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Thursday, June 1, 2023

अमेरिकी ऋण-सीमा बढ़ेगी


अमेरिकी संसद की प्रतिनिधि सभा यानी हाउस ऑफ़ रिप्रेजेंटेटिव ने सरकार की ऋण-सीमा बढ़ाने वाले विधेयक को स्पष्ट बहुमत से पारित कर दिया है. विधेयक के समर्थन में 314 और विरोध में 117 मत पड़े. दोनों ही पक्षों की तरफ़ से विरोध में मतदान हुआ है.

विधेयक के समर्थन में 165 डेमोक्रेट (राष्ट्रपति जो बाइडेन की पार्टी) और 149 रिपब्लिकन सदस्यों ने मतदान किया है. इससे अमेरिकी सरकार के क़र्ज़ संकट का समाधान हो सकता है और सरकार के डिफॉल्टर होने का ख़तरा टल सकता है. सरकार को डिफॉल्ट होने से बचाने के लिए अब सोमवार से पहले इस विधेयक को सीनेट में पारित कराना अनिवार्य होगा.

रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक पार्टियों के बीच इस समझौते के कारण व्यवस्था के बिखर जाने का खतरा टल जरूर गया है, पर देश का आर्थिक संकट बरकरार है. उधर रिपब्लिकन पार्टी को इस बात का संतोष है कि राष्ट्रपति जो बाइडन से उसने कुछ सरकारी खर्च कम करवा लिए हैं. अनुमान है कि अगले एक दशक में सरकारी खर्चों में 1.3 ट्रिलियन डॉलर की कटौती होगी. ये कटौतियाँ 2024 और 2025 से लागू होंगी.   

संसद की प्रतिनिधि सभा में रिपब्लिकन पार्टी का बहुमत है. जबकि, सीनेट में डेमोक्रेटिक पार्टी का बहुमत है. ऐसे में इस बिल का प्रतिनिधि सभा में पास होना महत्वपूर्ण है. इस बिल को पारित कराने में दोनों पार्टियों के बीच समझौता कराने में अहम भूमिका निभाने वाले रिपब्लिकन पार्टी के सबसे वरिष्ठ नेता केविन मैकार्थी ने इसे ऐतिहासिक कहा है.

वर्चुअली होगा एससीओ शिखर सम्मेलन

दूसरी बड़ी अंतरराष्ट्रीय खबर यह है कि जुलाई के महीने में भारत में होने वाला शंघाई सहयोग संगठन का शिखर सम्मेलन अब वर्चुअल होगा. केंद्र सरकार ने मंगलवार को एलान किया कि 4 जुलाई को दिल्ली में प्रस्तावित एससीओ की बैठक अब वर्चुअली आयोजित होगी. इस साल एससीओ की अध्यक्षता भारत के पास है, जिसकी वजह से ये बैठक दिल्ली में आयोजित होनी थी.

 

इस बैठक में शंघाई सहयोग संगठन के सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्षों को हिस्सा लेना था. इनमें चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग, पाकिस्तानी पीएम शाहबाज़ शरीफ़ और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन जैसे नेता शामिल होते.

केंद्र सरकार इस बैठक को आयोजित करने के लिए पिछले कई महीनों से तैयारी भी कर रही थी. इन नेताओं को भारत आने का न्यौता भी भेजा गया था. मंगलवार को सरकार ने एकाएक अपना फ़ैसला बदल दिया. दो-तीन बातें हवा में हैं. एक, दिल्ली में सम्मेलन की तैयारी पूरी नहीं है. दूसरे चीन, पाकिस्तान और रूस के राष्ट्राध्यक्षों ने अभी तक सम्मेलन में आने की पुष्टि नहीं की है. संभवतः रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन यूक्रेन-युद्ध के कारण आने की स्थिति में नहीं हैं.

 

Friday, May 19, 2023

एससीओ में उभरेगी भारतीय विदेश-नीति की दिशा


एससीओ विदेशमंत्रियों के सम्मेलन के हाशिए पर भारत-पाकिस्तान मसलों के उछलने की वजह से एससीओ की गतिविधियाँ पृष्ठभूमि में चली गईं. रूस-चीन प्रवर्तित इस संगठन का विस्तार यूरेशिया से निकल कर एशिया के दूसरे क्षेत्रों तक हो रहा है. जब दुनिया में महाशक्तियों का टकराव बढ़ रहा है, तब इस संगठन की दशा-दिशा पर निगाहें बनाए रखने की जरूरत है. खासतौर से इसलिए कि इसमें भारत की भी भूमिका है.

