ज्ञान का प्रतीक था, शेष नौ अवगुणों के. प्रश्न है आज की परिस्थितियों में हम कौन से अवगुणों से युक्त नौ रावणों को मारना चाहेंगे? ऐसे नौ रावण, जिनका मरना देश और मानवता के हित में जरूरी है?

Wednesday, October 1, 2025

बिगड़ती विश्व-व्यवस्था और संयुक्त राष्ट्र


सितंबर के महीने में हर साल होने वाले संरा महासभा के सालाना अधिवेशन का राजनीतिक-दृष्टि से कोई विशेष महत्व नहीं होता. अलबत्ता 190 से ऊपर देशों के शासनाध्यक्ष या उनके प्रतिनिधि सारी दुनिया से अपनी बात कहते हैं, जिसमें राजनीति भी शामिल होती है.

भारत के नज़रिए से देखें, तो पिछले कई दशकों से इस दौरान भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्तों की कड़वाहट सामने आती रही है. भारत भले ही पाकिस्तान का ज़िक्र न करे पर पाकिस्तानी नेता किसी न किसी तरीके से भारत पर निशाना लगाते हैं.

यह अंतर दोनों देशों के वैश्विक दृष्टिकोण को रेखांकित करता है. दोनों देशों के नेताओं के पिछले कुछ वर्षों के भाषणों का तुलनात्मक अध्ययन करें, तो पाएँगे कि पाकिस्तान का सारा जोर कश्मीर मसले के अंतरराष्ट्रीयकरण और उसकी नाटकीयता पर होता है और भारत का वैश्विक-व्यवस्था पर.

इस वर्ष इस अधिवेशन पर हालिया सैनिक-टकराव की छाया भी थी। ऐसे में इन भाषणों पर सबकी निगाहें थी, पर इस बार अमेरिका के राष्ट्रपति के भाषण ने भी हमारा ध्यान खींचा, जिसपर आमतौर पर हम पहले ध्यान नहीं देते थे.

दक्षिण एशिया

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ और भारत के विदेशमंत्री एस जयशंकर के भाषणों में उस कड़वाहट का ज़िक्र था, जिसके कारण दक्षिण एशिया दुनिया के सबसे पिछड़े इलाकों में बना हुआ है. अलबत्ता जयशंकर ने भारत की वैश्विक भूमिका का भी ज़िक्र किया.

इससे पहले पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने मई में तनाव बढ़ने के दौरान पाकिस्तान को राजनयिक समर्थन देने के लिए चीन, तुर्की, सऊदी अरब, क़तर, अजरबैजान, ईरान, संयुक्त अरब अमीरात और संयुक्त राष्ट्र महासचिव सहित पाकिस्तान के ‘मित्रों और साझेदारों’ को धन्यवाद दिया.

उन्होंने एक से ज्यादा बार भारत का नाम लिया और यहाँ तक कहा कि पाकिस्तान ने भारत के साथ युद्ध जीत लिया है और अब हम शांति जीतना चाहते हैं.

उनके इस दावे के जवाब में भारत के स्थायी मिशन की फ़र्स्ट सेक्रेटरी पेटल गहलोत ने 'राइट टू रिप्लाई' का इस्तेमाल करते हुए कहा, ‘तस्वीरों को देखें, अगर तबाह रनवे और जले हैंगर जीत है, तो पाकिस्तान आनंद ले सकता है.’

उन्होंने कहा, इस सभा ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की बेतुकी नौटंकी देखी, जिन्होंने एक बार फिर आतंकवाद का महिमामंडन किया, जो उनकी विदेश नीति का मूल हिस्सा है.’

Wednesday, September 24, 2025

सऊदी-पाक समझौते ने बदला प.एशिया का परिदृश्य

 

सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच हाल में हुए आपसी सुरक्षा के समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद इसके निहितार्थ को लेकर कई तरह की अटकलें हैं. खासतौर से हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण हैं भारतीय-सुरक्षा से जुड़े सवाल.

समझौता होने का समय उतना ही महत्वपूर्ण है, जितनी कि उसकी विषयवस्तु है. इसकी घोषणा इसराइल के क़तर पर हुए हमले के बमुश्किल एक हफ़्ते बाद हुई है. इससे खाड़ी देशों की असुरक्षा व्यक्त हो रही है, वहीं पश्चिम एशिया में पाकिस्तान की बढ़ती भूमिका दिखाई पड़ रही है.

समझौते के साथ एक गीत भी जारी किया गया है. अरबी में लिखे इस गीत में कहा गया है, पाकिस्तान और सऊदी अरब, आस्था में भाई-भाई. दिलों का गठबंधन और मैदान में एक तलवार.’

मोटे तौर पर सऊदी अरब अपनी सुरक्षा मज़बूत करना चाहता है और पैसों की तंगी से जूझ रहे पाकिस्तान को अपनी सैन्य शक्ति के कारण सुरक्षा-प्रदाता के रूप में पेश करने और अपने आर्थिक-आधार को पुष्ट करने का मौका मिल रहा है.

Thursday, August 21, 2025

भारत को लंबा खेल ही खेलना होगा

इकोनॉमिस्ट में कैल का कार्टून

भारत-अमेरिका व्यापार समझौते पर बातचीत फिलहाल रोक दी गई है. वहीं अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच पिछले शुक्रवार को हुई बातचीत से ऐसा कोई समाधान नहीं निकला है, जिससे भारत की उम्मीदें बढ़ें.

व्यापार वार्ता के विफल होने से भारत की चिंताएँ इसलिए बढ़ी हैं, क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने भारतीय उत्पादों पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाने की घोषणा की है, जो दुनिया में किसी भी देश पर लगा सबसे ज़्यादा टैरिफ है.

25 प्रतिशत टैरिफ पहले ही लागू है, रूस के तेल व्यापार पर 25 प्रतिशत का अतिरिक्त टैरिफ भू-राजनीतिक घटनाक्रम पर निर्भर करेगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस भाषण में कहा कि हम अपने किसानों, मछुआरों और पशुपालकों की भलाई के साथ कोई समझौता नहीं करेंगे.  

