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Thursday, June 24, 2021

परिसीमन के बाद होंगे कश्मीर में चुनाव

 


प्रधानमंत्री के साथ कश्मीरी नेताओं की करीब तीन घंटे तक चली वार्ता सम्पन्न हो गई है। हालांकि अभी सरकारी ब्रीफिंग नहीं हुई है, पर बातचीत से बाहर निकले कांग्रेसी नेता गुलाम नबी आजाद ने बताया कि बातचीत ने हमारी तरफ से पाँच बातें रखी गईं। राज्य का दर्जा जल्द बहाल हो, विधान सभा चुनाव कराए जाएं, कश्मीरी पंडितों की घाटी में वापसी हो, सभी राजनीतिक कैदियों को रिहा किया जाए और स्थायी निवास को बनाए रखा जाए।

जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी के नेता अल्ताफ बुखारी ने बैठक के बाद कहा, बातचीत बड़े अच्छे माहौल में हुई। प्रधानमंत्री ने सभी नेताओं के मुद्दे सुने। पीएम ने कहा कि परिसीमन की प्रक्रिया पूरी होने के बाद चुनाव को लेकर प्रक्रिया शुरू की जाएगी। गुलाम नबी ने बताया कि बैठक में सभी नेताओं को किसी भी विषय पर, कितना भी बोलने की छूट थी। पहले प्रधानमंत्री और गृहमंत्री ने अपनी बात रखी।

आजाद के मुताबिक, सरकार ने कोविड को चुनावों में देरी की वजह बताया। बैठक में शामिल बीजेपी नेता कवींद्र गुप्ता ने बताया कि पीडीपी (पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी) की नेता महबूबा मुफ्ती ने बैठक के दौरान पाकिस्तान का नाम लिया। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के साथ व्यापार जारी रहना चाहिए।

उधर सरकारी सूत्रों का कहना है कि हम सभी मसलों पर विचार-विमर्श के लिए तैयार हैं। फिलहाल हम चुनाव क्षेत्रों के परिसीमन का काम पूरा होने का इंतजार कर रहे हैं, ताकि चुनाव कराए जा सकें। परिसीमन का काम पूरा होने के बाद जम्मू-कश्मीर में चुनाव कराए जाएंगे। गृहमंत्री ने कहा कि पूरी प्रक्रिया के तहत पूर्ण राज्य का दर्जा भी बहाल किया जाएगा।

Wednesday, June 23, 2021

24 की बैठक में स्पष्ट होगा घाटी की मुख्यधारा राजनीति का नजरिया


प्रधानमंत्री के साथ 24 जून को जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक नेताओं की प्रस्तावित बैठक के निहितार्थ क्या हैं? क्यों यह बैठक बुलाई गई है? कश्मीर की जनता इसे किस रूप में देखती है और वहाँ के राजनीतिक दल क्या चाहते हैं? ऐसे कई सवाल मन में आते हैं। इस लिहाज से 24 की बैठक काफी महत्वपूर्ण है। पहली बार प्रधानमंत्री कश्मीर की घाटी के नेताओं से रूबरू होंगे। दोनों पक्ष अपनी बात कहेंगे। सरकार बताएगी कि 370 और 35ए की वापसी अब सम्भव नहीं है। साथ ही यह भी भविष्य का रास्ता यह है। सरकार ने 5 अगस्त, 2019 को यह भी कहा था कि भविष्य में जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य बनाया जाएगा। सवाल है कि ऐसा कब होगा और यह भी कि वहाँ चुनाव कब होंगे

इस सिलसिले में महत्‍वपूर्ण यह भी है कि फारुक़ अब्दुल्ला के साथ-साथ महबूबा मुफ्ती भी इस बैठक में शामिल हो रही हैं। पहले यह माना जा रहा था कि वे फारुक़ अब्दुल्ला को अधिकृत कर देंगी। श्रीनगर में मंगलवार को हुई बैठक में गठबंधन से जुड़े पाँचों दल बैठक में आए। ये दल हैं नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी, माकपा, अवामी नेशनल कांफ्रेंस और जम्मू-कश्मीर पीपुल्स मूवमेंट। हमें नहीं भूलना चाहिए कि ये अलगाववादी पार्टियाँ नहीं हैं और भारतीय संविधान को स्वीकार करती हैं। 

पाकिस्तान में कुछ लोग मान रहे हैं कि मोदी सरकार को अपने कड़े रुख से पीछे हटना पड़ा है। यह उनकी गलतफहमी है। पाकिस्तान की सरकार और वहाँ की सेना के बीच से अंतर्विरोधी बातें सुनाई पड़ रही हैं। पर हमारे लिए ज्यादा महत्वपूर्ण कश्मीरी राजनीतिक दल हैं। उन्हें भी वास्तविकता को समझना होगा। इन दलों का अनुमान है कि भारत सरकार अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय बिरादरी को यह जताना चाहती है कि हम लोकतांत्रिक-व्यवस्था को पुष्ट करने का प्रयास कर रहे हैं।

