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Thursday, August 31, 2023

मॉनसून की चिंता


मॉनसून के बारे में जो सूचनाएं आ रही हैं वे बहुत उत्साहित करने वाली नहीं हैं। भारत के लिए मॉनसून बहुत अहम है क्योंकि उसकी सालाना बारिश में मॉनसूनी बारिश का योगदान 70 फीसदी है। मॉनसूनी बारिश में अगर ज्यादा कमी हुई तो खरीफ की फसल का उत्पादन तो प्रभावित होगा ही, साथ ही रबी की फसल पर भी असर होगा।

 खबरों के मुताबिक इस वर्ष आठ साल की सबसे कम बारिश होने वाली है। इन दिनों सूखे का जो सिलसिला चल रहा है उसके चलते अगस्त में बारिश में रिकॉर्ड कमी आई है और यह सिलसिला आगे भी जारी रहने की आशंका है। जानकारी के मुताबिक अल नीनो प्रभाव मजबूत हो रहा है और माना जा रहा है कि दिसंबर तक उसका प्रभाव जारी रहेगा। बिजनेस स्टैंडर्ड की पूरी संपादकीय टिप्पणी पढ़ें यहाँ

चीन सदा-सर्वदा विकासशील!

दक्षिण अफ्रीका में हाल ही में संपन्न ब्रिक्स देशों की शिखर बैठक से इतर चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने जोर देकर कहा कि उनका देश ‘विकासशील देशों के समूह का सदस्य था, है और हमेशा रहेगा।’ इस बात की संभावना कम है कि शी चीन की भविष्य की वृद्धि को लेकर कोई आशंका व्यक्त कर रहे थे और ऐसा कुछ कह रहे थे कि उनका देश मध्य आय के जाल में उलझा रहेगा। यदि वह ऐसा नहीं कह रहे थे तो फिर उनके इस वक्तव्य की व्याख्या किस प्रकार की जाए?

Thursday, June 1, 2023

अमेरिकी ऋण-सीमा बढ़ेगी


अमेरिकी संसद की प्रतिनिधि सभा यानी हाउस ऑफ़ रिप्रेजेंटेटिव ने सरकार की ऋण-सीमा बढ़ाने वाले विधेयक को स्पष्ट बहुमत से पारित कर दिया है. विधेयक के समर्थन में 314 और विरोध में 117 मत पड़े. दोनों ही पक्षों की तरफ़ से विरोध में मतदान हुआ है.

विधेयक के समर्थन में 165 डेमोक्रेट (राष्ट्रपति जो बाइडेन की पार्टी) और 149 रिपब्लिकन सदस्यों ने मतदान किया है. इससे अमेरिकी सरकार के क़र्ज़ संकट का समाधान हो सकता है और सरकार के डिफॉल्टर होने का ख़तरा टल सकता है. सरकार को डिफॉल्ट होने से बचाने के लिए अब सोमवार से पहले इस विधेयक को सीनेट में पारित कराना अनिवार्य होगा.

रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक पार्टियों के बीच इस समझौते के कारण व्यवस्था के बिखर जाने का खतरा टल जरूर गया है, पर देश का आर्थिक संकट बरकरार है. उधर रिपब्लिकन पार्टी को इस बात का संतोष है कि राष्ट्रपति जो बाइडन से उसने कुछ सरकारी खर्च कम करवा लिए हैं. अनुमान है कि अगले एक दशक में सरकारी खर्चों में 1.3 ट्रिलियन डॉलर की कटौती होगी. ये कटौतियाँ 2024 और 2025 से लागू होंगी.   

संसद की प्रतिनिधि सभा में रिपब्लिकन पार्टी का बहुमत है. जबकि, सीनेट में डेमोक्रेटिक पार्टी का बहुमत है. ऐसे में इस बिल का प्रतिनिधि सभा में पास होना महत्वपूर्ण है. इस बिल को पारित कराने में दोनों पार्टियों के बीच समझौता कराने में अहम भूमिका निभाने वाले रिपब्लिकन पार्टी के सबसे वरिष्ठ नेता केविन मैकार्थी ने इसे ऐतिहासिक कहा है.

वर्चुअली होगा एससीओ शिखर सम्मेलन

दूसरी बड़ी अंतरराष्ट्रीय खबर यह है कि जुलाई के महीने में भारत में होने वाला शंघाई सहयोग संगठन का शिखर सम्मेलन अब वर्चुअल होगा. केंद्र सरकार ने मंगलवार को एलान किया कि 4 जुलाई को दिल्ली में प्रस्तावित एससीओ की बैठक अब वर्चुअली आयोजित होगी. इस साल एससीओ की अध्यक्षता भारत के पास है, जिसकी वजह से ये बैठक दिल्ली में आयोजित होनी थी.

 

इस बैठक में शंघाई सहयोग संगठन के सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्षों को हिस्सा लेना था. इनमें चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग, पाकिस्तानी पीएम शाहबाज़ शरीफ़ और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन जैसे नेता शामिल होते.

केंद्र सरकार इस बैठक को आयोजित करने के लिए पिछले कई महीनों से तैयारी भी कर रही थी. इन नेताओं को भारत आने का न्यौता भी भेजा गया था. मंगलवार को सरकार ने एकाएक अपना फ़ैसला बदल दिया. दो-तीन बातें हवा में हैं. एक, दिल्ली में सम्मेलन की तैयारी पूरी नहीं है. दूसरे चीन, पाकिस्तान और रूस के राष्ट्राध्यक्षों ने अभी तक सम्मेलन में आने की पुष्टि नहीं की है. संभवतः रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन यूक्रेन-युद्ध के कारण आने की स्थिति में नहीं हैं.

