Showing posts with label हिन्द महासागर. Show all posts
Showing posts with label हिन्द महासागर. Show all posts

Saturday, December 7, 2019

क्या हम हिंद महासागर में बढ़ते चीनी प्रभाव को रोक पाएंगे?


पिछले हफ्ते की दो घटनाओं ने हिंद महासागर की सुरक्षा के संदर्भ में ध्यान खींचा है। फ्रांस के नौसेना प्रमुख एडमिरल क्रिस्टोफे प्राजुक भारत आए। उन्होंने भारतीय नौसेना के प्रमुख एडमिरल करमबीर सिंह के साथ मुलाकात के बाद बताया कि अगले वर्ष से दोनों देशों की नौसेनाएं हिंद महासागर में संयुक्त रूप से गश्त लगाने का काम कर सकती हैं। दूसरी है, श्रीलंका में राष्ट्रपति पद के चुनाव, जिसमें श्रीलंका पोडुजाना पेरामुना (एसएलपीपी) के उम्मीदवार गौतबाया राजपक्षे ने राष्ट्रपति चुनावों में जीत दर्ज की है।
सेना के पूर्व लेफ्टिनेंट कर्नल गौतबाया अपने देश में टर्मिनेटर के नाम से मशहूर हैं, क्योंकि लम्बे समय तक चले तमिल आतंकवाद को कुचलने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। दो कारणों से भारत की संलग्नता श्रीलंका से है। प्रश्न है कि श्रीलंका के तमिल नागरिकों के नए राष्ट्रपति का व्यवहार कैसा होगा और दूसरे श्रीलंका-चीन के रिश्ते किस दिशा में जाएंगे? इस सिलसिले में भारत ने तेजी से पहल की है और हमारे विदेशमंत्री एस जयशंकर ने श्रीलंका जाकर नव-निर्वाचित राष्ट्रपति से मुलाकात की। सबसे बड़ी बात यह कि गौतबाया 29 नवंबर को भारत-यात्रा पर आ रहे हैं।
चीन की बढ़ती उपस्थिति
उनकी विजय के बाद भारतीय मीडिया में इस बात की चर्चा है कि चीन और पाकिस्तान के साथ श्रीलंका के रिश्ते किस प्रकार के होंगे। जो भी भारत को इस मामले में सक्रियता का प्रदर्शन करना होगा। अतीत में चीन की हिंद महासागर परियोजना में श्रीलंका की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इन दिनों भारत की रक्षा-योजना के केंद्र में हिंद महासागर है। इसके दो कारण हैं। पहला कारण कारोबारी है। देश का आयात-निर्यात तेजी से बढ़ रहा है और ज्यादातर विदेशी-व्यापार समुद्र के रास्ते से होता है, इसलिए समुद्री रास्तों को निर्बाध बनाए रखने की जिम्मेदारी हमारी है। दूसरा बड़ा कारण है हिंद महासागर में चीन की बढ़ती उपस्थिति।

Thursday, November 28, 2019

क्या हम हिंद महासागर में बढ़ते चीनी प्रभाव को रोक पाएंगे?


पिछले हफ्ते की दो घटनाओं ने हिंद महासागर की सुरक्षा के संदर्भ में ध्यान खींचा है। फ्रांस के नौसेना प्रमुख एडमिरल क्रिस्टोफे प्राजुक भारत आए। उन्होंने भारतीय नौसेना के प्रमुख एडमिरल करमबीर सिंह के साथ मुलाकात के बाद बताया कि अगले वर्ष से दोनों देशों की नौसेनाएं हिंद महासागर में संयुक्त रूप से गश्त लगाने का काम कर सकती हैं। दूसरी है, श्रीलंका में राष्ट्रपति पद के चुनाव, जिसमें श्रीलंका पोडुजाना पेरामुना (एसएलपीपी) के उम्मीदवार गौतबाया राजपक्षे ने राष्ट्रपति चुनावों में जीत दर्ज की है।
सेना के पूर्व लेफ्टिनेंट कर्नल गौतबाया अपने देश में टर्मिनेटर के नाम से मशहूर हैं, क्योंकि लम्बे समय तक चले तमिल आतंकवाद को कुचलने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। दो कारणों से भारत की संलग्नता श्रीलंका से है। प्रश्न है कि श्रीलंका के तमिल नागरिकों के नए राष्ट्रपति का व्यवहार कैसा होगा और दूसरे श्रीलंका-चीन के रिश्ते किस दिशा में जाएंगे? इस सिलसिले में भारत ने तेजी से पहल की है और हमारे विदेशमंत्री एस जयशंकर ने श्रीलंका जाकर नव-निर्वाचित राष्ट्रपति से मुलाकात की। सबसे बड़ी बात यह कि गौतबाया 29 नवंबर को भारत-यात्रा पर आ रहे हैं।

