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Friday, April 3, 2015

अखबारों के रीडरशिप सर्वे को लेकर फिर विवाद

इडियन रीडरशिप सर्वे को लेकर देश के बहुसंख्यक प्रकाशनों का विरोध फिर सामने आया है। हिन्दू ने IRS 2014: ‘Stale wine in a new bottle’ में लिखा है कि आईआरएस-2013 की देश के 18 प्रकाशन समूहों ने भर्त्सना की थी। लगभग सभी प्रकाशन समूह इस बार भी नाराज हैं। इसे एक विज्ञापन के रूप में कुछ अखबारों ने आज प्रकाशित किया है। आज के अमर उजाला और जागरण ने भी अपने पहले पेज पर इस आशय की रिपोर्ट छापी हैं। रीडरशिप सर्वे करने वाली संस्था चुनावपूर्व सर्वे और एक्जिट पोल भी संचालित करती है।
अमर उजाला में प्रकाशित रपट
इंडियन रीडरशिप सर्वे में फिर गुमराह करने की कोशिश
अमर उजाला नेटवर्क
नई दिल्ली। इंडियन रीडरशिप सर्वे 2014 ने फिर झूठे आंकड़ों के दम पर पाठकों को गुमराह करने की नाकाम और ओछी कोशिश की है। उसने तीन चौथाई झूठ के साथ एक चौथाई सच मिलाकर नई बोतल में पुरानी शराब पेश कर दी है।

Wednesday, March 16, 2011

भारतीय भाषाओं के मीडिया की ताकत और बढ़ेगी




पिछले दिनों इंडियन एक्सप्रेस में खबर थी कि आम बजट के रोज हर चैनल किसी न किसी वजह से नम्बर वन रहा। टैम के निष्कर्षों को सारे चैनल अपने-अपने ढंग से पेश करते हैं। कुछ ऐसा ही प्रिंट मीडिया के सर्वे के साथ होता है। औसत पाठक को एआईआर और टोटल रीडरशिप का फर्क मालूम नहीं होता। अखवार चूंकि सर्वेक्षण के नतीजों का इस्तेमाल अपने प्रचार के लिए करते हैं, इसलिए जो पहलू उनके लिए आरामदेह होता है वे उसे उठाते हैं। मसलन आयु वर्ग या आय वर्ग। किसी खास भौगोलिक क्षेत्र में या किसी खास शहर में।

पाठक सर्वेक्षणों के बारे में चर्चा करने के पहले यह समझ लिया जाना चाहिए कि ये अनुमान हैं, वास्तविक संख्या नहीं। इनकी निश्चित संख्या से यह नहीं मान लेना चाहिए कि पाठक संख्या यही है। अखबारों के प्रिट ऑर्डर के एबीसी ऑडिट के आधार पर निष्कर्ष अलग तरह के होते हैं। भारत में एनआरएस और फिर आईआरएस के पीछे मूल विचार विज्ञापन उद्योग के सामने मीडिया के प्रसार और प्रभाव की तस्वीर पेश करना है। इस प्रक्रिया को पाठक के सामने रखने का उद्देश्य सिर्फ यह बताना हो सकता है कि कौन सा अखबार लोकप्रिय है। यों भी पाठक अपनी मर्जी का अखबार पढ़ता है। वह यह देखकर अखबार नहीं लेता कि उसे कितने पाठक और पढ़ रहे हैं।