 

Thursday, January 19, 2023

विरोधी-एकता का एक और मोर्चा


तेलंगाना में सत्तारूढ़ तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) अब भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) है। गत बुधवार को तेलंगाना के खम्मम में हुई बीआरएस प्रमुख के चंद्रशेखर राव की रैली कई वजह से चर्चा में है। केसीआर ने राष्ट्रीय शक्ति के रूप में उभरने के अपने लक्ष्य के तहत पड़ोसी राज्य आंध्र प्रदेश में महत्वपूर्ण चुनावी उपस्थिति बनाने के लिए इसके सीमावर्ती शहर खम्मम को चुना। बीआरएस, तत्कालीन तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) 2018 में संयुक्त खम्मम जिले की 10 में से केवल एक विधानसभा सीट ही जीत सकी। बाद में कांग्रेस के छह और तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) के दो विधायक बीआरएस में शामिल हो गए थे। चंद्रशेखर राव यहां अपना आधार बनाना चाहते हैं, ताकि पड़ोसी आंध्र प्रदेश में उनके कदम मजबूत करने में मदद देगा। साथ ही उनकी महत्वाकांक्षा राष्ट्रीय नेता बनने की भी है। दिल्ली के चैनलों पर आप आजकल तेलंगाना से जुड़े पेड कार्यक्रम देख रहे होंगे।

बुधवार को खम्मम में हुई रैली में के चंद्रशेखर राव के अलावा पिनाराई विजयन, अरविंद केजरीवाल, भगवंत, अखिलेश यादव और कम्युनिस्ट पार्टी के डी राजा शामिल हुए। एक तरह से 2024 के चुनाव के पहले विरोधी एकता का यह एक प्रयास है। रैली में समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो अखिलेश यादव ने कहा कि मोदी सरकार अब जाने वाली है। अब उसके पास केवल 399 दिन बचे हैं। अखिलेश ने बीजेपी पर विरोधी दलों को परेशान करने और किसानों के साथ छल करने का आरोप लगाया।

उन्होंने यह भी कहा कि बीआरएस अध्यक्ष के चंद्रशेखर राव ने खम्मम की इस ऐतिहासिक धरती पर इतनी भारी भीड़ इकट्ठी की है और पूरे देश को एक संदेश दिया है। उत्तर प्रदेश की जनता द्वारा भी अंततः सत्तारूढ़ भाजपा को खारिज किए जाने का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, ‘आज हम इतनी बड़ी संख्या में एकत्र हुए हैं। इस सभा के सामने, मैं कह सकता हूं कि अगर तेलंगाना में भाजपा को खारिज किया जा रहा है, तो उत्तर प्रदेश भी पीछे नहीं रहेगा।’

के चंद्रशेखर राव ने देश की जनता को आगाह किया कि हमें धार्मिक उन्माद से बचना होगा। देश भर में सभी सेक्युलर ताकतों को मिलकर भाजपा को सत्ता से हटाना होगा। बीआरएस के सत्ता में आने पर देशभर के किसानों को फ्री बिजली दिया जाएगा। प्रत्येक घर में शुद्ध पेय जल सुविधा दी जाएगी। इसके बाद देश में रायतुबंधु योजना लागू किया जाएगा। इस योजना के तहत प्रत्येक किसान को दस हजार रुपए प्रति एकड़ प्रति वर्ष फ्री सहायता राशि दी जाएगी। केंद्र में सत्ता परिवर्तन होने पर अग्निपथ भर्ती योजना को समाप्त कर दिया जाएगा। साथ ही देश में प्रत्येक वर्ष पच्चीस लाख परिवारों को दलित बंधु सुविधा दी जाएगी। इस योजना में दलित युवा को दस लाख रुपए स्वरोजगार के लिए दिया जाएगा। कोई राशि सरकार को लौटानी नहीं होगी।

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि पहली बार कई मुख्यमंत्री इकट्ठा होकर काम कर रहे हैं, हम सब एक साथ बैठकर राजनीति की बातें नहीं करते हैं बल्कि देश में किसानों और मजदूरों के हालत को बेहतर बनाने पर विचार करते हैं। अगले वर्ष सभी को मिलकर भाजपा को उखाड़ फेंकना है। केजरीवाल ने कहा कि तेलंगाना के राज्यपाल यहां के मुख्यमंत्री केसीआर को तंग करते हैं, पंजाब के राज्यपाल भी मुख्यमंत्री भगवंत मान को तंग करते हैं, दिल्ली के एलजी मुझे तंग करते हैं, तमिलनाडु के राज्यपाल मुख्यमंत्री को तंग करते हैं, ये सभी राज्यपाल तंग नहीं कर रहे हैं, मोदी साहब तंग कर रहे हैं।

जिस देश का प्रधानमंत्री दिनभर यह सोचे कि किसे तंग करना है तो देश तरक्की कैसे करेगा। प्रधानमंत्री सोचते हैं कि कहां सीबीआई भेजनी है और कहां ईडी भेजना है, किस पार्टी का विधायक खरीदना है। इससे देश तरक्की नहीं कर सकता है। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने कहा कि भाजपा जुमला पार्टी है। दो करोड़ रोजगार का वादा, महंगाई हटाने का वादा, किसान की आय दोगुना करने का वादा जुमला साबित हुआ है।

केरल के मुख्यमंत्री पिनरायी विजयन ने कहा कि केन्द्र की भाजपा सरकार राज्य के अंतर्गत आने वाले विषयों पर भी बिना राज्य सरकार से सलाह लिए कानून में परिवर्तन कर रही है। अब केन्द्र सरकार ही कानून व्यवस्था, कृषि और बिजली जैसे राज्य सरकार के विषयों पर बिना राज्य सरकार की सलाह लिए कानून बना रही है। यह संघीय ढांचे पर सीधा प्रहार है। राज्य सरकार के विधायी शक्ति को छीना जा रहा है। अब समय आ गया है कि हम सभी एकजुट होकर केन्द्र के इस रवैये का विरोध करें।

Tuesday, January 17, 2023

राहुल की यात्रा से कांग्रेस को क्या मिलेगा?


महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर ध्वजारोहण के साथ इस महीने की 30 तारीख को राहुल गांधी की भारत-जोड़ो यात्रा का समापन हो जाएगा। इस यात्रा ने बेशक कांग्रेस-कार्यकर्ताओं में उत्साह की लहर पैदा की है। खासतौर से राहुल गांधी की पप्पू की जगह एक परिपक्व राजनेता की छवि बनाई है। उनके विरोधी भी मानते हैं कि जिस रास्ते से भी यात्रा गुजरी है, वहाँ के नागरिकों के मन में राहुल के प्रति सम्मान बढ़ा है। पर असल सवाल यह है कि क्या यह यात्रा कांग्रेस को चुनाव में सफलता दिला सकेगी? हालांकि कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने कहा है कि यात्रा का उद्देश्य सत्ता-प्राप्ति नहीं है, पर इसमें दो राय नहीं कि जबतक चुनावी सफलता नहीं मिलेगी, सामाजिक-सामंजस्य की स्थापना संभव नहीं। कांग्रेस देश का  सबसे प्रमुख विरोधी दल है। 2019 में पार्टी ने 403 सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े किए थे, जिनमें से केवल 52 को जीत मिली। 196 सीटों पर पार्टी दूसरे स्थान पर रही। उसे कुल 19.5 प्रतिशत वोट मिले। पार्टी 12 राज्यों में मुख्य विरोधी दल है। ये राज्य हैं पंजाब, असम, कर्नाटक, केरल, हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड, गोवा, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम और नगालैंड। इसका जिन सात राज्यों में बीजेपी से सीधा मुकाबला है, उनके नाम हैं-अरुणाचल, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तराखंड। इन सातों राज्यों में लोकसभा की 102 सीटें हैं। क्षेत्रीय दलों की राष्ट्रीय स्तर पर बड़ी उपस्थिति नहीं है। वे 2024 में भी बीजेपी को नुकसान पहुँचाने की स्थिति में नहीं हैं। इस बात में संदेह है कि कांग्रेस 2024 में विरोधी एकता का केंद्र बन पाएगी। इसका ह्रास अस्सी के दशक में शुरू हो गया था। इसके सामने तीन समस्याएं हैं: उच्चतम स्तर पर निर्णय-प्रक्रिया और शक्ति का केंद्रीयकरण, संगठनात्मक कमजोरी और तीसरे, एकता की कमी। एक गैर-गांधी अध्यक्ष के चुनाव के बावजूद हाईकमान संस्कृति और गांधी परिवार की उपस्थिति बदस्तूर है। इसकी वजह से फैसले सबसे ऊँचे स्तर पर ही होते हैं। इस यात्रा से पार्टी में सुधार नहीं हो जाएगा। इंडियन एक्सप्रेस में पढ़ें सुधा पाई का लेख

