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Wednesday, October 13, 2010

आयशा की नाक लगी

आपको याद है अफगानिस्तान की आयशा का नाम जिसका चेहरा टाइम के कवर पर छपा था। उसके नाक-कान तालिबान कमांडर की अनुमति से काट लिए गए थे। आयशा की उसके पिता ने कर्ज़ अदायगी के रूप में एक पुरुष से शादी  कर दी थी। ससुराल में दुर्व्यवहार होने पर वह भाग खड़ी हुई। इसपर उसे पकड़ कर लाया गया और नाक-कान काट लिए गए। 

टाइम की खबर के बाद आयशा को अमेरिका लाया गया। यहाँ उसकी नाक फिर से लगा दी गई है। यह नाक नकली है। बाद में उसकी नाक की हड्डी के टिश्यूज़ का इस्तेमाल करके स्थायी नाक की व्यवस्था भी की जाएगी।


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बीबीसी की खबर

Sunday, August 1, 2010

तालिबान खतरनाक क्यों हैं?



अमेरिका ने इराक में पैर न फँसाए होते तो शायद उसे कम बदनामी मिली होती। इराक के मुकाबले अफगानिस्तान की परिस्थितियाँ फर्क थीं। इराक में सद्दाम हुसेन की तानाशाही ज़रूर थी, पर वह अंधी सरकार नहीं थी। अफगानिस्तान तो सैकड़ों साल पीछे जा रहा था। तालिबानी शासन-व्यवस्था सैकड़ों साल पीछे जा रही थी। बामियान की बुद्ध प्रतिमाओं को तोड़कर तालिबान ने साफ कर दिया था कि उनके कायम रहते उस समाज में आधुनिकता पनप नहीं सकेगी। तालिबान अपने आप सत्ता पर आए भी  नहीं थे। उन्हें स्थापित किया था पाकिस्तानी सेना ने। और तैयार किया था पाकिस्तानी मदरसों नें। 

तालिबान-शासन में सबसे बुरी दशा स्त्रियों की हुई थी। उनकी पराजय के बाद अफगान स्त्रियों ने राहत की साँस ली, पर वह साँस सिर्फ साँस ही थी राहत नहीं। साथ के चित्र को देखें। यह 9 अगस्त की टाइम मैगज़ीन का कवर पेज है। इस लड़की का नाम है आयशा। इसके ससुराल में इसके साथ गुलामों जैसा बर्ताव होता था। इसपर यह ससुराल से भाग खड़ी हुई। 

स्थानीय तालिबान कमांडर ने पति का पक्ष लिया। आयशा के देवर ने उसे पकड़ा और उसके पति ने चाकू से उसके कान और नाक काट ली। यह तालिबान न्याय है। पर यह दस साल पहले की बात नहीं है। यह पिछले साल की बात है। यानी तालिबान आज भी ताकतवर हैं। 

पाकिस्तान कोशिश कर रहा है कि हामिद करज़ाई की सरकार तालिबान के साथ सुलह करके उन्हें सत्ता में शामिल कर ले। अमेरिका भी शायद इस बात से सहमत हो गया है। पर क्या तालिबान की वापसी ठीक होगी? तमाम लोग चाहते हैं कि अमेरिका को अफगानिस्तान से हट जाना चाहिए। ज़रूर हटना चाहिए, पर उसके बाद क्या होगा? कोई जिम्मेदारी लेने को तैयार है?