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Wednesday, January 27, 2021

चन्द्रावती अथवा नासिकेतोपाख्यान

 

 
खड़ी बोली के गद्य का प्रारंभिक रूप उपस्थित करने वाले चार प्रमुख गद्य लेखकों में सदल मिश्र का विशिष्ट स्थान है। इनमें से दो गद्य लेखकों लल्लूलाल और सदल मिश्र ने फोर्ट विलियम कालेज में रहकर कार्य किया और मुंशी सदासुखलाल तथा सैयद इंशा अल्ला खाँ ने स्वतंत्र रूप से गद्य रचना की। फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना सन 1800 में हुई थी। सदल मिश्र ने 1803 में लिखित 'नासिकेतोपाख्यान' में अपनी भाषा को 'खड़ी बोली' लिखा है। उस समय यह नाम प्रचलित हो चुका था। उन्होंने लिखा है, अब संवत्‌ 1860 में नासिकेतोपाख्यान को जिसमें चंद्रावली की कथा कही गई है, देववाणी में कोई समझ नहीं सकता। इसलिए खड़ी बोली से किया। मेरा उद्देश्य उस खड़ी बोली के गद्य से आपका परिचय कराना है, जो उन्हीं दिनों शुरू हुआ ही था। लल्लूलाल के साथ फोर्ट विलियम कालेज में इनकी नियुक्ति प्रचलित भाषा में गद्य ग्रंथों के निर्माण के लिए हुई थी। ईसाई धर्मप्रचारकों एवं शासकों को गद्य के ऐसे स्वरूप एवं साहित्य की आवश्यकता थी, जिनके माध्यम से वे जनसाधारण में अपना धर्म-प्रचार कर सके, अपने स्थापित स्कूलों के लिये पाठ्य पुस्तकों का निर्माण कर सकें तथा अपना शासकीय कार्य चला सकें अत: जॉन गिलक्राइस्ट की अध्यक्षता में फोर्ट विलियम कालेज में इस कार्य का सूत्रपात किया गया। यहीं अपने कार्यकाल में लल्लूलाल ने अपने प्रमुख ग्रंथ 'प्रेमसागर' और सदल मिश्र ने 'नासिकेतोपाख्यान' तथा 'रामचरित्र' लिखा। ये मूल ग्रंथ न होकर अनुवाद ग्रंथ हैं। फोर्ट विलियम कालेज के विवरणों में इनके पद 'भाखा मुंशी' के लिखे गए हैं।

 

चन्द्रावती अथवा नासिकेतोपाख्यान (भाग-1)

सदल मिश्र


सकल सिद्धिदायक वो देवतन में नायक गणपति को प्रणाम करता हूँ कि जिनके चरण कमल के स्मरण किए से विघ्न दूर होता है औ दिन दिन हिय में सुमति उपजती वो संसार में लोग अच्छा अच्छा भोग बिलास कर सबसे धन्य धन्य कहा अन्त में परम-पद को पहुँचते हैं कि जहाँ इन्द्र आदि देवता सब भी जाने को ललचाते हैं।

दोहा

 

गणपति चरण सरोज द्वौ, सकल सिद्धि की राश ।

 

बन्दन करि सब होत है, पूरण मन की आश ।।

 

चित्र विचित्र सुन्दर सुन्दर बड़ी बड़ी अटारिन से इन्द्रपुरी समान शोभायमान, नगर कलिकत्ता महा प्रतापी बीर नृपति कम्पनी महाराज के सदा फूला फला रहे, कि जहां उत्तम उत्तम लोग बसते हैं औ देश देह से एक से एक गुणी जन आय आय अपने अपने गुण को सुफल करि बहुत आनन्द में मगन होते हैं।