विदेशी विश्वविद्यालयों का विरोध गलत

कुछ लोग विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में प्रवेश की अनुमति देने के विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के प्रस्ताव से खासे नाराज हैं। उनका कहना है कि विदेशी विश्वविद्यालयों को बहुत आसान और फायदा पहुंचाने वाली शर्तों पर बुलाया जा रहा है। इसका विरोध करने वाले लोग एकदम गलत हैं क्योंकि विश्वविद्यालय वही बेच रहे हैं, जिसकी लोगों को ज्यादा दरकार है – शिक्षा। छात्र अपने मां-बाप से पैसे लेकर या बैंक से कर्ज लेकर या दोनों लेकर इसे खरीदते हैं। इस अलग दिखने को ही स्थायी बौद्धिक श्रेष्ठता बताकर ब्रांडिंग की जाती है। लेकिन अलग दिखने यानी ज्यादा अंक लाने वाले लाखों लोग ही आगे जाकर जीनियस या प्रतिभाशाली बने हैं, इसके साक्ष्य नहीं के बराबर हैं। इसके बाद भी अगर आपने किसी विशेष विश्वविद्यालय से डिग्री हासिल की है तो स्नातक में आपके अंक जो भी हों, आपको स्वत: ही बौद्धिक रूप से उन लोगों से बेहतर मान लिया जाता है, जो वहां से डिग्री नहीं ले सके हैं। बिजनेस स्टैंडर्ड में टीसीए राघवन का लेख

भारत में बढ़ती विषमता

ऑक्सफ़ैम का अध्ययन संपत्ति कर को दोबारा शुरू करने का सुझाव देता है और इस बात को रेखांकित करता है कि ऐसे अवास्तविक लाभ से किस तरह का सामाजिक निवेश किया जा सकता है। अध्ययन बिना नाम लिए देश के सबसे अमीर व्यक्ति की संपत्ति का उल्लेख करता है और बताता है कि कैसे अगर 2017 से 2021 के बीच उनकी संपत्ति के केवल 20 फीसदी हिस्से पर कर लगाकर प्राथमिक शिक्षा को बहुत बड़ी मदद पहुंचाई जा सकती थी जिसके तमाम संभावित लाभ होते। यह उपाय तार्किक प्रतीत होता है लेकिन संपत्ति कर के साथ भारत के अनुभव बहुत अच्छे नहीं रहे हैं। पहली बार यह कर 1957 में लगाया गया था और बड़े पैमाने पर कर वंचना देखने को मिली थी। असमानता कम करने में इससे कोई खास मदद नहीं मिली थी। वर्ष 2016-17 के बजट में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने यह कहते हुए इस कर को समाप्त कर दिया था कि इसे जुटाने की लागत इससे होने वाले हासिल से अधिक होती है। ऑक्सफ़ैम की रिपोर्ट पर बिजनेस स्टैंडर्ड का संपादकीय

Friday, January 13, 2023

जोशीमठ : 2-3 जनवरी की रात आखिर क्या हुआ?


जोशीमठ में घर और जमीन धँसने का सिलसिला जारी है। 12 जनवरी को जोशीमठ के सिंहधार इलाके में एक नई जगह से जमीन से पानी फट पड़ा। यहां भय का माहौल बढ़ता जा रहा है, लेकिन इन सब के बीच लोगों के जहन में अभी भी यह सवाल बना हुआ है कि दो-तीन जनवरी की रात अचानक ऐसा क्या हुआ कि उनके घरों में आई हल्की दरारें न केवल चौड़ी हो गई, बल्कि दो होटल सहित कई घर झुक भी गए। डाउन टु अर्थ में पढ़ें राजू सजवान की पूरी रिपोर्ट

विफल क्यों रहती हैं भारत-पाक वार्ताएं?

इस हफ्ते की शुरुआत में, पाकिस्तानी स्तंभकार हामिद मीर और जावेद चौधरी ने बताया कि 2018 की गुप्त बैठकों ने इतिहास के पाठ्यक्रम को लगभग बदल दिया. अप्रैल 2021 में हिंगलाज माता मंदिर की तीर्थ यात्रा के बाद, उनके मुताबिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के साथ मिलना था और कश्मीर में यथास्थिति को बनाए रखने के लिए एक डील की घोषणा करनी थी. राजनीतिक प्रतिक्रिया के डर से खान के समझौते से पीछे हटने के बाद शिखर सम्मेलन की योजना ध्वस्त हो गई. इन नाटकीय खुलासों पर न तो इस्लामाबाद और न ही नई दिल्ली की ओर से कोई प्रतिक्रिया आई है. इसके अलावा, बताई गई बातों के बारे में संदेह होने के बहुत सारे कारण हैं, जो कि जनरल बाजवा द्वारा आयोजित ब्रीफिंग पर काफी हद तक निर्भर करते हैं. दिप्रिंट में पढ़ें प्रवीण स्वामी का रोचक आलेख। इसके साथ प्रवीण स्वामी का एक और लेख पढ़ें दिल्ली में अपना प्रतिनिधि रखना चाहते हैं तालिबान

