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Wednesday, November 13, 2024

दक्षिण एशिया की प्रगति के लिए ज़रूरी है ‘आपसी संपर्क’

भारत और पाकिस्तान के रिश्तों को लेकर हाल में दो खबरों ने ध्यान खींचा है. पहली है लाहौर के पर्यावरण के संबंध में पाकिस्तान के पंजाब राज्य की कोशिशें और दूसरी दोनों देशों के बीच व्यापारिक रिश्तों को फिर से कायम करने के सुझाव से जुड़ी है. एक और खबर भारत-अफगानिस्तान रिश्तों को लेकर भी है.

भारत और पाकिस्तान के बीच दशकों से तनावपूर्ण संबंध हैं, लेकिन जैसे-जैसे ज़हरीली हवा का मुद्दा सामने आ रहा है, दोनों पड़ोसियों को अपनी साझा जिम्मेदारी पर भी विचार करना पड़ रहा है.

Wednesday, November 6, 2024

अमेरिकी-चुनाव की भारतीय संगति और विसंगतियाँ


सब कुछ सामान्य रहा, तो अगले 24 से 48 घंटों में पता लग जाएगा कि अमेरिका के अगले राष्ट्रपति की कुर्सी किसे मिलेगी. इस चुनाव पर सारी दुनिया की निगाहें हैं. अमेरिका की विदेश-नीति में भले ही कोई बुनियादी बदलाव नहीं आए, पर इस चुनाव के परिणाम का कुछ न कुछ असर वैश्विक राजनीति पर होगा.  

अमेरिकी चुनाव भी दूसरे देशों की तरह जनता की ज़िंदगी और सरोकारों से जुड़ा होता है. इसमें भोजन और आवास, रोजमर्रा की वस्तुओं की कीमत, और गर्भपात कानून वगैरह शामिल हैं. खासतौर से मुद्रास्फीति और ब्याज की दरें. विदेश-नीति इसमें इसलिए आती है, क्योंकि उसका असर अंदरूनी-नीतियों पर पड़ता है.

Wednesday, October 30, 2024

बेहद जोखिम भरी राह पर बढ़ता पश्चिम एशिया


पहले ईरान के इसराइल पर और अब ईरान पर हुए इसराइली हमलों के बाद वैश्विक-शांति को लेकर कुछ गंभीर सवाल खड़े हुए हैं. एक तरफ लगता है कि हमलों का यह क्रम दुनिया को एक बड़े युद्ध की ओर ले जा रहा है. दूसरी तरफ दोनों पक्ष सावधानी से नाप-तोलकर अपने कदम बढ़ा रहे हैं, जिससे इस बात का संकेत मिलता है कि मौके की भयावहता का उन्हें अंदाज़ा है.

क्या लड़ाई को आगे बढ़ने से रोका जा सकता है? पश्चिम एशिया में स्थायी शांति की स्थापना क्या संभव ही नहीं है? दुनिया की बड़ी ताकतों को क्या संभावित तबाही की तस्वीर नज़र नहीं आ रही है?

बेशक टकराव जारी है, लेकिन अभी तक के घटनाक्रम से सबक लेकर दोनों पक्ष,  भविष्य में बहुत कुछ सकारात्मक भी कर सकते हैं, जिसका हमें अनुमान नहीं है. लड़ाई के भयावह परिणामों को दोनों पक्ष भी समझते हैं. इसे भय का संतुलन भी कह सकते हैं.

Wednesday, October 16, 2024

असमंजस और अशांति के दौर में एससीओ का इस्लामाबाद सम्मेलन


पाकिस्तान में मंगलवार से शुरू हुई शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक भारत-पाकिस्तान रिश्तों के लिहाज से भले ही महत्वपूर्ण नहीं हो, पर क्षेत्रीय सहयोग, ग्लोबल-साउथ और खासतौर से चीन के साथ भारत के रिश्तों े लिहाज से महत्वपूर्ण है.  

यह बैठक पाकिस्तानी-प्रशासन के लिए भी बड़ी चुनौती बन गई है. हाल की आतंकवादी हिंसा और राजनीतिक-अशांति का साया सम्मेलन पर मंडरा रहा है. अंदेशा है कि इस दौरान कोई अनहोनी न हो जाए.

शिखर सम्मेलन से पहले के कुछ हफ्तों में, पाकिस्तान सरकार ने अपने विरोधियों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई की है. एक जातीय-राष्ट्रवादी आंदोलन पर प्रतिबंध लगा दिया है और राजधानी में विरोध प्रदर्शन को प्रतिबंधित कर दिया गया है.

राजधानी को वस्तुतः शेष देश से अलग कर दिया गया है और सड़कों पर सेना तैनात कर दी गई है. जेल में कैद इमरान खान के सैकड़ों समर्थकों को भी गिरफ्तार किया गया है, जिन्होंने इस महीने इस्लामाबाद में मार्च करने का प्रयास किया था.

