संयुक्त राष्ट्र महासभा में नरेन्द्र मोदी ने
जलवायु परिवर्तन, महामारी, वैक्सीन और मानव कल्याण के तमाम सवालों को उठाते हुए
बहुत संयत शब्दों में अफगानिस्तान की स्थिति का जिक्र किया और चेतावनी दी कि वे उस
जमीन का इस्तेमाल आतंकी हमलों के लिए न करें। प्रकारांतर से यह चेतावनी पाकिस्तान
के नाम है। समुद्री मार्गों की स्वतंत्रता बनाए रखने के संदर्भ में उन्होंने चीन
को भी चेतावनी दी। उन्होंने संरा की साख बढ़ाने का सुझाव भी दिया, जिसमें उन्होंने
दूसरी बातों के साथ कोविड-संक्रमण के मूल का जिक्र भी किया।
व्यापक निहितार्थ
अमेरिका में हुई चर्चाओं को जोड़कर पढ़ें, तो कोविड, क्लाइमेट और क्वॉड के अलावा अफगानिस्तान पर विचार हुआ। पाकिस्तान को आतंकवाद और कट्टरपंथ पर कठोर संदेश मिले, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान के नेतृत्व के साथ प्रधानमंत्री मोदी की चीन से उपजे खतरों पर विस्तृत चर्चा हुई। साथ ही ऑकस से जुड़ी आशंकाओं को भी दूर किया गया। इन सबके अलावा प्रधानमंत्री ने बड़ी अमेरिकी कम्पनियों के सीईओ के साथ बैठकें करके भारतीय अर्थव्यवस्था के तेज विकास का रास्ता भी खोला है। द्विपक्षीय बैठकों में अफगानिस्तान का मुद्दा भी हावी रहा। भारत ने बताया है कि कैसे तालिबान को चीन और पाकिस्तान की शह मिल रही है, जिससे भारत ही नहीं दुनिया की मुश्किलें बढ़ेंगी। अमेरिका ने भारत के इस दृष्टिकोण को स्वीकार किया है।


















मोदी के संदेश के कथ्य से ज्यादा महत्वपूर्ण है उनकी शैली और मंचकला। उन्हें माहौल बनाना आता है। जनता की भाषा में बोलते हैं। वह भी ऐसी जो समझ में आती है। बाएं और दाएं हाथ की मुद्राएं और चेहरे के हाव-भाव और शब्दों का मॉड्यूलेशन उस नाटकीयता को जन्म देता है, जो उनके भाषण को प्रभावशाली बनाती है। वे अपने शब्दों को इतनी तरह से कहते हैं कि बात सुनने वाले के मन में गहराई तक उतर जाए। उन्होंने कहा, देश को एक रस, एक मन, एक दिशा, एक गति, एक मति हो जाना चाहिए। बार-बार बोलकर उन्होंने सुनने वाले के मन पर ‘एक’ को इतनी गहराई तक उतार दिया कि उसे ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं रह गई।
इस साल जब संसद का सत्र शुरू हो रहा था तब राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपने अभिभाषण में कहा, नई सरकार 3-डी तकनीक से काम करेगी और देश को नई ऊंचाइयों तक ले जाएगी। यहाँ 3-डी का मतलब था डेमोक्रेसी, डेमोग्राफी और डिमांड। अपने चुनाव अभियान में हजारों जमीनी और थ्री-डी रैलियों के अलावा चाय पर चर्चा उनकी कम्युनिकेशन रणनीति का हिस्सा ही थीं। सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने वाले शुरुआती राजनेताओं में नरेंद्र मोदी ही थे। उन्होंने राजनीतिक संवाद की जो शैली विकसित की है वह स्वतंत्रता दिवस के भाषण के रूप में अपने सबसे उत्कृष्ट रूप में देखने में आई। एक प्रधानमंत्री अपनी जनता के सामने उसके प्रधान सेवक के रूप में खड़ा था, बगैर बुलेट प्रूफ पर्दे के। यह बात जनता की भावनाओं को गहराई तक छूती है। 

