Showing posts with label अर्थव्यवस्था. Show all posts
Showing posts with label अर्थव्यवस्था. Show all posts

Saturday, February 3, 2024

बजट में आर्थिक और राजनीतिक आत्मविश्वास की झलक


वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने जो अंतरिम बजट पेश किया है, उसमें बड़ी रूपांतरकारी और लोकलुभावन घोषणाएं भले ही नहीं है, पर भविष्य की आर्थिक दिशा और सरकार के राजनीतिक आत्मविश्वास का संकेत जरूर मिलता है.

बजट में नए कार्यक्रमों की घोषणाओं के मुकाबले इस बात को रेखांकित करने पर ज्यादा जोर दिया गया है कि पिछले दस वर्ष में अर्थव्यवस्था की दशा किस तरह से बदली है. देश में एफडीआई प्रवाह वर्ष 2014-2023 के दौरान 596 अरब अमेरिकी डॉलर का हुआ जो 2005-2014 के दौरान हुए एफडीआई प्रवाह का दोगुना है.

उन्होंने घोषणा की कि सरकार सदन के पटल पर अर्थव्‍यवस्‍था के बारे में श्वेत पत्र पेश करेगी, ताकि यह पता चले कि वर्ष 2014 तक हम कहां थे और अब कहां हैं. श्वेत पत्र का मकसद उन वर्षों के कुप्रबंधन से सबक सीखना है.

Thursday, February 2, 2023

अमृतकाल की बुनियाद का बजट


वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा प्रस्तुत सालाना आम बजट पहली नज़र में संतुलित और काफी बड़े तबके को खुश करने वाला नज़र आता है। आप कह सकते हैं कि यह चुनाव को देखते हुए बनाया गया बजट है। इसमें गलत भी कुछ नहीं है। बहरहाल इसकी तीन महत्वपूर्ण बातें ध्यान खींचती हैं। एक, सरकार की नजरें संवृद्धि पर हैं, जिसके लिए पूँजी निवेश की जरूरत है। प्राइवेट सेक्टर आगे आने की स्थिति में नहीं है, तो सरकार को बढ़कर निवेश करना चाहिए। इंफ्रास्ट्रक्चर पर दस लाख करोड़ के निवेश की घोषणा से सरकार के इरादे स्पष्ट हैं। एक तरह से इसे नए भारत की बुनियाद का बजट कह सकते हैं। ध्यान दें दो साल पहले 2020-21 के बजट में यह राशि 4.39 लाख करोड़ थी।

वित्तमंत्री ने इसे मोदी सरकार का दसवाँ बजट नहीं अमृतकाल का पहला बजट कहा है। अमृतकाल का मतलब है स्वतंत्रता के 75वें वर्ष से शुरू होने वाला समय, जो 2047 में 100 वर्ष पूरे होने तक चलेगा। सरकार इसे भविष्य के साथ जोड़कर दिखाना चाहती है। वित्तमंत्री ने स्त्रियों और युवाओं का कई बार उल्लेख किया। यह वह तबका है, जो भविष्य के भारत को बनाएगा और जो राजनीतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। इस बजट में 2024 के चुनाव की आहट सुनाई पड़ रही है। इसमें कड़वी बातों का जिक्र करने से बचा गया है।   

दूसरी बात है, राजकोषीय अनुशासन। सरकारी खर्च बढ़ाने के बावजूद राजकोषीय घाटे को काबू में रखा जाएगा। बजट में अगले साल राजकोषीय घाटा 5.9 प्रतिशत रखने का भरोसा दिलाया गया है। तीसरे उन्होंने व्यक्ति आयकर के नए रेजीम को डिफॉल्ट घोषित करके आयकर व्यवस्था में सुधार की दिशा भी स्पष्ट कर दी है। यानी छूट वगैरह की व्यवस्थाएं धीरे-धीरे खत्म होंगी। नए रेजीम की घोषणा पिछले साल की गई थी। अभी इसे काफी लोगों ने स्वीकार नहीं किया है, पर अब जो छूट दी जा रही हैं, वे नए रेजीम के तहत ही हैं। इस वजह से लोग नए रेजीम की ओर जाएंगे।  

सप्तर्षि की अवधारणा पर वित्तमंत्री ने बजट की सात प्राथमिकताओं को गिनाया जिनमें इंफ्रास्ट्रक्चर, हरित विकास, वित्तीय क्षेत्र और युवा शक्ति शामिल हैं। बजट में कुल व्यय 45.03 लाख करोड़ रुपये का रखा गया है, जो चालू वर्ष की तुलना में 7.5 प्रतिशत अधिक है। इसमें सबसे बड़ी धनराशि 10 लाख करोड़ रुपये इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए रखी गई है। यह काफी लंबी छलाँग है। अर्थव्यवस्था की सेहत के लिहाज से देखें, तो इसके फौरी और दूरगामी दोनों तरह के परिणाम हैं।

फौरी परिणाम रोजगार और ग्रामीण उपभोग में वृद्धि के रूप में दिखाई पड़ेगा, जिससे अर्थव्यवस्था को अपने पैरों पर खड़ा होने में मदद मिलेगी। साथ ही संवृद्धि के दूसरे कारकों को सहारा मिलेगा। दूरगामी दृष्टि से देश में निजी पूँजी निवेश के रास्ते खुलेंगे और औद्योगिक विस्तार का लाभ मिलेगा, जिसके सहारे अर्थव्यवस्था की गति तेज होगी। सरकार मानती है कि पूँजीगत निवेश पर एक रुपया खर्च करने पर तीन रुपये का परिणाम मिलता है।

Sunday, January 29, 2023

अर्थव्यवस्था के निर्णायक दौर का बजट


इसबार का सालाना बजट बड़े निर्णायक दौर का बजट होगा। हर साल बजट से पहले कई तरह की उम्मीदें लगाई जाती हैं। ये उम्मीदें, उद्योगपतियों, कारोबारियों, किसानों, मजदूरों, कर्मचारियों, गृहणियों, उच्च वर्ग, मध्य वर्ग, निम्न वर्ग यानी कि भिखारियों को छोड़ हरेक वर्ग की होती हैं। सरकार के सामने कीवर्ड है संवृद्धि। उसके लिए जरूरी है आर्थिक सुधार। मुद्रास्फीति और बाजार के मौजूदा हालात को देखते हुए बजट में बड़े लोकलुभावन घोषणाओं उम्मीद नहीं है, अलबत्ता एक वर्ग कुछ बड़े सुधारों की उम्मीद कर रहा है। रेटिंग एजेंसी इक्रा ने हाल में एक रिपोर्ट कहा है कि अगले साल चुनाव होने हैं। ऐसे में बजट में सरकार पूंजीगत व्यय 8.5 से नौ लाख करोड़ रुपये तक बढ़ा सकती है जो मौजूदा वित्त वर्ष में 7.5 लाख करोड़ रुपये है। खाद्य और उर्वरक सब्सिडी में कमी के जरिए राजकोषीय घाटे का लक्ष्य जीडीपी का 5.8 प्रतिशत रख सकती है। रेलवे के बजट में काफी इजाफा होगा। 500 वंदे भारत और 35 हाइड्रोजन ट्रेनों की घोषणा हो सकती है। इनके अलावा 5000 एलएचबी कोच और 58000 वैगन हासिल करने की घोषणा भी की जा सकती है। रेल योजना-2030 का विस्तार भी इस बजट में हो सकता है। 7,000 किलो मीटर ब्रॉड गेज लाइन के विद्युतीकरण की भी घोषणा हो सकती है। वरिष्ठ नागरिकों को छूट की घोषणा भी हो सकती है।