जीडीपी अनुमानों के आंकड़ों की खामियां

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) किसी भी एक वर्ष के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था के वार्षिक आकार का अनुमान निकालने की प्रक्रिया छह बार दोहराता है। ये आंकड़े 36 महीने यानी तीन साल की अवधि में जारी किए जाते हैं। उसी वर्ष के लिए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) संख्या के अनुमान की पहली और अंतिम दोहराई गई प्रक्रिया के बीच की तुलना करने पर कई महत्त्वपूर्ण अंतर सामने दिखने लगते हैं। कुछ वर्षों में यह अंतर पहली बार में ही अधिक अनुमान के रूप में दिखता है जबकि अन्य दोहराई गई प्रक्रिया में अनुमानों का आंकड़ा कम हो जाता है। उदाहरण के तौर पर पहले अग्रिम अनुमान (एफएई) के अनुसार वर्ष 2016-17 में भारत के जीडीपी में वास्तविक वृद्धि 7.1 प्रतिशत थी। लेकिन तीसरे संशोधित अनुमान के माध्यम से उस संख्या की छठी और अंतिम पुनरावृत्ति के मुताबिक वर्ष 2016-17 के लिए जीडीपी वृद्धि दर 8.3 प्रतिशत थी। वर्ष 2017-18 में भी कुछ ऐसा ही हुआ था, हालांकि संशोधित अनुमानों के अंतर का दायरा छोटा था और यह पहले अनुमान के 6.5 प्रतिशत से बढ़कर अंतिम चरण के दौरान 6.8 प्रतिशत तक हो गया। बिजनेस स्टैंडर्ड में एके भट्टाचार्य का लेख

 

Thursday, January 12, 2023

भारत में विश्वकप हॉकी प्रतियोगिता

बिरसा मुंडा हॉकी स्टेडियम

हालांकि भारतीय मीडिया की निगाहें अपने कथित राष्ट्रीय खेल हॉकी पर नहीं हैं, पर खबर यह है कि ओडिशा के राउरकेला और भुवनेश्वर में
13 से 29 जनवरी तक 15वें पुरुष हॉकी विश्वकप का आयोजन हो रहा है। प्रतियोगिता का औपचारिक उद्घाटन 11 जनवरी को हो भी गया है। इस विश्व कप के लिए स्टील सिटी के नाम से मशहूर राउरकेला में आदिवासी क्रांतिकारी बिरसा मुंडा के नाम पर स्टेडियम का खासतौर से निर्माण किया गया है, जो भारत का सबसे बड़ा हॉकी स्टेडियम है। इसके निर्माण के लिए सरकार ने 120 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया था. इंटरनेशनल हॉकी फेडरेशन ने हॉकी विश्व कप के आयोजन के लिए दो स्टेडियम की अनिवार्यता रखी थी. जिसे देखते हुए बिरसा मुंडा इंटरनेशनल हॉकी स्टेडियम का निर्माण किया गया। बीबीसी हिंदी पर पढ़ें विशेष रिपोर्ट

कितना बदल गया हॉकी का खेल

2018 में भुवनेश्वर के कलिंगा स्टेडियम में कट्टर प्रतिद्वंद्वियों और तीन बार के चैंपियन नीदरलैंड के खिलाफ खेलते हुए बेल्जियम ने अपना पहला हॉकी खिताब ‘पुरुष हॉकी विश्व कप’ जीता था। 2014 में फेडरेशन इंटरनेशनेल डी हॉकी (FIH) द्वारा अनिवार्य किए गए नए नियमों के लागू होने के बाद यह चौथा विश्व कप है। तब से यह भारत में होने वाला तीसरा टूर्नामेंट भी है। हॉकी के FIH नियम ओलिंपिक या विश्व कप के बाद हर दो साल में अपडेट किए जाते हैं। नीदरलैंड के हेग में 2014 विश्व कप से पहले संबंधित कमेटी ने उस साल के बाद लागू किए जाने वाले बदलावों की एक सूची की घोषणा की थी, जो यकीनन 1992 में ऑफसाइड नियम की समाप्ति के साथ-साथ 1970 के दशक में एस्ट्रोटर्फ पिचों के आगमन के प्रभाव को दर्शाता है। दिप्रिंट में नए नियमों के बारे में दी गई जानकारी को पढ़ें

चीनी-युक्त खाद्य-सामग्री रोकने का सुझाव

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने दुनिया के देशों को मसौदा दिशानिर्देश जारी किए हैं। इनमें में सुझाया गया है कि स्वस्थ आहार को बढ़ावा देने के लिए दुनिया के देश किस तरह राजकोषीय नीतियां तैयार कर सकते हैं। दिशानिर्देशों के एक महत्त्वपूर्ण हिस्से पर फिलहाल मंत्रणा चल रही है। विकासशील देशों सहित पूरी दुनिया में आवश्यकता से अधिक चीनी का इस्तेमाल मधुमेह (टाइप 2 डायबिटीज) का एक प्रमुख कारण माना जाता है। कार्बन युक्त पेय पदार्थ (कार्बोनेटेड ड्रिंक्स), एनर्जी ड्रिंक्स़, फलों के रस ये सभी एसएसबी की श्रेणी में रखे गए हैं। मधुमेह जीवन-शैली से जुड़ा रोग है जिसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए। विशेषकर, उन देशों में विशेष सावधानी बरतने की जरूरत है जहां मधुमेह की बीमारी तेजी से फैल रही है। डब्ल्यूएचओ के अनुमान के अनुसार खराब गुणवत्ता वाले, अति प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ पूरी दुनिया में धूम्रपान से भी अधिक संख्या में लोगों को लील रहे हैं। बिजनेस स्टैंडर्ड में पढ़ें संपादकीय

 

Sunday, January 8, 2023

एंटनी की 'नरम हिंदुत्व'अपील पर हिलाल अहमद की टिप्पणी


कतरनें यानी मीडिया में जो इधर-उधर प्रकाशित हो रहा है
, उसके बारे में अपने पाठकों को जानकारी देना. ये कतरनें केवल जानकारी नहीं है, बल्कि विमर्श को आगे बढ़ाने के लिए हैं.

