Saturday, February 28, 2015

भूमि अधिग्रहण का अखाड़ा और राजनीति का पहाड़ा

मोदी सरकार के लिए भूमि अधिग्रहण कानून संकट पैदा करने वाला है। शायद सरकार ने इसके जोखिमों के बारे में विचार नहीं किया। इसके इर्द-गिर्द भाजपा विरोधी आंदोलन खड़ा हो रहा है जिससे केंद्र सरकार पर तो खतरा पैदा नहीं होगा, पर राजनीतिक रूप से उसे अलोकप्रिय बना सकता है। दूसरी ओर यह कानून हमारे तमाम अंतर्विरोधों को खोलेगा और विरोधी आंदोलन की राजनीति चलाने वालों की नींद भी हराम करेगा। इतना कड़ा कानून बनाने के बाद कांग्रेस के सामने भी इससे अपना पिंड छुड़ाने का खतरा पैदा होगा।

क्या सरकार को किसी की व्यक्तिगत सम्पत्ति पर कब्जा करने का अधिकार होना चाहिए? क्या राजनीतिक कारणों से राष्ट्रीय महत्व के सवालों को उलझाना उचित है? क्या हमारे पास सामाजिक विकास और आर्थिक संवृद्धि के संतुलन का कोई फॉर्मूला नहीं है? देश की एक तिहाई आबादी शहरों में रह रही है और लगभग इतनी ही आबादी शहरों में रहने की योजना बना रही है या वहाँ जाने को मजबूर हो रही है। शहर बसाने के लिए जमीन कहाँ से आएगी? गाँवों में केवल किसान ही नहीं रहते हैं। वहाँ की दो तिहाई से ज्यादा आबादी भूमिहीनों या बेहद छोटी जोत वाले किसानों की है, जिनकी आजीविका केवल अपने ही खेत के सहारे नहीं है। उन्हें काम देने के लिए उनके आसपास आर्थिक गतिविधियों को संचालित करने की जरूरत है। इतने लोगों के लिए उद्योग बनाने के लिए जगह कहाँ है?

Thursday, February 26, 2015

रेल बजट माने जादू का पिटारा

 शेयर बाजार की खबरें हैं कि पिछले दो दिन से रेलवे से जुड़ी कम्पनियों के शेयरों में उछाला देखने को मिल रहा है. ऐसी क्या खुश खबरी हो सकती है जिसे लेकर शेयर बाजार खुश है? क्या निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ने वाली है? क्या रेलमंत्री सामान्य यात्री की सुविधाएं बढ़ा सकते हैं? तमाम खामियों के बावजूद हमारी रेलगाड़ी गरीब आदमी की सवारी है. सिर्फ इसके सहारे वह अपनी गठरी उठाए महानगरों की सड़कों पर ठोकरें खाने के लिए अपना घर छोड़कर निकलता है. किराया बढ़ने का मतलब है उसकी गठरी पर लात लगाना. रेलगाड़ी औद्योगिक गतिविधि भी है. वह बगैर पूँजी के नहीं चलती. मध्य वर्ग की दिलचस्पी अपनी सुविधा में है. सरकार को तमाम लोगों के बारे में सोचना होता है. 

Monday, February 23, 2015

अब होगी मोदी सरकार की अग्निपरीक्षा

बजट सत्र में मोदी सरकार की अग्निपरीक्षा

  • 56 मिनट पहले
पिछले कुछ महीनों से लगातार सफलता के शिखर पर पैर जमाकर खड़ी नरेंद्र मोदी सरकार के सामने सोमवार से शुरू हो रहा संसद का बजट सत्र बड़ी चुनौती साबित होगा.
संसद से सड़क तक की राजनीति, देश के आर्थिक स्वास्थ्य और प्रशासनिक व्यवस्था को लेकर अनेक गंभीर सवालों के जवाब सरकार को देने हैं.
पिछले साल जुलाई में पेश किए गए रेल और आम बजट पिछली सरकार के बजटों की निरंतरता से जुड़े थे.
देखना होगा कि वित्त मंत्री का जोर राजकोषीय घाटे को कम करने पर है या वो सरकारी खर्च बढ़ाकर सामाजिक विकास को बढ़ावा देंगे.