पिछले सप्ताह कराची में चीनी इंजीनियरों के काफिले पर हुए घातक हमले ने भी देश में सुरक्षा संबंधी आशंकाओं को बढ़ा दिया है, जहाँ अलगाववादी समूह लगातार चीनी नागरिकों को निशाना बनाते रहे हैं.

जयशंकर की उपस्थिति

एससीओ की कौंसिल ऑफ हैड ऑफ गवर्नमेंट्स (सीएचजी) की इस बैठक में सात देशों के प्रधानमंत्री और ईरान के प्रथम उपराष्ट्रपति भाग लेंगे. भारत का प्रतिनिधित्व विदेशमंत्री एस जयशंकर करेंगे.

Thursday, October 10, 2024

भारत-पाकिस्तान रिश्ते और क्षेत्रीय-सहयोग के स्वप्न


इस महीने 15-16 को इस्लामाबाद में हो रहे शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए विदेशमंत्री एस जयशंकर पाकिस्तान जा रहे हैं. उनकी यात्रा को लेकर अटकलें लगाई जा रही हैं कि क्या इसे दोनों देशों के संबंध-सुधार की शुरुआत माना जाए?  

हालांकि विदेश मंत्रालय और स्वयं विदेशमंत्री ने स्पष्ट किया है कि यह यात्रा द्विपक्षीय-संबंधों को लेकर नहीं है, फिर भी सम्मेलन से बाहर, खासतौर से मीडिया में, रिश्तों को लेकर चर्चा जरूर होगी. पर यह चर्चा आधिकारिक रूप से नहीं होगी, सम्मेलन के हाशिए पर भी नहीं.

दूसरी तरफ सम्मेलन में भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में भारत-पाकिस्तान प्रसंग प्रतीकों के माध्यम से उठेंगे. आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई, क्षेत्रीय-सहयोग और साइबर-सुरक्षा जैसे मसलों पर चर्चा के दौरान ऐसी बातें हों, तो हैरत नहीं होगी.

Wednesday, October 2, 2024

इसराइल के तूफानी हमलों का निशाना कौन है?


पहले हमास के प्रमुख इस्माइल हानिये और अब हिज़्बुल्ला के प्रमुख हसन नसरल्ला की मौत के बाद सवाल है कि क्या इससे पश्चिम एशिया में इसराइल की प्रतिरोधी-शक्तियाँ घबराकर हथियार डाल देंगी? हो सकता है कि कुछ देर के लिए उनकी गतिविधियाँ धीमी पड़ जाएं, पर यह इसराइल की निर्णायक जीत नहीं है.

किसी एक की जीत देखने की कोशिश करनी भी नहीं चाहिए, बल्कि समझदारी के साथ रास्ता निकालना चाहिए. यह युद्ध है, जिसमें इसराइल की रणनीति है प्रतिस्पर्धियों के मनोबल को तोड़ना और दीर्घकालीन उद्देश्य है ईरानी-चुनौती को कुंठित करना.

मौके की नज़ाकत को देखते हुए अब ईरान के रुख पर भी नज़र रखनी होगी. काफी दारोमदार उसपर है, क्योंकि शेष इस्लामिक देशों के हौसले आज वैसे नहीं हैं, जैसे सत्तर साल पहले हुआ करते थे. ईरान ने मंगलवार की रात इसराइल के ऊपर दो सौ से ज्यादा बैलिस्टिक मिसाइलें दागकर शुरुआत कर दी है, जिनमें से ज्यादातर को इसराइल ने बीच में ही रोक लिया.

Wednesday, September 25, 2024

अमेरिका-दौरा और वृहत्तर-भूमिका में क्वॉड


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका-यात्रा भले ही ऐसे वक्त में हुई है, जब राष्ट्रपति जो बाइडेन का कार्यकाल पूरा हो रहा है, फिर भी अमेरिका के साथ द्विपक्षीय-रिश्ते हों या क्वॉड का शिखर सम्मेलन दोनों मामलों में सकारात्मक प्रगति हुई है. ‘बदलते और उभरते भारत पर केंद्रित इस दौरे की थीम भी सार्थक हुई.  

क्वॉड शिखर-सम्मेलन मूलतः चीन-केंद्रित था, पर, भारत इसे केवल चीन-केंद्रित मानने से बचता है. इसबार के सम्मेलन में समूह ने प्रत्यक्षतः भारतीय-दृष्टिकोण को अंगीकार कर लिया. इसे एशियाई-नेटो के बजाय, हिंद-प्रशांत क्षेत्र के साझा-हितों के रक्षक के रूप में स्वीकार कर लिया गया है. बावजूद इसके चीन का नाम लिए बगैर, जो कहना था, कह दिया गया.