इस साल भारत में हो रहे जी-20 और एससीओ के कार्यक्रमों में वैश्विक-राजनीति के अंतर्विरोध उभर रहे हैं और उभरेंगे. ज़ाहिर है कि भारत दो ध्रुवों के बीच अपनी जगह बना रहा है. एससीओ पर चीन और रूस का वर्चस्व है. यहाँ तक कि संगठन का सारा कामकाज रूसी और चीनी भाषा में होता है. जी-20 संगठन नहीं एक ग्रुप है, पर उसकी भूमिका बहुत ज्यादा है.

रूस और चीन मिलकर नई विश्व-व्यवस्था बनाना चाहते हैं. यूक्रेन-युद्ध के बाद से यह प्रक्रिया तेज हुई है. इसमें एससीओ और ब्रिक्स की महत्वपूर्ण भूमिका होगी. एससीओ के अलावा भारत, रूस और चीन ब्रिक्स के सदस्य भी हैं. ब्राजील हालांकि बीआरआई में शामिल नहीं है, पर वहाँ हाल में हुए सत्ता परिवर्तन के बाद उसका झुकाव चीन की ओर बढ़ा है.

भारत की दिलचस्पी

रूस और चीन के बीच भी प्रतिस्पर्धा है. रूस के आग्रह पर ही भारत इसका सदस्य बना है. चीन के साथ भारत दूरगामी संतुलन बैठाता है. सवाल है कि भारत इस संगठन में अलग-थलग तो नहीं पड़ेगा? हमारी दिलचस्पी रूस से लगे मध्य एशिया के देशों के साथ कारोबारी और सांस्कृतिक संपर्क बनाने में है.

भारत क्वाड का सदस्य भी है, जो रूस और चीन दोनों को नापसंद है. अमेरिका, जापान और यूरोप के साथ भारत के अच्छे रिश्ते हैं. इन बातों में टकराव है, जिससे भारत बचता है. फिलहाल संधिकाल है और आर्थिक-शक्ति हमारे महत्व को स्थापित करेगी.

Sunday, May 7, 2023

भारत-पाकिस्तान रिश्तों की गर्मा-गर्मी


विदेशमंत्रियों के गोवा सम्मेलन में पाकिस्तान के विदेशमंत्री बिलावल भुट्टो ज़रदारी की उपस्थिति के कारण सारी निगाहें भारत-पाकिस्तान रिश्तों पर केंद्रित हो गईं, जबकि एससीओ में द्विपक्षीय मसले उठाए नहीं जाते। इसलिए सम्मेलन में कही गई बातों और मीडिया से कही गई बातों को अलग-धरातल पर समझने की कोशिश करनी चाहिए। दोनों विदेशमंत्रियों की आमने-सामने बातचीत भी नहीं हुई, फिर भी प्रकारांतर से आतंकवाद और कश्मीर का मसला उठा और दोनों पक्षों ने कम से कम शब्दों में ज्यादा से ज्यादा बातें कह दीं। 

शायद मीडिया, राजनीति और सीमा के दोनों ओर की जनता यही सुनना चाहती थी। सम्मेलन में चीन के विदेशमंत्री भी आए थे, और भारत-चीन सीमा पर चल रहे गतिरोध का जिक्र भी सम्मेलन के हाशिए पर हुआ, पर मीडिया का सारा ध्यान भारत-पाकिस्तान पर रहा। शायद इसीलिए दोनों नेताओं ने कुछ ऐसे जुम्ले बोले, जिनसे राजनीति और मीडिया का कारोबार भी चलता रहे। अलबत्ता सम्मेलन में उस किस्म की आतिशबाज़ी नहीं हुई, जिसकी उम्मीद काफी लोगों को थी।  

कयास ही कयास

सबको पहले से पता था कि इस दौरान दोनों देशों के विदेशमंत्रियों की आमने-सामने बातें नहीं होंगी, फिर भी कयास थे कि हाथ मिलाएंगे या नहीं, एक-दूसरे से बातें करेंगे या नहीं वगैरह। इस कार्यक्रम के महत्व को इस बात से समझा जा सकता है कि इसकी कवरेज के लिए पाकिस्तान से पत्रकारों की एक टीम भी आई थी, जबकि इस सम्मेलन में द्विपक्षीय सरोकारों पर कोई बात नहीं होने वाली थी।