इंडियन एक्सप्रेस ने कश्मीरी राजनेताओं से इन सवालों पर बातचीत की है। गुपकार गठबंधन से जुड़े नेताओं को उधृत करते हुए अखबार ने लिखा है कि श्रीनगर में धारणा यह है कि इस वक्त आंतरिक रूप से तत्काल कुछ ऐसा नहीं हुआ है, जिससे इस बैठक को जोड़ा जा सके। केंद्र सरकार के सामने असहमतियों का कोई मतलब नहीं है। जिसने असहमति व्यक्त की वह जेल में गया।

एक कश्मीरी राजनेता ने अपना नाम को प्रकाशित न करने का अनुरोध करते हुए कहा कि 5 अगस्त, 2019 के बाद से जो कुछ भी बदला है, वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर है। चीन ने (गलवान और उसके बाद के घटनाक्रम को देखते हुए) इस मसले में प्रवेश किया है। अमेरिका में प्रशासन बदला है। उसकी सेनाएं अब अफगानिस्तान से हट रही हैं और सम्भावना है कि तालिबान की काबुल में वापसी होगी। अमेरिका को फिर भी पाकिस्तान में अपनी मजबूत उपस्थिति की दरकार है। इन सब बातों के लिए वह दक्षिण एशिया में शांत-माहौल चाहता है। जम्मू-कश्मीर में जो होगा, उसके व्यापक निहितार्थ हैं।

Thursday, November 19, 2020

कश्मीर के ‘राष्ट्रद्रोही’, करगिल में बीजेपी के सहयोगी


जम्मू-कश्मीर में बने गुपकार गठबंधन को अमित शाह ने गुपकार गैंग कहा है, वहीं अब खबर यह है कि गुपकार गठबंधन की मुख्य पार्टी नेशनल कांफ्रेंस, लद्दाख ऑटोनॉमस हिल डेवलपमेंट कौंसिल, करगिल में बीजेपी की सहयोगी है। इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक पीपुल्स अलायंस फॉर गुपकार डिक्लरेशन (पीएजीडी) के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला की पार्टी के 10 सदस्य लद्दाख ऑटोनॉमस हिल डेवलपमेंट कौंसिल (LAHDCK) के 26 निर्वाचित सदस्यों में शामिल हैं, वहीं आठ कांग्रेस से और तीन बीजेपी से हैंपांच सदस्य निर्दलीय हैं। लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन ने चार सदस्यों को मनोनीत किया है, इस प्रकार यह संख्या 30 हो गई है।

इसे सहयोग कहा भी कहा जा सकता है, पर दूसरे शब्दों में कहें, तो इस क्षेत्र के विकास के लिए ये सभी दल एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करेंगे। दो अलग-अलग इलाकों में दोनों दलों की राजनीति की दिशा भी अलग-अलग है। यह उस प्रकार का राजनीतिक
गठबंधन नहीं है, जिस प्रकार से दो राजनीतिक दल एक एजेंडा लेकर साथ आते हैं।
कौंसिल में नेशनल कांफ्रेंस और बीजेपी की साझेदारी के बारे में पूछे जाने पर लद्दाख में बीजेपी के सांसद और पार्टी की लद्दाख इकाई के अध्यक्ष, जम्यांग तर्सिंग नामग्याल ने कहा कि नेशनल कांफ्रेंस के साथ बीजेपी खुले तौर पर साझेदार है, और आगे भी रहेगी। उन्होंने जम्मू-कश्मीर के गुपकार गठबंधन के संबंध में कहा कि वे लोग जम्मू-कश्मीर को फिर से राज्य बनाना चाहते हैं, और अनुच्छेद 370 की बहाली चाहते हैं, लेकिन लद्दाख में ऐसा नहीं है। लद्दाख अनुच्छेद 370 के खिलाफ है।

Tuesday, November 17, 2020

गुपकार गठबंधन पर जवाबी बयानबाज़ी

 



जम्मू-कश्मीर में गुपकार गठबंधन और भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के बीच बयानबाज़ी काफी कटु स्तर पर आ गई है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इसे बताया 'गुपकार गैंग' कहा है। उन्होंने यह भी कहा कि जम्‍मू-कश्‍मीर को ये लोग आतंक के दौर में वापस ले जाना चाहते हैं। अमित शाह ने ट्विटर पर कहा कि ये लोग विदेशी ताकतों का जम्‍मू-कश्‍मीर में दखल चाहते हैं।

हालांकि कांग्रेस इस गठबंधन में शामिल नहीं है, पर उसका समर्थन इस गठबंधन को प्राप्त है। गुपकार गठबंधन ने डीडीसी चुनाव में उतरे जिन प्रत्याशियों की सूची जारी की है, उनमें कांग्रेस के प्रत्याशी भी शामिल हैं।  शाह ने कहा है, गुपकार गैंग भारत के तिरंगे का अपमान करता है। क्या सोनिया जी और राहुल गुपकार गैंग के ऐसे कदमों का समर्थन करते हैं? उन्‍हें देश की जनता के सामने अपना स्टैंड साफ करना चाहिए।

