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Monday, January 22, 2018

शिक्षा की निराशाजनक तस्वीर

हम भारत को महाशक्ति के रूप में देखना चाहते हैं, तो उसके इस विकास-क्रम की तस्वीर पर भी नजर डालनी चाहिए। इस विकास-क्रम की बुनियाद पर देश की शिक्षा-व्यवस्था बैठी है, जो बहुत अच्छी तस्वीर पेश नहीं कर रही है। प्राथमिक स्तर पर देश की शिक्षा-व्यवस्था की  जानकारी देने का काम पिछले कुछ वर्षों से गैर-सरकारी संस्था 'प्रथम' ने अपने हाथ में लिया है। यह संस्था हर साल  एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (असर) रिपोर्ट जारी करती है, जिसमें शिक्षा से जुड़ी कुछ बुनियादी जानकारियों का पता लगता है। संस्था की ओर से सालाना रिपोर्ट असर-2017 हाल में जारी हुई है, जिसका शीर्षक है 'बियॉण्ड बेसिक्स।' 

यह संस्था वर्ष 2005 से हर साल अपनी रिपोर्ट जारी करती आ रही है। वर्ष 2006 से असर रिपोर्ट 5 से 16 वर्ष की आयु के बच्चों पर केंद्रित रही है, पर 2017 में असर सर्वेक्षण 14 से 18 वर्ष के बच्चों पर केंद्रित है। यानी इस बार पढ़ने और गणित लगाने के अलावा बच्चों के बुनियादी कौशल (बोसिक डोमेन) की पड़ताल है। सन 2011 की जनगणना के मुताबिक इस वक्त देश में इस आयु वर्ग के दस करोड़ युवा हैं। 156 पेज की इस रिपोर्ट  के मुताबिक इसमें शामिल 73 प्रतिशत किशोरों ने पिछले एक सप्ताह में मोबाइल का इस्तेमाल किया था, पर उनमें से 25 फीसदी अपनी भाषा में एक सरल पाठ को धारा प्रवाह नहीं पढ़ सकते हैं। आधे से ज्यादा युवाओं को भाग का सरल सवाल करने में दिक्कत होती है। 14 आयु वर्ग के 47 फीसदी युवा अंग्रेजी वाक्य नहीं पढ सकते हैं।

Friday, March 27, 2015

इस तस्वीर का दूसरा पहलू भी है

बिहार के जिस स्कूल में हो रही नकल की फोटो हाल में मीडिया ने प्रचारित की थी उसके बारे में आज के इंडियन एक्सप्रेस में एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई है। इसके अनुसार 1700 छात्रों के स्कूल में गणित के केवल दो अध्यापक हैं। इस तस्वीर ने हमारी शिक्षा प्रणाली और मीडिया की भी बखिया उधेड़ कर रख दी है। बेशक मीडिया की सनसनी की प्रवृत्ति के कारण यह तस्वीर सामने आई, पर उसकी उदासीनता के कारण ही तो बरसों से यह हो रहा था। बावजूद इसके शिक्षा, सार्वजनिक स्वास्थ्य और सामाजिक जीवन की खराब स्थिति पर खबरें लगभग न के बराबर आती हैं।

हमारी शिक्षा की वास्तविक तस्वीर शिक्षा से सम्बद्ध वास्तविकता पर नजर रखने वाले संगठन प्रथम के सर्वेक्षणों से उजागर होती है। हम जितनी भयावह स्थिति समझते हैं वह उससे भी ज्यादा भयावह है। दूसरी ओर हमारा मीडिया इस तस्वीर के सनसनीखेज पहलू तक ही सीमित है। पता नहीं किसी और अखबार ने वास्तविकता को सामने लाने की कोशिश की या नहीं पर कम से कम इंडियन एक्सप्रेस के संवाददाता दीपू सेबास्टियन एडमंड्स ने तस्वीर के दूसरे पहलू को भी सामने रखा है। उन अखबारों ने क्या किया जिनके हाथ यह तस्वीर लग गई थी। फोटोग्राफर का नाम तक नहीं दिया गया।

What photo didn't show...
हिन्दू में फोटोग्राफर के बारे में खबर
शिक्षा की गुणवत्ता पर मेरी पुरानी पोस्ट