केवल डेढ़ दिन में बने इस माहौल से समझा जा सकता है कि भारत-पाकिस्तान रिश्तों का क्या महत्व है और जब ये ठंडे होते हैं, तब भी भीतर से कितने गर्म होते हैं। संयोग से इस सम्मेलन के समय जम्मू-कश्मीर के राजौरी में आतंकवादियों से मुठभेड़ में सेना के पाँच जवानों के शहीद होने की खबर भी आई है, जिससे यह भी स्पष्ट है कि पाकिस्तान-परस्त लोग सक्रिय हैं और वे इस महीने श्रीनगर में हो रहे जी-20 के कार्यक्रमों पर पानी फेरना चाहते हैं।

ऐसा जवाब देंगे…

भारत-पाकिस्तान रिश्तों के ठंडे-गर्म मिजाज का पता इस सम्मेलन के दौरान बोली गई कुछ बातों से लगाया जा सकता है। मसलन श्रीनगर में हो रही जी-20 की बैठक के सिलसिले में बिलावल भुट्टो ने कहा, ‘दुनिया के किसी ईवेंट का श्रीनगर में आयोजन भारत की अकड़ (एरोगैंस) को दिखाता है। वक्त आने पर हम ऐसा जवाब देंगे कि उनको याद रहेगा।’ वहीं भारत के विदेशमंत्री एस जयशंकर ने पाकिस्तान को आतंकी इंडस्ट्री का प्रवक्ता बताया। 

इन दो बयानों को अलग रख दें, तो बिलावल भुट्टो ने जयशंकर की तारीफ भी की। जयशंकर ने उनका नमस्कार से स्वागत किया, जिसपर बिलावल ने कहा, हमारे यहां सिंध में इसी तरह से सलाम किया जाता है। जयशंकर ने सबका स्वागत इसी तरीके से किया। उन्होंने किसी भी मौके पर मुझे ऐसा महसूस नहीं होने दिया कि हमारे द्विपक्षीय संबंधों का इस बैठक पर कोई असर है।

Sunday, April 30, 2023

एससीओ में भारत की चुनौतियाँ


वैश्विक राजनीति और भारतीय विदेश-नीति की दिशा को समझने के लिए इस साल भारत में हो रही जी-20 और शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठकों पर ध्यान देना होगा। पिछले दिनों भारत में जी-20 के विदेशमंत्रियों की बैठक में वैश्विक अंतर्विरोध खुलकर सामने आए थे, वैसा ही इस शुक्रवार को नई दिल्ली में एससीओ रक्षामंत्रियों की बैठक में हुआ। विदेश-नीति के लिहाज से भारत और चीन के रक्षामंत्रियों की रूबरू बैठक से यह भी स्पष्ट हुआ कि दोनों देशों के रिश्तों में जमी बर्फ जल्दी पिघलने के आसार नहीं हैं। ऑप्टिक्स के लिहाज से यह बात महत्वपूर्ण थी कि रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने चीनी रक्षामंत्री ली शांगफू से सम्मेलन में हाथ नहीं मिलाया। वैश्विक-राजनीति की दृष्टि से पिछले साल समरकंद में हुए एससीओ के शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ रूसी राष्ट्रपति पुतिन की आमने-सामने की बैठक ने दुनिया के मीडिया ने ध्यान खींचा था और उम्मीद बँधी थी कि यूक्रेन की लड़ाई को रोकने में मदद मिलेगी। मोदी ने प्रकारांतर से पुतिन से कहा था कि आज लड़ाइयों का ज़माना नहीं है। यूक्रेन की लड़ाई बंद होनी चाहिए। पुतिन ने जवाब दिया कि मैं भारत की चिंता को समझता हूँ और लड़ाई जल्द से जल्द खत्म करने का प्रयास करूँगा। पर तब से अब तक दुनिया काफी आगे जा चुकी है और रिश्तों में लगातार तल्खी बढ़ती जा रही है। रक्षामंत्रियों की बैठक के बाद आगामी 4-5 मई को विदेशमंत्रियों की बैठक होने वाली है, उसमें भी किसी बड़े नाटकीय मोड़ की आशा नहीं है, सिवाय इसके कि उसमें पाकिस्तान के विदेशमंत्री बिलावल भुट्टो ज़रदारी आने वाले हैं।