इसके जवाब में महबूबा मुफ्ती ने कहा, चुनाव लड़ना भी अब राष्ट्र-विरोधी हो गया। बीजेपी जितने चाहे गठबंधन करे, हम करें तो राष्ट्र-द्रोह? महबूबा मुफ्ती ने तिरंगे झंडे के बार में अपने बयान में तब्दीली की है। उनका कहना है कि कश्मीर का झंडा भी तिरंगे के साथ हमारे हाथ में होगा। इसका आशय है कि वे भारतीय राष्ट्र राज्य के भीतर रहते हुए कश्मीर की स्वायत्तता की समर्थक हैं। कमोबेश यही स्थिति उनकी पिछले साल अनुच्छेद 370 हटने के पहले की थी। तबसे अबतक फर्क यह पड़ा है कि कश्मीर के ज्यादातर दल आपसी प्रतिद्वंद्विता भुलाकर एकसाथ आ गए हैं। उन्होंने घाटी के बाद जम्मू क्षेत्र में में भी संपर्क साधा है।

Sunday, November 8, 2020

कश्मीर के लिए शुभ है नई राजनीतिक पहल



जम्मू कश्मीर के राजनीतिक दलों के गुपकार गठबंधन ने जिला विकास परिषद के चुनावों में मिलकर उतरने की घोषणा करके राजनीतिक गतिविधियों में जान डाल दी है। देखना होगा कि ये राजनीतिक दल जनता के साथ किस हद तक जुड़ते हैं। साथ ही यह भी देखना होगा कि पाकिस्तान परस्त हुर्रियत कांफ्रेंस की भूमिका क्या होगी। चूंकि हुर्रियत चुनाव के बहिष्कार की घोषणा करती है, जिसके कारण मतदान कम होता है। यदि कश्मीर की मुख्यधारा के राजनीतिक दलों का प्रभाव बढ़ेगा, तो कश्मीर में हालात सामान्य करने में आसानी होगी।

कुछ समय पहले तक ये दल जम्मू-कश्मीर को पुराना स्टेटस बहाल न होने तक किसी भी राजनीतिक प्रक्रिया में शामिल न होने की बात कह रहे थे। अब शनिवार 7 नवंबर को उन्होंने एकजुट होने की घोषणा करके एक महत्वपूर्ण संदेश दिया है। कांग्रेस पार्टी शुरू में गुपकार गठबंधन की बैठकों में शामिल हुई थी, पर उसने इसमें शामिल होने की घोषणा नहीं की है। अलबत्ता पार्टी ने चुनाव में शामिल होने की घोषणा जरूर की है। अलबत्ता रविवार को फारूक अब्दुल्ला ने कहा कि कांग्रेस हमारे साथ मिलकर डीडीसी के चुनाव लड़ेगी, जबकि प्रदेश कांग्रेस के पदाधिकारी कह रहे हैं कि हम अलग रहकर चुनाव लड़ेंगे।

Sunday, October 25, 2020

कश्मीर में विरोधी दलों का मोर्चा


कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने यह कहकर सनसनी फैला दी है कि जबतक अनुच्छेद 370 की वापसी नहीं होगी, तबतक मैं तिरंगा झंडा नहीं फहराऊँगी। उनका कहना है कि जब हमारे झंडे की वापसी होगी, तभी मैं तिरंगा हाथ में लूँगी। उनके इस बयान की आलोचना केवल भारतीय जनता पार्टी ने नहीं की है। साथ में कांग्रेस ने भी की है।

करीब 14 महीने की कैद के बाद हाल में रिहा हुई महबूबा ने शुक्रवार 23 अक्तूबर को कहा कि जबतक गत वर्ष 5 अगस्त को हुए सांविधानिक परिवर्तन वापस नहीं लिए जाएंगे, मैं चुनाव भी नहीं लड़ूँगी। महबूबा की प्रेस कांफ्रेंस के दौरान पूर्व जम्मू-कश्मीर राज्य का झंडा भी मेज पर रखा था। पिछले साल महबूबा ने कहा था कि यदि कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया गया, तो कोई भी तिरंगा उठाने वाला नहीं रहेगा। अब उन्होंने कहा है कि हमारा उस झंडे से रिश्ता इस झंडे ने बनाया है। वह इस झंडे से अलग नहीं है।

महबूबा मुफ्ती का आशय कश्मीर की स्वायत्तता से है। भारतीय संघ में अलग-अलग इलाकों की सांस्कृतिक, सामाजिक और भौगोलिक विशेषता को बनाए रखने की व्यवस्थाएं हैं। जम्मू कश्मीर की स्वायत्तता का सवाल काफी हद तक राजनीतिक है और उसका सीधा रिश्ता देश के विभाजन से है। यह सच है कि विभाजन के समय कश्मीर भौगोलिक रूप से पाकिस्तान से बेहतर तरीके से जुड़ा था। गुरदासपुर और फिरोजपुर भारत को न मिले होते तो कश्मीर से संपर्क भी कठिन था। पाकिस्तान का कहना है कि कश्मीर चूंकि मुस्लिम बहुल इलाका है, इसलिए उसे पाकिस्तान में होना चाहिए। इसका क्या मतलब निकाला जाए?