पढ़ें, रिपोर्ट विस्तार से

यह मोदी सरकार के हनीमून की समाप्ति का सत्र होगा.
सत्र के ठीक पहले सरकारी दफ्तरों से महत्वपूर्ण दस्तावेजों की चोरी के मामले ने देश की प्रशासनिक-आर्थिक व्यवस्था को लेकर गम्भीर सवाल खड़े किए हैं. इसकी गूँज इस सत्र में सुनाई पड़ेगी.
संसदीय कर्म के लिहाज से भी यह महत्वपूर्ण और लम्बा सत्र है. दो चरणों में यह 8 मई तक चलेगा.
तब तक संसद के बाहर सम्भवतः कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व परिवर्तन और मोदी सरकार के कामकाज का पहले साल का अंतिम सप्ताह शुरू होगा.

नए भारत की कहानी

मध्यवर्ग की दिलचस्पी आयकर छूट को लेकर होती है. क्या बजट में ऐसी नीतिगत घोषणाएं होंगी, जिनसे इस साल आर्थिक संवृद्धि की गति तेज होगी?

Sunday, February 22, 2015

बहुत कुछ नया होगा अबके बजट में

सोमवार से शुरू होने वाला बजट सत्र मोदी सरकार की सबसे बड़ी परीक्षा साबित होगा। उसके राजनीतिक पहलुओं के साथ-साथ आर्थिक पहलू भी हैं। पिछले साल मई में नई सरकार बनने के एक महीने बाद ही पेश किया गया बजट दरअसल पिछली सरकार के बजट की निरंतरता से जुड़ा था। उसमें बुनियादी तौर पर नया कर पाने की गुंजाइश नहीं थी। इस बार का बजट इस माने में मोदी सरकार का बजट होगा। एक सामान्य नागरिक अपने लिए बजट दो तरह से देखता है। एक उसकी आमदनी में क्या बढ़ोत्तरी हो सकती है और दूसरे उसके खर्चों में कहाँ बचत सम्भव है। इसके अलावा बजट में कुछ नई नीतियों की घोषणा भी होती है। इस बार का बजट बदलते भारत का बजट होगा जो पिछले बजटों से कई मानों में एकदम अलग होगा। इसमें टैक्स रिफॉर्म्स की झलक और केंद्रीय योजनाओं में बदलाव देखने को मिलेगा। एक जमाने में टैक्स बढ़ने या घटने के आधार पर बजट को देखा जाता था। अब शायद वैसा नहीं होगा।
इस बार के बजट में व्यवस्थागत बदलाव देखने को मिलेगा। योजना आयोग की समाप्ति और नीति आयोग की स्थापना का देश की आर्थिक संरचना पर क्या प्रभाव पड़ा इसका पहला प्रदर्शन इस बजट में देखने को मिलेगा। पहली बार केंद्रीय बजट पर राज्यों की भूमिका भी दिखाई पड़ेगी। पिछली बार के बजट से ही केंद्रीय योजनाओं की राशि कम हो गई थी, जो प्रवृत्ति इस बार के बजट में पूरी तरह नजर आएगी। चौदहवें वित्त आयोग की सिफारिशों के अनुरूप अब राज्यों के पास साधन बढ़ रहे हैं। पर केंद्रीय बजट में अनेक योजनाओं पर खर्च कम होंगे। आर्थिक सर्वेक्षण का भी नया रूप इस बार देखने को मिलेगा। नए मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रह्मण्यम ने आर्थिक सर्वेक्षण का रंग-रूप पूरी तरह बदलने की योजना बनाई है। अब सर्वेक्षण के दो खंड होंगे। पहले में अर्थ-व्यवस्था का विवेचन होगा। साथ ही इस बात पर जोर होगा कि किन क्षेत्रों में सुधार की जरूरत है। दूसरा खंड पिछले वर्षों की तरह सामान्य तथ्यों से सम्बद्ध होगा।

Monday, February 16, 2015

दिल्ली को पूर्ण राज्य का बनाना आसान नहीं

दिल्ली विधानसभा के चुनाव में राजनीतिक दल दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने की माँग करते हैं, पर यह दर्जा मिलता नहीं है। पिछले दस साल से केंद्र और दिल्ली दोनों में कांग्रेस पार्टी का शासन था, पर इसे पूर्ण राज्य नहीं बनाया गया। इस बार चुनाव के पहले तक भारतीय जनता पार्टी इस विचार से सहमत थी, पर चुनाव के ठीक पहले जारी दृष्टिपत्र में उसने इसका जिक्र भी नहीं किया। पिछले साल उम्मीद की जा रही थी कि प्रधानमंत्री अपने 15 अगस्त के भाषण में दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की घोषणा करेंगे, पर नहीं की। भाजपा ने देर से इस बात के व्यावहारिक पहलू को समझा। और आम आदमी पार्टी इसके राजनीतिक महत्व को समझती है।

