महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से जुड़े बयान देने के कारण केंद्रीय मंत्री नारायण राणे की गिरफ्तारी से महाराष्ट्र की ठंडी पड़ती राजनीति में फिर से गर्मा आ गई है। मुम्बई में एक तरफ शिवसेना के कार्यकर्ताओं का आंदोलन शुरू हो गया है, दूसरी तरफ राणे समर्थकों ने मुंबई-गोवा के पुराने हाईवे को जाम कर दिया है। पर इसका नुकसान शिवसेना को ही होगा। नारायण राणे खाँटी मराठा नेता है और उनका जनाधार मजबूत है। इस गिरफ्तारी से उनका राजनीतिक आधार न केवल मजबूत होगा, बल्कि शिवसेना की छवि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
राणे शिवसेना के भीतर से निकले नेता हैं और वे
उद्धव ठाकरे के परम्परागत विरोधी हैं। बीजेपी उन्हें ठाकरे के मुकाबले खड़ा करने
में कामयाब होती नजर आ रही है। इतना ही नहीं उनकी सहायता से वह शिवसेना के आंतरिक
असंतोष को भी उघाड़ने का प्रयास करेगी। महाराष्ट्र सरकार में शामिल कांग्रेस और
एनसीपी बाहरी तौर पर कुछ भी कहें, पर ठाकरे के व्यवहार से वे भी बहुत खुश नहीं
हैं।
राजनीतिक निहितार्थ
ठाकरे का भाषण और राणे की प्रतिक्रिया भारतीय
राजनीति के लिहाज से सामान्य परिघटना है, पर लगता है कि तिल का ताड़ बन गया है।
राणे के खिलाफ तीन एफआईआर दर्ज हुई हैं। महाराष्ट्र सरकार ने गिरफ्तारी का फैसला
करके अपना ही नुकसान किया है। सच यह है कि गिरफ्तारियाँ राजनेताओं को नुकसान नहीं लाभ
पहुँचाती रही हैं।
नारायण राणे केंद्रीय कैबिनेट मंत्री हैं और उनके गिरफ्तारी आम गिरफ्तारी नहीं है, इसके गहरे राजनीतिक निहितार्थ हैं। पहले देखें कि राणे ने कहा क्या था। हाल में मोदी सरकार में शामिल अन्य मंत्रियों की तरह नारायण राणे महाराष्ट्र के अलग-अलग हिस्सों में ‘जन-आशीर्वाद यात्रा’ निकाल रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी इस तरीके से जनता के बीच अपनी जगह बना रही है। खासतौर से उत्तर प्रदेश में इसका ज्यादा महत्व है, क्योंकि वहाँ विधानसभा चुनाव काफी करीब हैं।