रोचक बात यह है कि ट्रंप का झुकाव रूस की तरफ है, और अलास्का वार्ता कमोबेश रूस के पक्ष में ही रही है. ट्रंप की कोशिश अब यूक्रेन पर दबाव डालने की होगी. दूसरी तरफ वे भारत को धमका रहे हैं.

Wednesday, July 23, 2025

भारत-अमेरिका रिश्तों में ‘पाकिस्तानी’ ख़लिश


पिछले कुछ महीनों में भारत और पाकिस्तान के रिश्तों के बीच में अमेरिका की एक अटपटी सी भूमिका सामने आ रही है. इसमें सबसे ज्यादा ध्यान खींच रहा है, अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप का बार-बार दावा करना कि मैंने लड़ाई रुकवा दी.

ट्रंप ने यहाँ तक कहा था कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान को व्यापार बंद करने की धमकी दी थी, जिसके बाद दोनों देश संघर्ष-विराम के लिए राज़ी हुए. इतना ही काफी नहीं था, हाल में उन्होंने एक से ज्यादा बार कहा है कि इस लड़ाई में पाँच जेट विमान गिराए गए.

शुरू में साफ-साफ कहा कि भारत के जेट गिराए गए, पर नवीनतम वक्तव्य में यह स्पष्ट नहीं किया है कि ये किसके विमान थे, पर इशारा साफ है. सवाल यह नहीं है कि यह सच है या नहीं, सवाल यह है कि ट्रंप बार-बार ऐसा क्यों बोल रहे हैं.

नीतिगत बदलाव

पर्यवेक्षकों को अब कुछ और बातें नज़र आने लगी हैं. एक तो यह कि एक दशक पहले अमेरिका ने भारत और पाकिस्तान को डिहाइफनेट करने की जो नीति बनाई थी, वह खत्म हो रही है. दक्षिण एशिया को लेकर अमेरिकी नीति में बदलाव हो रहा है.

इस बदलाव का मतलब यह नहीं है कि अमेरिका के भारत से रिश्तों में खिंचाव आएगा. शायद वह पाकिस्तान को अपने हाथ से बाहर नहीं जाने देना चाहता, जो हाल के वर्षों में पूरी तरह चीन की गोदी में जाकर बैठ गया है.

Wednesday, July 16, 2025

चीन के आंतरिक-मंथन को लेकर अफवाहें


चीन को लेकर आमतौर पर हमेशा ही कुछ खबरें हवा में रहती हैं. इन दिनों भी दो-तीन खबरें चर्चा में हैं. एक, अमेरिका के साथ व्यापार समझौते पर है, जिसके पीछे सनसनी नहीं है, पर उसका राजनीतिक महत्व ज़रूर है.

दूसरी चीन की आंतरिक-राजनीति को लेकर है. हाल में वहाँ सेना के कुछ महत्वपूर्ण अधिकारियों की तनज़्ज़ुली या बर्खास्तगी हुई है, वहीं कुछ समय से राष्ट्रपति शी चिनफिंग की सार्वजनिक-कार्यक्रमों में अनुपस्थिति ने ध्यान खींचा है. हाल में ब्राज़ील में हुए ब्रिक्स के शिखर सम्मेलन में उन्होंने शामिल न होने का फ़ैसला किया, जिससे अटकलें बढ़ीं.

उनके 13 साल के शासनकाल में ऐसी ही अफवाहें बार-बार उड़ी हैं, और हर बार झूठी साबित हुई हैं. शायद इसबार की चर्चाएँ भी निराधार हैं, पर लगता है कि वहाँ शी चिनफिंग के उत्तराधिकार को लेकर कुछ चल रहा है. शायद वे खुद उत्तराधिकार की व्यवस्था को कोई शक्ल दे रहे हैं.

विश्लेषकों का कहना है कि सत्ता में बने रहने या सत्ता साझा करने की उनकी योजना 2027 में होने वाली पार्टी की अगली पाँच-वर्षीय कांग्रेस से पहले या उसके दौरान लागू हो जाएगी, तब तक उनका तीसरा कार्यकाल समाप्त हो जाएगा.

व्यवस्था-परिवर्तन

बात केवल नेतृत्व परिवर्तन की नहीं है, बल्कि व्यवस्था-परिवर्तन या उसमें संशोधन की भी है. शी ने 2022 में अपने तीसरे और संभवतः आजीवन कार्यकाल की शुरुआत लोहे के दस्ताने पहन कर की थी. उस वक्त उन्होंने देश की आर्थिक, विदेश और सैनिक नीतियों में बदलाव का इशारा भी किया था.

देश की अर्थव्यवस्था के विस्तार ने विसंगतियों को जन्म दिया है. असमानता का स्तर बढ़ा है. एक तरफ तुलनात्मक गरीबी है, वहीं एक नया कारोबारी समुदाय तैयार हो गया है, जो सरकारी नीतियों के बरक्स दबाव-समूहों का काम करने लगा है.

Saturday, July 12, 2025

दक्षिण एशिया में प्रवेश की चीनी कोशिशें


हाल में भारतीय सेना के उप प्रमुख ने बताया कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान चीन और तुर्की ने पाकिस्तान का खुलकर साथ दिया. हम एक सीमा पर दो विरोधियों या असल में तीन से जंग लड़ रहे थे. पाकिस्तान अग्रिम मोर्चे पर था और चीन उसे हर संभव सहायता प्रदान कर रहा था.

यह बात बरसों से कही जा रही है कि भारत को अब दो मोर्चों पर एकसाथ लड़ाई लड़नी होगी. अभी यह परोक्ष सहयोग है, बाद में प्रत्यक्ष लड़ाई भी हो सकती है. इस खबर के पहले एक और खबर आई थी, जो बताती है कि दक्षिण एशिया में चीन की दिलचस्पी बढ़ती जा रही है.

गत 19 जून को चीन, बांग्लादेश और पाकिस्तान ने चीन के युन्नान प्रांत के कुनमिंग में विदेश कार्यालय स्तर पर अपनी पहली त्रिपक्षीय बैठक की. वैकल्पिक संगठन के लिए चीन-पाकिस्तान की योजना कोई आश्चर्य की बात नहीं है.