Thursday, February 12, 2015

राजस्थान से आई यह निराली बधाई


11 फरवरी के राजस्थान पत्रिका, जयपुर के पहले पेज के जैकेट पर निराला विज्ञापन प्रकाशित हुआ। इसमें दिल्ली के विधान सभा चुनाव में 3 सीटें जीतने पर भाजपा को बधाई दी गई है। यह बधाई प्रतियोगिता परीक्षाओं से जुड़ी किताबें छापने वाले एक प्रकाशन की ओर से है। प्रकाशन के लेखक नवरंग राय, रोशनलाल और लाखों बेरोजगार विद्यार्थियों की ओर से यह बधाई दी गई है। इसमें ड़क्टर से राजनेता बने वीरेंद्र सिंह से अनुरोध किया गया है कि वे राजस्थान में आम आदमी पार्टी का नेतृत्व करें और उसे नए मुकाम पर पहुँचाएं। पिछले लोकसभा चुनाव में वीरेंद्र सिंह आम आदमी पार्टी के टिकट पर लड़े थे। 

भेड़ों की भीड़ नहीं, जागरूक जनता बनो

दिल्ली की नई विधानसभा में 28 विधायकों की उम्र 40 साल या उससे कम है. औसत उम्र चालीस है. दूसरे राज्यों की तुलना में 7-15 साल कम. चुने गए 26 विधायक पोस्ट ग्रेजुएट हैं. 20 विधायक ग्रेजुएट हैं, और 14 बारहवीं पास हैं. बीजेपी के तीन विधायकों को अलग कर दें तो आम आदमी पार्टी के ज्यादातर विधायकों के पास राजनीति का अनुभव शून्य है. वे आम लोग हैं. उनके परिवारों का दूर-दूर तक रिश्ता राजनीति से नहीं है. उनका दूर-दूर तक राजनीति से कोई वास्ता नहीं है. दिल्ली के वोटर ने परम्परागत राजनीति को दूध की मक्खी की तरह निकाल कर फेंक दिया है. यह नई राजनीति किस दिशा में जाएगी इसका पता अगले कुछ महीनों में लगेगा. यह पायलट प्रोजेक्ट सफल हुआ तो एक बड़ी उपलब्धि होगी.  

Monday, February 9, 2015

टूटना चाहिए चुनावी चंदे का मकड़जाल

यकीन मानिए भारत के आम चुनाव को दुनिया में काले धन से संचालित होने वाली सबसे बड़ी लोकतांत्रिक गतिविधि है। हमारे लोकतंत्र का सबसे खराब पहलू है काले धन की वह विशाल गठरी जिसे ज्यादातर पार्टियाँ खोल कर बैठती हैं। काले धन का इस्तेमाल करने वाले प्रत्याशियों के पास तमाम रास्ते हैं। सबसे खुली छूट तो पार्टियों को मिली हुई है, जिनके खर्च की कोई सीमा नहीं है। चंदा लेने की उनकी व्यवस्था काले पर्दों से ढकी हुई है। दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान आम आदमी पार्टी के चंदे को लेकर मीडिया में दो दिन का शोर-गुल हुआ। और उसके बाद खामोशी हो गई। बेहतर हो कि न केवल इस मामले में बल्कि पार्टियों के चंदे को लेकर तार्किक परिणति तक पहुँचा जाए।

सामाजिक सेवा का ऐसा कौन सा सुफल है, जिसे हासिल करने के लिए पार्टियों के प्रत्याशी करोड़ों के दाँव लगाते हैं? जीतकर आए जन-प्रतिनिधियों को तमाम कानून बनाने होते हैं, जिनमें चुनाव सुधार से जुड़े कानून शामिल हैं। अनुभव बताता है कि वे चुनाव सुधार के काम को वरीयता में सबसे पीछे रखते हैं। ऐसा क्यों? व्यवस्था में जो भी सुधार हुआ नजर आता है वह वोटर के दबाव, चुनाव आयोग की पहल और अदालतों के हस्तक्षेप से हुआ है। सबसे बड़ा पेच खुद राजनीतिक दल हैं जिनके हाथों में परोक्ष रूप से नियम बनाने का काम है। चुनाव से जुड़े कानूनों में बदलाव का सुझाव विधि आयोग को देना है, पर दिक्कत यह है कि राजनीतिक दल विधि आयोग के सामने अपना पक्ष रखने में भी हीला-हवाला करते हैं।

