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Thursday, November 26, 2020

अमेरिका में शुरू हुई ट्रांज़ीशन की प्रक्रिया

 


हफ़्तों तक चली खींचतान के बाद अमेरिका की जनरल सर्विस एडमिनिस्ट्रेशन (जीएसए) के सामने यह सुनिश्चित हो गया है कि प्रेसीडेंट इलेक्ट जो बिडेन को राष्ट्रपति चुनावों में जीत मिल गई है। दूसरी ओर, मौजूदा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी नए प्रशासन के लिए ट्रांज़ीशन प्रक्रिया शुरू करने की इजाज़त दे दी है। लिहाज़ा अमेरिका में बिडेन प्रशासन के लिए ट्रांज़ीशन प्रक्रिया अब शुरू हो गई है।

अमेरिका में राष्ट्रपति पद पर बैठने की तैयारी काफ़ी जटिल और बेहद महत्वपूर्ण है। राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के चुनाव जीतने और शपथ ग्रहण समारोह के बीच के समय को ट्रांज़ीशन कहा जाता है। यह ट्रांज़ीशन चुने गए राष्ट्रपति की नॉन-प्रॉफिट ट्रांज़ीशन टीम करती है। यह टीम कैंपेन टीम से अलग होती है और इसका अपना स्टाफ और बजट होता है।

Monday, November 23, 2020

ट्रंपोत्तर दुनिया में कैसा होगा बिडेन का अमेरिका?

अमेरिका में चुनाव के बाद पहली बार डोनाल्ड ट्रंप कुछ भाषणों और ट्वीटों से संकेत मिला है कि उन्होंने अपनी हार भले ही न स्वीकार की हो, पर यह मान लिया है कि अगली सरकार उनकी नहीं होगी। अलबत्ता उन्होंने यह भी स्पष्ट नहीं किया है कि अगली सरकार किसकी होगी। बहरहाल उन्होंने जो बिडेन का नाम नहीं लिया। ट्रंप की पराजय क्यों हुई और वे हार नहीं मान रहे हैं, तो इसके पीछे कारण क्या हैं, ऐसे विषयों को छोड़कर हमें आगे बढ़ना चाहिए।

अब यह देखने का वक्त है कि डेमोक्रेटिक पार्टी के जो बिडेन की नीतियाँ क्या होंगी। और यह भी कि वे भारतीय नजरिए से कैसे राष्ट्रपति साबित होंगे। साबित होंगे या नहीं, यह बाद में पता लगेगा, पर वे पहले से भारत के मित्र माने जाते हैं। बराक ओबामा के कार्यकाल में जो बिडेन उपराष्ट्रपति थे और भारत के साथ अच्छे रिश्ते बनाने के जबर्दस्त समर्थक। उन्होंने पहले सीनेट की विदेशी मामलों की समिति के अध्यक्ष के रूप में और बाद में उपराष्ट्रपति के रूप में भारत-समर्थक नीतियों को आगे बढ़ाया। उपराष्ट्रपति बनने के काफी पहले सन 2006 में उन्होंने कहा था, ‘मेरा सपना है कि सन 2020 में अमेरिका और भारत दुनिया में दो निकटतम मित्र देश बनें।’ यह सपना अब पूरा हो रहा है।

Sunday, November 15, 2020

ट्रंप ने हार मानी और नहीं भी मानी

 


हालांकि डोनाल्ड ट्रंप ने औपचारिक रूप से हार नहीं मानी है, पर पहली बार सार्वजनिक रूप से माना है कि जो बिडेन जीत गए हैं। उन्होंने अपने एक ट्वीट में कहा है कि जो बिडेन की जीत फर्जीवाड़े की जीत है। जैसे ही मीडिया में उनके इस ट्वीट को हार की स्वीकृति माना गया, उन्होंने एक और ट्वीट किया कि हार नहीं मान रहा हूँ। बता रहा हूँ कि यह फर्जीवाड़े की जीत है। उधर वॉशिंगटन से खबरें हैं कि ट्रंप समर्थकों ने जुलूस निकाले हैं और कई जगह ट्रंप समर्थकों और विरोधियों के बीच झड़पें हुई हैं। 

Sunday, November 8, 2020

अमेरिकी ‘बीरबल की खिचड़ी’