एके एंटनी की यह टिप्पणी कि कांग्रेस को 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को हराने के लिए बहुसंख्यक हिंदू समुदाय को लामबंद करना चाहिए और अल्पसंख्यक ‘इस लड़ाई में काफी नहीं हैं‘ विचारों के गंभीर संकट को रेखांकित करता है...एंटनी की स्पष्ट रूप से ‘हिंदू हाव-भाव’ रखने की सलाह गैर-हिंदू समुदायों, विशेष रूप से मुस्लिमों के साथ जो कि वाजिब राजनीतिक हितधारक हैं को डील करने को लेकर कांग्रेस की बेचैनी को उजागर करती है. साथ ही, ये टिप्पणियां कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं द्वारा किए गए दावे को डिगाती हैं कि राहुल गांधी की अगुवाई वाली भारत जोड़ो यात्रा राजनीति क एक वैकल्पिक विजन पेश करेगी. दिप्रिंट में हिलाल अहमद का पूरा लेख पढ़ने के लिए लिंक पर क्लिक करें

वास्तविक आशावाद का समय

बजट पेश किए जाने में चार सप्ताह से भी कम समय बचा है। ऐसा खासतौर पर इस​लिए कि अतीत में जताए गए पूर्वानुमान, खासतौर पर सरकार के प्रवक्ताओं के अनुमान हकीकत से बहुत दूर रहे हैं। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के आरंभ में ही दो अंकों की वृद्धि के दावे के साथ इसकी शुरुआत हुई थी। यहां तक कि दूसरे कार्यकाल के पहले वर्ष 2019-20 में भी तत्कालीन मुख्य ​आर्थिक सलाहकार ने 7 फीसदी की वृद्धि का अनुमान जताया था जबकि वर्ष का समापन 4 फीसदी के साथ हुआ। बिजनेस स्टैंडर्ड में टीएन नायनन का साप्ताहिक लेख

जोशीमठ का धँसाव

जोशीमठ नगर में धँसाव 1970 के दशक में भी महसूस किया गया था। तब सरकारी स्तर पर गढ़वाल आयुक्त महेश चंद्र मिश्रा की अध्यक्षता में धँसाव के कारणों की जांच के लिए एक कमेटी बनाई गई थी। कमेटी ने 1978 में अपनी रिपोर्ट दी थी। इस रिपोर्ट में साफ कहा गया था कि जोशीमठ नगर के साथ पूरी नीती और माणा घाटियां हिमोढ़ (मोरेन) पर बसी हुई हैं। ग्लेशियर पिघलने के बाद जो मलबा पीछे रह जाता है, उसे हिमोढ़ कहा जाता है। ऐसे में इन घाटियों में बड़े निर्माण कार्य नहीं किए जाने चाहिए। लेकिन मिश्रा कमेटी की रिपोर्ट पर कभी किसी ने ध्यान नहीं दिया और इन घाटियों में दर्जनों जल विद्युत परियोजनाओं के साथ ही कई दूसरे निर्माण भी लगातार हो रहे हैं। जोशीमठ से करीब 7 किमी दूर स्थित रैणी गाँव 7 फरवरी 2021 को ग्लेशियर टूटने से तबाह हुआ रैणी गाँव जून 2021 में फिर से आई बाढ़ के कारण पूरी तरह असुरक्षित हो गया था। गाँव के ठीक नीचे जमीन अब भी लगातार खिसक रही है। यहाँ पढ़ें डाउन टु अर्थ में राजू सजवान की रिपोर्ट

 

Saturday, January 7, 2023

बिहार में जातिगत सर्वेक्षण के निहितार्थ


कतरनें यानी मीडिया में जो इधर-उधर प्रकाशित हो रहा है,
 उसके बारे में अपने पाठकों को जानकारी देना. ये कतरनें केवल जानकारी नहीं है, बल्कि विमर्श को आगे बढ़ाने के लिए हैं.

बिहार में आज 7 जनवरी से जातिगत सर्वेक्षण का काम शुरू हो गया है। यह काम दो चरणों में होगा। 7 से 21 जनवरी ( पहले चरण ) तक घरों की गिनती होगी। दूसरे चरण में जातियों को गिना जाएगा। इस कार्यक्रम के अंतर्गत केवल जाति की गणना नहीं हो रही है, लोगों की आर्थिक स्थिति का सर्वेक्षण भी किया जाएगा। राज्य सरकार इसे पूरा करने के लिए अपने आकस्मिक कोष से 500 करोड़ रुपये खर्च कर रही है। बिहार सरकार ने पिछले साल 2 जून को जातिगत सर्वेक्षण को मंज़ूरी दी थी। इस सर्वेक्षण में 12.7 करोड़ जनसंख्या, 2.58 करोड़ घरों को कवर किया जाएगा जो 31 मई को पूरा होगा। इसे जातिगत जनगणना नहीं कहा गया है, लेकिन इसमें जाति संबंधी जानकारी जुटाई जाएगी। बीबीसी हिंदी में पढ़ें विस्तार से

भारत जोड़ो यात्रा पर योगेंद्र यादव का एक और लेख

भारत-जोड़ो यात्रा पर वैबसाइट दिप्रिंट में जय किसान आंदोलन और स्वराज इंडिया के संस्थापक योगेंद्र यादव ने एक और लेख लिखा है. इसके तीन गिन पहले भी उन्होंने इसी वैबसाइट पर एक और लेख लिखा था. नए लेख के स्वर पिछले लेख से कुछ अलग हैं, इसलिए दोनों लेखों को एकसाथ पढ़ना चाहिए. बहरहाल 7 जनवरी के नवीनतम लेख में उन्होंने लिखा है, क्या भारत जोड़ो यात्रा ने सांप्रदायिक गुस्से को कम किया है? मैंने किसी कार्य-कारण प्रभाव के दावे को साबित करने के लिए हमेशा से ठोस सबूत भी मांगा है. लेकिन यह प्रश्न कठिन सबूत को भी स्वीकार नहीं कर रहा है. कम से कम इतने कम समय में तो नहीं…तो, मैं इसे सावधानी से बता दूं. मैं केवल एक सवाल खड़ा कर रहा हूं, फाइनल जवाब नहीं दे रहा हूं. जैसा कि सामाजिक विज्ञान में कहते हैं न कि यह एक अवधारणा (हाइपोथीसिस) है जिसकी जांच की जानी है. साथ ही, मैं साम्प्रदायिकता के संगठित या पूर्व नियोजित कृत्यों जैसे दंगों, हिंसा और हेट क्राइम के बारे में नहीं बोल रहा. अगर इन कृत्यों को घृणा की राजनीति से प्रेरित समूहों द्वारा डिजाइन और अंजाम नहीं दिया गया है, जिसका कि यह यात्रा विरोध करना चाहती है, मैं उनके दिल में अचानक बदलाव की उम्मीद नहीं करता, और वह भी भारत जोड़ो यात्रा से. मुझे रोज़मर्रा के सांप्रदायिक तनाव में दिलचस्पी है जो कि अव्यक्त शत्रुता और अविश्वास, अपशब्द, अपमान, पड़ोस के विवाद में मौजूद है–मुझे इस बात में दिलचस्पी है कि क्या यात्रा ने सांप्रदायिक कट्टरता में आम लोगों के शामिल होने को कम किया है…मेरा अनुमान है कि यात्रा का संदेश जहां भी पहुंचा है, इसने स्थानीय सांप्रदायिक तनाव में कमी लाने की भरसक कोशिश की है.. यहाँ पढ़ें यह लेख

नेपाल में प्रचंड के प्रधानमंत्री बनने से कितना ख़ुश है चीन?