मध्यवर्ग की मनोकामना

मध्यवर्ग की दिलचस्पी जीवन निर्वाह, आवास और आयकर से जुड़ी होती है। सरकार ने अभी तक आयकर छूट की सीमा 2.5 लाख रुपये से अधिक नहीं की है, जो 2014 में तत्कालीन वित्तमंत्री अरुण जेटली ने उस सरकार के पहले बजट में तय की थी। 2019 से मानक कटौती 50,000 रुपये बनी हुई है। वेतनभोगी मध्यम वर्ग को राहत देने के लिए आयकर छूट सीमा और मानक कटौती बढ़ाने की जरूरत है। बजट पूर्व मंत्रणा बैठकों में टैक्स स्लैब में बदलाव और करों में छूट का दायरा बढ़ाने की सरकार से अपील की गई है। इन बैठकों में पीपीएफ के दायरे को डेढ़ लाख से बढ़ाकर तीन लाख करने की माँग की गई। 80सी के तहत मिलने वाली छूट के दायरे को बढ़ाया जा सकता है। स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम के लिए भुगतान पर भी विचार किया जा रहा है। वित्तमंत्री के हाल के एक बयान ने मध्यम वर्ग में उम्मीद बढ़ा दी है कि आगामी बजट में उन्हें कुछ राहत मिल सकती है। वित्त मंत्री ने कहा था,मैं भी मध्यम वर्ग से हूं इसलिए मैं इस वर्ग पर दबाव को समझती हूं।”

राजकोषीय घाटा

महामारी के दौरान सरकार ने गरीबों को मुफ्त अनाज और दूसरे कई तरीके से मदद पहुँचाने की कोशिश की। अब उसका हिसाब देना है। सब्सिडी में कमी और बजट का आकार बढ़ाने की जरूरत होगी। राजकोषीय घाटे को कम करने की भी। पिछले साल के बजट में सब्सिडी करीब 3.56 लाख करोड़ रुपये और राजकोषीय घाटा जीडीपी का 6.4 प्रतिशत रहने की संभावना जताई गई थी। लक्ष्य है कि वित्त वर्ष 2024-25 तक इसे 4.5 फीसदी तक होना चाहिए। 2015 से 2018 के बीच अंतरराष्ट्रीय खनिज तेल की कीमतों में गिरावट आने से राजस्व घाटा 2013-14 के स्तर 4.5 प्रतिशत से नीचे आ गया था। 2016-17 में यह 3.5 प्रतिशत हो गया। इसके बाद सरकार ने इसे 3 पर लाने का लक्ष्य रखा। महामारी ने राजस्व घाटे के सारे गणित को बिगाड़ कर रख दिया है। मार्च 2014 में केंद्र सरकार पर सार्वजनिक कर्ज जीडीपी का 52.2 प्रतिशत था, जो मार्च 2019 में 48.7 प्रतिशत पर आ गया था। पर महामारी के दो वर्षों ने इसे चालू वित्त वर्ष 2022-23 में इसे 59 प्रतिशत पर पहुँचा दिया है। केंद्र और राज्य सरकारों का सकल कर्ज 84 फीसदी है। बढ़ते ब्याज बिल (जीडीपी के 3 प्रतिशत से अधिक) को देखते हुए, मध्यम अवधि में राजकोषीय मजबूती न केवल व्यापक स्तर की स्थिरता के लिए आवश्यक है, बल्कि इसके बिना निजी निवेश में सुधार भी संभव नहीं है जो अर्थव्यवस्था में तेज वृद्धि की कुंजी है। कर्ज का मतलब है, ज्यादा ब्याज। जो धनराशि विकास और सामाजिक कल्याण पर लगनी चाहिए, वह ब्याज में चली जाती है। सरकार के पास संसाधन बढ़ाने का एक रास्ता विनिवेश का है, जिसका लक्ष्य कभी पूरा नहीं होता।  

Sunday, January 22, 2023

अर्थव्यवस्था की परीक्षा का समय


जनवरी का महीना आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होता है।
इस महीने वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम का दावोस में समारोह होता है। इसके ठीक पहले ऑक्सफ़ैम की विषमता से जुड़ी रिपोर्ट आती है, जो परोक्ष रूप से इकोनॉमिक फोरम की विसंगतियों को रेखांकित करती है। विश्वबैंक का ग्लोबल आउटलुक जारी होता है। ये तीनों परिघटनाएं भारत से भी जुड़ी हैं। महीना खत्म होते ही भारत का बजट आता है, जिसमें अब केवल दस दिन बाकी हैं। यह वक्त है अर्थव्यवस्था की सेहत पर नजर डालने का और समझने का कि सामने क्या आने वाला है। दावोस में इकोनॉमिक फोरम के संस्थापक और कार्यकारी चेयरमैन क्लॉस श्वाब ने विभाजित दुनिया में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व की तारीफ की है। उन्होंने यह भी कहा कि वैश्विक संकट के बीच भारत एक ब्राइट स्पॉट है। भारत की जीडीपी वृद्धि दर साढ़े छह से सात प्रतिशत रहने का अनुमान है, जो दुनिया के दूसरे देशों के लिए सपने जैसा है, फिर भी भारत को 4,256 डॉलर की प्रति व्यक्ति आय की रेखा को पार करने में आठ-नौ साल लगेंगे जो विश्व बैंक की ऊपरी-मध्य आमदनी श्रेणी है। इसपर आज चीन, ब्राजील, मॉरिशस, मलेशिया और थाईलैंड जैसे देश हैं। इतनी बड़ी जनसंख्या को देखते हुए फिर भी इसे संतोषजनक आर्थिक-स्तर मानेंगे। वैश्विक स्तर पर इस साल भी पिछले साल जैसी अनिश्चितताएं और जोखिम जारी हैं, जो हमारी अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित कर रही हैं।

सबसे तेज अर्थव्यवस्था

विश्व बैंक ने भारतीय अर्थव्यवस्था पर अपने ताजा अनुमान में कहा है कि  भारत सात सबसे बड़े उभरते बाजारों और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बना रहेगा। चालू वित्त वर्ष 2022-23 में जीडीपी की संवृद्धि 6.9 फीसदी रहने का अनुमान है, जो अगले वित्त वर्ष (2023-24) में 6.6 और 2024-25 में 6.1 फीसदी रह सकती है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने जनवरी के पहले सप्ताह में चालू वित्त वर्ष के लिए राष्ट्रीय आय का पहला अग्रिम अनुमान जारी किया। यह अत्यधिक महत्त्वपूर्ण आंकड़ा है क्योंकि इसी के आधार पर केंद्रीय बजट का प्रारूप तैयार करने की शुरुआत होती है। अग्रिम अनुमान इसलिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे अगले वित्तीय वर्ष के बजट के लिए आवश्यक इनपुट के रूप में कार्य करते हैं। इस अनुमान के अनुसार वास्तविक संवृद्धि दर 7 प्रतिशत रह सकती है। क्षेत्र-वार विश्लेषण करें, तो सेवा क्षेत्र में तेज सुधार नजर आता है। उच्च इनपुट कीमतों और कमजोर बाहरी मांग के कारण विनिर्माण क्षेत्र के उत्पादन में गिरावट नज़र आ रही है। आने वाले महीनों में जिंसों की कीमतों में कमी से मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को सहायता मिलने की संभावना है, लेकिन कमजोर बाहरी मांग लगातार दबाव बनाए रखेगी।

Saturday, January 14, 2023

चीन के साथ व्यापार घाटा 100 अरब डॉलर के पार


भारत और चीन के बीच व्यापार 2022 में बढ़कर 135.98 अरब डॉलर के अबतक के उच्च स्तर पर पहुंच गया। इसके साथ भारत का चीन के साथ व्यापार घाटा बढ़कर 100 अरब डॉलर के पार हो गया। चीन के सीमा शुल्क विभाग के शुक्रवार को जारी आंकड़ों के अनुसार भारत-चीन व्यापार 2022 में 8.4 प्रतिशत बढ़कर 135.98 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया। चीन के सरकारी मीडिया के अनुसार 2022 में देश ने कोविड-19 के कारण आई सारी बाधाओं को पार करते हुए 5.96 ट्रिलियन डॉलर का कारोबार किया।

