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Tuesday, September 7, 2010

खेल के नाम पर धोखाधड़ी

एक के बाद एक खिलाड़ियों के नाम डोप टेस्ट में सामने आ रहे हैं। इतनी बड़ी संख्या मे भारतीय खिलाड़ी पहली बार डोप टेस्ट में फँसे हैं। इसकी एक वजह नेशनल एंटी डोपिंग एजेंसी की चौकसी भी है। पर खिलाड़ियों को क्या हो गया? वे क्यों इस जाल में फँसे?

दिल्ली के कॉमनवैल्थ खेल पहले से ही फज़ीहत में थे। ऊपर से ऐसा हो गया। इसकी तमाम वजहों में से एक वजह वह पौष्टिक आहार है, जो पुराने मानकों पर बना है। पिछले साल दिसम्बर के बाद मानक बदले हैं। खिलाड़ियों को मिलने वाले आहार को उसी हिसाब से बदल जाना चाहिए। खिलाड़ियों को भी पता होना चाहिए कि कौन से तत्वों पर रोक लगाई गई है। अभी ये नाडा के टेस्ट हैं। कल को कॉमनवैल्थ खेलों के टेस्ट होंगे तब न जाने खिलाड़ी पकड़ में आएंगे।

खेल के नाम पर दूसरा कलंक है क्रिकेट की स्पॉट या मैच फिक्सिंग। इसमें पाकिस्तानी खिलाड़ी फँसे हैं। एक पाकिस्तानी खिलाड़ी ने दावा किया कि पूरी टीम फिक्सिंग में शामिल है। यासिर हमीद ने हालांकि अपने इस बयान को बाद में वापिस ले लिया, पर बात संगीन है। शुरू में तो पाकिस्तानी सरकार और पाकिस्तानी बोर्ड अपने खिलाड़ियों का समर्थन कर रहा था, पर लगता है उन्हें गम्भीरता समझ में आ गई है। हालांकि अभी इस मामले में भारतीय नाम सामने नहीं आए हैं, पर कोई गारंटी नहीं कि कल को नहीं आएंगे।

बेन जॉनसन जैसे खिलाड़ी को अपना सम्मान खोना पड़ा
पैसे के लिए जिस कदर व्यक्ति अपने को गिरा रहा है उससे निराशा पैदा होती है। अजब पागलपन पैदा हो गया है। क्या हमारी समझ विकृत है? क्या यह नई उपभोक्तावादी संस्कृति की देन है? जिन खिलाड़ियों को लोग अपना रोल मॉडल बना रहे थे, वे इतने घटिया लोग हैं। यह क्यों है? क्या किसी के पास जवाब है?


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