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Saturday, May 8, 2021

बंगाल-हिंसा की ग्राउंड-रिपोर्ट क्यों नहीं करता मीडिया?


पश्चिम बंगाल में चुनाव परिणाम आने के बाद से शुरू हुई हिंसा की खबरें अब भी मिल रही हैं, पर मुख्यधारा का मीडिया अब भी इसकी ग्राउंड रिपोर्ट करने से बच रहा है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कल ही माना था कि राज्य के विभिन्न हिस्सों में चुनाव बाद हिंसा में 16 लोगों की मौत हुई है। उधर केंद्रीय गृह मंत्रालय की टीम ने हिंसा पीड़ित स्थलों का दौरा किया है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी जाँच के लिए ऐसी ही एक टीम गठित की है। उधर कोलकाता हाईकोर्ट ने भी हिंसा को लेकर राज्य सरकार से रिपोर्ट माँगी है।

राज्य के राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने हिंसा को लेकर सख्त रुख अपनाया है। उन्होंने राज्य के मुख्य सचिव को निर्देश दिया है कि आज (शनिवार) की शाम तक उनसे मुलाकात करें। उन्होंने यह भी कहा है कि राज्य के गृह सचिव ने उन्हें चुनाव के बाद हुई हिंसा से जुड़ी कानून-व्यवस्था की स्थिति से अवगत नहीं कराया। उन्होंने ट्वीट किया है कि गृह सचिव ने राज्य के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) और कोलकाता पुलिस आयुक्त की इस संबंधी रिपोर्ट उन्हें नहीं भेजी हैं।

गृह-मंत्रालय की टीम

उधर केंद्रीय गृह मंत्रालय के चार सदस्यों की एक टीम ने शुक्रवार को राज्यपाल से भी मुलाकात की। इतनी सरगर्मियों के बावजूद इस मामले में राष्ट्रीय मीडिया की बेरुखी भी ध्यान खींचती है। ज्यादातर खबरें पार्टी प्रवक्ताओं या सरकारी संस्थाओं के माध्यम से आ रही हैं। सोशल मीडिया पर जानकारियों की बाढ़ है, पर इनमें बहुत सी बातें भ्रम को बढ़ाने वाली हैं। शायद जान-बूझकर बहुत सी गलत जानकारियाँ भी फैलाई जा रही हैं, ताकि वास्तविक घटनाओं को लेकर भ्रम की स्थिति बने। मुख्यधारा का मीडिया ग्राउंड रिपोर्ट करे, तो ऐसे भ्रमों की सम्भावनाएं कम हो जाएंगी।  

Wednesday, May 5, 2021

बंगाल की हिंसा की गहराई से पड़ताल की जरूरत


पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली है। उनकी फिलहाल सबसे बड़ी जवाबदेही उस हिंसा को लेकर है, जो किसी न किसी रूप में तीसरे दिन भी जारी थी। हालांकि हिंसा के तीन दिन बाद आज कुछ अखबारों में इन घटनाओं की कवरेज हुई है, पर बंगाल या देश-विदेश के मीडिया ने इन घटनाओं की गहराई से पड़ताल करने की कोशिश नहीं की है, जो चिंता का विषय है।

ज्यादातर अखबारों ने ज्यादा से ज्यादा राजनीतिक बयानों और सरकारी गतिविधियों को खबर बनाया है। यह पता लगाने की कोशिश नहीं की है कि इनके पीछे क्या कारण हैं। खासतौर से बंगाल के अखबारों ने इन खबरों की या तो अनदेखी की है या शांति बनाए रखने की मुख्यमंत्री की अपील को प्रमुखता दी है। चौबीस घंटे सनसनी फैलाने वाले टीवी चैनलों के प्रतिनिधियों या कैमरामैनों ने भी घटनास्थलों तक जाकर पीड़ितों से बात करने का प्रयास नहीं किया है। जो वीडियो वायरल हुए हैं, वे घटनास्थलों पर उपस्थित लोगों ने मोबाइल फोनों से तैयार किए हैं।

स्त्रियों से दुर्व्यवहार

इस कवरेज से ही पता लगेगा कि स्त्रियों के साथ क्या सलूक किया गया और घरों पर किस तरह से हमले हुए हैं। ये घटनाएं बंगाल की राजनीति के एक महत्वपूर्ण पहलू से वास्ता रखती हैं। दिल्ली के एक अखबार ने कल अपने सम्पादकीय में जरूर लिखा कि ममता बनर्जी को उस हिंसा पर रोक लगानी चाहिए, जिसमें उनके समर्थक अपने विरोधियों को निशाना बना रहे हैं। पर केवल हिंसा को लेकर न तो सम्पादकीय लिखे गए हैं और गहराई से विवेचन किया गया है। बंगाल के आर्थिक पिछड़ेपन के पीछे देहाती क्षेत्रों में व्याप्त इस हिंसा की भी भूमिका है।

Sunday, June 3, 2018

बंगाल में राजनीतिक हिंसा

हाल में जब कर्नाटक विधानसभा चुनाव का प्रचार चल रहा था, पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव हो रहे थे। मीडिया पर कर्नाटक छाया था, बंगाल पर ध्यान नहीं था। अब खबरें आ रहीं हैं कि बंगाल में लोकतंत्र के नाम हिंसा का तांडव चल रहा था। पिछले हफ्ते पुरुलिया जिले में बीजेपी कार्यकर्ता की हत्या का मामला सामने आने पर इसकी वीभत्सता का एहसास हुआ है। 20 साल के त्रिलोचन महतो की लाश घर के पास ही नायलन की रस्सी ने लटकती मिली। महतो ने जो टी-शर्ट पहनी थी, उसपर एक पोस्टर चिपका मिला जिसपर लिखा था, बीजेपी के लिए काम करने वालों का यही अंजाम होगा। जाहिर है कि इस हत्या की प्रतिक्रिया भी होगी। वह बंगाल, जो भारत के आधुनिकीकरण का ध्वजवाहक था। जहाँ रवीन्द्रनाथ ठाकुर और शरत चन्द्र जैसे साहित्यकारों ने शब्द-साधना की। कला, संगीत, साहित्य, रंगमंच, विज्ञान, सिनेमा जीवन के तमाम विषयों पर देश का ऐसा कोई श्रेष्ठतम कर्म नहीं है, जो बंगाल में नहीं हुआ हो। क्या आपने ध्यान दिया कि उस बंगाल में क्या हो रहा है?