Sunday, November 18, 2018

हिन्द महासागर की बदलती राजनीति


दो पड़ोसी देशों के हालिया राजनीतिक घटनाक्रम ने भारत का ध्यान खींचा है। एक है मालदीव और दूसरा श्रीलंका। शनिवार को मालदीव में नव निर्वाचित राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह के शपथ ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी शामिल हुए। दक्षिण एशिया की राजनयिक पृष्ठभूमि में यह महत्वपूर्ण परिघटना है। सन 2011 के बाद से किसी भारतीय राष्ट्राध्यक्ष या शासनाध्यक्ष की पहली मालदीव यात्रा है। दक्षेस देशों में मालदीव अकेला है, जहाँ प्रधानमंत्री मोदी सायास नहीं गए हैं। पिछले कुछ वर्षों में इस देश ने भारत के खिलाफ जो माहौल बना रखा था उसके कारण रिश्ते लगातार बिगड़ते ही जा रहे थे। तोहमत भारत पर थी कि वह एक नन्हे से देश को संभाल नहीं पा रहा है। यह सब चीन और पाकिस्तान की शह पर था।

दूसरा देश श्रीलंका है, जो इन दिनों राजनीतिक अराजकता के घेरे में है। यह अराजकता खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। वहाँ राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरीसेना ने प्रधानमंत्री रानिल विक्रमासिंघे को बर्खास्त करके महिंदा राजपक्षे को प्रधानमंत्री बना दिया है। संसद ने हालांकि राजपक्षे को नामंजूर कर दिया है, पर वे अपने पद पर जमे हैं। राजपक्षे चीन-परस्त माने जाते हैं। जब वे राष्ट्रपति थे, तब उन्होंने कुछ ऐसे फैसले किए थे, जो भारत के खिलाफ जाते थे।

Saturday, February 16, 2013

हिन्द महासागर में भारत-विरोधी हवाओं पर ध्यान दें


सिद्धांततः भारत को मालदीव की आंतरिक राजनीति में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, पर वहाँ जो कुछ हो रहा है, उसे बैठे-बैठे देखते रहना भी नहीं चाहिए। पिछले साल जब मालदीव में सत्ता परिवर्तन हुआ था वह किसी प्रकार से न्यायपूर्ण नहीं था। फौजी ताकत के सहारे चुने हुए राष्ट्रपति को हटाना कहीं से उचित नहीं था। और अब उस राष्ट्रपति को चुनाव में खड़ा होने से रोकने की कोशिशें की जा रहीं है। इतना ही नहीं देश का एक तबका परोक्ष रूप से भारत-विरोधी बातें बोलता है। वह भी तब जब भारत उसका मददगार है। दरअसल हमें मालदीव ही नहीं पूरे दक्षिण एशिया और खासतौर से हिन्द महासागर में भारत-विरोधी माहौल पैदा करने की कोशिशों के बाबत सतर्क रहना चाहिए।  16 फरवरी 2013 के हिन्दी ट्रिब्यून में प्रकाशित मेरा लेखः-
Maldivian army and policemen face supporters of Mohamed Nasheed, who resigned Tuesday from his post as Maldivian President, during a protest in Male on Wednesday.
मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नाशीद की गिरफ़्तारी का वॉरंट जारी होने के बाद उनका माले में स्थित भारतीय दूतावास में आना एक महत्वपूर्ण घटना है। पिछले साल फरवरी में जब नाशीद का तख्ता पलट किया गया था तब भारत सरकार ने उस घटना की अनदेखी की थी, पर लगता है कि अब यह घटनाक्रम किसी तार्किक परिणति की ओर बढ़ेगा। शायद हम अभी इस मामले को ठीक से समझ नहीं पाए हैं, पर यह बात साफ दिखाई पड़ रही है कि नाशीद को इस साल वहाँ अगस्त-सितम्बर में होने वाले चुनावों में खड़ा होने से रोकने की पीठिका तैयार की जा रही है। इसके पहले दिसम्बर 2012 में मालदीव सरकार ने भारतीय कम्पनी जीएमआर को बाहर का रास्ता दिखाकर हमें महत्वपूर्ण संदेश दिया था। माले के इब्राहिम नासिर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे की देखरेख के लिए जीएमआर को दिया गया 50 करोड़ डॉलर का करार रद्द होना शायद बहुत बड़ी बात न हो, पर इसके पीछे के कारणों पर जाने की कोशिश करें तो हमारी चंताएं बढ़ेंगी। समझना यह है कि पिछले एक साल से यहाँ चल रही जद्दो-जेहद सिर्फ स्थानीय राजनीतिक खींचतान के कारण है या इसके पीछे चीन और पाकिस्तान का हाथ है।