पिछले कुछ साल से लोक सभा और विधान सभा चुनावों में एक नया चलन
देखने को मिल रहा है. चुनाव सभाओं में भीड़ जुटाने के लिए नेताओं के भाषण के पहले लड़कियों
का नाच कराया जाता है. इन लड़कियों को अब बार गर्ल्स कहा जाने लगा है. पुराने नामों
के मुकाबले हालांकि यह शालीन नाम है, पर यह नाच हमारी संस्कृति के पाखंड की परतों में
छिपा है. कौन मजबूर करता है इन्हें नाचने के लिए? और
फिर कौन उनपर फब्तियाँ कसता है? कौन उन्हें धिक्कारता है और कौन
उनपर पाबंदियाँ लगाता है? किसने रोका है उन्हें सम्मानित नागरिक
बनने से?