Thursday, June 19, 2025

कोई बड़ा मोड़ ही रोक पाएगा ईरान-इसराइल टकराव


ईरान पर हुए इसराइली हमलों और जवाब में ईरानी हमलों ने दो बातों की ओर ध्यान खींचा है. क्या वजह है कि इसराइल ने इस वक्त हमलों की शुरुआत की है? दूसरे, ईरान इनका किस हद तक जवाब देगा, और अब यह टकराव कहाँ जाकर रुकेगा?

इसबार अमेरिका और इसराइल फौजी और डिप्लोमेसी के मिले-जुले हथियार का इस्तेमाल कर रहे हैं. इसराइली हमले के साथ ही ट्रंप ने ईरान से कहा है कि हमारी शर्तों को मान जाओ, वर्ना तबाही आपके सिर पर मंडरा रही है.

अमेरिका और इसराइल चाहते हैं कि ईरान अपना परमाणु कार्यक्रम छोड़ दे. ईरानी नेतृत्व 2015 की तरह कार्यक्रम रोकने को तैयार है, त्यागने को नहीं. अमेरिका के साथ ओमान में चल रही ईरान की वार्ता का छठा दौर 15 जून को होना था, जो रद्द हो गया.

ईरान का कहना है कि वार्ता का अब कोई मतलब नहीं है. पता नहीं कि भविष्य में क्या होगा. युद्ध भी एक किस्म की डिप्लोमेसी है और डिप्लोमेसी कभी खत्म नहीं होती. युद्ध जारी रहते हुए भी नए सिरे से बातचीत की संभावनाओं को नकारा भी नहीं जा सकता.

अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की ईरान को कड़ी चेतावनी और इसराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू द्वारा सर्वोच्च नेता को खत्म करने की बात कहने के बाद, ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्ला अली खामनेई ने एक्स पर पोस्ट में चेतावनी दी है, महान हैदर के नाम पर, लड़ाई शुरू होती है.

उधर ईरान के अर्ध-सरकारी मीडिया मेहर समाचार एजेंसी ने एक्स पर पुष्टि की है कि ईरानी सेना ने बुधवार को तेल अवीव पर फत्तह-1 मिसाइल दागी है. फत्तह एक हाइपरसोनिक मिसाइल है जो मैक 5, या ध्वनि की गति से पाँच गुना अधिक (लगभग 3,800 मील प्रति घंटा, 6,100 किलोमीटर प्रति घंटा) से यात्रा करती है.

बीबीसी ने सरकारी प्रेस टीवी के हवाले से बताया, इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स कोर (आईआरजीसी) ने ऑपरेशन के नवीनतम चरण को एक 'टर्निंग पॉइंट' बताया है और कहा है कि पहली पीढ़ी की फत्तह मिसाइलों की तैनाती ने इसराइल की 'काल्पनिक' मिसाइल रक्षा प्रणालियों के लिए 'अंत की शुरुआत' को चिह्नित किया है.

Wednesday, June 11, 2025

कनाडा का निमंत्रण और विदेश-नीति का राजनीतिकरण


अमेरिका में डॉनल्ड ट्रंप और एलन मस्क के बीच चल रहा वाग्युद्ध भारतीय मीडिया की दिलचस्पी का विषय साबित हुआ है, पर इस दौरान भारतीय विदेश-नीति के दृष्टिकोण से कुछ दूसरी घटनाएँ ज्यादा महत्वपूर्ण हुई हैं.

इनमें सबसे महत्वपूर्ण है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कनाडा-यात्रा को लेकर चल रहे संदेहों का दूर होना. अब 15-17 जून के बीच जी-7 देशों की कनाडा के कैनानैस्किस में होने वाली शिखर बैठक में, पीएम मोदी भी शामिल होंगे. 2019 से जी-7 की हरेक शिखर-बैठक में पीएम मोदी को भी आमंत्रित किया जाता रहा है, पर इसबार के निमंत्रण को लेकर संदेह था.

बहुत कम भारतीय प्रधानमंत्रियों ने कनाडा की यात्रा की है. बतौर पीएम कनाडा की दो बार यात्रा करने वाले मोदी पहले भारतीय प्रधानमंत्री होंगे. उनसे पहले पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह 2010 में कनाडा गए थे. बावजूद इसके भारत-कनाडा रिश्ते रूखे ही रहे.

Friday, May 23, 2025

आईएमएफ की सदाशयता या पाखंड?


पहलगाम हत्याकांड के बाद जिस समय भारत ऑपरेशन सिंदूर चला रहा था, उसी समय अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) पाकिस्तान को एक अरब डॉलर के कर्ज क स्वीकृति दे रहा था. भारत के विरोध के बावज़ूद आईएमएफ के एक्ज़िक्यूटिव बोर्ड ने इसे मंज़ूरी दे दी.

आईएमएफ़ के नियम किसी प्रस्ताव के ख़िलाफ़ वोट करने का अधिकार नहीं देते इसलिए बोर्ड के सदस्य या तो पक्ष में वोट दे सकते हैं या अनुपस्थित रह सकते हैं. जो भी फ़ैसले हैं वे बोर्ड में आम सहमति के आधार पर किए जाते हैं.

जब पाकिस्तान को, जिसके आंगन में कभी कुख्यात ओसामा बिन लादेन रहता था, अपने विशाल पड़ोसी भारत के साथ तनाव के चरम पर एक अरब डॉलर का पैकेज दिया जाता है, तो इसके पीछे के कारणों पर गंभीरता से विचार करने की ज़रूरत है.

भारत के विरोध को देखते हुए मुद्राकोष ने अगली किस्त जारी करने के लिए पाकिस्तान पर 11 नई शर्तें भी लगाई हैं. आईएमएफ ने पाकिस्तान को चेताया है कि भारत के साथ तनाव से योजना के राजकोषीय, वाह्य और सुधार लक्ष्यों के लिए जोखिम बढ़ सकते हैं.

पाकिस्तान पर लगाई गई नई शर्तों में 17,600 अरब रुपये के नए बजट को संसद की मंजूरी, बिजली बिलों पर ऋण भुगतान अधिभार में वृद्धि और तीन साल से अधिक पुरानी कारों के आयात पर प्रतिबंध को हटाना शामिल है.