वृहत्तर-सहयोग

हिंद-प्रशांत देशों के बीच इंफ्रास्ट्रक्चर, सेमी कंडक्टर, स्वास्थ्य और प्राकृतिक-आपदाओं के बरक्स राहत-सहयोग जैसे मसलों को इसबार के सम्मेलन में रेखांकित किया गया. संयुक्त राष्ट्र की संरचना में सुधार और सुरक्षा परिषद की स्थायी सीट को लेकर भी इस सम्मेलन में सहमति व्यक्त की गई.

इस अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि क्वॉड किसी के खिलाफ नहीं है बल्कि यह नियमों पर आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था और संप्रभुता के पक्ष में है. स्वतंत्र, खुला, समावेशी और समृद्ध हिंद-प्रशांत हमारी प्राथमिकता है.

इनके साथ-साथ संरा समिट ऑफ फ्यूचर में ग्लोबल साउथ के संदर्भ में  भारतीय पहल को समझने की जरूरत है. यहाँ भी मुकाबला चीन से है. इस सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी ने भविष्य के खतरों की ओर दुनिया का ध्यान खींचा. साथ ही उन्होंने विश्वमंच को आइना भी दिखाया, जिसने सुरक्षा-परिषद की स्थायी सीट से भारत को वंचित कर रखा है.

Wednesday, September 18, 2024

विश्व-शांति के प्रयास और भारत की बढ़ती भूमिका


इस हफ्ते भारतीय विदेश-नीति का फोकस अमेरिका पर रहेगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका की यात्रा पर जा रहे हैं. पिछले साल जून की उनकी अमेरिका-यात्रा ने राजनीतिक और राजनयिक दोनों मोर्चों पर कुछ बड़ी परिघटनाओं को जन्म दिया था. इसबार हालांकि भारत-अमेरिका रिश्ते पूरी तरह विमर्श के केंद्र में नहीं होंगे, पर होंगे जरूर. साथ ही भारत और शेष-विश्व के रिश्तों पर रोशनी भी पड़ेगी.

हाल में बांग्लादेश में हुए सत्ता-परिवर्तन के बाद इस क्षेत्र में अमेरिका की भूमिका की ओर अभी तक हमारा ध्यान गया नहीं है. अमेरिकी विदेश विभाग में दक्षिण और मध्य एशिया के लिए सहायक विदेशमंत्री डोनाल्ड लू भारत का दौरा पूरा करके सोमवार तक बांग्लादेश में थे.

बताया जा रहा है कि उनकी इस यात्रा का उद्देश्य बांग्लादेश के ताजा हालात की समीक्षा करने के अलावा भारत और बांग्लादेश के बीच के मसलों को समझना भी है. शायद कड़वाहट को दूर करना भी. इस दौरान वे भारत-अमेरिका टू प्लस टू अंतर-सत्र वार्ता में भी शामिल हुए. दोनों देशों के बीच छठी वार्षिक टू प्लस टू वार्ता इस साल किसी वक्त वॉशिंगटन में होनी है.

टू प्लस टू

दोनों देशों के बीच 2018 से शुरू हुई ‘टू प्लस टू’ स्तर की वार्ता ने कई स्तर पर रिश्तों को पुष्ट किया है. पिछली वार्ता नवंबर में हुई थी, जिसमें भारत के विदेशमंत्री एस जयशंकर और रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और अमेरिका के विदेशमंत्री एंटनी ब्लिंकन व रक्षामंत्री लॉयड ऑस्टिन ने भाग लिया.

Wednesday, September 11, 2024

भारत की भू-राजनीतिक भूमिका और पाकिस्तान से रिश्ते


विदेश-नीति के मोर्चे पर एकसाथ कई बातें हो रही हैं, जिनमें भारत-पाकिस्तान रिश्तों को लेकर शुरू हुई सुगबुगाहट शामिल है. अगले महीने पाकिस्तान में होने वाली शंघाई सहयोग संगठन की शिखर बैठक में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आमंत्रित किया गया है. सवाल है कि क्या मोदी, पाकिस्तान जाएंगे?

उनका जाना और नहीं जाना, दोनों बातें दोनों देशों के रिश्तों के लिहाज से महत्वपूर्ण होंगी. उनपर बात जरूर होनी चाहिए, पर उसके पहले वैश्विक-राजनीति में भारत की बढ़ती भूमिका से जुड़ी कुछ बातों पर रोशनी डालने की जरूरत भी है.