Sunday, September 18, 2022

समरकंद में बढ़ा भारत का रसूख


वैश्विक राजनीति और भारतीय विदेश-नीति की दिशा को समझने के लिए समरकंद में हुए शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन के संवाद पर ध्यान देना होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ रूसी राष्ट्रपति पुतिन की आमने-सामने की बैठक ने दुनिया के मीडिया ने ध्यान खींचा है। मोदी ने प्रकारांतर से पुतिन से कह दिया कि आज लड़ाइयों का ज़माना नहीं है। यूक्रेन की लड़ाई बंद होनी चाहिए। पुतिन ने जवाब दिया कि मैं भारत की चिंता को समझता हूँ और लड़ाई जल्द से जल्द खत्म करने का प्रयास करूँगा। इन दो वाक्यों में छिपे महत्वपूर्ण संदेश को पढ़ें। भारत की स्वतंत्र विदेश-नीति को रूस, चीन और अमेरिका की स्वीकृति और असाधारण सम्मान मिला है। इस साल फरवरी में रूस और यूक्रेन के बीच शुरू हुए संघर्ष के बाद दोनों नेताओं के बीच पहली मुलाकात थी। दोनों के बीच कई बार फ़ोन पर बातचीत हुई है।

समरकंद का संदेश

भारत ने यूक्रेन पर आक्रमण के लिए रूस की आलोचना नहीं की है, पर यह संदेश महत्वपूर्ण है। युद्ध के मोर्चे पर रूस थक रहा है। चीन भी रूस से दूरी बना रहा है। मोदी-पुतिन वार्ता से पहले शी चिनफिंग ने भी पुतिन से कहा कि हम युद्ध को लेकर चिंतित हैं। इस साल जनवरी-फरवरी में रूस-चीन रिश्ते आसमान पर थे, तो वे अब ज़मीन पर आते दिखाई पड़ रहे हैं। अलबत्ता चीन का प्रभाव मध्य एशिया के देशों पर है। उसके वन बेल्ट, वन रोड कार्यक्रम का भारत को छोड़ सभी देश समर्थन करते हैं। संयुक्त घोषणापत्र में इसका उल्लेख है। भारत के साथ ये देश कारोबार चाहते हैं, पर पाकिस्तान जमीनी रास्ता देने को तैयार नहीं हैं। मोदी ने अपने वक्तव्य में पारगमन सुविधा का जिक्र किया है।  

भारत की भूमिका

इस संगठन में चीन और रूस के बाद भारत तीसरा सबसे बड़ा देश है, जिसका कद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ रहा है। एससीओ भी धीरे-धीरे दुनिया का सबसे बड़ा क्षेत्रीय संगठन बनता जा रहा है। भारत की दिलचस्पी अपनी ऊर्जा की जरूरतों को पूरा करने के अलावा आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई में है। सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि हम भारत को मैन्युफैक्चरिंग हब बनाना चाहते हैं। भारत की अर्थव्यवस्था में इस साल 7.5 फीसदी की वृद्धि की उम्मीद है जो दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे अधिक होगी। उन्होंने मिलेट्स यानी बाजरे का भी ज़िक्र किया और कहा, दुनिया की खाद्य-समस्या का एक समाधान यह भी है। इसकी खेती में लागत कम होती है। इसे एससीओ देशों के अलावा दूसरे देशों में हज़ारों साल से उगाया जाता रहा है। एससीओ देशों के बीच आयुर्वेद और यूनानी जैसी पारंपरिक औषधियों का सहयोग बढ़ाया जा सकता है। इसके लिए भारत पारंपरिक दवाओं पर एक नया एससीओ वर्किंग ग्रुप बनाने की पहल करेगा।

