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Thursday, May 18, 2023

तुर्की में एर्दोगान का रसूख बरकरार

पहले दौर के परिणाम आने के बाद अपनी पार्टी की बैठक में एर्दोगान

एक तरफ भारत के कर्नाटक राज्य के चुनाव परिणाम आ रहे थे, दूसरी तरफ तुर्की और थाईलैंड के परिणाम भी सामने आ रहे हैं, जिनका वैश्विक मंच पर महत्व है. तुर्की के राष्ट्रपति पद के लिए हुए चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों के अनुमान सही साबित नहीं हुए हैं. अब सबसे ज्यादा संभावना इस बात की है कि रजब तैयब एर्दोगान एकबार फिर से राष्ट्रपति बनेंगे और अगले पाँच साल उनके ब्रांड की राजनीति को पल्लवित-पुष्पित होने का मौका मिलेगा.

थाईलैंड के चुनाव परिणामों पर भारत के मीडिया ने ज्यादा ध्यान नहीं दिया है, पर लोकतांत्रिक-प्रक्रिया की दृष्टि से वे महत्वपूर्ण परिणाम है. वहाँ सेना समर्थक मोर्चे की पराजय महत्वपूर्ण परिघटना है. खासतौर से यह देखते हुए कि थाईलैंड के पड़ोस में म्यांमार की जनता सैनिक शासन से लड़ रही है. पहले तुर्की के घटनाक्रम पर नज़र डालते हैं.

एर्दोगान की सफलता

तुर्की में हालांकि एर्दोगान को स्पष्ट विजय नहीं मिली है, पर पहले दौर में उनकी बढ़त बता रही है कि उनके खिलाफ माहौल इतना खराब नहीं है, जितना समझा जा रहा था. हालांकि 88 प्रतिशत के रिकॉर्ड मतदान से यह भी ज़ाहिर हुआ है कि तुर्की के वोटर की दिलचस्पी अपनी राजनीति में बढ़ी है.

अब 28 मई को दूसरे दौर का मतदान होगा. पहले दौर एर्दोगान और उनके मुख्य प्रतिद्वंद्वी कमाल किलिचदारोग्लू दोनों में से किसी एक को पचास फ़ीसदी से ज्यादा वोट नहीं मिले हैं. एर्दोगान को 49.49 फ़ीसदी और किलिचदारोग्लू को 44.79 फ़ीसदी वोट मिले हैं. अगले दौर में शेष प्रत्याशी हट जाएंगे और मुकाबला इन दोनों के बीच ही होगा.

तीसरे प्रत्याशी राष्ट्रवादी सिनान ओगान को 5.2 फ़ीसदी के आसपास वोट मिले हैं. अब वे चुनाव से हट जाएंगे. देखना होगा कि वे दोनों में से किसका समर्थन करते हैं. हाल में उन्होंने कहा था कि वे सरकार में मंत्रियों के पदों को पाने में दिलचस्पी रखते हैं. वहाँ की संसद ही प्रधानमंत्री और सरकार का चयन करती है. संभव है कि एर्दोगान के साथ उनकी सौदेबाजी हो. 2018 के चुनाव में दूसरे स्थान पर रहे मुहर्रम इंचे ने मतदान के तीन दिन पहले ख़ुद को दौड़ से बाहर कर लिया था.