" हम भारत के लोग, ...समस्त नागरिकों को :सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए...इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।"
सलमान खान को सज़ा सुनाए जाने से पहले बड़ी संख्या में लोगों का कहना था हमें अपनी न्याय-व्यवस्था पर पूरा भरोसा है। सज़ा घोषित होते ही उन्होंने कहा, हमारा विश्वास सही साबित हुआ। पर फौरन ज़मानत मिलते ही लोगों का विश्वास डोल गया। फेसबुक पर पनीले आदर्शों से प्रेरित लम्बी बातें फेंकने का सिलसिला शुरू हो गया। निष्कर्ष है कि गरीब के मुकाबले अमीर की जीत होती है। क्या इसे साबित करने की जरूरत है? न्याय-व्यवस्था से गहराई से वाकिफ सलमान के वकीलों ने अपनी योजना तैयार कर रखी थी। इस हुनर के कारण ही वे बड़े वकील हैं, जिसकी लम्बी फीस उन्हें मिलती है। व्यवस्था में जो उपचार सम्भव था, उन्होंने उसे हासिल किया। इसमें गलत क्या किया?