Friday, October 28, 2022

नोटों पर लक्ष्मी-गणेश का सुझाव

इंडोनेशिया का करेंसी नोट

आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल करेंसी नोटों पर लक्ष्मी-गणेश की तस्वीरें छापने का जो
सुझाव दिया है, उसके पीछे राजनीति है। अलबत्ता यह समझने की कोशिश जरूर की जानी चाहिए कि क्या इस किस्म की माँग से राजनीतिक फायदा संभव है। भारतीय जनता पार्टी के हिंदुत्व को जो सफलता मिली है, उसके पीछे केवल इतनी प्रतीकात्मकता भर नहीं है।

बेशक प्रतीकात्मकता का लाभ बीजेपी को मिला है, पर राजनीति के भीतर आए बदलाव के पीछे बड़े सामाजिक कारण हैं, जिन्हें कांग्रेस और देश के वामपंथी दल अब तक समझ नहीं पाए हैं। अब लगता है कि केजरीवाल जैसे राजनेता भी उसे समझ नहीं पा रहे हैं।

करेंसी पर लक्ष्मी-गणेश की तस्वीरें लगाने का सांस्कृतिक महत्व जरूर है। जैसे इंडोनेशिया में है, जो मुस्लिम देश है। भारतीय संविधान की मूल प्रति पर रामकथा और हिंदू-संस्कृति से जुड़े चित्र लगे हैं। इनसे धर्मनिरपेक्षता की भावना को चोट नहीं लगती है।

केवल केसरिया रंग की प्रतीकात्मकता काम करने लगेगी, तो केजरीवाल सिर से पैर तक केसरिया रंग का कनस्तर अपने ऊपर उड़ेल लेंगे, पर उसका असर नहीं होगा। ऐसी बातें करके और उनसे देश की समृद्धि को जोड़कर एक तरफ वे अपनी आर्थिक समझ को व्यक्त कर रहे हैं, वहीं भारतीय-संस्कृति को समझने में भूल कर रहे हैं। हिंदू समाज संस्कृतिनिष्ठ है, पर पोंगापंथी और विज्ञान-विरोधी नहीं।

हैरत की बात है कि आम आदमी पार्टी के नेताओं ने केजरीवाल की मांग का जोरदार तरीके से समर्थन शुरू कर दिया है। केजरीवाल का कहना है कि नोटों पर भगवान गणेश और लक्ष्मी के चित्र प्रकाशित करने से लोगों को दैवीय आशीर्वाद मिलेगा, जिससे वे आर्थिक लाभ हासिल कर सकेंगे। इसके पहले केजरीवाल गुजरात में जाकर कह आए हैं कि मेरे सपने में भगवान आए थे।

हिंदुत्व का लाभ

केजरीवाल ने अप्रेल 2010 से शुरू हुए भ्रष्टाचार विरोधी-आंदोलन की पृष्ठभूमि में भी भारत माता की जय और वंदे मातरम के नारे लगाए थे। हलांकि ये नारे हिंदुत्व के नारे नहीं हैं और हमारे स्वतंत्रता आंदोलन में इनका इस्तेमाल हुआ है, पर स्वातंत्र्योत्तर राजनीति में कांग्रेस ने इन नारों का इस्तेमाल कम करना शुरू कर दिया था। केजरीवाल अलबत्ता हिंदू प्रतीकों का इस्तेमाल इस रूप में करना चाहते हैं, जिससे उन्हें अल्पसंख्यक विरोधी नहीं माना जाए। पर इतना स्पष्ट है कि वे उस हिंदुत्व का राजनीतिक लाभ लेना चाहते हैं, जिसे कांग्रेस ने छोड़ दिया है। 

भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति का जिक्र करते हुए केजरीवाल ने कहा था कि देश अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये के लगातार कमजोर होने के कारण नाजुक स्थिति से गुजर रहा है। ऐसे में यह जुगत काम करेगी। इस विचार पर बिजनेस स्टैंडर्ड ने अपने संपादकीय में कहा है कि आर्थिक बहस में समझदारी जरूरी है। 

Sunday, October 9, 2022

वैश्विक मंदी की छाया में भारत


ब्रिटिश साप्ताहिक ‘इकोनॉमिस्ट’ ने कहा है कि दुनिया की अर्थव्यवस्था करवट ले रही है। मुद्रास्फीति ने दुनियाभर के अर्थशास्त्रियों का ध्यान खींचा है। वैश्विक मुद्रास्फीति 9.8 प्रतिशत हो गई है। अभी तक इसका आसान हल माना जाता है ब्याज दरों को बढ़ाना, पर यह कदम मंदी को बढ़ा रहा है। केंद्रीय बैंकों को मॉनिटर करने वाली एक संस्था ने पाया है कि जिन 38 बैंकों का उसने अध्ययन किया उनमें से 33 ने इस साल ब्याज दरें बढ़ाई हैं। आईएमएफ ने भी चेतावनी दी है कि देशों की सरकारें महंगाई को रोकने में नाकाम रहीं तो दुनियाभर में आर्थिक मंदी का खतरा है। दूसरी तरफ अर्थशास्त्री मानते हैं कि यह नीति चलेगी नहीं। अमेरिकी फेडरल बैंक दरें बढ़ा रहा है, जिसका असर पूरी दुनिया पर पड़ रहा है।

भारत पर असर

भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर पिछले दो हफ्तों की खबरें इस बात की पुष्टि कर रही हैं। रिज़र्व बैंक ने रेपो रेट बढ़ाया है, जिससे ब्याज की दरें बढ़ेंगी। ज्यादातर संस्थाओं ने भारतीय जीडीपी के अपने अनुमानों को घटाना शुरू कर दिया है। रुपये की कीमत गिर रही है और विदेशी मुद्रा भंडार कम हो रहा है। कोविड-19 का असर पहले से था, अब यूक्रेन की लड़ाई ने ‘कोढ़ में खाज’ पैदा कर दिया है। पेट्रोलियम की कीमतें गिरने लगी थीं, पर इस गिरावट को रोकने के लिए ओपेक और उसके सहयोगी संगठनों ने उत्पादन में कटौती का फैसला किया है। इसका असर अब आप देखेंगे। 

मुद्रास्फीति

इस महीने का डेटा अभी आया नहीं है, पर सितंबर के डेटा के अनुसार अगस्त में भारत की खुदरा मुद्रास्फीति की दर बढ़कर 7 फीसदी हो गई, जो जुलाई में 6.71 प्रतिशत और पिछले साल अगस्त में 5.3 प्रतिशत थी। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन ने हाल में उम्मीद जाहिर की थी, यह दर गिरकर 6 फीसदी से नीची हो जाएगी, पर उनका अनुमान गलत साबित हुआ। जुलाई के महीने में देश का खुदरा मूल्य सूचकांक (सीपीआई-सी) 6.71 हो गया था, जो पिछले पाँच महीनों में सबसे कम था। अच्छी संवृद्धि और मुद्रास्फीति में क्रमशः आती गिरावट से उम्मीदें बढ़ी थीं, पर अब कहानी बदल रही है। लगता है कि रिजर्व बैंक को पहले महंगाई से लड़ना होगा।