सवाल है कि वैश्विक-व्यवस्था ने पाकिस्तान की आतंकी-गतिविधियों की अनदेखी क्यों की और आईएमएफ के फैसले के पीछे कोई संज़ीदा दृष्टि है या शुद्ध-पाखंड? इस सवाल का जवाब देने के पहले हमें वर्तमान स्थितियों पर नज़र डालनी होगी.  

Thursday, May 15, 2025

अमेरिकी कोशिशों का स्वागत है, मध्यस्थता का नहीं


दक्षिण एशिया का दुर्भाग्य है कि जिस समय दुनिया के देश, जिनमें भारत भी शामिल है, डॉनल्ड ट्रंप की आक्रामक आर्थिक-नीतियों के बरक्स अपनी नीतियों के निर्धारण में लगे हैं, हमें लड़ाई में जूझना पड़ रहा है. 

इस लड़ाई की पृष्ठभूमि को हमें दो परिघटनाओं से साथ जोड़कर देखना और समझना चाहिए. एक, शनिवार के युद्धविराम की घोषणा भारत या पाकिस्तान के किसी नेता ने नहीं की, बल्कि डॉनल्ड ट्रंप ने की. दूसरे हाल में भारत और ब्रिटेन के बीच मुक्त-व्यापार समझौता हुआ है, जिसकी तरफ किसी ने ध्यान नहीं दिया.  

इसके अलावा हाल के दिनों की भू-राजनीति में महत्वपूर्ण नए मोड़ आए हैं, जिनका भारत पर भी असर पड़ेगा. खबरों के मुताबिक तुर्की और चीन ने पाकिस्तान का एकतरफा समर्थन किया है. 

पाकिस्तान ने आतंकवाद को एक अघोषित नीति के रूप में इस्तेमाल किया है. दूसरी तरफ यह साबित करते हुए कि आतंकवादी हमले की स्थिति में हम पाकिस्तान में घुसकर कार्रवाई कर सकते हैं, मोदी सरकार ने प्रभावी रूप से एक नए सुरक्षा सिद्धांत की घोषणा की है. पाकिस्तान को निर्दोष लोगों की हत्या करने और आतंकवाद को बढ़ावा देने की अनुमति नहीं दी जाएगी. 

ट्रंप की घोषणा

ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर घोषणा की कि भारत और पाकिस्तान ‘पूर्ण और तत्काल संघर्ष विराम’ पर सहमत हो गए हैं. ट्रंप ने अपनी आदत के अनुरूप या शायद जल्दबाज़ी में ऐसा किया. वे साबित करना चाहते हैं कि लड़ाइयों को रोकना उन्हें आता है. 

Wednesday, May 14, 2025

ऑफेंसिव डिफेंस यानी ‘गोली की जवाब गोला’


'ऑपरेशन सिंदूर' के तहत तीन दिन चली लड़ाई के पहले दिन ही भारतीय सेना का लक्ष्य पूरा हो गया था, जब 21 में से नौ ठिकानों पर ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ करके सौ से ज्यादा आतंकियों को मार गिराया गया. 

भारतीय सफलताओं की कहानियाँ सामने आती जाएँगी, पर रविवार की शाम हमारे डीजीएमओ (डायरेक्टर जनरल मिलिट्री ऑपरेशंस) और तीनों सेनाओं के अधिकारियों ने सप्रमाण जो विवरण पेश किए हैं, उन्हें देखते हुए हम आश्वस्त हो सकते हैं कि भविष्य में कोई भी गलत हरकत करने के पहले दस बार सोचेगा. 

ऑपरेशन जारी है

भारत की दिलचस्पी लंबी लड़ाई में थी ही नहीं और पाकिस्तान में लड़ने की कुव्वत नहीं थी. ऐसे में लड़ाई का रुकना सकारात्मक गतिविधि है, पर इसका मतलब यह नहीं है कि अब हम कोई कार्रवाई करेंगे ही नहीं. रविवार को भारतीय वायुसेना ने स्पष्ट कर दिया कि हमारा ऑपरेशन खत्म नहीं हुआ है. 

डीजीएमओ लेफ्टिनेंट जनरल राजीव घई ने बताया कि युद्धविराम के बाद पाकिस्तानी सेना ने कुछ ही घंटों में उसका उल्लंघन शुरू कर दिया था. इसके बाद शनिवार रात और रविवार सुबह तक पश्चिमी सीमा के विस्तार में ड्रोन घुसपैठ हुई. 

Wednesday, May 7, 2025

पाकिस्तान ने अब भी समझदारी नहीं दिखाई, तो तबाह हो जाएगा


भारत के इस तीसरे ‘सर्जिकल-स्ट्राइक’ का सबूत कोई नहीं माँगेगा, क्योंकि इसे पाकिस्तान ने खुद स्वीकार किया है. इसबार की स्ट्राइक का लेवल 2016 और 2019 के मुकाबले ज्यादा बड़ा है, जिसकी उम्मीद थी. अब ज्यादा बड़ा सवाल है कि बात कितनी बढ़ेगी? 

कार्रवाई क्या यहीं तक सीमित रहेगी, या आगे बढ़ेगी? बहुत कुछ पाकिस्तानी प्रतिक्रिया पर निर्भर करेगा. सोशल मीडिया पर पाकिस्तानी रक्षामंत्री ख्वाजा आसिफ की एक बात तैर रही है कि भारत यदि और हमले न करे, तो हम भी जवाबी हमला न करने पर विचार कर सकते हैं, पर इस बात की कोई पुष्टि नहीं हुई है. 

प्रेस ब्रीफिंग

‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बारे में विदेश सचिव विक्रम मिस्री के साथ सेना की ओर से कर्नल सोफिया कुरैशी और वायुसेना की ओर से स्क्वॉड्रन लीडर व्योमिका सिंह ने ऑपरेशन की जानकारी दी. प्रेस कॉन्फ्रेंस से पहले एयर स्ट्राइक का दो मिनट का वीडियो प्ले किया गया. इसके साथ ही आज के ऑपरेशन से जुड़े वीडियो प्रमाण भी दिखाए गे. 

