Showing posts with label ट्रंप. Show all posts
Showing posts with label ट्रंप. Show all posts

Monday, February 22, 2021

महाभियोग के बाद क्या अमेरिका को फिर से ‘महान’ बनाने के अभियान में जुटेंगे ट्रंप?


महाभियोग की प्रक्रिया पूरी होने के बाद अमेरिकी राजनीति पटरी पर वापस आ रही है। डेमोक्रेट और रिपब्लिकन राजनेता भविष्य की योजनाएं तैयार कर रहे हैं। डोनाल्ड ट्रंप पर चलाए गए दूसरे महाभियोग की नाटकीय परिणति ने एक तो रिपब्लिकन पार्टी के भीतर एक किस्म की दरार पैदा कर दी है, साथ ही पार्टी और ट्रंप की भावी राजनीति को लेकर कुछ सवाल खड़े कर दिए हैं। सीनेट में हुए मतदान में रिपब्लिकन पार्टी के सात सदस्यों ने ट्रंप के खिलाफ वोट देकर इन सवालों को जन्म दिया है, पर इस बात की संभावनाएं बनी रह गई हैं कि राष्ट्रपति पद के अगले चुनाव में ट्रंप एकबार फिर से रिपब्लिकन पार्टी के प्रत्याशी बनकर खड़े हो सकते हैं। क्या उनकी वापसी होगी?

ट्रंप के फिर से मैदान में उतरने की संभावनाएं हैं, तो यकीनन कुछ समय बाद से ही उनकी गतिविधियाँ शुरू हो जाएंगी। सीनेट के मतदान में जहाँ डेमोक्रेटिक पार्टी के सभी सदस्य एकसाथ थे, वहीं रिपब्लिकन पार्टी की दरार को राजनीतिक पर्यवेक्षक खासतौर से रेखांकित कर रहे हैं।

क्या जनता माफ करेगी?

सीनेट में मेजॉरिटी लीडर और डेमोक्रेटिक पार्टी के सदस्य चक शूमर ने ट्रंप की आलोचना करते हुए कहा है कि अमेरिका के इतिहास में यह पहला मौका है, जब किसी राष्ट्रपति के विरुद्ध महाभियोग में इतनी बड़ी संख्या में उसकी अपनी पार्टी के सदस्यों ने वोट डाले हैं। यहाँ से वे बच निकले हैं, पर अमेरिकी जनता उन्हें माफ नहीं करेगी। अमेरिकी वोटर 6 जनवरी की घटना को भूलेगा नहीं। दूसरी तरफ इतनी विपरीत परिस्थितियों में रिपब्लिकन पार्टी के 43 सदस्यों ने ट्रंप को बचाने के लिए जो मतदान किया है, उससे लगता है कि पार्टी कमोबेश ट्रंप के साथ है। पार्टी के भीतर पैदा हुए मतभेद अब 2022 और 2024 के प्राइमरी चुनावों में दिखाई पड़ेंगे।

Thursday, January 7, 2021

राष्ट्रपति पद से ट्रंप की हिंसक विदाई

 


अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी पराजय को हिंसक मोड़ देकर लोकतांत्रिक इतिहास में अपना नाम सिरफिरे व्यक्ति के रूप में दर्ज करा लिया है। उन्होंने बुधवार 6 जनवरी को अपने समर्थकों को भड़काकर जिस तरह से उन्हें अमेरिकी संसद भवन कैपिटल बिल्डिंग में प्रवेश करने को प्रेरित किया, उस तरह के उदाहरण अमेरिकी इतिहास में बहुत कम मिलते हैं। भीड़ को रोकने के प्रयास में हुई हिंसा में कम से कम चार लोगों की मौत होने का समाचार है।

अमेरिकी कैपिटल बिल्डिंग के चारों तरफ़ सड़कों पर पुलिस दंगे की आशंका को लेकर तैनात है। वॉशिंगटन की मेयर ने पूरी रात के लिए कर्फ़्यू लगा दिया है। वॉशिंगटन पुलिस के प्रमुख का कहना है कि स्थानीय समय के हिसाब से रात साढ़े नौ बजे तक 52 लोग गिरफ़्तार किए जा चुके हैं। चार लोगों को बिना लाइसेंस पिस्तौल रखने के लिए, एक को प्रतिबंधित हथियार रखने के लिए और 47 को कर्फ़्यू उल्लंघन और ग़ैर-क़ानूनी तरीक़े से घुसने के लिए। दो पाइप बम भी मिले हैं। एक कैपिटल बिल्डिंग के पास डेमोक्रेटिक नेशनल कमिटी दफ़्तर से और एक रिपब्लिकन नेशनल कमिटी के मुख्य दफ़्तर से।

Sunday, November 8, 2020

अमेरिकी ‘बीरबल की खिचड़ी’

