पिछले शुक्रवार को एबीपी चैनल ने उत्तर प्रदेश, पंजाब और गोवा समेत पाँच चुनावी राज्यों की सम्भावनाओं पर सी-वोटर के सर्वेक्षण को प्रसारित किया। सर्वेक्षण के अनुसार यूपी में सबसे ज्यादा सीटों के साथ बीजेपी फिर सरकार बना सकती है। इसे लेकर तमाम बातें हवा में हैं। माहौल बनाने की कोशिश है। सरकारी विज्ञापन देकर चैनलों से कुछ भी कहलाया जा सकता है वगैरह। बेशक चैनलों की साख खत्म है, पर सर्वे के परिणाम पूरी तरह हवाई नहीं हैं। बीजेपी नहीं, तो कौन?
2022 के उत्तर प्रदेश के परिणाम 2024 के लोकसभा
चुनाव की कसौटी साबित होंगे। बीजेपी अजर-अमर नहीं है। वह भी हार सकती है। पर कैसे
और कौन उसे हराएगा? केन्द्र की बात बाद में करिए, क्या
उसके पहले यूपी में उसे हराया जा सकता है? पिछले
सात साल से यह सवाल हवा में है कि क्या बीजेपी लम्बे अरसे तक सत्ता में रहेगी? क्या कांग्रेस धीरे-धीरे हवा में विलीन हो जाएगी? दोनों अर्धसत्य हैं। यानी
एक हद तक सच हैं।
पिछले सात साल में हुए चुनावों में बीजेपी को
भी झटके लगे हैं। हाल में पश्चिम बंगाल में और उसके पहले छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश और राजस्थान में वह हारी
है। 2015 में बिहार में उसे झटका लगा, 2017 में पंजाब
में, कर्नाटक में वह सबसे बड़ी पार्टी बनी, पर सरकार जेडीएस और कांग्रेस की बनी। गुजरात में भले ही बीजेपी की
सरकार बनी, पर उसकी ताकत कम हो गई।
बीजेपी तभी हारेगी, जब राष्ट्रीय स्तर पर उसका विकल्प होगा। विचार और संगठन दोनों रूपों में। विकल्प जो बहुसंख्यक समाज को स्वीकार हो। कांग्रेस ने सायास वह जगह छोड़ी है और आज वह लकवे की शिकार है। पंजाब के घटनाक्रम को देखें, तो भ्रमित नेतृत्व की तस्वीर उभरती है। हाल में एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें उत्तर प्रदेश के गाँव के कुछ लोग कह रहे थे, ‘चाहे कुछ हो जाए वोट तो योगी को ही देंगे। कितनी भी महंगाई हो जाए, वोट बीजेपी को ही देंगे, धन गया तो फिर कमा लेंगे, धर्म गया तो अधर्मी जीने नहीं देंगे वगैरह-वगैरह।’