विक्रम मिस्री ने इसे आतंक के खिलाफ नपी-तुली कार्रवाई बताया. उन्होंने कहा, पहलगाम में हुए आतंकी हमले की जिम्मेदारी टीआरएफ ने ली है. इस संगठन के बारे में हमने पहले भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को जानकारी दी थी. सुरक्षा परिषद के वक्तव्य से इस संगठन के नाम को हटाए जाने पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए. 

उन्होंने कहा कि हमलावरों की पहचान भी हुई है. हमारी इंटेलिजेंस ने हमले में शामिल लोगों से जुड़ी जानकारी जुटा ली है. इस हमले का कनेक्शन पाकिस्तान से है.

ऑपरेशन सिंदूर

ऑपरेशन सिंदूर के लक्ष्यों के बारे में केंद्र सरकार द्वारा साझा की गई जानकारी के अनुसार, निम्नलिखित स्थानों पर हमला किया गया: 

सियालकोट में सरजाल कैंप-मार्च 2025 में चार जम्मू-कश्मीर पुलिस कर्मियों की हत्या करने वाले आतंकवादियों ने इसी कैंप में प्रशिक्षण प्राप्त किया था। सियालकोट-पठानकोट वायुसेना बेस कैंप पर हमले की योजना इसी आतंकवादी शिविर में बनाई गई थी और उसे अंजाम दिया गया था।

मुरीद्के में मरकज तैयबा कैंप-2008 के मुंबई आतंकी हमलों में भाग लेने वाले आतंकवादियों को यहीं प्रशिक्षण दिया गया था। अजमल कसाब और डेविड हेडली ने यहीं प्रशिक्षण प्राप्त किया था। 

बहावलपुर में मरकज़ सुभानअल्लाह-यह जैश-ए-मुहम्मद का मुख्यालय है। यहाँ भर्ती, प्रशिक्षण और विचारधारा का प्रचार-प्रसार किया जाता था।

ज़ीरो टॉलरेंस

भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, दुनिया को आतंकवाद के प्रति जीरो टॉलरेंस दिखाना चाहिए. सूत्रों के मुताबिक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरी रात ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर लगातार नज़र रखी. 

भारत ने इसके माध्यम से संदेश दिया है कि आतंकवादी गतिविधियाँ जारी रहीं, तो हमारी ओर से कार्रवाइयों की कठोरता बढ़ती जाएगी. भारत ने इसबार जो भी कार्रवाई की है, उसे काफी होमवर्क के साथ तैयार किया है, जिसमें प्लान ‘बी’ और ‘सी’ जैसे विचार शामिल हैं. 

पाकिस्तान को समझना चाहिए कि उसका खेल खत्म हो रहा है. भारत की कार्रवाइयाँ तब तक जारी रहेंगी, जब तक हालात किसी निर्णायक मुकाम तक नहीं पहुँचेंगे. खूंरेज़ी और पड़ोस के रिश्ते साथ-साथ नहीं चलेंगे. 

भारत को उकसाया

इसबार की कार्रवाई की तीव्रता बहुत कठोर होने के बजाय कम भी हो सकती थी, पर पाकिस्तानी नेतृत्व ने भड़काऊ बातें करके भारत को उकसाया और एटम बम का इस्तेमाल करने की धमकी तक दे डाली. 

पाकिस्तान के नेतृत्व ने समझदारी का परिचय दिया होता, तो सिंधु जल-संधि के स्थगित होने की नौबत नहीं आती. पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष जनरल आसिम मुनीर को प्रवासी पाकिस्तानियों की सभा में ज़हरीली बातें करने की कोई ज़रूरत नहीं थी. 

ऑपरेशन का नाम रखने और सर्जिकल स्ट्राइक के ठिकानों को तय करने में भारत ने बहुत सावधानी बरती है और उसे पहलगाम हमले पर केंद्रित रखा है. सेना ने पाकिस्तान के किसी भी आधिकारिक सैनिक ठिकाने पर हमला नहीं बोला है, बल्कि जैशे मुहम्मद, लश्करे तैयबा और हिज़्बुल मुज़ाहिदीन के कैंपों को निशाना बनाया है, जो दहशतगर्दी के अड्डे हैं. 

यह अभियान ‘फोकस्ड और सटीक’ था. हमारे पास पहलगाम हमले में पाकिस्तान स्थित आतंकवादियों की संलिप्तता की ओर इशारा करने वाले विश्वसनीय सुराग और सबूत हैं. सटीक हमलों के बाद, भारत ने विश्व के कई देशों से संपर्क किया और वरिष्ठ अधिकारियों को पाकिस्तान के खिलाफ अपनी आतंकवाद विरोधी कार्रवाइयों के बारे में जानकारी दी. 

इन हमलों में नागरिकों को या दूसरे प्रतिष्ठानों को कोई नुकसान नहीं पहुँचा है. अभी तक सेना ने सीमा पार नहीं की है, बल्कि अपनी सीमा के भीतर रहते हुए गाइडेड मिसाइलों, प्रिसीशन बमों और लॉइटरिंग म्यूनिशंस की मदद से हमला किया है. इसका उद्देश्य कार्रवाई को सीमित दायरे में रखना है.   

पाकिस्तान इस समय सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य है, जिससे उसकी जिम्मेदारी बढ़ती है. वह जुलाई में एक महीने के लिए परिषद की अध्यक्षता भी उसे मिलेगी. इसका मतलब यह नहीं है कि वह जो चाहे कर लेगा. 

सबूत चाहिए

पाकिस्तान ने भारत से पहलगाम से जुड़े सबूत पेश करने को और इस प्रकरण की निष्पक्ष जाँच करने को कहा है. वस्तुतः सबूत उसे पेश करने हैं कि जिस टीआरएफ ने पहलगाम हिंसा की जिम्मेदारी ली है, उसका लश्करे तैयबा के साथ कोई रिश्ता नहीं है. और यह भी साबित करना है कि लश्कर के अलावा जैशे मुहम्मद और हिज़्बुल मुज़ाहिदीन के कैंप नहीं हैं. 