अमेरिकी चुनाव-व्यवस्था बीरबल की खिचड़ीसाबित हो रही है। हालांकि जो बिडेन ने राष्ट्रपति बनने के लिए जरूरी बहुमत हासिल कर लिया है, पर लगता है कि औपचारिक रूप से अंतिम परिणाम आने में समय लगेगा। जॉर्जिया ने फिर से गिनती करने की घोषणा की है। कुछ दूसरे राज्यों में ट्रंप की टीम ने अदालतों में अर्जियाँ लगाई हैं। यह स्पष्ट नहीं है कि न्यायिक प्रक्रिया में कितना समय लगेगा, पर सन 2000 में केवल फ्लोरिडा का मामला अदालत में गया था, जिसका फैसला होने 12 दिसंबर को हो पाया था। इसबार तो ज्यादा मामले हैं।

 डोनाल्ड ट्रंप चुनाव हार चुके हैं। परिणाम आने में देर इसलिए भी हुई, क्योंकि डाक से भारी संख्या में मतपत्र आए हैं। ऐसा कोरोना के कारण हुआ है। डाक से आए ज्यादातर वोट बिडेन के पक्ष में हैं, क्योंकि ट्रंप ने अपने वोटरों से कहा था कि वे कोरोना से घबराएं नहीं और मतदान केंद्र में जाकर वोट डालें, जबकि बिडेन ने डाक से वोट देने की अपील की थी।

Saturday, November 7, 2020

राजनीतिक प्रक्रियाओं के रास्ते बढ़ता ध्रुवीकरण


अमेरिका के चुनाव परिणाम जिस समय आ रहे हैं, उस वक्त दुनिया में चरम राष्ट्रवाद की हवाएं बह रही हैं। पर क्यों? यह क्रिया की प्रतिक्रिया भी है। फ्रांस में जो हो रहा है, उसने विचार के नए दरवाजे खोले हैं। समझदारी के उदाहरण भी हमारे सामने हैं। गत 15 मार्च को न्यूज़ीलैंड के क्राइस्टचर्च शहर की दो मस्जिदों में हुए हत्याकांड ने दो तरह के संदेश एकसाथ दुनिया को दिए। इस घटना ने गोरे आतंकवाद के नए खतरे की ओर दुनिया का ध्यान खींचा था, वहीं न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जैसिंडा अर्डर्न ने जिस तरह से अपने देश की मुस्लिम आबादी को भरोसा दिलाया, उसकी दुनियाभर में तारीफ हुई।

दुनिया में ह्वाइट सुप्रीमैसिस्टों और नव-नाजियों के हमले बढ़े हैं। अमेरिका में 9/11 के बाद हाल के वर्षों में इस्लामी कट्टरपंथियों के हमले कम हो गए हैं और मुसलमानों तथा एशियाई मूल के दूसरे लोगों पर हमले बढ़ गए हैं। यूरोप में पिछले कुछ दशकों से शरणार्थियों के विरोध में अभियान चल रहा है। ‘मुसलमान और अश्वेत लोग हमलावर हैं और वे हमारे हक मार रहे हैं।’ इस किस्म की बातें अब बहुत ज्यादा बढ़ गईं हैं। पिछले साल श्रीलंका में हुए सीरियल विस्फोटों के बाद ऐसे सवाल वहाँ भी उठाए जा रहे हैं।

Friday, November 6, 2020

अमेरिका में बीरबल की खिचड़ी

 


अब करीब-करीब साफ होता जा रहा है कि डोनाल्ड ट्रंप यह चुनाव हार चुके हैं। इस बात को भी पहले से कहा जा रहा था कि इसबार परिणाम आने में देर लगेगी, क्योंकि डाक से आए मतपत्रों की गिनती करने में देर होगी। अमेरिका में डाक से मतपत्र भेजने की व्यवस्था अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग है। ट्रंप का आरोप है कि मतदान पूरा हो जाने के बाद डाक से आए मतपत्रों को लेना बंद कर देना चाहिए।

उन्होंने पेंसिल्वेनिया, मिशीगन और जॉर्जिया तीन राज्यों की अदालतों में देर से आए मतपत्रों को गणना में शामिल किए जाने की शिकायत की है। उन्हें मिशीगन और जॉर्जिया में सफलता नहीं मिली, पर पेंसिल्वेनिया में मिली है। इस मिश्रित सफलता से भी निर्णायक लाभ उन्हें नहीं मिलेगा, क्योंकि मतगणना रोकने की नहीं परिणाम उनके पक्ष में घोषित किए जाने से ही कुछ हासिल हो सकेगा। नेवादा, जॉर्जिया, पेंसिल्वेनिया और नॉर्थ कैरलीना के परिणाम आने हैं।

