रूस पर दबाव बढ़ाने के लिए उसकी दो सबसे बड़ी तेल कंपनियों और 34 सहायक कंपनियों पर अमेरिका ने जो प्रतिबंध लगाए हैं, उनका असर भारत पर भी पड़ेगा. कोई भी बैंक, जो इन कंपनियों के तेल की खरीद में मदद करेगा, उसे अमेरिकी वित्तीय प्रणाली से अलग किया जा सकता है.
रोज़नेफ्ट और लुकॉइल नामक इन कंपनियों से भारत
की दो कंपनियाँ (रिलायंस और नायरा) तेल खरीदती रही हैं. रिलायंस का रोज़नेफ़्ट से
क़रार था और नायरा में भी रोज़नेफ़्ट की हिस्सेदारी है. रिलायंस ने प्रतिबंधों को
स्वीकार करने के साथ भारत सरकार के साथ खड़े होने की प्रतिबद्धता भी व्यक्त की है.
उधर भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता निर्णायक मोड़
पर है. लगता है कि दोनों देशों ने कुछ पत्ते दबाकर रखे हैं, जिनके सहारे मोल-तोल
चल रहा है. इस दौरान अमेरिका यह संकेत भी दे रहा है कि दोनों के रिश्तों में
बिगाड़ नहीं है.
ट्रंप इस हफ्ते दक्षिण पूर्व और पूर्व एशिया की यात्रा पर आए हैं. मलेशिया, जापान और दक्षिण कोरिया में वे रुकेंगे. उनकी चीन के शी जिनपिंग के साथ बैठक होगी. बुधवार को बुसान में इस बैठक के बाद अमेरिका और तीन के बीच की रस्साकशी के परिणाम सामने आएँगे, साथ ही अमेरिका के एशिया पर प्रभाव की असलियत का पता भी लगेगा.
ट्रंप साबित करना
चाहेंगे कि अमेरिका का अब भी दक्षिण पूर्व एशिया में बोलबाला है, जहाँ बीजिंग का दबदबा बढ़ रहा है. उम्मीद थी कि
उनकी और पीएम मोदी की मुलाकात कुआलालंपुर में आसियान शिखर सम्मेलन में होगी, पर
मोदी वहाँ नहीं गए. ज़ाहिर है कि भारत सरकार, अमेरिका के साथ निकटता दिखाने से बच
रही है.
अन्य प्रतिबंध
रूस की सैन्य क्षमताओं को कम करने के उद्देश्य
से विमान उपकरण और सेमीकंडक्टर जैसे उच्च तकनीक वाले उत्पादों के रूस को निर्यात
पर रोक भी लगाई गई है.
ये निर्यात प्रतिबंध उन वस्तुओं पर भी लागू
होंगे, जिनका उत्पादन अन्य देश अमेरिकी तकनीक का उपयोग करके करते हैं. अमेरिकी
वित्तमंत्री स्कॉट बेसेंट ने कहा कि ‘युद्ध को ख़त्म करने से इनकार’ की वजह से
प्रतिबंध जरूरी हैं.
अमेरिका ने यह कार्रवाई अकेले नहीं की है, बल्कि उसके सहयोगियों ने भी की है. पिछले हफ्ते ब्रिटेन ने भी इन्हीं दोनों कंपनियों पर प्रतिबंध लगाए थे. यूरोपियन यूनियन ने भी प्रतिबंध लगाए हैं.

