Sunday, February 8, 2015

दिल्ली की विजय-पराजय के माने

दिल्ली विधानसभा के एग्जिट पोल आम आदमी पार्टी के सामान्य बहुमत से लेकर दो तिहाई बहुमत तक के इशारे कर रहे हैं। उनके अनुसार बीजेपी के वोट प्रतिशत में सन 2013 के मुकाबले बढ़ोत्तरी होगी और 2014 के लोकसभा चुनाव की तुलना में कमी होगी। इस लिहाज से इसे नरेंद्र मोदी सरकार और व्यक्तिगत रूप से मोदी को लोकप्रियता में गिरावट के रूप में भी देखा जा रहा है। शायद इसी वजह से काफी विश्लेषकों को यह चुनाव महत्वपूर्ण लगता है। पर यह चुनाव केवल इतना ही मतलब नहीं रखता। आम आदमी पार्टी सामान्य राजनीतिक संस्कृति से ताल्लुक नहीं रखती। कम से कम उसका दावा इसी प्रकार का है। उसका साथ देने वाले सामान्य नागरिक है और उसके कार्यकर्ता आमतौर पर शहरी युवा हैं। यह शहरी युवा मोदी सरकार का समर्थक माना जा कहा था। एक धारणा है कि मोदी सरकार के समर्थकों ने हिन्दुत्व से जुड़े संकर्ण मामलों को उठाकर युवा वर्ग का मोहभंग किया है। दूसरी धारणा यह है कि मोदी सरकार ने बड़े-बड़े वादे कर दिए थे जो अब पूरे नहीं हो रहे हैं। एग्जिट पोल के बाद अब 10 फरवरी को परिणाम आने के बाद ही इस बारे में कोई राय कायम करना बेहतर होगा, पर चुनाव परिणाम ऐसा ही रहा तब भी उसके अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग माने होंगे। रोचक बात यह है कि आम आदमी पार्टी के पक्ष में ममता बनर्जी के साथ-साथ प्रकाश करात ने भी अपील की थी। क्या आम आदमी पार्टी वामपंथी पार्टी है? क्या वह उस युवा वर्ग की अपेक्षाओं पर खरी उतरती है जो आम आदमी पार्टी के साथ है? क्या आम आदमी पार्टी के आर्थिक दृष्टिकोण से वह परिचित है? दूसरी ओर आम आदमी पार्टी की जीत के पीछे दिल्ली की झुग्गी-झोपड़ियों के निवासियों, दलितों और मुस्लिम समुदाय का समर्थन भी नजर आता है। बीजेपी का पीछे मध्य वर्ग का समर्थन है। क्या यह वर्गीय ध्रुवीकरण है? आम आदमी पार्टी के कामकाज में यह ध्रुवीकरण किस रूप में नजर आएगा इसे समझना होगा। यदि मुस्लिम समुदाय ने आम आदमी के पक्ष में टैक्टिकल वोटिंग की है तो क्या इसका प्रभाव बिहार ौर यूपी के चुनाव में भी पड़ेगा? ऐसे कई सवाल सामने आएंगे।

दिल्ली विधानसभा के चुनाव एक लिहाज से कोई माने नहीं रखते। बावजूद इसके यह चुनाव राष्ट्रीय महत्व रखता है तो सिर्फ इसलिए कि पिछले कुछ साल से दिल्ली की राजनीति ने पूरे देश को प्रभावित किया है। पिछले साल लोकसभा चुनाव के तकरीबन छह महीने पहले हुए दिल्ली के चुनाव ने कांग्रेस और भाजपा के भीतर हलचल मचा दी थी। दोनों पार्टियों ने आम आदमी पार्टी के पीछे नागरिकों की ताकत को महसूस किया था। लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के खराब प्रदर्शन के बाद लगता है राष्ट्रीय दलों ने आम आदमी फैक्टर पर ध्यान देना बंद कर दिया था। खासतौर से भारतीय जनता पार्टी अपनी जीत के जोश में तेजी से उड़ चली थी। दिल्ली के चुनाव ने उसकी तंद्रा भंग की है। बहरहाल वोट पड़ चुके हैं, परिणाम का इंतजार है। पर यह चुनाव अपने परिणामों के अलावा कुछ दूसरे कारणों से भी महत्वपूर्ण साबित होने वाला है।

Saturday, February 7, 2015

एग्जिट पोल परिणाम


1.एबीपी न्यूज़- नीलसन

आप=  43
बीजेपी= 26
कांग्रेस= 01

2. इंडिया टीवी- सी वोटर

आप= 31-39
बीजेपी= 27-35
कांग्रेस= 02-04

3. न्यूज़ नेशन

आप= 39-43
बीजेपी= 25-29
कांग्रेस= 01-03

4. आज तक

आप= 35-43
बीजेपी= 23-29
कांग्रेस= 03-05

5. इंडिया न्यूज़

आप= 53
बीजेपी= 17
कांग्रेस= 02

उपरोक्त चैनलों का औसत

आप= 41
बीजेपी= 26
कांग्रेस= 03

6. चाणक्य - न्यूज़-24

आप= 48
बीजेपी= 22
कांग्रेस= 00

7.डेटा मिनेरिया

आप  31
भाजपा 35
कांग्रेस 4
.