अगला अध्यक्ष

भारत को एससीओ के अगले अध्यक्ष के रूप में मनोनीत किया गया है। अगला शिखर सम्मेलन अब 2023 में भारत में होगा। एससीओ में नौ देश पूर्ण सदस्य हैं-भारत, चीन, रूस, पाकिस्तान, क़ज़ाक़िस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, उज़्बेकिस्तान और ईरान। ईरान की सदस्यता अगले साल अप्रेल से मानी जाएगी। तीन देश पर्यवेक्षक हैं-अफ़ग़ानिस्तान, बेलारूस और मंगोलिया। छह डायलॉग पार्टनर हैं-अजरबैजान, आर्मीनिया, कंबोडिया, नेपाल, तुर्की, श्रीलंका। नए डायलॉग पार्टनर हैं-सऊदी अरब, मिस्र, क़तर, बहरीन, मालदीव, यूएई, म्यांमार। शिखर सम्मेलन में इनके अलावा आसियान, संयुक्त राष्ट्र और सीआईएस के प्रतिनिधियों को भी बुलाया जाता है। मूलतः यह राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा सहयोग का संगठन है, जिसकी शुरुआत चीन और रूस के नेतृत्व में यूरेशियाई देशों ने की थी। अप्रैल 1996 में शंघाई में हुई एक बैठक में चीन, रूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान जातीय और धार्मिक तनावों को दूर करने के इरादे से आपसी सहयोग पर राज़ी हुए थे। इसे शंघाई फाइव कहा गया था। इसमें उज्बेकिस्तान के शामिल हो जाने के बाद जून 2001 में शंघाई सहयोग संगठन की स्थापना हुई। पश्चिमी मीडिया मानता है कि एससीओ का मुख्य उद्देश्य नेटो के बराबर खड़े होना है। भारत इसमें सबसे बड़ी संतुलनकारी शक्ति के रूप में उभर कर आ रहा है।

चीनी तेवर ढीले

चीन के तेवर ढीले पड़े हैं। एससीओ का प्रवर्तन चीन ने किया है। वह अपने राजनयिक-प्रभाव का विस्तार करने के लिए इस संगठन का इस्तेमाल करना चाहता है। साथ ही यह भी लगता है कि पश्चिमी देशों का दबाव उसपर बहुत ज्यादा है। उसकी अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे मंदी की ओर बढ़ रही है। समरकंद में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज़ शरीफ़ भी मौजूद थे, लेकिन सम्मेलन में औपचारिक भेंट के अलावा इन दोनों से पीएम मोदी की अलग से मुलाक़ात नहीं हुई। ईरानी राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी से मुलाकात जरूर हुई। पर्यवेक्षकों का अनुमान था कि पूर्वी लद्दाख के कुछ इलाकों में हाल में हुई सेनाओं की वापसी के बाद शायद शी चिनफिंग और शहबाज़ शरीफ से उनकी सीधी बात हो। चीन और पाकिस्तान के प्रति अपने रुख को नरम करने के लिए भारत तैयार नहीं है। भारत-चीन सीमा पर तनाव कम करने के लिए दोनों पक्षों में कोर कमांडर स्तर पर बातचीत के 16 दौर हो चुके हैं, लेकिन तनाव पूरी तरह कम नहीं हो सका है।

पाकिस्तान से रिश्ते

पाकिस्तान के साथ भी भारत के रिश्ते बीते कई साल से बिगड़ते गए हैं। 2019 में पुलवामा-बालाकोट हमलों और अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी बनाए जाने के बाद दोनों देशों के राजनयिकों को वापस बुला लिया गया और सभी व्यापार संबंधों को रद्द कर दिया गया। करतारपुर कॉरिडोर के ज़रिए संबंधों को पटरी पर लाने की कोशिश की गई थी, लेकिन उसमें सफलता नहीं मिली। पिछले साल फरवरी में नियंत्रण रेखा पर गोलाबारी बंद करने का समझौता हुआ था, जिसके बाद उम्मीदें बढ़ी थीं कि दोनों के कारोबारी रिश्ते फिर से शुरू होंगे, पर पाकिस्तान की आंतरिक राजनीति के कारण वह भी संभव नहीं हुआ। इमरान ख़ान के बाद शहबाज़ शरीफ़ जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने भारत के साथ संबंधों को बेहतर बनाने के संकेत दिए थे। वे समरकंद में मौजूद थे, पर वहाँ से किसी नई पहल की खबर नहीं मिली है।

