पिछले हफ्ते की दो घटनाओं ने हिंद महासागर की सुरक्षा के
संदर्भ में ध्यान खींचा है। फ्रांस के नौसेना प्रमुख एडमिरल क्रिस्टोफे प्राजुक भारत
आए। उन्होंने भारतीय नौसेना के प्रमुख एडमिरल करमबीर सिंह के साथ मुलाकात के बाद
बताया कि अगले वर्ष से दोनों देशों की नौसेनाएं हिंद महासागर में संयुक्त रूप से गश्त लगाने का काम कर सकती
हैं। दूसरी है, श्रीलंका में राष्ट्रपति पद के चुनाव, जिसमें श्रीलंका पोडुजाना
पेरामुना (एसएलपीपी) के उम्मीदवार गौतबाया राजपक्षे ने राष्ट्रपति चुनावों में
जीत दर्ज की है।
सेना के पूर्व
लेफ्टिनेंट कर्नल गौतबाया अपने देश में ‘टर्मिनेटर’ के नाम से मशहूर हैं,
क्योंकि लम्बे समय तक चले तमिल आतंकवाद को कुचलने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी।
दो कारणों से भारत की संलग्नता श्रीलंका से है। प्रश्न है कि श्रीलंका के तमिल
नागरिकों के नए राष्ट्रपति का व्यवहार कैसा होगा और दूसरे श्रीलंका-चीन के रिश्ते किस
दिशा में जाएंगे? इस सिलसिले में भारत ने तेजी से पहल की है और हमारे विदेशमंत्री एस जयशंकर ने
श्रीलंका जाकर नव-निर्वाचित राष्ट्रपति से मुलाकात की। सबसे बड़ी बात यह कि
गौतबाया 29 नवंबर को भारत-यात्रा पर आ रहे हैं।
चीन की बढ़ती उपस्थिति
उनकी विजय के बाद
भारतीय मीडिया में इस बात की चर्चा है कि चीन और पाकिस्तान के साथ श्रीलंका के
रिश्ते किस प्रकार के होंगे। जो भी भारत को इस मामले में सक्रियता का प्रदर्शन
करना होगा। अतीत में चीन की हिंद महासागर परियोजना में श्रीलंका की महत्वपूर्ण
भूमिका रही है। इन दिनों भारत की रक्षा-योजना के केंद्र में हिंद महासागर है। इसके
दो कारण हैं। पहला कारण कारोबारी है। देश का आयात-निर्यात तेजी से बढ़ रहा है और
ज्यादातर विदेशी-व्यापार समुद्र के रास्ते से होता है, इसलिए समुद्री रास्तों को
निर्बाध बनाए रखने की जिम्मेदारी हमारी है। दूसरा बड़ा कारण है हिंद महासागर में
चीन की बढ़ती उपस्थिति।