पिछले दिनों पीएम मोदी की यूक्रेन-यात्रा के बाद संभावनाएं बढ़ी हैं कि रूस और यूक्रेन के बीच बातचीत में भारत की भूमिका हो सकती है. अब खबर है कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ब्रिक्स के एनएसए सम्मेलन में भाग लेने के लिए रूस जा रहे हैं. 10-12 सितंबर को सेंट पीटर्सबर्ग में हो रहा, यह सम्मेलन प्रकारांतर से उसी उद्देश्य से आयोजित किया जा रहा है।

इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी ने शनिवार को कहा कि भारत और चीन जैसे देश यूक्रेन के संघर्ष को सुलझाने में भूमिका निभा सकते हैं. उसके एक दिन पहले रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भारत जैसे दोस्तों की तारीफ की थी, जो मौजूदा संघर्ष का हल निकालना चाहते हैं.

व्लादीवोस्तक में ईस्टर्न इकोनॉमिक फोरम में एक पैनल चर्चा के दौरान पुतिन ने कहा कि भारत, ब्राजील और चीन संघर्ष का हल निकालने में भूमिका निभा सकते हैं. उनकी यह टिप्पणी उन संभावित देशों के बारे में पूछे गए प्रश्न के उत्तर में आई जो रूस और यूक्रेन के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभा सकते हैं.

Wednesday, September 4, 2024

तालिबानी कानून और वैश्विक-मान्यता से जुड़ी राजनीति


अफगानिस्तान में तालिबान ने 19 अगस्त को अपनी विजय की तीसरी और स्वतंत्रता की 105वीं वर्षगाँठ मनाई. दोनों समारोहों की तुलना में ज्यादा सुर्खियाँ एक तीसरी खबर को मिलीं.

तालिबान ने 21 अगस्त को 35 अनुच्छेदों वाले एक नए कानून की घोषणा की  है, जिसमें शरिया की उनकी कठोर व्याख्या के आधार पर जीवन से जुड़े कार्य-व्यवहार और जीवनशैली पर प्रतिबंधों का विवरण है. नए क़ानून को सर्वोच्च नेता हिबातुल्ला अखुंदज़ादा ने मंज़ूरी दी है, जिसे लागू करने की ज़िम्मेदारी नैतिकता मंत्रालय की है.

दुनियाभर में आलोचना के बावजूद अफगानिस्तान के शासक इन नियमों को उचित बता रहे हैं. तालिबान सरकार के मुख्य प्रवक्ता जबीहुल्ला मुजाहिद ने एक बयान में उन लोगों के अहंकारके खिलाफ चेतावनी दी है, जो इस्लामी शरिया से परिचित नहीं हैं, फिर भी आपत्ति व्यक्त कर रहे हैं.

वे मानते हैं कि बिना समझ के इन कानूनों को अस्वीकार करना, अहंकार है. दूसरी तरफ मुस्लिम देशों के संगठन ओआईसी तक का विचार है कि अफगानिस्तान में मानवाधिकारों और स्त्रियों के अधिकारों की रक्षा की जरूरत है.

Wednesday, July 24, 2024

बांग्लादेश का छात्र-आंदोलन यानी खतरे की घंटी


बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी नौकरियों के आरक्षण में भारी कटौती करके देश में लगी हिंसा की आग को काफी हद तक शांत कर दिया है. अलबत्ता इस दौरान बांग्लादेश की विसंगतियाँ भी उजागर हुई हैं. इस अंदेशे की पुष्टि भी कि देश में ऐसी ताकतें हैं, जो किसी भी वक्त सक्रिय हो सकती हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने कोटा बहाली पर हाईकोर्ट के 5 जून के आदेश को खारिज करते हुए आरक्षण को पूरी तरह खत्म जरूर नहीं किया है, पर उसे 54 फीसदी से घटाकर केवल 7 फीसदी कर दिया है. अदालत ने कहा है कि सरकारी नौकरियों में 93 फीसदी भर्ती योग्यता के आधार पर होगी.

शेष सात में से पाँच प्रतिशत मुक्ति-योद्धा कोटा, एक प्रतिशत अल्पसंख्यक कोटा और एक प्रतिशत विकलांगता-तृतीय लिंग कोटा होगा. सरकार चाहे तो इस कोटा को बढ़ा या घटा सकती है.

अदालत में छात्रों का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील शाह मंजरुल हक़ ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 104 के अनुसार, इस कोटा व्यवस्था के लिए अंतिम समाधान दे दिया है. सुनवाई के दौरान सरकारी वकील ने भी हाईकोर्ट के फ़ैसले को रद्द करने की माँग की थी.

Wednesday, July 10, 2024

ईरान के राष्ट्रपति पेज़ेश्कियान के सामने ‘सुधार’ से जुड़ी चुनौतियाँ


राष्ट्रपति-चुनाव में सुधारवादी और मध्यमार्गी नेता मसूद पेज़ेश्कियान की विजय के साथ ही सवाल पूछे जाने लगे हैं कि क्या अपने देश की विदेश और सामाजिक-नीतियों में वे बड़े बदलाव कर पाएंगे? अधिकतर पर्यवेक्षक मानते हैं कि फौरन किसी बड़े बदलाव की उम्मीद उनसे नहीं करनी चाहिए, पर यह भी मानते हैं कि जनादेश बदलाव के लिए है. सवाल है कि कैसा बदलाव?

