यह आलेख मैंने अगस्त 2018 में लिखा था, जो गंभीर समाचार के पत्रकारिता से जुड़े विशेषांक में प्रकाशित हुआ था। मैं इसे अपने ब्लॉग में लगा नहीं पाया था। इन दिनों राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश के संदर्भ में कुछ बातें उठीं, तो इस आलेख का एक अंश मैंने फेसबुक में लगाया। संभव है, कोई पाठक इसे पूरा पढ़ने चाहें, तो मैं इसे यहाँ प्रकाशित कर रहा हूँ। इसके संदर्भ 2018 के ही रहेंगे।
हाल में एबीपी न्यूज चैनल के तीन वरिष्ठ सदस्यों को इस्तीफे देने पड़े। इन तीन में से पुण्य प्रसून वाजपेयी ने बाद में एक वैबसाइट में लेख लिखा, जिसमें उस घटनाक्रम का विस्तार से विवरण दिया, जिसमें उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। इस विवरण में एबीपी न्यूज़ के प्रोपराइटर के साथ, जो एडिटर-इन-चीफ भी हैं उनके एक संवाद के कुछ अंश भी थे। संवाद का निष्कर्ष था कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की व्यक्तिगत आलोचना से उन्हें बचना चाहिए।
इस सिलसिले में ज्यादातर बातें पुण्य प्रसून की ओर से या उनके पक्षधरों की ओर से सामने आई हैं। चैनल के मालिकों और प्रबंधकों ने कोई स्पष्टीकरण जारी नहीं किया। एक और खबर ने हाल में ध्यान खींचा है। जेडीयू के उम्मीदवार हरिवंश नारायण सिंह कांग्रेसी उम्मीदवार बीके हरिप्रसाद को हराकर राज्यसभा के उप-सभापति चुन लिए गए।
हरिवंश मूलतः पत्रकार हैं और लम्बे समय तक उन्होंने रांची के अखबार प्रभात खबर का सम्पादन किया। वे जेडीयू प्रत्याशी के रूप में चुनाव जीतकर राज्यसभा आए थे। संसद के उच्च सदन की परिकल्पना लेखकों, वैज्ञानिकों, पत्रकारों और ललित कलाओं से जुड़े व्यक्तियों को प्रतिनिधित्व देने की भी है, पर उसके लिए मनोनयन की व्यवस्था है।