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Tuesday, June 21, 2022

आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस: बुद्धि और चेतना क्या टकराएंगी?


भारत के समानव अंतरिक्ष-अभियान गगनयान की पहली परीक्षण उड़ान जल्द ही होने वाली है। शुरुआती उड़ान में अंतरिक्ष-यात्री नहीं होंगे, पर जब जाएंगे तब  उनके साथ ‘व्योममित्र’ नामक एक रोबोट भी अंतरिक्ष जाएगा। यह रोबोट पूरे यान के मापदंडों पर निगरानी रखेगा। इसमें कोई नई बात नहीं है, केवल आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस के बढ़ते दायरे की ओर इशारा है।

तकनीकी विकास के हम ऐसे दौर में हैं, जब आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस का प्रवेश जीवन में हो रहा है। पहले हमें लगता था कि मशीनें ज्यादा से ज्यादा सोचेंगी भी तो एक सीमा तक ही सोचेंगी। पर हाल में ब्रिटिश पत्रिका इकोनॉमिस्ट ने लिखा है कि आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस का अब कविता, पेंटिंग और साहित्य जैसी ललित कलाओं में भी प्रवेश होगा। ऐसा कम्प्यूटर की डीप लर्निंग तकनीक के कारण सम्भव हुआ है। पेंटिंग वगैरह तो कम्प्यूटर बना ही रहे थे, पर वे अब आपके पसंदीदा कलाकार की शैली में पेंटिंग बना देंगे। सभी बारीकियों के साथ।

डीप लर्निंग

यह तकनीक मनुष्य के मस्तिष्क में काम करने वाले करोड़ों-अरबों न्यूरॉन्स की डीप लर्निंग के सिद्धांत पर काम करती है। शुरू में लगता था कि इसकी भी सीमा है, पर हाल में विकसित फाउंडेशन मॉडल्स ने साबित किया है कि पहले से कई गुना जटिल डीप लर्निंग सम्भव है। आप कम्प्यूटर पर जो वाक्य लिखते हैं, उसे व्याकरण-सम्मत आपका कम्प्यूटर बनाता जाता है। आप चाहते हैं कि आपके आलेख का अच्छा सा शीर्षक बन जाए, बन जाएगा। लेख का सुन्दर सा इंट्रो बन जाएगा।

आप मोबाइल फोन पर संदेश लिखते हैं, तो आपकी जरूरत के शब्द अपने आप आपके सामने बनते जाते हैं। तमाम जटिल पहेलियों के समाधान कम्प्यूटर निकाल देता है। लूडो से लेकर शतरंज तक आपके साथ खेलता है। शतरंज के चैम्पियनों को हराने लगा है। तकनीक ने हमारे तमाम काम आसान किए हैं। अब वह मनुष्य की तरह काम करने लगी है।

आप संगीत-रचना रिकॉर्ड कर रहे हैं। उसके दोष दूर करता जाएगा। इससे रचनात्मकता के नए आयाम खुल रहे हैं। आप चाहते हैं कि पिकासो या रैम्ब्रां की शैली में कोई चित्र बनाएं, तो आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस यह काम कर देगी, क्योंकि उसके पास सम्बद्ध कलाकार की शैली से जुड़ा छोटे से छोटा विवरण मौजूद है। उस जानकारी के आधार पर कम्प्यूटर चित्र बना देगा।

Wednesday, February 10, 2021

क्वांटम कंप्यूटिंग में अमेरिकी वर्चस्व को चीनी चुनौती


खबर है कि चीन के एक स्टार्टअप ने क्वांटम कंप्यूटर के लिए ऑपरेटिंग सिस्टम विकसित कर लिया है। इस खबर के दो मायने हैं। एक तो यह अमेरिका के तकनीकी वर्चस्व को चुनौती है और दूसरे इस प्रकार दुनिया में अगली पीढ़ी की तकनीक के विस्तार का दरवाजा खुल रहा है। इसके पहले दिसंबर 2020 में चीन ने क्वांटम कंप्यूटर की तकनीक के विकास और एक प्रोटोटाइप तैयार करने का दावा किया था। पर पिछले सोमवार 8 फरवरी को चीन के एनहुई प्रांत के स्टार्टअप ओरिजिन क्वांटम ने अपने इस ऑपरेटिंग सिस्टम का प्रदर्शन किया। इस प्रकार कहा जा सकता है कि चीन ने क्वांटम सुप्रीमेसी के पहले चरण में प्रवेश कर लिया है।

