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Wednesday, February 19, 2025

क्या टैरिफ तय करेगा वैश्विक-संबंधों की दिशा?


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वॉशिंगटन-यात्रा के दौरान कोई बड़ा समझौता नहीं हुआ, पर संबंधों का महत्वाकांक्षी एजेंडा ज़रूर तैयार हुआ है. यात्रा के पहले आप्रवासियों के निर्वासन को लेकर जो तल्खी थी, वह इस दौरान व्यक्त नहीं हुई. 

अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप जिस ‘रेसिप्रोकल टैरिफ’ के विचार को आगे बढ़ा रहे हैं, वह केवल भारत को ही नहीं, सारी दुनिया को प्रभावित करेगा. यह विचार नब्बे के दशक में शुरू हुए वैश्वीकरण के उलट है. इसके कारण विश्व-व्यापार संगठन जैसी संस्थाएँ अपना उद्देश्य खो बैठेंगी, क्योंकि बहुपक्षीय-समझौते मतलब खो बैठेंगे.  

जहाँ तक भारत का सवाल है, अभी तक ज्यादातर बातें अमेरिका की ओर से कही गई हैं. अलबत्ता यात्रा के बाद जारी संयुक्त वक्तव्य काफी सकारात्मक है.  इसमें व्यापार समझौते की योजना भी है, जो संभवतः इस साल के अंत तक हो सकता है. 

वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने रविवार को उम्मीद जताई कि अब दोनों पक्ष एक-दूसरे की प्रतिस्पर्धी सामर्थ्य के साथ मिलकर काम कर सकेंगे. इस दिशा में पहली बार 2020 में चर्चा हुई थी, पर पिछले चार साल में इसे अमेरिका ने ही कम तरज़ीह दी. 

Tuesday, February 11, 2025

अमेरिका के साथ सौदेबाज़ी का दौर

प्रधानमंत्री की इस हफ्ते की अमेरिका-यात्रा कई मायनों में पिछली यात्राओं से कुछ अलग होगी. इसकी सबसे बड़ी वजह है राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की ताबड़तोड़ नीतियों के कारण बदलते वैश्विक-समीकरण. उनके अप्रत्याशित फैसले, तमाम दूसरे देशों के साथ भारत को भी प्रभावित कर रहे हैं.

दूसरी तरफ यह भी लगता है कि शायद दोनों के रिश्तों का एक नया दौर शुरू होने वाला है, पर सामान्य भारतीय मन अमेरिका से निर्वासित लोगों के अपमान को लेकर क्षुब्ध है. हम समझ नहीं पा रहे हैं कि यह कैसा दोस्ताना व्यवहार है? 

ट्रंप मूलतः कारोबारी सौदेबाज़ हैं और धमकियाँ देकर सामने वाले को अर्दब में लेने की कला उन्हें आती है. शायद वे कुछ बड़े समझौतों की पृष्ठभूमि तैयार कर रहे है.

वर्चस्व का स्वप्न

ट्रंप का कहना है कि दुनिया ने अमेरिका की सदाशयता का बहुत फायदा उठाया, अब हम अपनी सदाशयता वापस ले रहे हैं. असल भावना यह है कि हम बॉस हैं और बॉस रहेंगे. इस बात से उनके गोरे समर्थक खुश हैं, जिन्हें लगता है कि देश के पुराने रसूख को ट्रंप वापस ला रहे हैं.   

Wednesday, January 29, 2025

ट्रंप क्या यूक्रेन की लड़ाई भी रुकवा सकेंगे?


अमेरिका में राष्ट्रपति पद की कुर्सी पर डोनाल्ड ट्रंप के बैठने के बाद से दुनियाभर के मीडिया में सवालों की झड़ी लगी है. लगता है कि जियो-पोलिटिकल स्तर पर दुनिया में हाईटेक-दौर की शुरुआत होने जा रही है. 

‘अमेरिकी महानता’ की पुनर्स्थापना के लिए डोनाल्ड ट्रंप ने अवैध आप्रवासियों पर कड़ी कार्रवाई शुरू कर दी है. अपने चुनावी वादों को पूरा करने के लिए उन्होंने दर्जनों आदेशों पर हस्ताक्षर किए हैं. इनमें आप्रवासियों को हिरासत में लेना भी शामिल है. ह्वाइट हाउस के प्रेस सचिव के अनुसार यह ‘इतिहास का सबसे बड़ा निर्वासन अभियान’ है. 

भारत के नज़रिये से हिंद-प्रशांत और दक्षिण एशिया में अमेरिकी नीतियाँ महत्वपूर्ण होंगी. इस साल भारत में क्वॉड का शिखर सम्मेलन भी होगा, जिसमें ट्रंप आएँगे. अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट से तहव्वुर राणा के प्रत्यर्पण का रास्ता साफ होना भी बड़ी घटना है. 

ट्रंप ने रूस से यूक्रेन की लड़ाई रोकने का आग्रह किया है और खनिज तेल उत्पादक ओपेक देशों से कहा है कि वे पेट्रोलियम के दाम कम करें. आंतरिक रूप से वे अमेरिका पर भारी पड़ रहे अवैध आप्रवासियों के बोझ को दूर करना चाहते हैं.  