पेज़ेश्कियान ने अपने चुनाव-प्रचार के दौरान पश्चिमी देशों के साथ रचनात्मक-संवाद की बातें कई बार कही हैं. माना जा रहा है कि 2015 में हुए और 2018 में टूटे नाभिकीय-समझौते पर वे देर-सबेर फिर से बातचीत शुरू कर सकते हैं. संभवतः जावेद ज़रीफ उनके विदेशमंत्री बनेंगे, जो अतीत में इस समझौते के मुख्य-वार्ताकार रहे हैं.

सच यह भी है कि ईरान में बुनियादी फैसले राष्ट्रपति के स्तर पर नहीं होते. पेज़ेश्कियान ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान बदलाव की बातें ज़रूर की हैं, पर आमूल बदलाव का कोई वायदा नहीं किया है. वे जो भी करेंगे, व्यवस्था के भीतर रहकर ही करेंगे. बदलाव आएगा भी, तो व्यवस्था के भीतर से और शायद धीरे-धीरे.  

सुधारवाद की परीक्षा

देश में सुधारवादियों का भी जनाधार है और व्यवस्था इतनी कठोर नहीं है कि उनकी अनदेखी करे. पेज़ेश्कियान भी सावधानी से कदम रखेंगे. वे मध्यमार्गी हैं. उनकी तुलना में मीर हुसेन मौसवी और पूर्व राष्ट्रपति अली अकबर हाशमी रफसंजानी की बेटी फाज़ेह हाशमी रफसंजानी ज्यादा बड़े स्तर पर सुधारों की माँग कर रहे हैं.   

Wednesday, July 3, 2024

तिब्बत-ताइवान पर भारतीय-नीति में दृढ़ता या असमंजस?

चीनी साम्राज्यवाद

हाल में अमेरिकी सांसदों के एक शिष्टमंडल ने तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा से
  धर्मशाला स्थित मुख्यालय में जाकर मुलाकात की थी, जिसे लेकर चीन सरकार ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है.

अमेरिका की ओर से तिब्बत को लेकर ऐसी गतिविधियाँ पहले भी चलती रही हैं, पर भारत में पहली बार इतने बड़े स्तर पर ऐसा संभव हुआ है. इससे भारत की तिब्बत-नीति में बदलाव के संकेत भी देखे जा रहे हैं, पर ऐसा भी लगता है कि किसी स्तर पर असमंजस भी है.

उदाहरण के लिए 2016 में सरकार ने चीनी असंतुष्टों के एक सम्मेलन की अनुमति दी, जिसमें दुनिया भर से वीगुर और तिब्बती नेताओं को आमंत्रित किया गया, लेकिन अंतिम समय में उनके वीज़ा रद्द कर दिए गए.

इसके बाद 2019 में दलाई लामा के भारत आगमन की 60वीं वर्षगाँठ के मौके पर कई कार्यक्रमों की योजना बनाई गई, पर एक सरकारी-परिपत्र के मार्फत अधिकारियों से कहा गया कि वे इसमें भाग न लें. दलाई लामा की राजघाट यात्रा सहित अन्य कार्यक्रमों को रद्द करना पड़ा.

इसके बाद 2020 में भाजपा नेता राम माधव ने भारतीय सेना के तहत प्रशिक्षित तिब्बती स्पेशल फ्रंटियर फोर्स के एक सैनिक के अंतिम संस्कार में सार्वजनिक रूप से भाग लिया, लेकिन बाद में उन्होंने उससे जुड़े अपने ट्वीट को डिलीट कर दिया.

Wednesday, June 26, 2024

चीन में मुसलमानों के दमन पर वैश्विक चुप्पी

पश्चिमी युन्नान प्रांत की ग्रैंड मस्जिद शादियान के गुंबद और मीनारें गिराकर उसे चीनी शैली की इमारत बना दिया गया। चित्र में ऊपर पुरानी मस्जिद और नीचे उसकी बदली तस्वीर। चित्र द गार्डियन से साभार

चीन में मुसलमानों की प्रताड़ना से जुड़े विवरण पहले भी आते रहे हैं, पर हाल में इस आशय की खबरों की संख्या काफी बढ़ी हैं. इसके बावजूद कुछ पश्चिमी संगठनों को छोड़ दें, तो मुस्लिम देशों के संगठन (ओआईसी) या ऐसे ही किसी दूसरे बड़े संगठन की ओर से विरोध के स्वर सुनाई नहीं पड़ते हैं.