पहले इस बात को समझें कि क्वांटम सुप्रीमेसी होती क्या है। यह कंप्यूटर विज्ञान का नया शब्द है। मोटे तौर पर समझें कि आज के सुपर कंप्यूटरों से भी लाखों गुना ज्यादा तेज कंप्यूटर। नवंबर 2019 में गूगल ने घोषणा की थी कि कंप्यूटिंग में क्वांटम सुप्रीमेसी हासिल कर ली गई है। साइंटिफिक जर्नल 'नेचर' में इस आशय से संबंधित एक लेख भी प्रकाशित हुआ। परंपरागत कंप्यूटर भौतिक शास्त्र के परंपरागत सिद्धांतों पर काम करते हुए वे विद्युत प्रवाह का इस्तेमाल करते हैं। क्वांटम कंप्यूटर उन नियमों के आधार पर काम करेगा, जो परमाणुओं और सबएटॉमिक पार्टिकल्स के व्यवहार को दर्शाते हैं। इतने महीन स्तर पर क्वांटम फिजिक्स के नियम काम करते हैं। ऐसे कंप्यूटर के विकास पर वैज्ञानिक पिछले चार दशक से लगे हुए हैं। सन 1981 में भौतिक विज्ञानी रिचर्ड फेनमैन ने लिखा, ‘प्रकृति की नकल करते हुए हमें क्वांटम मिकेनिक्स का विकास करना होगा, जो सरल नहीं है।’ परंपरागत कम्प्यूटर, सूचना को बाइनरी यानी 1 और 0 के तरीके से प्रोसेस करता है, जबकि क्वांटम कंप्यूटर ‘क्यूबिट्स’ (क्वांटम बिट्स) में काम करेगा। इसमें प्रोसेसर 1और 0 दोनों को साथ-साथ प्रोसेस करेगा। ऐसा एटॉमिक स्केल में होता है। इस स्थिति को क्वांटम सुपरपोजीशन कहते हैं।

Monday, April 20, 2020

कैसा होगा उत्तर-कोरोना तकनीकी विश्व?


कोरोना की बाढ़ का पानी उतर जाने के बाद दुनिया को कई तरह के प्रश्नों पर विचार करना होगा। इनमें ही एक सवाल यह भी है कि दुनिया का तकनीकी विकास क्या केवल बाजार के सहारे होगा या राज्य की इसमें कोई भूमिका होगी? इन दो के अलावा विश्व संस्थाओं की भी कोई भूमिका होगी? तकनीक के सामाजिक प्रभावों-दुष्प्रभावों पर विचार करने वाली कोई वैश्विक व्यवस्था बनेगी क्या? इससे जुड़ी जिम्मेदारियाँ कौन लेने वाला है?
इस हफ्ते की खबर है कि मोबाइल फोन बनाने वाली कम्पनी एपल और गूगल ने नोवेल कोरोनावायरस के विस्तार को ट्रैक करने के लिए आपसी सहयोग से स्मार्टफोन प्लेटफॉर्म विकसित करने का फैसला किया है। ये दोनों कंपनियां मिलकर एक ट्रैकिंग टूल बनाएंगी, जो सभी स्मार्टफोनों में मिलेगा। यह टूल कोरोना वायरस की रोकथाम में सरकार, हैल्थ सेक्टर और आम प्रयोक्ता की मदद करेगा। यह टूल आईओएस और एंड्रॉयड ऑपरेटिंग सिस्टम में कॉण्टैक्ट ट्रेसिंग का काम करेगा। यह काम तभी सम्भव है, जब दुनिया के सारे स्मार्टफोन यूजर्स एक ही ग्रिड या ऐप पर हों।

Saturday, February 19, 2011

अब ऑनलाइन वोटिंग के बारे में विचार करें

लखनऊ से श्री यशवंत माथुर ने मेरे पास एक लेख भेजा है ऑनलाइन वोटिंग पर। हालांकि हमारे देश में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन से मतदान हो रहा है। उसे लेकर कुछ आपत्तियाँ भी हैं, पर उसका फायदा साफ देखने को मिला है। 


ऑनलाइन वोटिंग का मतलब है इंटरनेट या किसी दूसरे ज़रिए से वोटिंग। इसमें दिक्कत कुछ भी नहीं है। इस तरीके का इस्तेमाल अब काफी हो रहा है। पिछले दिनों आपने दुनिया के सात आश्चर्यों के बारे में फैसला ऑनलाइन वोटिंग से होता देखा। भारत के रियलिटी शो एसएमएस से वोटिंग कराते हैं। हम इनकम टैक्स रिटर्न जब ऑनलाइन भर सकते हैं तब वोट देने में दिक्कत नहीं होनी चाहिए। असली दिक्कत हार्डवेयर की है। अभी न तो उतने नेट कनेक्शन हैं और न उतनी अच्छी ब्रॉडबैंड सेवाएं।