जीडीपी संवृद्धि

गुरुवार 6 अक्तूबर को विश्व बैंक ने चालू वित्तीय वर्ष के लिए भारतीय जीडीपी की संवृद्धि के 7.5 फीसदी के अपने अनुमान में एक फीसदी की कटौती करते हुए उसे 6.5 प्रतिशत कर दिया है। रिज़र्व बैंक ने 7.2 फीसदी से घटाकर 7 फीसदी कर दिया है। सबसे कम अनुमान अंकटाड का 5.7 फीसदी है। दूसरी तरफ मूडीज़ ने हाल में 7.7 फीसदी अनुमान लगाया था, जो इन सबसे ज्यादा है। विश्व बैंक ने यह भी कहा है कि शेष दुनिया से भारत की स्थिति बेहतर रहेगी। भारत में अधिक बफर हैं, विशेष रूप से केंद्रीय बैंक में बड़े भंडार हैं। बैंक के दक्षिण एशिया से संबद्ध मुख्य अर्थशास्त्री हैंस टिमर के मुताबिक, भारत पर कोई बड़ा विदेशी कर्ज नहीं है। उसकी मौद्रिक नीति विवेकपूर्ण रही है। इसके बावजूद हमने अनुमान को घटाया है, क्योंकि वैश्विक माहौल बिगड़ रहा है। उधर भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन मानते हैं कि हम अब भी 7 फ़ीसदी की रेस में शामिल है। ऐसे दौर में जब दुनिया के तमाम देशों की जीडीपी ग्रोथ निगेटिव होने की आशंका है ऐसे में भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्था के लिए 7 फ़ीसदी ग्रोथ रेट शानदार प्रदर्शन होगा।

Sunday, September 4, 2022

अर्थव्यवस्था का मंथर-प्रवाह


भारत की अर्थव्यवस्था (जीडीपी) चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में 13.5 फीसदी बढ़ी है। सामान्य-दृष्टि से इस संख्या को बहुत उत्साहवर्धक माना जाएगा, पर वस्तुतः यह उम्मीद से कम है। विशेषज्ञों का  पूर्वानुमान 15 से 16 प्रतिशत का था, जबकि रिज़र्व बैंक को 16.7 प्रतिशत की उम्मीद थी।  अब इस वित्त वर्ष के लिए ग्रोथ के अनुमान को विशेषज्ञ 7.2 और 7.5 प्रतिशत से घटाकर 6.8 से 7.00 प्रतिशत मानकर चल रहे हैं। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय की ओर से 31 अगस्त को जारी आँकड़ों के अनुसार जीडीपी की इस वृद्ध में सेवा गतिविधियों में सुधार की भूमिका है, बावजूद इसके व्यापार, होटल और परिवहन क्षेत्र की वृद्धि दर अब भी महामारी के पूर्व स्तर (वित्त वर्ष 2020 की जून तिमाही) से कम है। हालांकि हॉस्पिटैलिटी से जुड़ी गतिविधियों में तेजी आई है। जीडीपी में करीब 60 फीसदी की हिस्सेदारी रखने वाले, उपभोग ने जून की तिमाही में 29 फीसदी की मजबूत वृद्धि दर्ज की।

नागरिक का भरोसा

उपभोक्ताओं ने पिछले कुछ समय में जिस जरूरत को टाला था, उसकी वापसी से निजी व्यय में इजाफा हुआ है। इससे इशारा मिलता है कि खर्च को लेकर उपभोक्ताओं का भरोसा बढ़ा है। ‘पर्चेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स’ (पीएमआई), क्षमता का उपयोग, टैक्स उगाही, वाहनों की बिक्री के आँकड़े जैसे सूचकांक बताते हैं कि इस वित्त वर्ष के पहले कुछ महीनों में वृद्धि की गति तेज रही। अगस्त में मैन्युफैक्चरिंग की पीएमआई 56.2 थी, जो जुलाई में 56.4 थी। यह मामूली वृद्धि है, पर मांग में तेजी और महंगाई की चिंता घटने के कारण वृद्धि को मजबूती मिली है। खाद्य सामग्री से इतर चीजों के लिए बैंक क्रेडिट में मजबूत वृद्धि भी मांग में सुधार का संकेत देती है। दूसरी तरफ सरकारी खर्च महज 1.3 फीसदी बढ़ा है। सरकार राजकोषीय घाटे को काबू करने पर ध्यान दे रही है।

बेहतरी की ओर

जीडीपी के ये आँकड़े अर्थव्यवस्था की पूरी तस्वीर को पेश नहीं करते हैं, पर इनके सहारे काफी बातें स्पष्ट हो रही हैं। पहला निष्कर्ष है कि कोविड और उसके पहले से चली आ रही मंदी की प्रवृत्ति को हमारी अर्थव्यवस्था पीछे छोड़कर बेहतरी की ओर बढ़ रही है। पर उसकी गति उतनी तेज नहीं है, जितना रिजर्व बैंक जैसी संस्थाओं को उम्मीद थी। इसकी वजह वैश्विक-गतिविधियाँ भी हैं। घरेलू आर्थिक गतिविधियों में व्यापक सुधार अभी नहीं आया है। आने वाले समय में ऊँची महंगाई, कॉरपोरेट लाभ में कमी, मांग को घटाने वाली मौद्रिक नीतियों और वैश्विक वृद्धि की मंद पड़ती संभावनाओं के रूप में वैश्विक चुनौतियों का अंदेशा बना हुआ है। मुद्रास्फीति को काबू में करने के लिए ब्याज दरें बढ़ने से अर्थव्यवस्था में तरलता की कमी आई है, जिससे पूँजी निवेश कम हुआ है। नए उद्योगों और कारोबारों के शुरू नहीं होने से रोजगार-सृजन पर विपरीत प्रभाव पड़ा है। इससे उपभोक्ता सामग्री की माँग कम होगी। सरकारी खर्च बढ़ने से इस कमी को कुछ देर के लिए ठीक किया जा सकता है, पर सरकार पर कर्ज बढ़ेगा, जिसका ब्याज चुकाने की वजह से भविष्य के सरकारी खर्चों पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा और विकास-योजनाएं ठप पड़ेंगी। इस वात्याचक्र को समझने और उसे दुरुस्त करने की एक व्यवस्था है। भारत सही रास्ते पर है, पर वैश्विक-परिस्थितियाँ आड़े आ रही हैं। अच्छी खबर यह है कि पेट्रोलियम की कीमतें गिरने लगी हैं।

Monday, August 15, 2022

मुस्लिम-कारोबारी जिन्होंने देश के आर्थिक-विकास में मदद की


हाल में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लखनऊ में लुलु मॉल का उद्घाटन किया। दो हजार करोड़ रुपये की लागत से बनाया गया यह मॉल उत्तर भारत में ही नहीं देश के सबसे शानदार मॉलों में एक है। यूएई के लुलु ग्रुप के इस मॉल से ज्यादा रोचक है लुलु ग्रुप के चेयरमैन युसुफ अली का जीवन। हालांकि उनका ज्यादातर कारोबार यूएई में है, पर वे खुद भारतीय हैं। उनका ग्रुप पश्चिमी एशिया, अमेरिका और यूरोप के 22 देशों में कारोबार करता है।

युसुफ अली व्यापार से ज्यादा चैरिटी के लिए पहचाने जाते हैं। गुजरात में आए भूकंप से लेकर सुनामी और केरल में बाढ़ तक के लिए उन्होंने कई बार बड़ी धनराशि दान में दी है। उनके ग्रुप का सालाना टर्नओवर 8 अरब डॉलर का है और उन्होंने करीब 57 हजार लोगों को रोजगार दिया हुआ है। भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से अलंकृत किया है। भारत और यूएई की सरकार के मजबूत रिश्तों में उनकी भी एक भूमिका है।

दक्षिण और गुजरात

युसुफ अली के बारे में जानकारियों की भरमार है, पर यह आलेख भारत के मुस्लिम उद्यमियों, उद्योगपतियों और कारोबारियों के बारे में है, जिन्होंने देश के आर्थिक-विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और निभा रहे हैं। मुस्लिम कारोबारियों के बारे में जानकारी जुटाना आसान नहीं है, क्योंकि ऐसी सामग्री का अभाव है, जिसमें सुसंगत तरीके से अध्ययन किया गया हो। 