मुसलमानों को सुधार-गृहों के नाम पर बने डिटेंशन-सेंटरों के नाम पर वस्तुतः जेलों में रखा जा रहा है. इनमें लाखों व्यक्तियों को न्यायिक-प्रक्रिया के बगैर, सुधार के नाम पर कैद किया जा रहा है. शिनजियांग प्रांत में 600 से ज्यादा ऐसे गाँवों के नाम बदल दिए गए हैं, जिनसे धार्मिक-पहचान प्रकट होती थी. मस्जिदों के गुंबदों और मीनारों को हटाकर उन्हें चीनी शैली की इमारतों में बदला जा रहा है.

पहले माना जाता था कि यह दमन केवल शिनजियांग प्रांत के वीगुर समुदाय तक सीमित है, पर हाल में आई खबरें बता रही हैं कि यह दमन-चक्र देश भर में चल रहा है. पिछले एक दशक से ओआईसी ने चीन में मुसलमानों के मसले पर पूरी तरह मौन साध रखा है. मुस्लिम-हितों के लिए मुखर रहने वाला पाकिस्तान भी इस मामले में कुछ नहीं बोलता.

इस गतिविधि ने खासतौर से 2015 के बाद से जोर पकड़ा है, जब राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने धर्मों के चीनीकरण (सिनिसाइज़ेशन) का आह्वान किया था. चीनीकरण के साथ फोर एंटर अभियान भी चल रहा है, जिसका मतलब है कि हरेक मस्जिद में चार बातों को अहमियत दी जाएगी.

Wednesday, June 19, 2024

भारत-पाक संबंध-सुधार ‘असंभव’ नहीं, तो ‘आसान’ भी नहीं


 विदेशमंत्री एस जयशंकर ने पिछले मंगलवार को अपना पदभार ग्रहण करते हुए कहा था कि हमारा ध्यान चीन के साथ सीमा-विवाद और पाकिस्तान के साथ बरसों से चले आ रहे सीमा-पार आतंकवाद की समस्याओं को सुलझाने पर रहेगा.

उन्होंने कहा कि दुनिया ने देख लिया कि भारत में अब काफी राजनीतिक स्थिरता है. जहाँ तक चीन और पाकिस्तान का सवाल है, हमारे रिश्ते एक अलग सतह पर हैं और उनसे जुड़ी समस्याएं भी दूसरी तरह की हैं. 15 जून को गलवान की घटना के चार साल पूरे हो गए हैं, पर सीमा-वार्ता जहाँ की तहाँ है.

आतंकी हमले

उधर हाल में एक के बाद एक हुए आतंकी हमलों की रोशनी में लगता नहीं कि भारत सरकार, पाकिस्तान के साथ बातचीत का कोई कदम उठाएगी. माना जा रहा है कि इन हमलों के मार्फत पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने संदेश दिया है कि हम भारत को परेशान करने की स्थिति में अब भी हैं.

हाल में जम्मू-कश्मीर में हुए चुनाव में इंजीनियर रशीद की जीत से भी वे उत्साहित हैंउन्हें लगता है कि कश्मीर में हालात पर काबू पाने में भारत की सफलता के बावजूद अलगाववादी मनोकामनाएं जीवित हैं.

मोदी सरकार

पाकिस्तानी प्रतिष्ठान को यह भी लगता है कि मोदी सरकार अब राजनीतिक रूप से उतनी ताकतवर नहीं है, जितनी पहले थी, इसलिए वह दबाव में आ जाएगी. उनकी यह गलतफहमी दूर होने में कुछ समय लगेगा. वे नहीं देख पा रहे हैं कि भारत ने 2016 में माइनस पाकिस्तान नीति पर चलने का जो फैसला किया था, उसे फिलहाल बदलने की संभावना नहीं है.  

हाल में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री की चीन यात्रा की समाप्ति पर जारी संयुक्त वक्तव्य में सभी लंबित विवादों के समाधान की आवश्यकता तथा किसी भी एकतरफा कार्रवाई के विरोध को रेखांकितकरके पाकिस्तान और तीन ने अनुच्छेद-370 की वापसी के विरोध पर अड़े रहने की रवैया अपनाया है.

इन बातों से लगता है कि पाकिस्तानी सेना किसी भी बातचीत के रास्ते में रोड़े बिछाएगी. अब देखना होगा कि अगले महीने 3-4 जुलाई को शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन के हाशिए पर दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों की भेंट हो भी पाती है या नहीं.

Thursday, June 13, 2024

मोदी के शपथ-ग्रहण समारोह से जुड़े विदेश-नीति के संदेश


नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बनी तीसरी सरकार के शपथ-ग्रहण समारोह में पिछली दो बार के साथ एक प्रकार की निरंतरता रही, जिसमें उनकी सरकार की विदेश-नीति के सूत्र छिपे हैं. इसमें देश की आंतरिक-नीतियों के साथ विदेश और रक्षा-नीति के संदेश भी पढ़े जा सकते हैं.