पहलगाम की हिंसा के फौरन बाद लश्करे तैयबा के पिट्ठू संगठन रेज़िस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) ने उसकी ज़िम्मेदारी खुद ली थी. पाकिस्तानी नेतृत्व को जब इस बात की गंभीरता का पता लगा, तो उन्होंने कहना शुरू किया कि यह भारत का ‘फॉल्स फ्लैग ऑपरेशन’ है. 

पाकिस्तान की ओर से इस किस्म का बयान आने के अगले ही दिन टीआरएफ ने अपनी बात वापस ले ली और कहा कि हमारे सोशल मीडिया हैंडल को किसी ने हैक कर लिया था. 

राजनयिक खेल

इसके बाद पाकिस्तान ने चीन की सहायता से 25 अप्रैल को सुरक्षा परिषद का बयान जारी करवाया, जिसमें पहलगाम के आतंकवादी हमले की ‘कड़े शब्दों में’ निंदा ज़रूर थी, पर (टीआरएफ) का नाम नहीं लिया, जिसने हमले की जिम्मेदारी ली थी. 

सुरक्षा परिषद ने इस संगठन का नाम नहीं लिया, तो लश्कर-ए-तैयबा के साथ उसके संबंधों का उल्लेख भी नहीं हुआ, जो संरा द्वारा नामित आतंकवादी संगठन है. उसने भारत सरकार के साथ सहयोग की बात भी नहीं की, जैसा कि अतीत में होता रहा है. गैर-मुसलमानों को निशाना बनाए जाने का उल्लेख भी नहीं. 

सुरक्षा परिषद ने पहलगाम के बाद की परिस्थिति पर सोमवार 5 मई को बंद कमरे में विचार-विमर्श किया, जिसमें बढ़ते तनाव पर चर्चा की गई. इस बैठक का आग्रह पाकिस्तान ने ही किया था, पर इसका कोई लाभ उसे नहीं नहीं मिला. 

कठोर सवाल

प्रेस ट्रस्ट की रिपोर्ट के अनुसार बैठक में राजदूतों ने दोनों देशों से तनाव कम करने का आह्वान किया और पाकिस्तान के सामने कुछ ‘कठोर सवाल’ रखे. क्या थे ‘कठोर सवाल’? पहला सवाल यही है कि पहलगाम की हिंसा के पीछे कौन है? 

इस बैठक का अनुरोध पाकिस्तान ने किया था. सुरक्षा परिषद ने बैठक के बाद कोई बयान जारी नहीं किया, लेकिन पाकिस्तान ने दावा किया कि उसके अपने उद्देश्य ‘काफी हद तक पूरे हो गए’.

बंद कमरे में हुई यूएनएससी की बैठक उनके सामान्य बैठने के कमरे में नहीं हुई, बल्कि उसके बगल में बने परामर्श कक्ष में हुई. इससे इस बैठक की अनौपचारिकता ही साबित होती है. कहा जा सकता है कि स्थिति का अंतरराष्ट्रीयकरण करने की पाकिस्तान की कोशिशें सफल नहीं हुईं. 

अगस्त 2019 में जब भारत ने अनुच्छेद 370 को निरस्त किया था, तब भी पाकिस्तान ने चीन की सहायता से सुरक्षा परिषद की बैठक बुलाने का प्रयास किया था. तब भी इसी किस्म की अनौपचारिक बैठक हुई थी और परिषद ने तब भी कोई बयान जारी नहीं किया था.

आर्थिक-दबाव

यह मामला केवल सैनिक (काइनेटिक) कार्रवाई तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि राजनयिक और राजनीतिक-कार्रवाइयाँ भी इसमें शामिल हैं. वैश्विक रेटिंग एजेंसी मूडीज़ ने कहा है कि लड़ाई से पाकिस्तान की आर्थिक गतिविधियों पर जैसा विपरीत प्रभाव पड़ेगा, वैसा भारत की अर्थव्यवस्था पर नहीं पड़ेगा. 

पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था पहले से डगमगा रही है, जिसे थामना अब और मुश्किल होगा. उसे चीन का समर्थन हासिल है, पर उसे आर्थिक सहायता के लिए विश्व बैंक और आईएमएफ के पास ही जाना होता है, जिनकी चाभी अमेरिका के पास है.  

आवाज़ द वॉयस में प्रकाशित




वैश्विक-मंच पर होगी कश्मीर की लड़ाई


पहलगाम-हमले ने एक तरफ कश्मीर की मूल समस्या की ओर हमारा ध्यान खींचा है, वहीं वैश्विक-दृष्टिकोण को भी समझने का मौका दिया है. कौन हमारा साथ देगा, अमेरिका या ब्रिटेन? यूरोप क्या सोचता है या रूसी नज़रिया क्या है वगैरह.  

आतंकवादियों के हमले का जवाब देने के अलावा वैश्विक राजनीति को अपने पक्ष में लाने का प्रयास भी भारत को करना है. साथ ही कश्मीर को लेकर अपने दृष्टिकोण को वैश्विक-मंच पर ज्यादा दृढ़ता से उठाना होगा. 

सवाल केवल प्रतिशोध का नहीं है, बल्कि दीर्घकालीन रणनीति पर चलने का है. एक बड़ा सवाल चीन की भूमिका को लेकर भी है. लड़ाई हुई, तो शायद चीन सीधे उसमें शामिल नहीं होगा, पर परोक्षतः वह पाकिस्तान का साथ देगा. खासतौर से सुरक्षा परिषद की गतिविधियों में. 

वैश्विक-उलझाव

भारत के विभाजन की सबसे बड़ी अनसुलझी समस्या है, कश्मीर. शीतयुद्ध और राजनीतिक गणित के कारण यह मसला उलझा रहा. भारत का नेतृत्व इस समय संज़ीदगी से बर्ताव कर रहा है, वहीं पाकिस्तानी नेतृत्व बदहवास है और एटमी धमकी दे रहा है. 