पहली नज़र में एक बात दिखाई पड़ती है कि उत्तर भारत के मुसलमानों के मुकाबले दक्षिण भारत और गुजरात के मुसलमानों ने कारोबार में तरक्की की है। ऐसे मुसलमानों का कारोबार बेहतर साबित हुआ है, जिनकी शिक्षा या तो यूरोप या अमेरिका में हुई या भारत के आईआईटी या आईआईएम में।

अलबत्ता असम के कारोबारी बद्रुद्दीन अजमल इस मामले में एकदम अलग साबित हुए हैं। उन्हें अपने कारोबार और परोपकारी कार्यों से ज्यादा अब हम उनके राजनीतिक दल ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) की वजह से बेहतर जानते हैं।

सफल मुस्लिम-कारोबारियों को ग्राहकों और यहाँ तक कि अपने प्रबंधकों या कर्मचारियों के रूप में हिंदुओं की जरूरत पड़ती है। तीसरे, उत्तर के मुसलमान कारोबारी समय के साथ अपने परंपरागत बिजनेस को छोड़ नहीं पाए, जबकि दक्षिण और गुजरात के मुसलमान-कारोबारियों ने नए बिजनेस पकड़े और उसमें सफल भी हुए।

सिपला और हिमालय

दुर्भाग्य से भारत में कुछ ऐसे मौके भी आए हैं, जब मुस्लिम कारोबारियों के बहिष्कार की अपीलें जारी होती हैं। पिछले दिनों दक्षिण भारत में जब हिजाब को लेकर विवाद खड़ा हो रहा था, तब भी ऐसा हुआ। उन्हीं दिनों नफरती हैशटैग और प्रचार के बीच खबर यह भी थी कि भारतीय फार्मास्युटिकल्स कंपनी सिपला और भारत सरकार की कंपनी आईआईसीटी मिलकर कोविड-19 की दवाई विकसित करने जा रहे हैं। 

सिपला का भारत में ही नहीं अमेरिका तक में नाम है। 1935 में इसकी स्थापना राष्ट्रवादी मुसलमान ख्वाजा अब्दुल हमीद ने की थी। आज उनके बेटे युसुफ हमीद इसका काम देखते हैं। सिपला के अलावा भारत की फार्मास्युटिकल कंपनी वॉकहार्ट भी जेनरिक दवाओं के अग्रणी है। इसके मालिक दाऊदी बोहरा हबील खोराकीवाला हैं।

इसी तरह आयुर्वेदिक औषधियों की प्रसिद्ध कंपनी हिमालय है, जिसे एक मुस्लिम परिवार चलाता है। इसके खिलाफ भी हाल में दुष्प्रचार हुआ। हिमालय की स्थापना मुहम्मद मनाल ने 1930 में की। देहरादून में इनामुल्लाह बिल्डिंग से इस कंपनी की छोटी सी शुरुआत हुई थी। मुहम्मद मनाल के पास कोई वैज्ञानिक डिग्री नहीं थी, पर उन्होंने आयुर्वेदिक औषधियों के वैज्ञानिक परीक्षण का सहारा लिया।

हालांकि भारत के लोग परंपरागत दवाओं पर ज्यादा भरोसा करते हैं, पर पश्चिमी शिक्षा के कारण उनका मन आयुर्वेदिक और यूनानी दवाओं से हट रहा था। ऐसे में हिमालय का जन्म हुआ। एक अरसे तक कारोबार के बाद 1955 में इसके लिवर-रक्षक प्रोडक्ट लिव-52 ने चमत्कार किया। यह दवाई दुनियाभर में प्रसिद्ध हो गई और आज भी देश में सबसे ज्यादा बिकने वाली 10 दवाओं में शामिल है। मुहम्मद मनाल के पुत्र मेराज मनाल 1964 में कंपनी में शामिल हुए। अपने जन्म के 92 साल बाद यह कंपनी दुनिया में भारत की शान है।

भारत में 22 से 24 करोड़ के बीच मुस्लिम आबादी है। इनमें काफी बड़ा हिस्सा आर्थिक रूप से कमज़ोर है। उनकी कमज़ोरी अक्सर मीडिया का विषय बनती हैं, पर उद्योग और बिजनेस में मुसलमानों की सकारात्मक भूमिका अक्सर दबी रह जाती है। इन उद्यमियों ने भारत के युवा मुसलमानों को इंजीनियरी, चार्टर्ड एकाउंटेंसी, आईटी, मीडिया तथा अन्य आधुनिक कारोबारों में आगे आने को प्रोत्साहित किया है।

परंपरागत कारोबार

उत्तर भारत में मुसलमान अपेक्षाकृत कमजोर और पिछड़े हैं। इसकी एक वजह यह भी है कि उत्तर के काफी समृद्ध मुसलमान पाकिस्तान चले गए। उत्तर में भी मुसलमान कारोबारी दस्तकारी से जुड़े कामों में ज्यादा सक्रिय थे। जैसे कि मुरादाबाद का पीतल उद्योग, फिरोजाबाद का काँच उद्योग, वाराणसी का सिल्क उद्योग, सहारनपुर में लकड़ी का काम, अलीगढ़ में ताले, खुर्जा में मिट्टी के बर्तन, मिर्जापुर और भदोही में कालीन का काम वगैरह। इन उद्योगों में कई कारणों से मंदी आई है। इलाहाबाद में शेरवानी परिवार के जीप फ्लैशलाइट का नाम अब सुनाई नहीं पड़ता।

उत्तर भारत के सुन्नी मुसलमान-उद्योगपतियों में हमदर्द के हकीम अब्दुल हमीद खां का नाम बेशक लिया जा सकता है। हमदर्द दवाखाना की स्थापना 1906 में हमीद अब्दुल मज़ीद ने की थी। विभाजन के बाद इस परिवार का भी विभाजन हो गया और अब्दुल हमीद के भाई हकीम मुहम्मद सईद पाकिस्तान चले गए। भारतीय रूह अफ्ज़ा के मुकाबले पाकिस्तानी रूह अफ्ज़ा भी दुनिया के बाजारों में बिकता है।

Sunday, February 6, 2022

आर्थिक-अवसर पैदा करने के हौसलों वाला बजट


बजट आ गया, आपको कैसा लगा? कई मायनों में इसकी परीक्षा पूरे साल होगी। लंबे अरसे तक आम नागरिक बजट को महंगा-सस्ता की भाषा में समझता था। मध्य वर्ग की दिलचस्पी इनकम टैक्स तक होती थी, आज भी है। रेल बजट को लोग नई ट्रेनों की घोषणा और किराए-मालभाड़े में कमी-बेसी से ज्यादा नहीं समझते थे। इस लिहाज से इस बजट में कुछ भी नहीं है। इस साल के बजट का सार एक वाक्य में है, समस्याओं का हल है तेज आर्थिक संवृद्धि। संवृद्धि होगी, तो सरकार को टैक्स मिलेगा, सामाजिक कल्याण के काम किए जा सकेंगे। संवृद्धि के साथ यह भी देखना होगा कि राजकोषीय घाटा कितना है और कर्ज कितना है और कितना ब्याज देना है वगैरह। ब्याज दर ऊँची या नीची होना भी महत्वपूर्ण है। जीडीपी, घाटे और कर्ज को एकसाथ पढ़ना होगा। वैश्विक अर्थव्यवस्था की गति और पूँजी-निवेश को भी। 