Monday, February 22, 2021

महाभियोग के बाद क्या अमेरिका को फिर से ‘महान’ बनाने के अभियान में जुटेंगे ट्रंप?


महाभियोग की प्रक्रिया पूरी होने के बाद अमेरिकी राजनीति पटरी पर वापस आ रही है। डेमोक्रेट और रिपब्लिकन राजनेता भविष्य की योजनाएं तैयार कर रहे हैं। डोनाल्ड ट्रंप पर चलाए गए दूसरे महाभियोग की नाटकीय परिणति ने एक तो रिपब्लिकन पार्टी के भीतर एक किस्म की दरार पैदा कर दी है, साथ ही पार्टी और ट्रंप की भावी राजनीति को लेकर कुछ सवाल खड़े कर दिए हैं। सीनेट में हुए मतदान में रिपब्लिकन पार्टी के सात सदस्यों ने ट्रंप के खिलाफ वोट देकर इन सवालों को जन्म दिया है, पर इस बात की संभावनाएं बनी रह गई हैं कि राष्ट्रपति पद के अगले चुनाव में ट्रंप एकबार फिर से रिपब्लिकन पार्टी के प्रत्याशी बनकर खड़े हो सकते हैं। क्या उनकी वापसी होगी?

ट्रंप के फिर से मैदान में उतरने की संभावनाएं हैं, तो यकीनन कुछ समय बाद से ही उनकी गतिविधियाँ शुरू हो जाएंगी। सीनेट के मतदान में जहाँ डेमोक्रेटिक पार्टी के सभी सदस्य एकसाथ थे, वहीं रिपब्लिकन पार्टी की दरार को राजनीतिक पर्यवेक्षक खासतौर से रेखांकित कर रहे हैं।

क्या जनता माफ करेगी?

सीनेट में मेजॉरिटी लीडर और डेमोक्रेटिक पार्टी के सदस्य चक शूमर ने ट्रंप की आलोचना करते हुए कहा है कि अमेरिका के इतिहास में यह पहला मौका है, जब किसी राष्ट्रपति के विरुद्ध महाभियोग में इतनी बड़ी संख्या में उसकी अपनी पार्टी के सदस्यों ने वोट डाले हैं। यहाँ से वे बच निकले हैं, पर अमेरिकी जनता उन्हें माफ नहीं करेगी। अमेरिकी वोटर 6 जनवरी की घटना को भूलेगा नहीं। दूसरी तरफ इतनी विपरीत परिस्थितियों में रिपब्लिकन पार्टी के 43 सदस्यों ने ट्रंप को बचाने के लिए जो मतदान किया है, उससे लगता है कि पार्टी कमोबेश ट्रंप के साथ है। पार्टी के भीतर पैदा हुए मतभेद अब 2022 और 2024 के प्राइमरी चुनावों में दिखाई पड़ेंगे।

Thursday, January 7, 2021

राष्ट्रपति पद से ट्रंप की हिंसक विदाई

 


अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी पराजय को हिंसक मोड़ देकर लोकतांत्रिक इतिहास में अपना नाम सिरफिरे व्यक्ति के रूप में दर्ज करा लिया है। उन्होंने बुधवार 6 जनवरी को अपने समर्थकों को भड़काकर जिस तरह से उन्हें अमेरिकी संसद भवन कैपिटल बिल्डिंग में प्रवेश करने को प्रेरित किया, उस तरह के उदाहरण अमेरिकी इतिहास में बहुत कम मिलते हैं। भीड़ को रोकने के प्रयास में हुई हिंसा में कम से कम चार लोगों की मौत होने का समाचार है।

अमेरिकी कैपिटल बिल्डिंग के चारों तरफ़ सड़कों पर पुलिस दंगे की आशंका को लेकर तैनात है। वॉशिंगटन की मेयर ने पूरी रात के लिए कर्फ़्यू लगा दिया है। वॉशिंगटन पुलिस के प्रमुख का कहना है कि स्थानीय समय के हिसाब से रात साढ़े नौ बजे तक 52 लोग गिरफ़्तार किए जा चुके हैं। चार लोगों को बिना लाइसेंस पिस्तौल रखने के लिए, एक को प्रतिबंधित हथियार रखने के लिए और 47 को कर्फ़्यू उल्लंघन और ग़ैर-क़ानूनी तरीक़े से घुसने के लिए। दो पाइप बम भी मिले हैं। एक कैपिटल बिल्डिंग के पास डेमोक्रेटिक नेशनल कमिटी दफ़्तर से और एक रिपब्लिकन नेशनल कमिटी के मुख्य दफ़्तर से।

Sunday, November 8, 2020

अमेरिकी ‘बीरबल की खिचड़ी’

