संसद का यह महत्वपूर्ण सत्र तेलंगाना के कारण ठीक से नहीं
चल पा रहा है। इसके पहले शीत सत्र और मॉनसून सत्र के साथ भी यही हुआ। तेलंगाना की
घोषणा से कोई खुश नहीं है। कांग्रेस ने सन 2004 में तेलंगाना बनाने का आश्वासन
देते वक्त नहीं सोचा था कि यह उसके लिए घातक साबित होने वाला है। इस बात पर बहुत
कम लोगों ने ध्यान दिया है कि सन 2004 में कांग्रेस के प्राण वापस लाने में
तेलंगाना की जबर्दस्त भूमिका थी। एक गलतफहमी है कि 2004 में भाजपा की हार ‘इंडिया शाइनिंग’ के
कारण हुई। भाजपा की हार का मूल कारण दो राज्यों का गणित था।
आंध्र और तमिलनाडु में भाजपा के गठबंधन गलत साबित हुए। दूसरी और कांग्रेस ने
तेलंगाना का आश्वासन देकर अपनी सीटें सुरक्षित कर लीं। सन 1999 के लोकसभा चुनाव
में भाजपा को कुल 182 सीटें मिलीं थीं, जो 2004 में 138 रह गईं। यानी 44 का नुकसान
हुआ। इसके विपरीत कांग्रेस की सीटें 114 से बढ़कर 145 हो गईं। यानी 31 का लाभ हुआ।
यह सारा लाभ तमिलनाडु और आंध्र से पूरा हो गया। 1999 में इन दोनों राज्यों से
कांग्रेस की सात सीटें थीं, जो 2004 में 39 हो गईं। इन 39 में से 29 आंध्र में
थीं, जहाँ 1999 में उसके पास केवल पाँच सीटें थीं। कांग्रेस को केवल लोकसभा में ही
सफलता नहीं मिली। उसे आंध्र विधानसभा के चुनाव में भी शानदार सफलता मिली, और
वाईएसआर रेड्डी एक ताकतवर मुख्यमंत्री के रूप में स्थापित हुए।