अनेक चुनौतियाँ

वित्तमंत्री के सामने चुनौती है धीमी होती वैश्विक अर्थव्यवस्था और बढ़ती ब्याज दरों के बीच तेज संवृद्धि को हासिल करना। पर देखना होगा कि इस दौरान बेरोजगारी और महंगाई का सामना किस तरह से होगा। यह बात इसी साल सामने आ जाएगी। कुछ अपेक्षाएं या अंदेशे महामारी से भी जुड़े हैं, जिसकी तीसरी लहर के बीच यह बजट आया है। पिछले साल जीडीपी में 6.6 फीसदी का संकुचन हुआ था, जिसे एडजस्ट करने के बाद देखें, तो आज अर्थव्यवस्था महामारी से पहले यानी 2019-20 से केवल एक फीसदी के आसपास ही बेहतर है। देश के पास उपभोग के साधन तकरीबन उतने ही या उससे कम हैं, जितने 2019-20 में थे। बेरोजगारी, बढ़ती महंगाई, खाद्य-सुरक्षा, जलवायु-परिवर्तन, पुष्टाहार, सार्वजनिक स्वास्थ्य, शिक्षा, लैंगिक-विषमता वगैरह-वगैरह की चुनौतियाँ ऊपर से हैं। हर सेक्टर की भारी अपेक्षाएं हैं और राजनीतिक चुनौती अलग से।

बदलाव, जो दिखाई भी पड़ेंगे

इसबार का बजट अर्थव्यवस्था और राजनीति दोनों चुनौतियों का सामना करता नजर आता है। इसमें दूर की बातें हैं, पर 2024 के चुनाव के ठीक पहले नजर आने वाले कार्यक्रम भी हैं। हाईवे, पुल, वंदे भारत ट्रेनें, डिजिटल इंडिया और 5-जी जैसे कार्यक्रमों के परिणाम दो साल बाद दिखाई पड़ेंगे। वित्तमंत्री ने कुल 39.45 लाख करोड़ रुपये का बजट तैयार किया है, पर कुल कमाई 22.84 करोड़ रुपये की है। निर्माण पर भारी खर्च का मतलब है राजकोषीय घाटा। सवाल है कि वह कैसे पूरा होगा और बेरोजगारी तथा बढ़ती महंगाई का सामना किस तरह से किया जाएगा?  सरकार ने इस बीच मुफ्त अनाज दिया और मनरेगा के माध्यम से काम भी दिया। कुछ रिकवरी हुई है, पर वह अधूरी और असंतुलित है।  

राजकोषीय घाटा

कुल व्यय पर नियंत्रण के बावजूद शुद्ध बाजार उधारी 32.3 फीसदी बढ़कर 11.59 लाख करोड़ रुपये हो जाएगी। बाजार से कर्ज लेने में रिजर्व बैंक के बॉण्ड मैनेजमेंट की परीक्षा भी होगी। कर्ज पर ब्याज बढ़ने से सरकार का हाथ तंग होगा। 2020-21 में कुल सरकारी खर्च में ब्याज की हिस्सेदारी 19 फीसदी थी। चालू वर्ष में यह 22 फीसदी से ज्यादा है और अगले साल 24 फीसदी तक हो सकती है। संसाधनों का एक चौथाई ब्याज में जाएगा। चालू वित्तवर्ष में राजकोषीय घाटे का लक्ष्य 6.8 फीसदी था, जो 6.9 फीसदी हो जाएगा। अगले साल 6.4 फीसदी का लक्ष्य है। यह स्तर 2025-26 के लिए निर्धारित 4.5 फीसदी से दो फीसदी तक ज्यादा है, पर इसे हासिल किया जा सकता है।

Sunday, January 30, 2022

ग्रोथ के इंजन को चलाने की चुनौती


दो दिन बाद पेश होने वाले आम बजट से देश के अलग-अलग वर्गों को कई तरह की उम्मीदें हैं। महामारी से घायल अर्थव्यवस्था को मरहम लगाने, बेहोश पड़े उपभोक्ता उद्योग को जगाने, गाँवों से बाहर निकलती आबादी को रोजगार देने और पाँच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था को तैयार करने की चुनौती वित्तमंत्री के सामने है। अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष में संवृद्धि 9.2 प्रतिशत रहेगी। नॉमिनल संवृद्धि 18 प्रतिशत के आसपास रहेगी, जबकि पिछले बजट में 14 प्रतिशत का अनुमान था। इस साल का कर-संग्रह भी अनुमान से कहीं बेहतर हुआ है। इन खुश-खबरों के बावजूद अर्थव्यवस्था के बुनियादी सुधार के सवाल सामने हैं।

गरीबों को संरक्षण

पहली निगाह ग्रामीण और सोशल सेक्टर पर रहती है। एफएमसीजी सेक्टर चाहता है कि सरकार लोगों के हाथों में पैसा देना जारी रखे, खासकर गाँवों में। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के तहत किसानों को अभी 6 हजार रुपये सालाना रकम दी जाती है। संभव है कि इस राशि को बढ़ा दिया जाए। मनरेगा और खेती से जुड़ी योजनाओं के लिए आबंटन बढ़ सकता है, जो ग्रामीण उपभोक्ताओं का क्रय-शक्ति बढ़ाएगा। महामारी से शहरी गरीब ज्यादा प्रभावित हुए हैं। लॉकडाउन ने कामगारों की रोजी छीन ली। रेस्तरां, दुकानों, पार्लरों, भवन निर्माण आदि से जुड़े कामगारों की सबसे ज्यादा। छोटी फ़र्मों और स्वरोजगार वाले उपक्रमों में रोजगार खत्म हुए हैं। संभव है कि सरकार शहरी गरीबों के लिए पैकेज की घोषणा करे। डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर, कौशल विकास, रोजगार-वृद्धि, मझोले और छोटे उद्योगों की सहायता उपभोक्ता-सामग्री की माँग बढ़ाने जैसी घोषणाएं इस बजट में हो सकती हैं।

मध्यवर्ग की उम्मीदें

मध्यवर्ग को आयकर से जुड़ी उम्मीदें रहती हैं। वे स्टैंडर्ड डिडक्शन की सीमा बढ़ने का इंतजार कर रहे हैं। ज्यादातर लोग घर से काम कर रहे है। उनका बिजली, इंटरनेट, मकान किराए, फर्नीचर आदि का खर्च बढ़ गया है। वे किसी रूप में टैक्स छूट की उम्मीद कर रहे हैं। जीवन बीमा और स्वास्थ्य बीमा से जुड़ी सुविधाएं और उसपर जीएसटी कम करने की माँग भी है। पीपीएफ में निवेश की अधिकतम सीमा को 1.5 लाख रुपये से बढ़ाकर 3 लाख रुपये करने का सुझाव भी है। ग्रोथ के इंजन को चलाए रखने में मध्यवर्ग की सबसे बड़ी भूमिका है। क्या सरकार उसे खुश कर पाएगी?

बदला माहौल

वैक्सीनेशन की गति बढ़ने से माहौल बदला है और उपभोक्ता की दिलचस्पी भी बढ़ी है। उम्मीद से ज्यादा कर-संग्रह हुआ है, जो कर-दायरा बढ़ाने से और ज्यादा हो सकता है। जीडीपी-संवृद्धि बेहतर होने से आने वाले वर्ष में कर-संग्रह और बेहतर होगा। पिछले दो साल से पेट्रोलियम के सहारे सरकार ने कर-राजस्व के लक्ष्य हासिल जरूर किए, पर इससे मुद्रास्फीति बढ़ी। यह बात अर्थव्यवस्था के लिए नुकसानदायक है। साबित यह भी हुआ है कि सरकारी विभागों की व्यय-क्षमता कमजोर है, तमाम विभागों को आबंटित धनराशि का इस्तेमाल नहीं हो पाया। इससे संवृद्धि प्रभावित हुई। राष्ट्रीय अधोसंरचना पाइपलाइन, 4जी तकनीक, डिजिटल इंडिया मिशन, निर्यात उत्पादों पर शुल्क और कर में रियायत की योजना तथा जल जीवन मिशन में लक्ष्य से कम खर्च हुआ। संभव है कि अंतिम तिमाही में व्यय बढ़े, पर सरकारी विभागों को अपने कार्यक्रमों के लिए आबंटित धनराशि को खर्च न कर पाने की समस्या का समाधान खोजना होगा।