रविवार को राष्ट्रपति भवन के प्रांगण में हुए शपथ-ग्रहण समारोह में सात पड़ोसी देशों के नेता शामिल हुए थे. भारत सरकार ने पड़ोसी पाकिस्तान, चीन, अफगानिस्तान और म्यांमार को समारोह में शामिल होने का न्योता नहीं दिया.

 

अफगानिस्तान के शासनाध्यक्ष का इस समारोह में नहीं होना समझ में आता है, क्योंकि अभी तक वहाँ के शासन को वैश्विक-मान्यता नहीं मिली है, पर पाकिस्तान को न बुलाए जाने का विशेष मतलब है.

बिमस्टेक की भूमिका

2014 में सरकार ने दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) के सभी नेताओं को आमंत्रित किया था, जिसमें अफगानिस्तान और पाकिस्तान भी शामिल थे, पर 2019 के समारोह में भारतीय विदेश-नीति की दिशा कुछ पूर्व की ओर मुड़ गई. उसमें पाकिस्तान को नहीं बुलाया गया. दूसरी तरफ म्यांमार और थाईलैंड सहित बंगाल की खाड़ी बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग पहल (बिमस्टेक) के नेताओं ने समारोह में भाग लिया था.

Wednesday, June 5, 2024

हमारा लोकतंत्र और पश्चिमी-मनोकामनाएं

न्यूयॉर्क टाइम्स में भारत का मज़ाक उड़ाता कार्टून

यह आलेख 4 जून, 2024 को चुनाव-परिणाम आने के ठीक पहले प्रकाशित हुआ था।

लोकसभा चुनाव के परिणाम आज आने वाले हैं, पर उसके पहले एग्ज़िट पोल के परिणाम आ चुके हैं, जिन्हें लेकर देश के अलावा विदेश में भी प्रतिक्रिया हुई है. रायटर्स की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय एग्ज़िट-पोलों के परिणाम असमान (पैची) होते हैं.

भारतीय चुनाव के परिणामों को लेकर पश्चिमी देशों में खासी दिलचस्पी है. अमेरिका और यूरोप में भारतीय-लोकतंत्र को लेकर पहले से कड़वाहट है, पर पिछले दस साल में यह कड़वाहट बढ़ी है.

एग्ज़िट पोल से अनुमान लगता है कि देश में लगातार तीसरी बार नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनने जा रही है. अंतिम परिणाम क्या होंगे, यह आज (4 जून को) स्पष्ट होगा, पर भारतीय लोकतंत्र को लेकर पश्चिमी देशों में जो सवाल खड़े किए जा रहे हैं, उनपर विचार करने का मौका आ रहा है.

पश्चिमी-चिंताएं 

2014 और 2019 में भी लोकसभा चुनावों के ठीक पहले पश्चिम के मुख्यधारा-मीडिया ने चिंता व्यक्त की थी. साफ है कि उन्हें भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र मोदी नापसंद हैं, फिर भी उन्हें पसंद करना पड़ रहा है.

जैसे-जैसे भारत का वैश्विक-प्रभाव बढ़ेगा, पश्चिमी-प्रतिक्रिया भी बढ़ेगी. लोकतांत्रिक-रेटिंग करने वाली संस्थाएं भारत के रैंक को घटा रही हैं, विश्वविद्यालयों में भारतीय-लोकतंत्र को सेमिनार हो रहे हैं और भारतीय-मूल के अकादमीशियन चिंता-व्यक्त करते शोध-प्रबंध लिख रहे हैं.

Wednesday, May 29, 2024

राफा पर इसराइली हमले और बढ़ती वैश्विक-हताशा


संयुक्त राष्ट्र के अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) ने शुक्रवार 24 मई को इसराइल को आदेश दिया है कि वह दक्षिणी गज़ा के राफा शहर पर चल रही कार्रवाई को फौरन रोक दे और वहाँ से अपनी सेना को वापस बुलाए.

यह आदेश दक्षिण अफ्रीका की उस अपील के आधार पर दिया गया है, जिसमें इसराइल पर फलस्तीनियों के नरसंहार का आरोप लगाया गया था. बावजूद इस आदेश के, लगता नहीं कि इसराइली कार्रवाई रुकेगी. इस आदेश के बाद 48 घंटों में इसराइली विमानों ने राफा पर 60 से ज्यादा हमले किए हैं.

उधर पिछले रविवार को फलस्तीनी संगठन हमास ने तेल अवीव पर एक बड़ा रॉकेट हमला करके यह बताया है कि साढ़े सात महीने की इसराइली कार्रवाई के बावजूद उसके हौसले पस्त नहीं हुए हैं. दोनों पक्षों को समझौते की मेज पर लाने में किसी किस्म की कामयाबी नहीं मिल पा रही है.