खेल बेचे तेल, आओ खेलें ये नया खेल

खेल विशेषज्ञों की दिलचस्पी इस बात में है कि इस बार का विश्व कप कौन जीतेगा। भारत के दर्शक मायूस हैं कि ट्राई सीरीज़ में धोनी के धुरंधरों ने नाक कटा दी। अब 15 को पाकिस्तान के साथ मैच है। हमारे मीडिया की चली तो इसे विश्व युद्ध के बाद की सबसे बड़ी घटना बनाकर छोड़ेगा। पर क्रिकेट में अब खेल कम, मनोरंजन ज्यादा है। यह अब आईबॉल्स का खेल है। संस्कृति, मनोरंजन, करामात, करिश्मा, जादू जैसी तमाम बातें क्रिकेट में आ चुकी हैं जिनके बारे में किसी ने कभी सोचा भी नहीं था। विश्व कप के चालीस साल के इतिहास में क्या से क्या हो गया। एक तरफ खेल बदला वहीं उसे देखने वाले भी बदल गए।

Thursday, February 5, 2015

Man That Never Seen Again.

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https://twitter.com/FreakyTheory

No documentation verifying this story has yet surfaced, but it was mentioned in several books, including The Directory of Possibilities (1981, p. 86) and Strange But True: Mysterious and Bizarre People (1999, p. 64). And given its puzzling ending, I doubt that any official would have written up a report concluding that the man and all his documented evidence simply vanished.

Surprisingly, misplaced travelers such as the business man from Taured have appeared on many occasions. In 1851, a man was found wandering Frankfurt an der Oder in northeast Germany who claimed he was from a country called Laxaria on the continent of Sakria. Another young man who spoke a completely unrecognizable language was caught stealing a loaf of bread in Paris in 1905; he said he was from Lizbia, which authorities assumed was Lisbon—or Lisboa in Portuguese, yet his language was not Portuguese nor did he recognize a map of Portugal as his homeland.
Is Taured out there somewhere? And what about Laxaria or Liziba? Did these men fall backward through time or pass through dimensions? Or were they simply perpetrating a hoax or mentally ill?
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Sunday, February 1, 2015

किरण बेदी पहली आईपीएस हैं या नहीं?



सोशल मीडिया पर खबरें हैं कि किरण बेदी पहली महिला आईपीएस अधिकारी नहीं हैं। इसके पक्ष में एक अखबारी कतरन लगाई है। वास्तव में तथ्य क्या है यह बाद की बात है एक तथ्य यह सामने आया कि इंटरनेट पर ऐसी साइट्स जो अखबारों की फर्जी कतरनें तैयार करती हैं। नीचे मैं वह कतरन लगा रहा हूँ जो सोशल मीडिया में वायरल हुई है साथ ही उसी अंदाज में बनाई गई कतरनें भी हैं। इन्हें देख कर अंदाज लगाया जा सकता है कि सुरजीत कौर वाली कतरन भी फर्जी है। अलबत्ता सच क्या है इसकी छानबीन होनी चाहिए। अखबारों की कतरनें तैयार करने वाली एक साइट का यूआरएल इस प्रकार है http://www.fodey.com/generators/newspaper/snippet.asp

आक्रामक डिप्लोमेसी का दौर

मोदी सरकार के पहले नौ महीनों में सबसे ज्यादा गतिविधियाँ विदेश नीति के मोर्चे पर हुईं हैं। इसके दो लक्ष्य नजर आते हैं। एक, सामरिक और दूसरा आर्थिक। देश को जैसी आर्थिक गतिविधियों की जरूरत है वे उच्चस्तरीय तकनीक और विदेशी पूँजी निवेश पर निर्भर हैं। भारत को तेजी से अपने इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास करना है जिसकी पटरियों पर आर्थिक गतिविधियों की गाड़ी चले। अमेरिका के साथ हुए न्यूक्लियर डील का निहितार्थ केवल नाभिकीय ऊर्जा की तकनीक हासिल करना ही नहीं था। असली बात है आने वाले वक्त की ऊर्जा आवश्यकताओं को समझना और उनके हल खोजना है।