Sunday, January 16, 2022

आम बजट की चुनौतियाँ और उम्मीदें


संसद का बजट-सत्र 31 जनवरी से शुरू होने जा रहा है। आम बजट 1 फरवरी को पेश किया जाएगा। दो कारणों से इस बजट के सामने चुनौतियाँ हैं। एक तो महामारी की तीसरी सबसे ऊँची लहर सामने है। दूसरे पाँच राज्यों में चुनाव हैं, जिसके कारण सरकार के सामने अलोकप्रियता से बचने और लोकलुभावन रास्ता अपनाने की चुनौती है। देश का कर-राजस्व बढ़ रहा है, फिर भी जीएसटी अब भी चुनौती बना है। आयकर को लेकर मध्यवर्ग आस लगाए बैठा है। रेल बजट अब आम बजट का हिस्सा होता है। उसे लेकर घोषणाएं संभव हैं। ग्रामीण विकास, खेती, शिक्षा, सार्वजनिक स्वास्थ्य और ग्रामीण महिलाओं से जुड़े कार्यक्रम भी सामने आएंगे। ज्यादा बड़ा सवाल यह है कि कोविड-19 की लहर के दौरान यह सत्र चलेगा कैसे? पर सबसे बड़ी उत्सुकता यह जानने में है कि अर्थव्यवस्था किस दिशा में जा रही है और उत्तर-कोरोना व्यवस्था कैसी होगी? बढ़ती बेरोजगारी को कैसे रोका जाएगा, सामाजिक कल्याण के नए उपाय क्या होंगे और उनके लिए संसाधन कहाँ से आएंगे?

राजस्व-घाटा

सरकार 2021-22 बजट के अनुमानित ख़र्च के ऊपर, 3.3 लाख करोड़ रुपए का अतिरिक्त व्यय कर रही है, जिसे ग़रीबों को मुफ्त अनाज उपलब्ध कराने, एयर इंडिया का निजीकरण की प्रक्रिया के तहत उसके कर्ज़ की अदायगी, निर्यात को बढ़ावा देने की विभिन्न स्कीमों के तहत प्रोत्साहन उपलब्ध कराने, और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी स्कीम के अंतर्गत ज़्यादा पैसा देने पर ख़र्च किया जा रहा है। रेटिंग एजेंसी इक्रा ने चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटा 16.6 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान लगाया है, जो जीडीपी का करीब 7.1 फीसदी होगा। राज्यों का राजकोषीय घाटा 3.3 फीसदी के अपेक्षाकृत कम स्तर पर रहने का अनुमान है। इस तरह केंद्र एवं राज्यों का सामान्य राजकोषीय घाटा जीडीपी के करीब 10.4 प्रतिशत तक पहुंचेगा।

बेहतर कर-संग्रह

अर्थव्यवस्था की पहली झलक सत्र के पहले दिन आर्थिक समीक्षा से मिलेगी। सरकार पिछले साल की तुलना में बेहतर स्थिति में है। वित्त मंत्रालय ने पिछले महीने प्रत्यक्ष कर-संग्रह के आंकड़े जारी करते हुए बताया कि 16 दिसंबर तक नेट कलेक्शन 9.45 लाख करोड़ रुपये है। एक साल पहले इसी अवधि में यह 5.88 लाख करोड़ रुपये था। इस तरह 60.8 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है। वेतनभोगी और पेंशनधारक आयकर-राहत की आस में बैठे हैं। उन्हें उम्मीद है कि 50,000 रुपये की मानक कटौती की सीमा को 30 से 35 फीसदी तक बढ़ाया जा सकता है। जिन्होंने नई कर-व्यवस्था का विकल्प चुना है, वे स्टैंडर्ड डिडक्शन के लिए पात्र नहीं हैं। कोविड-19 के कारण स्वास्थ्य संबंधी खर्चों को देखते हुए इस सीमा को 30-35 प्रतिशत बढ़ाने की मांग की जा रही है। घर से काम करने के कारण बिजली और इंटरनेट पर अतिरिक्त खर्च करना पड़ रहा है। कोविड मरीजों को भी छूट देने की माँग है।

Sunday, December 19, 2021

अर्थव्यवस्था पर महंगाई का खतरा


 कोविड के नए वेरिएंट के सामने आने के बाद दुनिया के सामने कई प्रकार के खतरे खड़े हो रहे हैं। भारत में इसका सबसे बड़ा प्रभाव आर्थिक संवृद्धि पर पड़ सकता है। कम से कम दो जगहों पर हम प्रत्यक्ष रूप में इसे देख सकते हैं। एक, महंगाई और दूसरे बेरोजगारी। कच्चे माल की ऊँची कीमतों, परिवहन की लागत, सप्लाई चेन में अड़ंगों आदि के कारण लागत में वृद्धि के दबाव मुद्रास्फीति को बढ़ा रहे हैं। ऐसे में ओमिक्रॉन, महंगाई और बेरोजगारी जैसे शब्द परेशान कर रहे हैं। उधर देश के विदेशी-मुद्रा भंडार में लगातार तीन सप्ताह से गिरावट है। गिरावट की वजह विदेशी मुद्रा आस्तियोंं (एफसीए) में गिरावट आना है, जो कुल मुद्रा भंडार का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

थोक मूल्य सूचकांक

देश में थोक मूल्य सूचकांक (डब्लूपीआई) 2011-12 सीरीज के अपने अधिकतम स्तर पर पहुंच गया है। उद्योग मंत्रालय ने 14 दिसंबर को थोक महंगाई दर से जुड़े जो ताजा आँकड़े जारी किए हैं, उनके मुताबिक, नवंबर 2021 में यह दर 14.23 प्रतिशत पर पहुंच गई, जो पिछले 12 साल का उच्चतम स्तर है। एक साल पहले नवंबर 2020 में यह 2.29 फीसदी थी। मुख्यतः खाद्य और ईंधन से जुड़ी ऊँची थोक मुद्रास्फीति ने देश में महंगाई को रिकॉर्ड पर पहुँचा दिया। अब आशंका है कि आगामी महीनों में खुदरा मुद्रास्फीति उच्च स्तर पर पहुंच सकती है। ऐसा खाद्य मुद्रास्फीति के 4.88 फीसदी पर पहुंचने और ईंधन महंगाई उच्च पेट्रोलियम कीमतों के मुकाबले 39.81 फीसदी पर पहुंचने के कारण हुआ है। इस साल अप्रैल से लगातार आठवें महीने थोक मुद्रास्फीति 10 फीसदी के ऊपर बनी हुई है।

बेमौसम तेजी

सब्जियों की कीमत में बेमौसम तेजी के साथ अंडों, मांस और मछली के दामों में वृद्धि तथा मसालों के दाम में आई तेजी ने प्राथमिक खाद्य मुद्रास्फीति को नवंबर महीने में 4.9 फीसदी के साथ 13 महीनों के उच्च स्तर पर पहुँचा दिया है। थोक बाजार में कीमतों में हुए बदलाव को बताया है थोक मूल्य सूचकांक। इसका मकसद बाजार में उत्पादों की गतिशीलता पर नजर रखना है, ताकि माँग और आपूर्ति की स्थिति का पता चल सके। इससे निर्माण उद्योग और उत्पादन से जुड़ी स्थितियों का पता भी लगता रहता है। पर इस सूचकांक में सर्विस सेक्टर की कीमतें शामिल नहीं होतींऔर यह बाजार के उपभोक्ता मूल्य की स्थिति को भी नहीं दिखाता है। पहले डब्लूपीआई का बेस ईयर 2004-05 था, लेकिन अप्रैल 2017 में इसे बदलकर 2011-12 कर दिया गया है।

