भारत में पेट्रोल की कीमत राजनीति का विषय है। बड़ी से बड़ी राजनीतिक ताकत भी पेट्रोलियम के नाम से काँपती है। इस बार पेट्रोल की कीमतों में एक मुश्त सबसे भारी वृद्धि हुई है। इसके सारे राजनीतिक पहलू एक साथ आपके सामने हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि कोई एक राजनीतिक पार्टी ऐसी नहीं है जिसने इस वृद्धि की तारीफ की हो। और जिस सरकार ने यह वृद्धि की है वह भी हाथ झाड़कर दूर खड़ी है कि यह तो कम्पनियों का मामला है। इसमें हमारा हाथ नहीं है। जून 2010 से पेट्रोल की कीमतें फिर से बाजार की कीमतॆं से जोड़ दी गई हैं। बाजार बढ़ेगा तो बढ़ेंगी और घटेगा तो घटेंगी। इतनी साफ बात होती तो आज जो पतेथर की तरह लग रही है वह वद्धि न होती, क्योंकि जून 2010 से अबतक छोटी-छोटी अनेक वृद्धियाँ कई बार हो जातीं और उपभोक्ता को नहीं लगता कि एक मुश्त इतना बड़ा इज़ाफा हुआ है।