अमेरिकी चुनाव-व्यवस्था बीरबल की खिचड़ीसाबित हो रही है। हालांकि जो बिडेन ने राष्ट्रपति बनने के लिए जरूरी बहुमत हासिल कर लिया है, पर लगता है कि औपचारिक रूप से अंतिम परिणाम आने में समय लगेगा। जॉर्जिया ने फिर से गिनती करने की घोषणा की है। कुछ दूसरे राज्यों में ट्रंप की टीम ने अदालतों में अर्जियाँ लगाई हैं। यह स्पष्ट नहीं है कि न्यायिक प्रक्रिया में कितना समय लगेगा, पर सन 2000 में केवल फ्लोरिडा का मामला अदालत में गया था, जिसका फैसला होने 12 दिसंबर को हो पाया था। इसबार तो ज्यादा मामले हैं।

 डोनाल्ड ट्रंप चुनाव हार चुके हैं। परिणाम आने में देर इसलिए भी हुई, क्योंकि डाक से भारी संख्या में मतपत्र आए हैं। ऐसा कोरोना के कारण हुआ है। डाक से आए ज्यादातर वोट बिडेन के पक्ष में हैं, क्योंकि ट्रंप ने अपने वोटरों से कहा था कि वे कोरोना से घबराएं नहीं और मतदान केंद्र में जाकर वोट डालें, जबकि बिडेन ने डाक से वोट देने की अपील की थी।

Saturday, November 7, 2020

राजनीतिक प्रक्रियाओं के रास्ते बढ़ता ध्रुवीकरण


अमेरिका के चुनाव परिणाम जिस समय आ रहे हैं, उस वक्त दुनिया में चरम राष्ट्रवाद की हवाएं बह रही हैं। पर क्यों? यह क्रिया की प्रतिक्रिया भी है। फ्रांस में जो हो रहा है, उसने विचार के नए दरवाजे खोले हैं। समझदारी के उदाहरण भी हमारे सामने हैं। गत 15 मार्च को न्यूज़ीलैंड के क्राइस्टचर्च शहर की दो मस्जिदों में हुए हत्याकांड ने दो तरह के संदेश एकसाथ दुनिया को दिए। इस घटना ने गोरे आतंकवाद के नए खतरे की ओर दुनिया का ध्यान खींचा था, वहीं न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जैसिंडा अर्डर्न ने जिस तरह से अपने देश की मुस्लिम आबादी को भरोसा दिलाया, उसकी दुनियाभर में तारीफ हुई।

दुनिया में ह्वाइट सुप्रीमैसिस्टों और नव-नाजियों के हमले बढ़े हैं। अमेरिका में 9/11 के बाद हाल के वर्षों में इस्लामी कट्टरपंथियों के हमले कम हो गए हैं और मुसलमानों तथा एशियाई मूल के दूसरे लोगों पर हमले बढ़ गए हैं। यूरोप में पिछले कुछ दशकों से शरणार्थियों के विरोध में अभियान चल रहा है। ‘मुसलमान और अश्वेत लोग हमलावर हैं और वे हमारे हक मार रहे हैं।’ इस किस्म की बातें अब बहुत ज्यादा बढ़ गईं हैं। पिछले साल श्रीलंका में हुए सीरियल विस्फोटों के बाद ऐसे सवाल वहाँ भी उठाए जा रहे हैं।

Monday, October 5, 2020

क्या सेना का सहारा लेंगे ट्रंप?

डोनाल्ड ट्रंप अब अपनी रैलियों में इस बात का जिक्र बार-बार कर रहे हैं कि इसबार के चुनाव में धाँधली हो सकती है। जैसे-जैसे चुनाव की तारीख नजदीक आती जा रही है, वैसे-वैसे कयासों की बाढ़ आती जा रही है। यह बात तो पहले से ही हवा में है कि अगर हारे तो ट्रंप आसानी से पद नहीं छोड़ेंगे। डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से कहा जा रहा है कि चुनाव का विवाद अदालत और संसद में भी जा सकता है। और अब अमेरिकी सेना को लेकर अटकलें फिर से शुरू हो गई हैं। अमेरिकी सेना की अफगानिस्तान, इराक, चीन, सीरिया और सोमालिया में भूमिकाओं को लेकर अटकलें तो चलती ही रहती थीं, पर अब कयास है कि राष्ट्रपति पद के चुनाव में भी उसकी भूमिका हो सकती है।

कुछ महीने पहले देश में चल रहे रंगभेद-विरोधी आंदोलन को काबू में करने के लिए जब ट्रंप ने सेना के इस्तेमाल की धमकी दी थी, तबसे यह बात हवा में है कि अमेरिकी सेना क्या ट्रंप के उल्टे-सीधे आदेश मानने को बाध्य है? बहरहाल गत 24 सितंबर को ट्रंप ने यह कहकर फिर से देश के माहौल को गर्म कर दिया है कि चुनाव में जो भी जीते, सत्ता का हस्तांतरण शांतिपूर्ण नहीं होगा। इतना ही नहीं उसके अगले रोज ही उन्होंने कहा कि मुझे नहीं लगता कि चुनाव ईमानदारी से होने वाले हैं। इसका मतलब क्या है?