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Wednesday, June 28, 2023

प्राइवेट-सेना की बगावत से स्तब्ध रूसी रणनीतिकार


यूक्रेन में लड़ रही रूसी सेनाओं के अभियान को पिछले शुक्रवार और शनिवार को अचानक उस समय धक्का लगा, जब उसका साथ दे रही वागनर  ग्रुप की प्राइवेट सेना ने बगावत कर दी. आग को हवा देने का काम किया राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की इस घोषणा ने कि वागनर ग्रुप के प्रमुख येवगेनी प्रिगोज़िन के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई की जाएगी.

हालांकि बेलारूस के राष्ट्रपति के हस्तक्षेप से बगावत थम गई है, पर उससे जुड़े सवाल सिर उठाएंगे. रूसी सेना यूक्रेन में लंबी लड़ाई की रणनीति पर चल रही थी, ताकि पश्चिमी देश थककर हार मान लें, पर उसकी रणनीति विफल साबित हो रही है. उल्टे पिछले कुछ महीनों में यूक्रेन ने अपनी पकड़ बना ली है और रूसी सेना थकती नज़र आ रही है.

प्रिगोज़िन के साथ डील

बगावती प्राइवेट-सेना एक डील के तहत ही पीछे हटी है. रूसी सरकार ने प्रिगोज़िन को बेलारूस तक जाने के लिए सुरक्षित रास्ता देने की घोषणा की है. उनके सैनिकों को किसी भी प्रकार की सजा नहीं दी जाएगी, और उन्हें रूसी सेना के साथ एक कांट्रैक्ट पर दस्तखत करने का मौका दिया जाएगा.

सवाल है कि वागनर के सैनिक अब युद्धस्थल पर जाएंगे, तो क्या उनपर पूरा  भरोसा होगा? यदि उन्हें हाशिए पर डाला गया, तो करीब तीस से पचास हजार के बीच हार्डकोर लड़ाकों की कमी कैसे पूरी की जाएगी? एक अनुमान है कि अब पुतिन अपने रक्षामंत्री सर्गेई शोइगू का पत्ता भी साफ करेंगे, जो पिछले एक दशक से उनके विश्वस्त रहे हैं. इससे पूरी सेना की व्यवस्था गड़बड़ हो जाएगी.

Saturday, June 24, 2023

प्राइवेट-सेना की बगावत से यूक्रेन-युद्ध में रूस साँसत में

वागनर ग्रुप के प्रमुख येवगेनी प्रिगोज़िन

यूक्रेन के ख़िलाफ़ रूसी सेना अचानक अपने ही सहयोगी
वागनर-ग्रुप की बगावत के कारण अर्दब में आ गई है। वागनर ग्रुप एक प्रकार की प्राइवेट सेना है, जो अभी तक रूसी सेना के साथ यूक्रेन के युद्ध में शामिल रही है। अब लड़ाई में आधिकारिक सेना और भाड़े के इन सैनिकों के बीच टकराव पैदा हो गया है। इनके ज्यादातर लड़ाके रूसी जेलों से निकालकर लाए गए हैं। पश्चिमी देशों के मीडिया के अनुसार लड़ाई अब ऐसे मुकाम पर आ गई है, जहाँ राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की सत्ता को सीधे चुनौती मिलने जा रही है। राष्ट्रपति पुतिन ने वागनर ग्रुप के प्रमुख येवगेनी प्रिगोज़िन पर आरोप लगाया है कि वे सशस्त्र विद्रोह कर रूस को धोखा दे रहे हैं। पुतिन ने कहा है कि उन्होंने देश की पीठ में छुरा घोंपा है।

उधर प्रिगोज़िन का कहना है कि हमारा उद्देश्य सैन्य विद्रोह नहीं है, हम केवल न्याय के लिए अभियान छेड़ रहे हैं। यूक्रेन के ख़िलाफ़ युद्ध के दौरान संघर्ष की कमान संभाल रहे सेना प्रमुखों से उनका विवाद नया नहीं है, लेकिन अब इस विवाद ने विद्रोह की शक्ल ले ली है। पूर्वी यूक्रेन की सीमा के पास तैनात वागनर ग्रुप के लड़ाके सीमा पारकर दक्षिणी रूस के शहर रोस्तोव-ऑन-डॉन में प्रवेश कर गए हैं। उनका दावा है कि उन्होंने वहां मौजूद सैन्य ठिकानों को अपने नियंत्रण में ले लिया है।