हमारा विदेश मंत्रालय सुरक्षा परिषद के स्थायी और अस्थायी सदस्यों सहित दुनिया के सभी प्रमुख देशों से संपर्क कर रहा है. सुरक्षा परिषद ने सोमवार 5 मई को बंद कमरे में विचार-विमर्श किया, जिसमें बढ़ते तनाव पर चर्चा की गई. 

प्रेस ट्रस्ट की रिपोर्ट के अनुसार बैठक में राजदूतों ने दोनों देशों से तनाव कम करने का आह्वान किया और पाकिस्तान के सामने ‘कठोर सवाल’ रखे. इस बैठक का अनुरोध पाकिस्तान ने किया था. सुरक्षा परिषद ने बैठक के बाद कोई बयान जारी नहीं किया, लेकिन पाकिस्तान ने दावा किया कि उसके अपने उद्देश्य ‘काफी हद तक पूरे हो गए’.

Wednesday, April 30, 2025

पाकिस्तान के खिलाफ ‘कठोर-कार्रवाई’ की तैयारी


पहलगाम-हमले के बाद पाकिस्तान को सबसे अच्छा जवाब यही होगा कि हम कश्मीर में शांति और सुरक्षा का माहौल बनाकर रखें. दुनिया का अनुभव है कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई लंबी चलती है. सवाल है कि इस आतंकी हमले की योजना क्यों बनाई गई और यही समय क्यों चुना गया?

फिलहाल कश्मीर में सबसे बड़ी ज़रूरत वहाँ के निवासियों का भरोसा जीतने की और पाकिस्तानी हरकतों का जवाब देने की है. सीमा पार से एटम बम दागने की धमकियाँ दी जा रही हैं. हमें ऐसी रणनीति बनानी होगी, जो कम से कम जोखिम उठाकर पाकिस्तान को ज्यादा से ज्यादा बड़ी सज़ा दे सके. 

हालात जिस मोड़ पर आ गए हैं, उसमें भारत को कार्रवाई करनी ही होगी.  पानी रोकने के अलावा हमारे पास आतंकी केंद्रों पर हमले का विकल्प भी है. सरकार के एक शीर्ष सूत्र ने दिल्ली के एक राष्ट्रीय दैनिक से कहा है कि सैनिक कार्रवाई होगी. हम तैयार हैं और हमले के तरीके पर चर्चा कर रहे हैं. 

सवाल है कि क्या हमारी सेना एलओसी पार करके पीओके में प्रवेश कर सकती है? क्या नौसेना कराची बंदरगाह की नाकेबंदी करेगी? एलओसी पर गोलाबारी रोकने को लेकर 2021 में जो समझौता हुआ था, वह भी अब टूटता हुआ लग रहा है. 

सबसे बड़ा खतरा बैक-चैनल संपर्क टूटने का है. इसे टूटना नहीं चाहिए और उन्मादी बयानों से बचना भी चाहिए. 

Thursday, April 24, 2025

पहलगाम का पहला सबक, पाकिस्तान को कड़वी दवाई


पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद यह स्पष्ट है कि भारत ने अब पाकिस्तान को करारा जवाब देने का फैसला कर लिया है. यह जवाब भविष्य में सैनिक-कार्रवाइयों के रूप में भी हो सकता है, पर इसकी शुरुआत राजनयिक रिश्तों को न्यूनतम स्तर पर पहुँचाते हुए हुई है. सेना को हाई अलर्ट कर दिया गया है. 

पीएम मोदी की अध्यक्षता में बुधवार की शाम हुई सीसीएस की बैठक में कुछ बड़े फैसले हुए हैं. विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने इन फैसलों की जानकारी देते हुए कहा कि 1960 की सिंधु जल संधि को तत्काल प्रभाव से स्थगित तब तक रखा जाएगा, जब तक पाकिस्तान सीमा पार आतंकवाद के लिए अपने समर्थन को त्याग नहीं देता. 

सीमा पार सभी तरह की आवाजाही के लिए अटारी चेक पोस्ट को भी बंद कर दिया है और पाकिस्तानी नागरिकों के लिए सार्क वीजा यात्रा विशेषाधिकारों को निलंबित कर दिया है. सार्क ढांचे के तहत भारत में मौजूद पाकिस्तानी नागरिकों को देश छोड़ने के लिए 48 घंटे का समय दिया गया है. 

Wednesday, April 9, 2025

श्रीलंका-यात्रा और बिमस्टेक सम्मेलन के निहितार्थ


भारत और पड़ोसी देशों के रिश्तों के लिहाज से पिछले हफ्ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की थाईलैंड और श्रीलंका-यात्रा काफी महत्वपूर्ण रही. भारत का उद्देश्य पड़ोसियों के साथ संबंधों को मजबूत करना है. इस यात्रा में देश की ‘एक्ट-ईस्ट’ और दक्षिण-एशिया नीतियों की झलक मिलती है.

उन्होंने थाईलैंड में बिमस्टेक सम्मेलन में भाग लेने के अलावा वहाँ बांग्लादेश की कार्यवाहक सरकार के मुख्य सलाहकार डॉ मुहम्मद यूनुस, म्यांमार की सैन्य सरकार के प्रमुख मिन आंग ह्लाइंग और नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली से भी मुलाकात की. 

ढाका में सत्ता परिवर्तन के बाद युनुस के साथ उनकी यह पहली बैठक थी. इसी तरह पिछले वर्ष नेपाल में ओली के फिर से प्रधानमंत्री बनने के बाद यह पहली मुलाकात थी. उन्होंने भूटान के राष्ट्रपति शेरिंग तोब्गे से भी मुलाकात की.

हालांकि थाईलैंड भारत के पूर्व में बंगाल की खाड़ी और अंडमान सागर से जुड़ा देश है, पर उसे भारतीय विदेश-नीति के नक्शे पर वह महत्व नहीं मिला, जिसका वह हकदार है. दक्षिण पूर्व एशिया में इंडोनेशिया और सिंगापुर के बाद तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है थाईलैंड. 

दोनों देशों के बीच फ्री-ट्रेड एग्रीमेंट 2010 में हो गया था. भारतीय यात्रियों के लिए वीज़ा-मुक्त प्रवेश के कारण थाईलैंड, भारतीय मध्यम वर्ग की सैर का प्रमुख गंतव्य बन चुका है. दोनों देश अब रक्षा, हाईटेक और स्पेस रिसर्च में सहयोग पर सहमत हुए हैं. 

