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Tuesday, January 3, 2023

क्या हिंदू-मन श्रेष्ठता के नशे में चूर है?

कतरनें यानी मीडिया में जो इधर-उधर प्रकाशित हो रहा है, उसके बारे में अपने पाठकों को जानकारी देना. ये कतरनें केवल जानकारी नहीं है, बल्कि विचारणीय हैं.

द वायर में अपूर्वानंद का एक आलेख न केवल पठनीय है, बल्कि इसपर चर्चा होनी चाहिए. उन्होंने लिखा है:

‘नए साल में किन चिंताओं, चुनौतियों और उम्मीदों के साथ प्रवेश कर रहे हैं?’, मित्र का प्रश्न था. अमूमन नए साल के इरादों का जिक्र होता है. लेकिन एक समाज या एक देश के तौर पर हम कुछ इरादे करें और वे कारगर हों, इसके पहले ईमानदारी से अपनी हालत का जायज़ा लेना ज़रूरी होगा.

चिंता सबसे बड़ी क्या है? कुछ लोग कहते हैं समाज में समुदायों के बीच बढ़ती हुई खाई. मुख्य रूप से हिंदू मुसलमान के बीच अलगाव. लेकिन ऐसा कहने से भरम होता है कि इसमें दोष दोनों पक्षों का है. बात यह नहीं है.

असल चिंता का विषय है, भारत में ऐसे हिंदू दिमाग का निर्माण जो श्रेष्ठतावाद के नशे में चूर है. इसी से बाकी बातें जुड़ी हुई हैं. एक श्रेष्ठतावादी मस्तिष्क बाहरी प्रभावों से डरा हुआ, संकुचित और बंद दिमाग होता है. इस वजह से वह कमजोर भी हो जाता है.

स्वीकार करने में बुरा लगता है, लेकिन सच है कि आज का आम हिंदू मन बाहरी, विदेशी के प्रति द्वेष और घृणा से भरा हुआ है. बाहरी तरह-तरह के हो सकते हैं. वे मुसलमान हैं और ईसाई भी. उनसे उसका रिश्ता शत्रुता का ही हो सकता है. इस लेख को पूरा पढ़ें यहाँ

चीन से रिश्ते

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने चीन के साथ बने हालात को 'प्रचंड चुनौती' बताया है. हालांकि उन्होंने इस बारे में और कुछ नहीं कहा है कि 'प्रचंड चुनौती' से उनका क्या मतलब है. बीबीसी हिंदी ने कोलकाता से छपने वाले अंग्रेज़ी अख़बार टेलीग्राफ़ की रिपोर्ट का हवाला देते हुए लिखा है कि एस जयशंकर इससे पहले चीन के साथ भारत के द्विपक्षीय संबंधों को 'असामान्य' कहते रहे हैं और इस लिहाज से विदेश मंत्री की ताज़ा टिप्पणी एक क़दम आगे बढ़ने जैसी है.