नेपाल में नई सरकार के गठन के अगले ही दिननेपाल-चीन के बीच रेल संपर्क स्थापित करने के व्यावहारिक पहलू के अध्ययन के लिए चीन की एक तकनीकी टीम काठमांडू पहुंची। इसके एक दिन बादचीनी पक्ष ने रसुवागढी-केरुंग क्रॉसिंग को खोलने का फ़ैसला कियाजो कोविड-19 के समय से बंद था। हाल में चीन सरकार के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने नेपाल को लेकर दो महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ की हैं। 3 जनवरी की एक टिप्पणी में कहा गया है कि चीन और नेपाल के सहयोग को लेकर भारत को ईर्ष्या नहीं होनी चाहिए। प्रचंड को प्रधानमंत्री नियुक्त किए जाने के बाद 29 दिसंबर 2022 को 'घुसपैठ द्वारा काठमांडू को नियंत्रित करने का अमेरिकी प्रयास विफल' शीर्षक से एक लेख प्रकाशित किया था।बीबीसी हिंदी में पढ़ें यह रिपोर्ट 

Friday, January 6, 2023

2024 में संभव है बीजेपी को हराना: डेरेक ओ’ब्रायन


कतरनें यानी मीडिया में जो इधर-उधर प्रकाशित हो रहा है, उसके बारे में अपने पाठकों को जानकारी देना. ये कतरनें केवल जानकारी नहीं है, बल्कि विमर्श को आगे बढ़ाने के लिए हैं.

तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओब्रायन ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि 2024 में बीजेपी को हराया जा सकता है। इसके लिए जरूरी है कि लोकसभा चुनाव को अनेक राज्यों के विधानसभा चुनावों को रूप में जोड़ा जाए। जब भी किसी इलाके की मजबूत पार्टी से बीजेपी को सामना करना पड़ा, तो वह कमज़ोर साबित हुई है। उन्होंने लिखा है कि मैं जानबूझकर क्षेत्रीय पार्टी (रीज़नल पार्टी) शब्द का इस्तेमाल नहीं कर रहा हूँ, क्योंकि बहुत सी पार्टियों को राष्ट्रीय पार्टी की मान्यता मिली हुई है। यदि आप हिमाचल प्रदेश, पंजाब, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश या तेलंगाना के चुनाव परिणामों को जोड़कर उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शित करें, तो पाएंगे कि बीजेपी को 240 तक पहुँचने में भी मुश्किल होगी। मई, 2021 में पश्चिम बंगाल में क्या हुआ था? मोदी और अमित शाह दोनों ने ज़ोर लगा दिया, पर हार गए। पूरा लेख पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें

…और यह है बीजेपी की रणनीति

आज के इंडियन एक्सप्रेस में लिज़ मैथ्यूस की लंबी रिपोर्ट भी प्रकाशित हुई है, जिसमें बताया गया है कि 2024 के लिए बीजेपी की रणनीति क्या है। इसके अनुसार पार्टी ने अपने बूथ-स्तर के कार्यकर्ता से लेकर केंद्रीय मंत्रिस्तर के नेता तक को अपनी संगठनात्मक प्रक्रिया का हिस्सा बनाया है। गृहमंत्री अमित शाह मानते हैं कि मजबूत संगठन के बगैर बीजेपी अपनी जीत को दोहरा नहीं पाएगी। पार्टी ने पिछले साल अपनी लोकसभा प्रवास योजना शुरू कर दी है, जिसके तहत मंत्रियों सहित पार्टी के नेताओं को उन मुश्किल चुनाव-क्षेत्रों की जिम्मेदारी दी है, जहाँ 2019 में पार्टी दूसरे नंबर पर रही या बहुत मामूली अंतर से जीती थी। शुरू में ऐसे 144 चुनाव-क्षेत्र तय किए गए थे, जिनकी संख्या अब 160 हो गई है। 2019 में पार्टी ने 436 स्थानों पर चुनाव लड़ा था, जिनमें से 303 पर उसे जीत मिली। इस प्रकार 133 पराजित और 11 मामूली अंतर से जीती गई सीटों के आधार पर 144 की संख्या बनी थी, जिसे अब 160 कर लिया गया है। पूरी रिपोर्ट पढ़ें यहाँ

आसान नहीं है वैकल्पिक ऊर्जा की राह

अगर वर्ष 2022 ने दुनियाभर के नीति-निर्माताओं को कुछ सिखाया है तो वह यह कि उन्हें अपनी स्वच्छ ऊर्जा नीतियों को लेकर व्यावहारिक होना जरूरी था। रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध सभी विकसित और विकासशील देशों के लिए एक कड़वे सच को पहचानने जैसा था, क्योंकि ये देश इस बात को लेकर बड़े आश्वस्त थे कि वे कोयले से बहुत ही जल्दी निजात पा लेंगे और हाइड्रोकार्बन पर अपनी निर्भरता को बड़ी तेजी से कम करने में सफल हो जाएंगे। मगर वर्ष ने कोयले की मांग और कीमत दोनों को और बढ़ा दिया।

विकसित देश जैसे अमेरिका और जर्मनी अब फिर से ईंधन की ओर रुख कर रहे हैं और कोयले के बंद पड़े संयंत्रों को फिर से शुरू कर रहे हैं। विशेष रूप से, पश्चिमी यूरोप इस बात को समझ गया है कि अगर इसे सस्ती दरों पर प्राकृतिक गैसों की आपूर्ति नहीं मिलती तो उसे सौर और पवन ऊर्जाओं से मदद नहीं मिलने वाली है। इसने यह भी पाया है कि पारंपरिक ऊर्जा आपूर्ति में रुकावट आने से लीथियम और निकल जैसे खनिजों की कीमतें बढ़ जाएंगी। बिजनेस स्टैंडर्ड में पढ़ें प्रसेनजित दत्ता का आलेख


Thursday, January 5, 2023

नैनो उर्वरकों की सफलता

 कतरनें

कतरनें यानी मीडिया में जो इधर-उधर प्रकाशित हो रहा है, उसके बारे में अपने पाठकों को जानकारी देना. ये कतरनें केवल जानकारी नहीं है, बल्कि विमर्श को आगे बढ़ाने के लिए हैं.