पिछले साल लड़ाई शुरू होने के बाद पश्चिमी मीडिया में खबरें थीं कि रूस ने वागनर ग्रुप के 400 लड़ाकों को यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की की हत्या करने के लिए भेजा है। इसके पहले से ही यूक्रेन आरोप लगाता रहा है कि रूस ने इस प्राइवेट सेना को पूर्वी यूक्रेन के लुहांस्क और दोनेत्स्क इलाकों में भेजा है। यूक्रेन में यह समूह 2014 में पहली बार प्रकट हुआ था। रूस ने इस प्राइवेट सेना का इस्तेमाल सीरिया, लीबिया, सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक, माली, उत्तरी और सब-सहारा अफ्रीका में भी किया है। वैधानिक तरीके से इसे रूस की सेना नहीं कहा जा सकता, पर यह भी रूसी सेना है। पिछले साल दिसंबर में यूरोपियन यूनियन ने इस समूह पर भी पाबंदियाँ लगाई थीं।

Monday, January 2, 2023

यूक्रेन-युद्ध और रूस का घटता रसूख

25 दिसंबर को क्रेमिलन में खामोशी का आलम था. राष्ट्रपति भवन पर पूरी तरह से बोरिस येल्तसिन का नियंत्रण था. गोर्बाचेव अपने दफ़्तर और कुछ कमरों में सिमट कर रह गए थे.उसी शाम 7:32 मिनट पर सोवियत संघ के रेड फ्लैग की जगह रूस के पहले राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन की अगुवाई में रूसी संघ का झंडा लहरा दिया गयादुनिया के सबसे बड़े कम्युनिस्ट देश के विघटन के साथ 15 स्वतंत्र गणराज्यों- आर्मीनिया, अज़रबैजान, बेलारूस, एस्स्तोनिया, जॉर्जिया, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, लात्विया, लिथुआनिया, मालदोवा, रूस, ताजकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, यूक्रेन और उज़्बेकिस्तान का उदय हुआ.

रूस से जुड़ी दो महत्वपूर्ण तारीखें हाल में गुज़री हैं. नवंबर, 1917 की बोल्शेविक क्रांति के बाद 30 दिसंबर, 1922 को सोवियत संघ की स्थापना की घोषणा हुई थी. उसके 100 साल गत 30 दिसंबर को पूरे हुए. आज रूस में इस शताब्दी का समारोह मनाने के लिए कम्युनिस्ट सरकार नहीं है, पर यह पिछली सदी की सबसे बड़ी परिघटनाओं में से एक थी.

इस बात को याद करने की एक बड़ी वजह है यूक्रेन-युद्ध, जिसके पीछे कुंठित रूसी साम्राज्यवाद की आहट भी है, जो बीसवीं सदी में ही हंगरी, चेकोस्लोवाकिया और अफगानिस्तान में नज़र आया था. पिछले साल फरवरी में यूक्रेन पर हमला करने के पहले व्लादिमीर पुतिन के भाषण में रूसी-राष्ट्रवाद की गंध आ रही थी. वह अपने पुराने रसूख को कायम करना चाहता है. हालांकि लड़ाई जारी है, पर लगता नहीं कि रूस अपने उस मकसद को पूरा कर पाएगा, जिसके लिए यह लड़ाई शुरू हुई है. 

पिछले महीने रूस की कम्युनिस्ट पार्टी ने सोवियत संघ की शताब्दी का समारोह मनाया, पर इसे रूस में ही खास महत्व नहीं दिया गया. पचास साल पहले जब 1972 में सोवियत संघ के पचास साल का समारोह मनाया गया था, तब वह अमेरिका के मुकाबले की ताकत था. कोई कह नहीं सकता था कि अगले बीस साल में यह व्यवस्था ध्वस्त हो जाएगी. 

दूसरी परिघटना थी सोवियत संघ का विघटन जो 26 दिसंबर, 1991 को हुआ. इस परिघटना की प्रतिक्रिया हमें यूक्रेन-युद्ध के रूप में दिखाई पड़ रही है, जो पिछले साल फरवरी में शुरू हुआ था. एक सदी पहले सोवियत संघ के उदय ने एक नई विश्व-व्यवस्था का स्वप्न दिया था, जो पूँजीवादी-साम्यवाद के विरोध में सामने आई थी. इस व्यवस्था ने विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में प्रगति के नए मानक स्थापित किए, और एक नई सैन्य-शक्ति को खड़ा किया.

Sunday, January 1, 2023

साल का सवाल, कब रुकेगा यूक्रेन-युद्ध?


