Showing posts with label विश्व-बंधु. Show all posts
Showing posts with label विश्व-बंधु. Show all posts

Sunday, April 12, 2020

‘विश्व-बंधु’ भारत


वेदवाक्य है, ‘यत्र विश्वं भवत्येक नीडम। ’यह हमारी विश्व-दृष्टि है। 'एक विश्व' की अवधारणा, जो आधुनिक ग्लोबलाइजेशन या ग्लोबल विलेजजैसे रूपकों से कहीं व्यापक है। अथर्ववेद के भूमि सूक्त या पृथ्वी सूक्तसे पता लगता है कि हमारी विश्व-दृष्टि कितनी विषद और विस्तृत है। आज पृथ्वी कोरोना संकट से घिरी है। ऐसे में एक तरफ वैश्विक नेतृत्व और सहयोग की परीक्षा है। यह घड़ी भारतीय जन-मन और उसके नेतृत्व के धैर्य, संतुलन और विश्व बंधुत्व से आबद्ध हमारे सनातन मूल्यों की परीक्षा भी है। हम वसुधैव कुटुंबकम्के प्रवर्तक और समर्थ हैं। यह बात कोरोना के विरुद्ध वैश्विक संघर्ष से सिद्ध हो रही है।
हमारे पास संसाधन सीमित हैं, पर आत्मबल असीमित है, जो किसी भी युद्ध में विजय पाने की अनिवार्य शर्त है। पिछले कुछ समय ने भारत ने एक के बाद एक अनेक अवसरों पर पहल करके अपनी मनोभावना को व्यक्त किया है। कोरोना पर विजय के लिए अलग-अलग मोर्चे हैं। एक मोर्चा है निवारण या निषेध का। अर्थात वायरस के लपेटे में आने से लोगों को बचाना। दूसरा मोर्चा है चिकित्सा का, तीसरा मोर्चा है उपयुक्त औषधि तथा उपकरणों की खोज का और इस त्रासदी के कारण आर्थिक रूप से संकट में फँसे बड़ी संख्या में लोगों को संरक्षण देने का चौथा मोर्चा है। इनके अलावा भी अनेक मोर्चों पर हमें इस युद्ध को लड़ना है। इसपर विजय के बाद वैश्विक पुनर्वास की अगली लड़ाई शुरू होगी। उसमें भी हमारी बड़ी भूमिका होगी।
एक परीक्षा, एक अवसर
यह भारत की परीक्षा है, साथ ही अपनी सामर्थ्य दिखाने का एक अवसर भी। गत 13 मार्च को जब नरेंद्र मोदी ने कोरोना से लड़ाई के लिए दक्षेस देशों को सम्मेलन का आह्वान किया था, तबतक विश्व के किसी भी नेता के दिमाग में यह बात नहीं थी इस सिलसिले में क्षेत्रीय या वैश्विक सहयोग भी सम्भव है। ज्यादातर देश इसे अपने देश की लड़ाई मानकर चल रहे थे। इस हफ्ते प्रतिष्ठित पत्रिका फॉरेन पॉलिसी में माइकल कुगलमैन ने अपने आलेख में इस बात को रेखांकित किया है कि नरेंद्र मोदी एक तरफ अपने देश में इस लड़ाई को जीतने में अग्रणी साबित होना चाहते हैं, साथ ही भारत को एक नई ऊँचाई पर स्थापित करना चाहते हैं।