उच्चतम स्तर पर देश की लोकतांत्रिक संस्थाओं को
लेकर पिछले कुछ वर्षों में जो सवाल खड़े हो रहे हैं, उनके जवाब देने की घड़ी आ गई
है. ये सवाल परेशान करने वाले जरूर हैं, पर शायद इनके बीच से ही हल निकलेंगे. इन
सवालों पर राष्ट्रीय विमर्श और आमराय की जरूरत भी है. हाल के वर्षों में
न्यायपालिका से जुड़ी जो घटनाएं हुईं हैं, वे विचलित करने वाली हैं. लम्बे अरसे से
देश की न्याय-व्यवस्था को लेकर सवाल हैं. आरोप है कि कुछ परिवारों का इस सिस्टम पर
एकाधिकार है. जजों और वकीलों की आपसी रिश्तेदारी है. सारी व्यवस्था उनके बीच और
उनके कहने पर ही डोलती है.
पिछले साल जनवरी में सुप्रीम कोर्ट के चार जजों
ने एक संवाददाता सम्मेलन में न्यायपालिका के भीतर के सवालों को उठाया था. यह एक
अभूतपूर्व घटना थी. देश की न्यायपालिका के इतिहास में पहली बार सुप्रीम कोर्ट के
मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग भी पिछले साल लाया गया. जज लोया की हत्या को
लेकर गम्भीर सवाल खड़े हुए और अब सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस पर यौन उत्पीड़न के
आरोप लगे हैं. सवाल दो हैं. क्या यह सब अनायास हो रहा है या किसी के इशारे से यह
सब हो रहा है? खासतौर से यौन उत्पीड़न का मामला उठने के बाद ऐसे
सवाल ज्यादा मौजूं हो गए हैं. अब चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने खुद इस सवाल को उठाया
है. इस मामले ने व्यवस्था की पारदर्शिता को लेकर जो सवाल उठाए हैं उनके जवाब मिलने
चाहिए.