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Tuesday, January 29, 2013

विमर्श-विहीनता, विश्वरूपम से आशीष नन्दी तक



संयोग है कि आशीष नन्दी का प्रकरण तभी सामने आया, जब विश्वरूपमपर चर्चा चल रही थी। आशीष नंदी विसंगतियों को उभारते हैं। यह उनकी तर्क पद्धति है। वे मूलतः नहीं मानते कि पिछड़े और दलित भ्रष्ट हैं, जैसा कि उनकी बात के एक अंश को सुनने से लगता है। वे मानते हैं कि देश के प्रवर वर्ग का भ्रष्टाचार नज़र नहीं आता। यह जयपुर लिटरेरी फोरम के मंच पर कही गई गई थी। आशीष नन्दी से असहमति प्रकट करने के तमाम तरीके मौज़ूद हैं। पर सीधे एफआईआर का मतलब क्या है? एक मतलब यह कि विमर्श का नहीं कार्रवाई का विषय है। कार्रवाई होनी चाहिए। बेहतर हो कि इस बहस को आगे बढ़ाएं, पर उसके पहले वह माहौल तो बनाएं जिसमें कोई व्यक्ति कुछ कहना चाहे तो वह कह सके।