तुर्की और सीरिया में आए विनाशकारी भूकंप के बाद सबसे पहले सहायता के लिए जो देश खड़े हुए हैं, उनमें भारत भी एक है. तुर्किये के साथ रिश्तों को देखते हुए कुछ लोगों ने इस सहायता पर सवाल खड़े किए हैं. उनका कहना है कि अतीत में हुई लड़ाइयों में तुर्की ने पाकिस्तान साथ दिया और वह संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर के मसले को उठाता रहता है. वह हमारा दोस्त नहीं है, फिर इतनी हमदर्दी क्यों?
यह त्रासदी से जुड़ी मानवीय-सहायता की बात है,
पर इस साल आम-बजट में अफगानिस्तान की सहायता के मद में रखी गई 200 करोड़ रुपये की
धनराशि को लेकर दिल्ली के मुख्यमंत्री ने जो टिप्पणी की, उसके पीछे भी ऐसा ही नज़रिया है. दोनों तरह की आपत्तियों को व्यक्त
करने वालों ने जल्दबाजी में या देश की विदेश-नीति के बुनियादी-तत्वों और तथ्यों को
समझे बगैर अपनी आपत्तियाँ व्यक्त की है.
मानवीय-सहायता
बुनियादी बात यह है कि मानवीय-सहायता के समय दोस्त-दुश्मन
नहीं देखे जाते. मान्यताएं और परंपराएं ऐसी सहायता के लिए हमें प्रेरित करती हैं.
राज-व्यवस्था से हमारी सहमति हो न हो, जनता से हमदर्दी तो है. प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी ने कहा है, भारतीय जनता की संवेदनाएं भूकंप
पीड़ितों के साथ है.
‘ऑपरेशन दोस्त’ के तहत भारत लगातार मदद पहुंचा
रहा है. इन पंक्तियों के लिखे जाने तक सातवाँ विमान सहायता
सामग्री लेकर तुर्किये (तुर्की ने जून 2022 में अपना नाम बदलकर तुर्किये कर लिया)
पहुँच चुका है. भारतीय एनडीआरएफ की टीमें तुर्किये में राहत एवं बचाव कार्यों में
लगी हैं. यह शुरुआती सहायता है, भविष्य में कई तरह की सहायता और सहयोग की जरूरत
होगी.
इस प्रकरण ने भारत और तुर्किये के रिश्तों को समझने का मौका दिया है. सच यह है कि भारत के साथ तुर्किये के रिश्ते बहुत अच्छे नहीं, तो खराब भी नहीं रहते थे, पर एर्दोगान की नीतियों के कारण हाल के वर्षों में खलिश बढ़ी है.