स्वतंत्र विदेश-नीति

इस दौरान भारतीय विदेश-नीति की दृढ़ता और स्वतंत्र-राह स्थापित हो रही है। हाल में चीनी मीडिया के हवाले से खबर थी कि चीनी जनता मानती है कि भारत अमेरिका की पिट्ठू नहीं है, जैसाकि वहाँ की सरकार दावा करती है। पिछले दो-तीन वर्षों में भारत ने रूस के सामने भी इस बात को दृढ़ता से रखा है कि हमारी दिलचस्पी राष्ट्रीय-हितों में है। हम किसी के पिछलग्गू नहीं हैं और दब्बू भी नहीं हैं। अमेरिकी दबाव के बावजूद भारत ने रूसी एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम को अपने यहाँ स्थापित कर लिया है। दूसरी तरफ अमेरिका को भी आश्वस्त किया है कि हम लोकतांत्रिक मूल्यों से आबद्ध हैं और चीनी आक्रामकता से दबने को तैयार नहीं हैं। अमेरिका ने हाल में पाकिस्तान को एफ-16 विमानों के कल-पुर्जे सप्लाई करने का फैसला किया है, जिसका भारत ने पुरज़ोर विरोध किया है।  

राष्ट्रहित सर्वोपरि

अपनी रक्षा-व्यवस्था को लेकर हम किसी प्रकार का समझौता नहीं करेंगे। हिंद प्रशांत क्षेत्र में हम क्वॉड में शामिल हैं। सुदूर पूर्व में जापान के साथ हमारी दोस्ती भी बहुत मजबूत है। समरकंद सम्मेलन के एक हफ्ते पहले भारत और जापान के बीच टू प्लस टू वार्ता हुई है, जिसमें कारोबारी रिश्तों के साथ-साथ सहयोग पर भी विचार किया गया। बंगाल की खाड़ी में 11 सितंबर से शुरू हुआ जिमेक्स (जापान-इंडिया मैरीटाइम एक्सरसाइज़) नौसैनिक युद्धाभ्यास चल रहा है, जो 22 सितंबर तक चलेगा। हर साल होने वाले मालाबार-युद्धाभ्यास में अब भारत और अमेरिका के अलावा जापान और ऑस्ट्रेलिया भी शामिल हैं। दूसरी तरफ भारत ने रूसी युद्धाभ्यास वोस्तोक-2022 में भी भाग लिया, जो 30 अगस्त से 5 सितंबर तक चला। इसमें चीन भी शामिल था। इस अभ्यास में तीनों तरह के बलों का इस्तेमाल करते हुए उसे आतंकवाद-विरोधी अभ्यास बताया गया। यह अभ्यास रूस के सुदूर पूर्व और जापान सागर में दक्षिणी कुरील द्वीप समूह (जिस पर जापान और रूस दोनों अपना दावा करते हैं) के निकटवर्ती क्षेत्र में हुआ था। भारत ने इस युद्धाभ्यास में गोरखा रेजिमेंट की थलसेना की एक टुकड़ी को भेजा, पर जापान की संवेदनशीलता को देखते हुए नौसैनिक अभ्यास से खुद को अलग रखा और अपने पोत नहीं भेजे। यह बात राजनयिक सूझ-बूझ और स्वतंत्र विदेश-नीति को रेखांकित करती है। रूसी-चीनी गरमाहट के बावजूद हमने रूस से किनाराकशी नहीं की।

रूस-चीन ठंडापन

दूसरी तरफ रूस और चीन के रिश्ते कुछ महीने पहले जितने सरगर्म लग रहे थे, उतने इस समय नज़र नहीं आ रहे हैं। इस साल क शुरु में रूस और चीन के नेताओं ने कहा था कि हमारी दोस्ती की कोई सीमा नहीं है, पर समरकंद में रिश्ते ठंडे पड़ते दिखाई पड़े। इस सम्मेलन में शी जिनपिंग ने यूक्रेन युद्ध का ज़िक्र भी नहीं किया। पिछले कुछ महीनों का अनुभव है कि आर्थिक प्रतिबंधों की मार झेल रहे रूस की चीन ने किसी किस्म की आर्थिक सहायता नहीं की। उसने रूस की सीधे तौर पर मदद करने से खुद को रोका, ताकि अपनी अर्थव्यवस्था को पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के असर से बचा सके। पश्चिमी देशों के साथ चीन अपने रिश्ते बिगाड़ना नहीं चाहता, क्योंकि उसकी अर्थव्यवस्था पश्चिम से जुड़ी है।

हरिभूमि में प्रकाशित