मुझे लगता है कि ट्रंप चार-छह वोट से हारेंगे। बिडेन जीत जाएंगे, पर यह जीत बेहद मामूली होगी। इससे साबित यह भी होता है कि अमेरिकी मीडिया अभी तक जो दावे कर रहा था, वे आंशिक रूप से ही सही थे। कहाँ, बिडेन को तीन सौ से ऊपर के दावे थे, कहाँ एकदम निर्णायक रेखा पर जाकर रेस खत्म हो रही है। इनमें मिशीगन, जहाँ ट्रंप काफी समय तक आगे थे, उन्हें मिल जाता, तो ट्रंप की जीत हो जाती।

बहरहाल जीत और हार राजनीति का हिस्सा है। चुनाव केवल राष्ट्रपति पद का ही नहीं हुआ है। प्रतिनिधि सदन और सीनेट का भी हुआ है। लगता है कि सीनेट में रिपब्लिकन पार्टी की बढ़त बनी रहेगी और प्रतिनिधि सदन में डेमोक्रेट्स की। बिडेन के राष्ट्रपति बन जाने के बाद सीनेट में उन्हें दिक्कतें होंगी।

इन सब बातों से ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि इस चुनाव ने अमेरिका के ध्रुवीकरण को बढ़ाया है। डेमोक्रेट्स को केवल राजनीतिक सफलता मिली है। इसे नैतिक सफलता नहीं कह सकते। देखना होगा कि वे अमेरिका के उन तमाम नागरिकों को क्या संदेश देते हैं, जो ट्रंप का समर्थन कर रहे थे। देश के चुनाव में इसबार जैसा भारी मतदान हुआ है, वह ध्रुवीकरण की ओर भी इशारा कर रहा है। चुनाव परिणाम फिलहाल बीरबल की खिचड़ी की तरह आ रहे हैं। पूरे परिणाम आने के बाद हम इनके निहितार्थ पर ज्यादा अच्छे तरीके से बात कर पाएंगे।

 

 

Monday, November 2, 2020

अमेरिकी चुनाव में किसका पलड़ा कहाँ भारी

 

Courtesy: The Hindu

अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव में मतदाता मंडल यानी कि इलेक्टोरल कॉलेज की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है। इस चुनाव में कुल 538 मतदाता चुने जाएंगे। हरेक राज्य के मतदाता वहाँ की जनसंख्या के आधार पर तय होते हैं। एक राज्य में राष्ट्रपति पद के जिस प्रत्याशी के सबसे ज्यादा वोट होते हैं, वह राज्य पूरा का पूरा उस प्रत्याशी का समर्थक हो जाता है। यानी कैलिफोर्निया के 55 मतदाता हैं, तो सब उस प्रत्याशी के खाते में चले जाएंगे। 

Electoral votes (EV) allocations for the 2012, 2016 and 2020 presidential elections.[119]
Triangular markers (IncreaseDecrease) indicate gains or losses following the 2010 Census.[120]
EV × StatesStates*
55 × 1 = 55California
38 × 1 = 38IncreaseIncreaseIncreaseIncreaseTexas
29 × 2 = 58IncreaseIncreaseFlorida, DecreaseDecreaseNew York
20 × 2 = 40DecreaseIllinois, DecreasePennsylvania
18 × 1 = 18DecreaseDecreaseOhio
16 × 2 = 32IncreaseGeorgia, DecreaseMichigan
15 × 1 = 15North Carolina
14 × 1 = 14DecreaseNew Jersey
13 × 1 = 13Virginia
12 × 1 = 12IncreaseWashington
11 × 4 = 44IncreaseArizona, Indiana, DecreaseMassachusetts, Tennessee
10 × 4 = 40Maryland, Minnesota, DecreaseMissouri, Wisconsin
9 × 3 = 27Alabama, Colorado, IncreaseSouth Carolina
8 × 2 = 16Kentucky, DecreaseLouisiana
7 × 3 = 21Connecticut, Oklahoma, Oregon
6 × 6 = 36Arkansas, DecreaseIowa, Kansas, Mississippi, IncreaseNevada, IncreaseUtah
5 × 3 = 15Nebraska**, New Mexico, West Virginia
4 × 5 = 20Hawaii, Idaho, Maine**, New Hampshire, Rhode Island
3 × 8 = 24Alaska, Delaware, District of Columbia*, Montana, North Dakota, South Dakota, Vermont, Wyoming
= 538Total electors
विकीपीडिया से साभार