आमतौर पर नया साल नई उम्मीदें और नए सपने लेकर आता है, पर इसबार नया साल कई तरह के सवाल लेकर आया है। इनमें से ज्यादातर सवाल पिछले साल फरवरी में रूस के यूक्रेन पर हमले के बाद से पैदा हुई परिस्थितियों से जुड़े हैं। यह लड़ाई मामूली साबित नहीं हुई। पिछले साल फरवरी में समझा जा रहा था कि कुछ दिन में खत्म हो जाएगी। लड़ाई न केवल जारी है, बल्कि उसने दुनिया की अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित किया है। दो साल से महामारी की शिकार दुनिया को उम्मीद थी कि शायद अब गाड़ी फिर से पटरी पर वापस आएग, पर ऐसा हुआ नहीं। इस लड़ाई ने विश्व-व्यवस्था को लेकर कुछ बुनियादी धारणाएं ध्वस्त कर दीं। इनमें सबसे बड़ी धारणा यह थी कि अब देशों के बीच लड़ाइयों का ज़माना नहीं रहा। यूक्रेन के बाद ताइवान को लेकर चीनी गर्जन-तर्जन को देखते हुए सारे सिद्धांत बदल रहे हैं। दक्षिण चीन सागर में चीन संरा समुद्री कानून संधि का खुला उल्लंघन करके विश्व-व्यवस्था को चुनौती दे रहा है।

टूटती धारणाएं

माना जा रहा था कि जब दुनिया के सभी देशों का आपसी व्यापार एक-दूसरे से हो रहा है, तब युद्ध की स्थितियाँ बनेंगी नहीं, क्योंकि सब एक-दूसरे पर आश्रित हैं। यह धारणा भी थी कि जब पश्चिमी देशों के साथ चीन की अर्थव्यवस्था काफी जुड़ गई है, तब मार्केट-मुखी चीन इस व्यवस्था को तोड़ना नहीं चाहेगा। पर हो कुछ और रहा है। एक गलतफहमी यह भी थी कि अमेरिका और पश्चिमी देशों की आर्थिक-पाबंदियों का तोड़ निकाल पाना किसी देश के बस की बात नहीं।  उसे भी रूस ने ध्वस्त कर दिया है। रूस का साथ देने वाले देश भी दुनिया में हैं। मसलन भारत के साथ रूस ने रुपये के माध्यम से व्यापार शुरू कर दिया है। चीन के साथ उसका आर्थिक सहयोग पहले से ही काफी मजबूत है। ईरान के साथ भी रूस के अच्छे कारोबारी रिश्ते हैं।

विश्व-व्यवस्था

ज्यादा बड़ी समस्या वैश्विक-व्यवस्था यानी ग्लोबल ऑर्डर से जुड़ी है। आज की विश्व-व्यवस्था की अघोषित धुरी है अमेरिका और उसके पीछे खड़े पश्चिमी देश। इसकी शुरुआत पहले विश्व-युद्ध के बाद से हुई है, जब अमेरिकी राष्ट्रपति वुडरो विल्सन ने लीग ऑफ नेशंस के मार्फत ‘नई विश्व-व्यवस्था’ कायम करने का ठेका उठाया। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद गठित संयुक्त राष्ट्र और दूसरी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के पीछे अमेरिका है। उसके पहले उन्नीसवीं सदी में एक और अमेरिकी राष्ट्रपति जेम्स मुनरो ने अमेरिका के महाशक्ति बनने की घोषणा कर दी थी। बीसवीं सदी में अमेरिका और उसके साथ वैश्विक-थानेदार बने रहे, पर यह अनंतकाल तक नहीं चलेगा। 2021 में अफगानिस्तान में हुई अमेरिका की अपमानजनक पराजय के बाद 2022 में यूक्रेन में भी अमेरिकी-नीतियाँ विफल ही हैं। साथ ही उसके परंपरागत यूरोपीय मित्र भी पूरी तरह उसके साथ नहीं है। इसकी वजह है खुली हुई आर्थिक-व्यवस्था। शीतयुद्ध के दौर में अर्थव्यवस्थाएं पूरी तरह अलग थीं। आज यूरोप के देश अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए रूस पर आश्रित हैं। पूँजी निवेश के लिए वे चीन का मुँह देख रहे हैं। यह भी जरूरी नहीं कि उसी तौर-तरीके से चले जैसे अभी तक चला आ रहा था। दुनिया के सामने इस समय महामारी के अलावा मुद्रास्फीति, आर्थिक मंदी से लेकर जलवायु परिवर्तन तक के खतरे खड़े हैं। दूसरी तरफ इनका सामना करने वाली वैश्विक-व्यवस्था कमज़ोर पड़ रही है, यह बात भी यूक्रेन-युद्ध ने साबित की है।