प्रमोद जोशी
साहित्य, संगीत, चित्रकला और रंगमंच पर ‘माँ’ विषय सबसे ज्यादा ध्यान खींचने वाला
विषय है। निराशा में आशा जगाती, निस्वार्थ प्रेम की सबसे बड़ी प्रतीक है माँ। जितना
वह हमें जानती है हम उसे नहीं जानते। दक्षिण कोरिया की लेखिका क्युंग-सुक शिन ने अपनी
अंतर्राष्ट्रीय बेस्ट सेलर ‘प्लीज लुक आफ्टर मॉम’ में यही बताने की कोशिश की है कि जब माँ हमारे बीच नहीं होती है तब पता लगता है
कि हम उसे कितना कम जानते थे। सन 2011 के मैन एशियन पुरस्कार से अलंकृत इस उपन्यास
का 19 भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। और अब यह हिन्दी में ‘माँ का ध्यान रखना’
नाम से उपलब्ध है।
इसकी कहानी 69 साल की महिला पार्क
सो-न्यो के बारे में है, जो दक्षिण कोरिया की राजधानी
सोल के मेट्रो स्टेशन पर भीड़ के बीच उसका हाथ पति के हाथ से छूटा और वह बिछुड़ गई।
उसका झोला भी उसके पति के पास रह गया। वह खाली हाथ थी। वे दोनों अपने बड़े बेटे ह्योंग
चोल के पास आ रहे थे। पूरे उपन्यास में माँ की गुजरे वक्त की कहानी है। पाँच बच्चों
की माँ। इनमें तीसरे नम्बर की बेटी लेखिका है। वह ह्योंग चोल को वकील बनाना चाहती थी,
पर वह कारोबारी बना। माँ के बिछुड़ जाने पर ह्योंग चोल को अफसोस है। माँ की कहानी त्याग
की कहानी है। उसने अपना जन्मदिन भी पिता के जन्मदिन के साथ मनाना शुरू कर दिया था।
धीरे-धीरे खामोशी से माँ का असली जन्मदिन नज़रन्दाज कर दिया गया। जब वह खो गई तो इश्तहार
देने के लिए किसी के पास उसकी फोटो नहीं थे। फोटो खिंचाते वक्त वह गायब हो जाती थी।
बड़े बेटे को जब शहर में हाईस्कूल के सर्टिफिकेट की ज़रूरत हुई तो उसने पिता को फोन
किया कि किसी के हाथ बस से भेज दो, मैं ले लूँगा। उस ठंडी रात में माँ वह कागज लेकर
खुद शहर जा पहुँची।