जून 2020 में गलवान-संघर्ष के बाद से भारत और चीन के रिश्तों में काफी कड़वाहट आ गई है। ऐसा लगता है कि भारत ताइवान और तिब्बत के सवाल पर अपनी परंपरागत नीतियों से हट रहा है। हालांकि इस आशय की कोई घोषणा नहीं की गई है, पर इशारों से लगता है कि बदलाव हो रहा है।
भारत में चीन के राजदूत सन वाइडॉन्ग ने शनिवार
को एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस के दौरान उम्मीद जताई कि भारत को 'वन
चाइना' पॉलिसी के प्रति अपने समर्थन को दोहराएगा। वाइडॉन्ग
का ये बयान ऐसे समय आया है जब एक दिन पहले ही भारत ने स्पष्ट किया कि इस नीति पर
समर्थन को दोहराने की कोई ज़रूरत नहीं है।
चीनी-उम्मीद
वाइडॉन्ग ने कहा, मेरा
मानना है कि 'वन चाइना' पॉलिसी
को लेकर भारत के नज़रिए में बदलाव नहीं आया है। हमें उम्मीद है कि भारत 'एक चीन सिद्धांत' के लिए समर्थन दोहरा सकता है। समाचार
एजेंसी पीटीआई के अनुसार वाइडॉन्ग ने पूर्वी लद्दाख में गतिरोध को लेकर कहा कि
दोनों पक्षों को बातचीत जारी रखनी चाहिए।
इससे पहले शुक्रवार को एक मीडिया ब्रीफ़िंग में,
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने 'एक-चीन'
नीति का उल्लेख करने से परहेज़ किया। उन्होंने कहा कि 'प्रासंगिक' नीतियों पर भारत का रुख सबको पता है और
इसे
दोहराने की आवश्यकता नहीं है।
चीन ने दावा किया है कि अमेरिकी प्रतिनिधि सभा
की अध्यक्ष नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा के बाद लगभग 160 देशों
ने वन-चाइना पॉलिसी के लिए अपना समर्थन दिया है। चीन, ताइवान
को अपना अलग प्रांत मानता है। अतीत में भारत ने ‘वन चाइना पॉलिसी’ का
समर्थन किया था, लेकिन पिछले एक दशक से ज्यादा समय से
सार्वजनिक रूप से या द्विपक्षीय दस्तावेज़ों में इस रुख़ को दोहराया नहीं है।
17 साल पहले
आखिरी बार भारत ने ‘वन चाइना पॉलिसी’ पर करीब 17 साल पहले 2005 में बात की थी जब अपनी भारत यात्रा के दौरान, तत्कालीन चीनी प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ ने तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम, भैरों सिंह शेखावत और संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात की थी। उस समय भारतीय पक्ष ने तब स्वीकार किया था कि उन्होंने तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र को चीन जनवादी गणराज्य के क्षेत्र के हिस्से के रूप में मान्यता दी और तिब्बतियों को भारत में चीन विरोधी राजनीतिक गतिविधियों में शामिल होने पर प्रतिबंध लगा दिया।