नागरिकों पर प्रभाव

पुराने बेस ईयर के हिसाब से देखें, तो डब्लूपीआई अप्रैल 2005 से लेकर अब तक के अपने उच्चतम स्तर पर है। ग्राहक के तौर पर हम खुदरा बाजार से सामान खरीदते हैं। इससे जुड़ी कीमतों में बदलाव उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) में दिखाई पड़ता है। सरकार ने डब्लूपीआई के साथ ही सीपीआई के ताजा आँकड़े भी जारी किए हैं। इसके मुताबिक, सीपीआई पर आधारित खुदरा महंगाई दर नवंबर 2021 में 4.91 प्रतिशत पर पहुंच गई है। यह दर तीन महीने के उच्चतम स्तर पर है। बहरहाल थोक मूल्य सूचकांक बढ़ा, तो उपभोक्ता सूचकांक भी बढ़ेगा। फिलहाल वह 4.91 प्रतिशत है, जो रिजर्व बैंक की संतोष-रेखा छह प्रतिशत के भीतर है। फिर भी थोक और खुदरा का असंतुलन चिंता पैदा कर रहा है।

Sunday, October 31, 2021

परीक्षा 'वोकल फॉर लोकल' की


दीवाली का समय है, जो उत्सवों-पर्वों के अलावा अर्थव्यवस्था की सेहत और पारम्परिक कारोबार के नए खातों का समय होता है। महामारी के कारण बिगड़ी आर्थिक गतिविधियाँ पटरी पर वापस आ रही हैं। साथ ही सरकार और कारोबार की परीक्षा का यह समय है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गत 22 अक्तूबर को राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में देशवासियों से भारत में बने उत्पाद खरीदने और स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देने के अभियान 'वोकल फॉर लोकल' को सफल बनाने का आग्रह किया।

कोविड-19 के बचाव में एक अरब टीकों के लगने से देश भर में विश्वास का माहौल बना है। त्योहारी सीजन की वजह से भी आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा। विशेषज्ञ और एजेंसियां अर्थव्यवस्था को लेकर उत्साहित हैं। दूसरी तरफ माँग में तेजी और वैश्विक मुद्रास्फीति के कारण भारत में कीमतें बढ़ने का अंदेशा है। खनिज तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में उछाल, खाद्य तेलों की महंगाई, धातुओं की कमी और कोयले की सप्लाई में दिक्कतों के कारण अर्थव्यवस्था में अड़ंगे पैदा लगेंगे।   

साख और शक्ति

सवाल कई हैं। मेक इन इंडिया और आत्म निर्भर भारत जैसे सरकारी कार्यक्रम क्या वैश्वीकरण के इस दौर में सफल होंगे? क्या हम अपने उत्पाद वैश्विक बाजार में बेचने में सफल होंगे? यों तो हमारा आंतरिक बाजार बहुत बड़ा है, पर क्या हमारे उपभोक्ता की क्रय-शक्ति इतनी है कि वह अर्थव्यवस्था को तेजी से बढ़ाने में मददगार हो? अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के इस महीने जारी अनुमानों के मुताबिक, भारत इस वित्तवर्ष में 9.5 फीसदी और अगले वित्तवर्ष में 8.5 फीसदी की संवृद्धि दर के साथ दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था बना रहेगा। मूडीज़ ने भारत की साख को बेहतर करते हुए नकारात्मक से स्थिर श्रेणी में कर दिया। उसका कहना है कि एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में पुनरुद्धार जारी है और चालू वित्त वर्ष में संवृद्धि दर महामारी से पहले के मुकाबले बेहतर होगी।

भरोसा बढ़ा

मोदी ने कहा कि एक अरब टीके दिए जाने से छोटे कारोबारों, फेरीवालों और पटरी वाले विक्रेताओं के लिए उम्मीद की किरण जगी है। एक ज़माने में विदेशों में बने सामान में लोगों की दिलचस्पी होती थी, लेकिन आज 'मेक इन इंडिया' की ताकत बढ़ रही है। पिछले साल दीवाली के समय लोगों के दिलो-दिमाग में तनाव था लेकिन अब टीकाकरण अभियान की वजह से भरोसा है। उन्होंने कहा, मेरे देश में बने टीके मुझे सुरक्षा दे सकते हैं तो देश में बनाए गए सामान भी मेरी दीवाली को और भव्य बना सकते हैं।

इस साल मार्च के बाद से निर्यात में भी वृद्धि हुई है। वैश्विक व्यापार में सुधार के कारण इंजीनियरिंग माल, कपड़ों, रासायनिक उत्पादों के निर्यात में वृद्धि हुई है। माल और सेवा के संयुक्त निर्यात में सितंबर में पिछले साल की इसी अवधि में हुए निर्यात के मुकाबले 22 फीसदी की वृद्धि हुई। निर्यात ने महामारी शुरू होने से पहले के आंकड़े को पार कर लिया है।

राजकोषीय घाटे में कमी

एक और सकारात्मक खबर है। राजकोषीय घाटा अप्रैल-सितंबर अवधि के दौरान घटकर बजट अनुमान का 35 प्रतिशत रह गया है, जो पिछले साल की इसी अवधि में बजट अनुमान का 115 प्रतिशत था। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटा चार साल के निम्नतम स्तर 5.26 लाख करोड़ रुपये रह सकता है। दूसरी तरफ कुल व्यय बजट अनुमान से ज्यादा हो सकता है। उत्साह का मुख्य कारण है सितंबर में राजस्व में हुई 50 प्रतिशत की उल्लेखनीय वृद्धि। अग्रिम कर और अप्रत्यक्ष कर में तेज बढ़ोतरी हुई है। महालेखा नियंत्रक के आंकड़ों से पता चलता है कि सरकार को सितंबर तक 10.8 लाख करोड़ रुपये (2021-22 की कुल प्राप्तियों के बजट अनुमान की तुलना में 27.3 प्रतिशत) मिले हैं। इसमें 9.2 लाख करोड़ रुपये कर राजस्व, 1.6 लाख करोड़ रुपये गैर कर राजस्व और 18,118 करोड़ रुपये गैर ऋण पूंजीगत प्राप्तियां हैं।

Tuesday, August 31, 2021

पहली तिमाही में संवृद्धि 20.1 फीसदी

अच्छी खबर यह है कि देश की अर्थव्यवस्था पटरी पर लौटी रही है। चालू वित्त-वर्ष की पहली तिमाही अप्रैल-जून देश की जीडीपी संवृद्धि दर 20.1 फीसदी हो गई, जबकि, अर्थशास्त्रियों ने 18.5 फीसदी का अनुमान लगाया था। उधर रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा है कि अर्थव्यवस्था में रिकवरी के संकेत मिल रहे हैं, लेकिन दुनिया पर कोविड का संकट बना हुआ है। अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए हर जरूरी कदम उठा रहे है।

 राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) की ओर से जारी आँकड़ों के मुताबिक, अप्रैल-जून तिमाही में देश की जीडीपी संवृद्धि 20.1 रही, जबकि पिछले वित्त-वर्ष में पहली तिमाही में जीडीपी में 24 फीसदी से ज्यादा का संकुचन हुआ था। एनएसओ के अनुसार जनवरी-मार्च तिमाही के मुकाबले अप्रैल-जून तिमाही में खनन के क्षेत्र में संवृद्धि -5.7 फीसदी से बढ़कर 18.6 फीसदी हो गई है। बिजली और गैस में 9.1 फीसदी से बढ़कर 14.3 फीसदी, निर्माण (कंस्ट्रक्शन) में 14.5 फीसदी से बढ़कर 68.3 फीसदी, फाइनेंशियल-रियल एस्टेट में 5.4 फीसदी से गिरकर 3.7 फीसदी रह गई है।