नोएडा की ट्विन-टावर गिरा दी गईं, पर अपने पीछे कुछ सवाल छोड़ गई हैं। इनका निर्माण अवैध था, तो उन्हें बनने क्यों दिया गया? जब ये अधूरी थीं, तभी रोकते। अब इन्हें गिराकर एक गलत काम की सजा तो दे दी गई, पर इनके निर्माण की अनुमति देने वालों का क्या हुआ? देश में भ्रष्टाचार की गंगा बहती है। वह दो टावरों तक सीमित नहीं है। चंद अफसर ही इसमें शामिल नहीं हैं। अलबत्ता यह प्रकरण जनता की लड़ाई का प्रस्थान-बिंदु बन सकता है।
करोड़ों रुपये खर्च करके जब ये इमारतें बन ही
गई थीं, तो बनाने वालों को सजा देने के बाद इमारतों का कोई इस्तेमाल कर लेते।
इन्हें गिराने से क्या मिला? तमाम इमारतें गलत बनी हुई हैं। उनसे
जुर्माना वगैरह लेकर आप चलने देते हैं। बहरहाल इन्हें अदालत के फैसले से गिराया
गया है, इसलिए उसे स्वीकार कर लेते हैं।
इमारतें गिर जाने के बाद एमराल्ड कोर्ट के
निवासियों को क्या उनका गार्डन वापस मिलेगा? उन
अफसरों का क्या होगा, जिन्होंने यह सब होने दिया? इस सोसायटी रहने वालों में सरकारी अफसर, वकील और रिटायर्ड जज भी हैं।
उनके प्रयासों से यह कानूनी-उपचार संभव हो पाया। क्या वे अफसरों पर कार्रवाई के
लिए भी कोई मुहिम चलाएंगे? क्या ऐसी मुहिम मामूली लोग भी चला सकेंगे, जो
बिल्डरों की गलत-सलत हरकतों के शिकार हैं।
इस प्रकरण का एक असर यह है कि एनसीआर क्षेत्र में तमाम सोसाइटियों के निवासी अब अपने मसलों को उठाने पर विचार कर रहे हैं। शिकायतें कई तरह की हैं, पर न्याय के दरवाजे दूर हैं। बिल्डरों ने अफसरों की मदद से तमाम नियम-विरुद्ध काम किए हैं। ट्विन-टावरों ने चेतना जगाने का काम किया है। अब जरूरत इस बात की है कि लोग मिलकर कानूनी उपाय खोजें।