नैनो यूरिया की सफलता के बाद, अब दूसरे सबसे अ​धिक खपत वाले उर्वरक डीएपी (डाई अमोनियम फॉस्फेट) के नैनो संस्करण को जैव सुरक्षा और विषाक्तता परीक्षणों में मंजूरी मिल गई है और इसके साथ ही अगले खरीफ सत्र में इसे खेतों में इस्तेमाल करने की औपचारिक स्वीकृति का मार्ग भी प्रशस्त हो गया है। ये नवाचारी और स्वदेशी तौर पर विकसित तरल उर्वरक फसलों के जरूरी पोषण के लिए किए जाने वाले आयात और सरकारी स​सब्सिडी के क्षेत्र में बड़ा बदलाव लाने वाले साबित हो सकते हैं। बिजनेस स्टैंडर्ड का संपादकीय, जिसने मेरी जानकारी को बढ़ाया

जम्मू-क्षेत्र में फिर हत्याएं

जेहादियों द्वारा नए साल की सुबह राजौरी के छह निवासियों की हत्या ने, जो कि वर्षों में इस तरह की पहली सामूहिक हत्या है, आशंका जताई है कि जम्मू क्षेत्र में जानलेवा सांप्रदायिक युद्ध फिर से शुरू हो सकता है. तीस साल पहले किश्तवाड़ बस यात्रियों की हत्या ने भी, जो अपनी तरह की पहली घटना थी, इस हफ्ते की साम्प्रदायिक हत्याओं-और उससे पहले हुए कई नरसंहारों की तरह का खाका तैयार किया था. दिप्रिंट में प्रवीण स्वामी का आलेख

अल नस्र से नाता क्यों जोड़ा रोनाल्डो ने?

एक महीने से भी कम वक्त गुज़रा है, जब पुर्तगाल की फ़ुटबॉल टीम के कप्तान क्रिस्टियानो रोनाल्डो क़तर में हो रहे विश्व कप के क्वॉर्टर फ़ाइनल में मोरक्को से 1-0 से हारने के बाद आंखों में आंसू लिए मैदान से बाहर जाते दिखे थे. पुर्तगाल को हराने के बाद मोरक्को वर्ल्ड कप के सेमीफ़ाइनल तक पहुँचने वाला पहला अफ़्रीकी अरब देश बना था. विश्व कप जीतने का सपना टूटने के कुछ सप्ताह बाद अब पुर्तगाल के कप्तान क्रिस्टियानो रोनाल्डो ने यूरोपीय फ़ुटबॉल क्लब मैनचेस्टर यूनाइटेड छोड़कर, सऊदी अरब के 'अल-नस्र' से नाता जोड़ लिया है. अल नस्र और रोनाल्डो के बीच हुआ क़रार अब तक का सबसे महंगा सौदा बताया जा रहा है. अल-नस्र 2025 तक हर साल रोनाल्डो को क़रीब 1800 करोड़ रुपये का भुगतान करेगा. सऊदी अरब की टीम रोनाल्डो पर इतना पैसा क्यों बहा रही है इसपर पढ़ें बीबीसीहिंदी की यह रिपोर्ट

 

Wednesday, January 4, 2023

जजों की नियुक्तियों से जुड़ा विवाद

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कतरनें यानी मीडिया में जो इधर-उधर प्रकाशित हो रहा है, उसके बारे में अपने पाठकों को जानकारी देना. ये कतरनें केवल जानकारी नहीं है, बल्कि विमर्श को आगे बढ़ाने के लिए हैं.

न्यायाधीशों तथा निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर सार्वजनिक विवाद चल रहा है। सरकार संविधान के प्रासंगिक प्रावधानों के सहारे है और दलील दे रही है कि नियुक्तियों के निर्णय का अधिकार कार्यपालिका के पास है। जबकि इससे अलग नजरिया रखने वालों को संविधान की मूल भावना की चिंता है। सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति की मौजूदा प्रक्रिया सर्वोच्च न्यायालय के 1993 और 1998 के निर्णयों पर आधारित है और यह चयन सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का एक कॉलेजियम करता है जिसकी अध्यक्षता उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के पास होती है। कार्यपालिका उनसे पुनर्विचार करने को कह सकती है, लेकिन अगर कॉलेजियम अपनी अनुशंसा पर टिका रहता है तो उसे स्वीकार करना होगा। हालांकि सरकार इन अनुशंसाओं को महीनों तक रोककर नियुक्तियों को लंबित रख सकती है। राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग की स्थापना को लेकर संसद ने एक कानून भी बनाया, जिसके पास उच्च न्यायालय की नियुक्तियों का अधिकार होता। इस आयोग की अध्यक्षता मुख्य न्यायाधीश के पास होती और इसमें दो वरिष्ठ न्यायाधीश, केंद्रीय कानून मंत्री और दो ‘प्रतिष्ठित’ व्यक्ति शामिल होते, जिनकी सहमति मिलने पर ही नियुक्तियां होतीं। उच्चतम न्यायालय ने इसे असंवैधानिक बताते हुए निरस्त कर दिया। दलील दी गई कि यह न्यायिक स्वायत्तता के साथ समझौता करने जैसा है जबकि वह संविधान की विशेषताओं में से एक है जिसमें संसद संशोधन नहीं कर सकती। बिजनेस स्टैंडर्ड में नितिन देसाई का पूरा लेख पढ़ें यहाँ

ब्रेक्जिट का असर

ब्रिटिश साप्ताहिक इकोनॉमिस्ट ने इस असर को कुछ चार्टों और विशेषज्ञों के बातचीत से बताया है। मोटी राय है कि ब्रिटिश अर्थव्यवस्था की संवृद्धि, कारोबार और उससे जुड़ी सभी बातों पर विपरीत प्रभाव पड़ा है। पूरी रिपोर्ट पढ़ें यहाँ

भारत-जोड़ो यात्रा

जय किसान आंदोलन और स्वराज इंडिया के संस्थापकों में से एक योगेंद्र यादव भी राहुल गांधी की भारत-जोड़ो यात्रा के सहयात्री हैं। उन्होंने वैबसाइट द प्रिंट में एक लेख लिखा है, जिसमें कहा है कि संयोग देखिए कि यात्रा का देश की राजधानी में पहुंचना और देश के मानस में पैठ बनाना एक साथ हुआ है. और, जो ऐसा हुआ है तो शुक्रिया कहना बनता है मुख्यधारा की मीडिया के उस बड़े हिस्से का जिसने बड़ी देर और ना-नुकुर के बाद अब मान लिया है कि दिलों को जोड़ने के लिए देश में एक यात्रा हो रही है. उनका लेख पढ़ें यहाँ

हल्द्वानी में अतिक्रमण-आंदोलन

उत्तराखंड के हल्द्वानी शहर में रेलवे की जमीन पर से अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई के विरोध में चार हजार से ज्यादा परिवार सड़कों पर आ गए हैं। इनमें ज्यादातर मुस्लिम परिवार है। यह विवाद 2007 से चल रहा है और उत्तराखंड हाईकोर्ट ने रेलवे की जमीन से अतिक्रमण हटाने का आदेश पारित किया है। अतिक्रमण हटाए जाने का विरोध करने वालों ने धरने और रास्ता जाम का सहारा लिया है। ऑपइंडिया की नूपुर जे शर्मा ने इस परिघटना के राजनीतिक पहलू को समेटते हुए जो रिपोर्ट लिखी है, उसे पढ़ें यहाँ  

 

 

 

Tuesday, January 3, 2023

क्या हिंदू-मन श्रेष्ठता के नशे में चूर है?

