आप एक मेज की कल्पना करें.
उसके पाए लकड़ी को काटकर बनाए जाते हैं. फिर ऊपर का तख्ता अलग से काटा जाता है.
इसी तरह उसके अलग-अलग हिस्से काटकर बनाए जाते हैं. फिर उन्हें जोड़ा जाता है. इसी
मेज को छोटे से आकार में लकड़ी के बजाय मोम से बनाना हो तो आप एक सांचा बनाएंगे,
फिर उसमें गर्म करके मोम भरेंगे. फिर ठंडा होने के बाद सांचे को हटा देंगे तो मोम
की मेज बनी मिलेगी. सवाल है कि क्या लकड़ी की मेज इसी तरह नहीं बनाई जा सकती? इसके कई जवाब हैं. यदि लकड़ी को मोम की तरह पिघलाया जा सकता तो बन सकती थी.
या फिर लकड़ी के बड़े टुकड़े को काट-तराश कर मेज निकाली जा सकती है. जैसे
मूर्तिकार पत्थर से तराश कर मूर्ति बनाते हैं.
विज्ञान इसके आगे सोचना शुरू करता है. क्या मेज को पेड़ की तरह उगाया जा सकता
है? पेड़ उगता है तो उसका आकार उसी तरह से बनता जाता है जैसा प्रकृति ने तय किया.
उसके जैसे ज्यादातर पेड़, पौधे, फूल इसी तरह जन्म लेते हैं. वैज्ञानिकों ने अपने
ज्ञान का इस्तेमाल करके इन पेड़-पौधों के साथ प्रयोग करके उनके रंग-रूप और
शक्लो-सूरत में भी बदलाव कर लिया. पर यह उगाना था. किसी चीज को उगाने के लिए जिस
सामग्री की जरूरत होती है उसे परिभाषित किया जाए तो वह आपकी इच्छानुसार उग सकती है.