अस्थिरता का दौर

यह यात्रा ऐसे समय में हुई, जब एक तरफ बांग्लादेश और म्यांमार में अराजकता है और इलाके में चीन का प्रभाव बढ़ रहा है. पिछले साल अगस्त से बांग्लादेश के साथ रिश्तों में तनाव है.

हाल में डॉ यूनुस ने अपनी पहली राजकीय यात्रा के लिए चीन को चुनकर इतना प्रकट जरूर कर दिया कि बांग्लादेश अब हमारा वैसा मित्र नहीं है, जैसा शेख हसीना के कार्यकाल में था. . 

Tuesday, February 11, 2025

अमेरिका के साथ सौदेबाज़ी का दौर

प्रधानमंत्री की इस हफ्ते की अमेरिका-यात्रा कई मायनों में पिछली यात्राओं से कुछ अलग होगी. इसकी सबसे बड़ी वजह है राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की ताबड़तोड़ नीतियों के कारण बदलते वैश्विक-समीकरण. उनके अप्रत्याशित फैसले, तमाम दूसरे देशों के साथ भारत को भी प्रभावित कर रहे हैं.

दूसरी तरफ यह भी लगता है कि शायद दोनों के रिश्तों का एक नया दौर शुरू होने वाला है, पर सामान्य भारतीय मन अमेरिका से निर्वासित लोगों के अपमान को लेकर क्षुब्ध है. हम समझ नहीं पा रहे हैं कि यह कैसा दोस्ताना व्यवहार है? 

ट्रंप मूलतः कारोबारी सौदेबाज़ हैं और धमकियाँ देकर सामने वाले को अर्दब में लेने की कला उन्हें आती है. शायद वे कुछ बड़े समझौतों की पृष्ठभूमि तैयार कर रहे है.

वर्चस्व का स्वप्न

ट्रंप का कहना है कि दुनिया ने अमेरिका की सदाशयता का बहुत फायदा उठाया, अब हम अपनी सदाशयता वापस ले रहे हैं. असल भावना यह है कि हम बॉस हैं और बॉस रहेंगे. इस बात से उनके गोरे समर्थक खुश हैं, जिन्हें लगता है कि देश के पुराने रसूख को ट्रंप वापस ला रहे हैं.   

Tuesday, February 4, 2025

आक्रामक-ट्रंप और भारत से रिश्तों का नया दौर


अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल में कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फरवरी में अमेरिका की यात्रा पर आ सकते हैं. उसके बाद से अनुमान लगाया जा रहा है कि संभवतः अगले कुछ दिनों में उनकी यात्रा की तिथियाँ घोषित हो सकती हैं.  

यह यात्रा अभी हो या कुछ समय बाद, अमेरिकी-नीतियों में आ रहे बदलाव को देखते हुए यह ज़रूरी है. बेशक, दोनों मित्र देश हैं, पर अब जो पेचीदगियाँ पैदा हो रही हैं, उन्हें देखते हुए भारत को सावधानी से कदम बढ़ाने होंगे.  

पहला हमला

राष्ट्रपति ट्रंप ने पहला हमला कर भी दिया है, जिसका वैश्विक-व्यापार, विकास और मुद्रास्फीति पर प्रभाव पड़ेगा. शनिवार को उन्होंने अमेरिका के तीन सबसे बड़े व्यापारिक साझेदारों पर भारी टैरिफ लगाने वाले कार्यकारी आदेशों पर हस्ताक्षर किए हैं. 

अमेरिका मंगलवार 4 फरवरी से कनाडा और मैक्सिको से हो रहे आयात पर 25 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ और चीन पर 10 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ लगा रहा है. इन तीन देशों से अमेरिकी-आयात का लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा आता है. 

यह फैसला इन देशों को हो रहे अवैध आव्रजन, जहरीले फेंटेनाइल और अन्य नशीले पदार्थों को अमेरिका में आने से रोकने और अपने वादों के प्रति जवाबदेह बनाने के लिए किया गया है. कनाडा और मैक्सिको ने इसपर जवाबी कार्रवाई की घोषणा भी की है, जबकि चीन ने कहा है कि हम विश्व व्यापार संगठन में जाएँगे. 

Wednesday, January 29, 2025

ट्रंप क्या यूक्रेन की लड़ाई भी रुकवा सकेंगे?


अमेरिका में राष्ट्रपति पद की कुर्सी पर डोनाल्ड ट्रंप के बैठने के बाद से दुनियाभर के मीडिया में सवालों की झड़ी लगी है. लगता है कि जियो-पोलिटिकल स्तर पर दुनिया में हाईटेक-दौर की शुरुआत होने जा रही है. 

‘अमेरिकी महानता’ की पुनर्स्थापना के लिए डोनाल्ड ट्रंप ने अवैध आप्रवासियों पर कड़ी कार्रवाई शुरू कर दी है. अपने चुनावी वादों को पूरा करने के लिए उन्होंने दर्जनों आदेशों पर हस्ताक्षर किए हैं. इनमें आप्रवासियों को हिरासत में लेना भी शामिल है. ह्वाइट हाउस के प्रेस सचिव के अनुसार यह ‘इतिहास का सबसे बड़ा निर्वासन अभियान’ है. 

भारत के नज़रिये से हिंद-प्रशांत और दक्षिण एशिया में अमेरिकी नीतियाँ महत्वपूर्ण होंगी. इस साल भारत में क्वॉड का शिखर सम्मेलन भी होगा, जिसमें ट्रंप आएँगे. अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट से तहव्वुर राणा के प्रत्यर्पण का रास्ता साफ होना भी बड़ी घटना है. 

ट्रंप ने रूस से यूक्रेन की लड़ाई रोकने का आग्रह किया है और खनिज तेल उत्पादक ओपेक देशों से कहा है कि वे पेट्रोलियम के दाम कम करें. आंतरिक रूप से वे अमेरिका पर भारी पड़ रहे अवैध आप्रवासियों के बोझ को दूर करना चाहते हैं.