कतरनें यानी मीडिया में जो इधर-उधर प्रकाशित हो रहा है, उसके बारे में अपने पाठकों को जानकारी देना. ये कतरनें केवल जानकारी नहीं है, बल्कि विचारणीय हैं.

द वायर में अपूर्वानंद का एक आलेख न केवल पठनीय है, बल्कि इसपर चर्चा होनी चाहिए. उन्होंने लिखा है:

‘नए साल में किन चिंताओं, चुनौतियों और उम्मीदों के साथ प्रवेश कर रहे हैं?’, मित्र का प्रश्न था. अमूमन नए साल के इरादों का जिक्र होता है. लेकिन एक समाज या एक देश के तौर पर हम कुछ इरादे करें और वे कारगर हों, इसके पहले ईमानदारी से अपनी हालत का जायज़ा लेना ज़रूरी होगा.

चिंता सबसे बड़ी क्या है? कुछ लोग कहते हैं समाज में समुदायों के बीच बढ़ती हुई खाई. मुख्य रूप से हिंदू मुसलमान के बीच अलगाव. लेकिन ऐसा कहने से भरम होता है कि इसमें दोष दोनों पक्षों का है. बात यह नहीं है.

असल चिंता का विषय है, भारत में ऐसे हिंदू दिमाग का निर्माण जो श्रेष्ठतावाद के नशे में चूर है. इसी से बाकी बातें जुड़ी हुई हैं. एक श्रेष्ठतावादी मस्तिष्क बाहरी प्रभावों से डरा हुआ, संकुचित और बंद दिमाग होता है. इस वजह से वह कमजोर भी हो जाता है.

स्वीकार करने में बुरा लगता है, लेकिन सच है कि आज का आम हिंदू मन बाहरी, विदेशी के प्रति द्वेष और घृणा से भरा हुआ है. बाहरी तरह-तरह के हो सकते हैं. वे मुसलमान हैं और ईसाई भी. उनसे उसका रिश्ता शत्रुता का ही हो सकता है. इस लेख को पूरा पढ़ें यहाँ

चीन से रिश्ते

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने चीन के साथ बने हालात को 'प्रचंड चुनौती' बताया है. हालांकि उन्होंने इस बारे में और कुछ नहीं कहा है कि 'प्रचंड चुनौती' से उनका क्या मतलब है. बीबीसी हिंदी ने कोलकाता से छपने वाले अंग्रेज़ी अख़बार टेलीग्राफ़ की रिपोर्ट का हवाला देते हुए लिखा है कि एस जयशंकर इससे पहले चीन के साथ भारत के द्विपक्षीय संबंधों को 'असामान्य' कहते रहे हैं और इस लिहाज से विदेश मंत्री की ताज़ा टिप्पणी एक क़दम आगे बढ़ने जैसी है.

Sunday, September 12, 2021

तालिबान समर्थक स्त्रियाँ भी सामने आईं



शनिवार को काबुल विश्वविद्यालय के लेक्चर रूम में तालिबान समर्थक करीब 300 अफगान महिलाएं इकट्ठा हुईं थी। सिर से पांव तक पूरी तरह से ढंकी ये महिलाएं हाथों में तालिबान का झंडा लिए हुए थीं। इस दौरान कुछ महिलाओं ने मंच से संबोधित कर तालिबान के प्रति वफादारी की कसमें भी खाईं।

इन अफगान महिलाओं की तस्वीरों ने इस्लामिक अमीरात में महिलाओं के अधिकारों और सम्मान की झलक दिखाई है। कोई इनके हाथ को न देख सके इसके लिए उन्होंने काले रंग के दस्ताने पहन रखे थे। इन महिलाओं ने वायदा किया कि वे लैंगिक अलगाव की तालिबान-नीति का प्रतिबद्धता के साथ पालन भी करेंगी।

नवभारत टाइम्स में पढ़ें विस्तार से

जेहादी-जीत का जश्न

9/11 की 20वीं बरसी को जेहादी अपनी दोहरी जीत के तौर पर मना रहे हैं. यह मौका तालिबान की सत्ता में वापसी का भी है। अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की वापसी को जेहाद के लिए एक तख़्तापलट और देश से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के तौर पर देखा जा रहा है। 20 साल पहले अमेरिका में विमानों को अगवा किए जाने के लिए ज़िम्मेदार आतंकी संगठन अल-क़ायदा ने तालिबान को उसकी 'ऐतिहासिक जीत' के लिए आगे बढ़कर बधाई दी है। यह सब कुछ ऐसे वक़्त में हो रहा है जब पश्चिमी ताक़तें मुस्लिम बहुल हिंसा प्रभावित देशों से अपनी सेनाओं की संख्या कम कर रही हैं।

बीबीसी हिंदी पर विस्तार से पढ़ें मीना अल-लामी का यह आलेख

ग्वांतानामो बे के पाँच कैदी

9/11 हमले की मनहूस वर्षगांठ पर नए सिरे से उसके उन पांच संदिग्धों पर ध्यान देने की ज़रूरत है जिन पर उस साज़िश को रचने का आरोप है। ख़ालिद शेख़ मोहम्मद समेत ये पांचों अभियुक्त ग्वांतानामो बे में इसी हफ़्ते कोरोना वायरस की वजह से 18 महीने के अंतराल के बाद पेश हुए। इस प्री-ट्रायल को देखने वहां इस हमले के शिकार लोगों के रिश्तेदार, एनजीओ के सदस्य और कुछ चुनिंदा पत्रकार भी मौजूद थे। पहले ही दुनिया से कटा हुआ महसूस करने वाले ग्वांतानामो बे और इस मुक़दमे की भयावहता को देखते हुए यह कोर्ट-रूम पहले ही अपने आप में अनूठा था।

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