अमेरिकी चुनाव-व्यवस्था बीरबल की खिचड़ीसाबित हो रही है। हालांकि जो बिडेन ने राष्ट्रपति बनने के लिए जरूरी बहुमत हासिल कर लिया है, पर लगता है कि औपचारिक रूप से अंतिम परिणाम आने में समय लगेगा। जॉर्जिया ने फिर से गिनती करने की घोषणा की है। कुछ दूसरे राज्यों में ट्रंप की टीम ने अदालतों में अर्जियाँ लगाई हैं। यह स्पष्ट नहीं है कि न्यायिक प्रक्रिया में कितना समय लगेगा, पर सन 2000 में केवल फ्लोरिडा का मामला अदालत में गया था, जिसका फैसला होने 12 दिसंबर को हो पाया था। इसबार तो ज्यादा मामले हैं।

 डोनाल्ड ट्रंप चुनाव हार चुके हैं। परिणाम आने में देर इसलिए भी हुई, क्योंकि डाक से भारी संख्या में मतपत्र आए हैं। ऐसा कोरोना के कारण हुआ है। डाक से आए ज्यादातर वोट बिडेन के पक्ष में हैं, क्योंकि ट्रंप ने अपने वोटरों से कहा था कि वे कोरोना से घबराएं नहीं और मतदान केंद्र में जाकर वोट डालें, जबकि बिडेन ने डाक से वोट देने की अपील की थी।

Saturday, November 7, 2020

राजनीतिक प्रक्रियाओं के रास्ते बढ़ता ध्रुवीकरण


अमेरिका के चुनाव परिणाम जिस समय आ रहे हैं, उस वक्त दुनिया में चरम राष्ट्रवाद की हवाएं बह रही हैं। पर क्यों? यह क्रिया की प्रतिक्रिया भी है। फ्रांस में जो हो रहा है, उसने विचार के नए दरवाजे खोले हैं। समझदारी के उदाहरण भी हमारे सामने हैं। गत 15 मार्च को न्यूज़ीलैंड के क्राइस्टचर्च शहर की दो मस्जिदों में हुए हत्याकांड ने दो तरह के संदेश एकसाथ दुनिया को दिए। इस घटना ने गोरे आतंकवाद के नए खतरे की ओर दुनिया का ध्यान खींचा था, वहीं न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जैसिंडा अर्डर्न ने जिस तरह से अपने देश की मुस्लिम आबादी को भरोसा दिलाया, उसकी दुनियाभर में तारीफ हुई।

दुनिया में ह्वाइट सुप्रीमैसिस्टों और नव-नाजियों के हमले बढ़े हैं। अमेरिका में 9/11 के बाद हाल के वर्षों में इस्लामी कट्टरपंथियों के हमले कम हो गए हैं और मुसलमानों तथा एशियाई मूल के दूसरे लोगों पर हमले बढ़ गए हैं। यूरोप में पिछले कुछ दशकों से शरणार्थियों के विरोध में अभियान चल रहा है। ‘मुसलमान और अश्वेत लोग हमलावर हैं और वे हमारे हक मार रहे हैं।’ इस किस्म की बातें अब बहुत ज्यादा बढ़ गईं हैं। पिछले साल श्रीलंका में हुए सीरियल विस्फोटों के बाद ऐसे सवाल वहाँ भी उठाए जा रहे हैं।

Monday, October 5, 2020

क्या सेना का सहारा लेंगे ट्रंप?

डोनाल्ड ट्रंप अब अपनी रैलियों में इस बात का जिक्र बार-बार कर रहे हैं कि इसबार के चुनाव में धाँधली हो सकती है। जैसे-जैसे चुनाव की तारीख नजदीक आती जा रही है, वैसे-वैसे कयासों की बाढ़ आती जा रही है। यह बात तो पहले से ही हवा में है कि अगर हारे तो ट्रंप आसानी से पद नहीं छोड़ेंगे। डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से कहा जा रहा है कि चुनाव का विवाद अदालत और संसद में भी जा सकता है। और अब अमेरिकी सेना को लेकर अटकलें फिर से शुरू हो गई हैं। अमेरिकी सेना की अफगानिस्तान, इराक, चीन, सीरिया और सोमालिया में भूमिकाओं को लेकर अटकलें तो चलती ही रहती थीं, पर अब कयास है कि राष्ट्रपति पद के चुनाव में भी उसकी भूमिका हो सकती है।

कुछ महीने पहले देश में चल रहे रंगभेद-विरोधी आंदोलन को काबू में करने के लिए जब ट्रंप ने सेना के इस्तेमाल की धमकी दी थी, तबसे यह बात हवा में है कि अमेरिकी सेना क्या ट्रंप के उल्टे-सीधे आदेश मानने को बाध्य है? बहरहाल गत 24 सितंबर को ट्रंप ने यह कहकर फिर से देश के माहौल को गर्म कर दिया है कि चुनाव में जो भी जीते, सत्ता का हस्तांतरण शांतिपूर्ण नहीं होगा। इतना ही नहीं उसके अगले रोज ही उन्होंने कहा कि मुझे नहीं लगता कि चुनाव ईमानदारी से होने वाले हैं। इसका मतलब क्या है?