आईसीजे के प्रति इसराइली हुक्म-उदूली की वजह उसकी फौजी ताकत ही नहीं है, बल्कि उसके पीछे खड़ा अमेरिका भी है, जो उसे रोक नहीं रहा है. दूसरी तरफ मसले के समाधान से जुड़ी जटिलताएं भी आड़े आ रही हैं.

इसराइल के वॉर कैबिनेट मिनिस्टर बेनी गैंट्ज़ ने कहा है कि फैसला सुनाने के बाद आईसीजे के जज तो अपने घर जाकर चैन की नींद सोएंगे, जबकि हमास द्वारा बंधक बनाए गए 125 इसराइली अब भी यातना झेलने को मजबूर हैं. राफा में जारी हमले को तत्काल रोकने का सवाल ही नहीं उठता. जब तक हम बंधकों को छुड़ा कर वापस नहीं ले आते तब तक यह युद्ध जारी रहेगा.

Wednesday, May 15, 2024

चीन का चांग’ई-6 और तेजी पकड़ती स्पेस-रेस

चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव

चीन का नवीनतम चंद्रमा-मिशन चांग’ई-6 तीन कारणों से महत्वपूर्ण है. एक तो यह चंद्रमा की अंधेरी सतह यानी दक्षिणी ध्रुव के एटकेन बेसिन से पत्थरों और मिट्टी के दो किलो नमूने जमा करके धरती पर लाएगा. किसी भी देश ने चंद्रमा के इस सुदूर इलाके से नमूने एकत्र नहीं किए हैं. वस्तुतः चांगई मिशन चीन के महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष-अभियान का एक शुरूआती कदम है.

इस अभियान में पाकिस्तान का एक नन्हा सा उपग्रह भी शामिल है, जो वैज्ञानिक-दृष्टि से भले ही मामूली हो, पर उससे पाकिस्तानी अंतरिक्ष-विज्ञान पर रोशनी पड़ती है. तीसरे यह अमेरिका और चीन के बीच एक नई अंतरिक्ष-स्पर्धा की शुरुआत है. 

चीनी अंतरिक्ष एजेंसी ने चांग’ई-6 रोबोटिक लूनर एक्सप्लोरेशन मिशन को वेनचांग अंतरिक्ष प्रक्षेपण केंद्र से शुक्रवार 3 मई की सुबह लॉन्च किया. यह करीब 53 दिन तक काम करेगा. चांग’ई-6 में पाकिस्तान के अलावा फ्रांस, इटली और स्वीडन के भी उपकरण शामिल हैं. पौराणिक आख्यान में चैंगई को चंद्रमा की देवी माना जाता है.

दक्षिणी ध्रुव

पृथ्वी से चंद्रमा का सुदूर भाग कभी दिखाई नहीं देता है. हम हमेशा चंद्रमा के एक ही तरफ के आधे हिस्से को देख पाते हैं. चांग'ई-6 का लक्ष्य दक्षिणी ध्रुव के एटकेन-बेसिन से नमूने एकत्र करना है. भारत का चंद्रयान-3 भी इसी क्षेत्र के पास उतरा था.

Wednesday, May 1, 2024

मतदाता कर पाएगा ‘डिफिडेंस’ और ‘कॉन्फिडेंस’ का फर्क?


 देस-परदेस

पिछले हफ्ते हैदराबाद के एक कार्यक्रम में विदेशमंत्री एस जयशंकर ने कहा कि 2008 के मुंबई आतंकवादी हमले के बाद तत्कालीन यूपीए सरकार ने कुछ भी नहीं करने का फैसला किया था. यह मान लिया गया कि पाकिस्तान पर हमला करने के मुकाबले हमला नहीं करना सस्ता पड़ेगा.

तत्कालीन सरकार के सुरक्षा सलाहकार ने लिखा है कि हमने इस विषय पर विचार-विमर्श किया और इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि पाकिस्तान पर हमला करने की कीमत ज्यादा होगी. एस जयशंकर के इस बयान को राजनीतिक चश्मे से, खासतौर से लोकसभा-चुनाव के संदर्भ में देखने की जरूरत है.

जयशंकर के शब्दों में भारतीय विदेश-नीति डिफिडेंस (असमंजस) के दौर से निकल करकॉन्फिडेंस (आत्मविश्वास) के दौर में आ गई है. आज हम अमेरिका के सामने पहले की तुलना में बेहतर आत्मविश्वास के साथ बात कर सकते हैं. इस बात को किसी भी दृष्टि से देखे, पर सच यह है कि भारतीय जनता पार्टी ने विदेश-नीति को भी अपने चुनाव-अभियान में अच्छी खासी जगह दी है.