सीपीआई के 100 साल
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का आज 26 दिसंबर को स्थापना दिवस है। आज यह अपने 100वें वर्ष में प्रवेश कर गई है। इसकी स्थापना 26 दिसम्बर 1925 को कानपुर नगर में हुई थी। भारत के सामाजिक-सांस्कृतिक इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले एक और संगठन का जन्म 1925 में हुआ था। वह संगठन है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, जिसकी स्थापना 27 सितंबर 1925 को विजयदशमी के दिन डॉ केशव हेडगेवार ने की थी। इन दोनों संगठनों के इतिहास और उनकी भूमिकाओं को लेकर आने वाले वर्ष में सक्रिय-विमर्श की आशा है। शताब्दी-वर्ष पर दोनों संगठनों से जुड़े दो लेखों के अंश यहाँ मैं उधृत कर रहा हूँ। आप चाहें, तो विस्तार से उन्हें पढ़ सकते हैं। पहला लेख है सीपीआई के महा सचिव डी राजा का और दूसरा लेख है भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ सांसद विनय सहस्रबुद्धे का।
कम्युनिस्ट आंदोलन में भाकपा की स्थापना तिथि को लेकर कुछ विवाद है। भाकपा का मानना है कि उसका गठन 25 दिसम्बर 1925 को कानपुर में हुई पार्टी कांग्रेस में हुआ था, लेकिन मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, जो 1964 में हुए पार्टी-विभाजन के बाद बनी थी, मानती है कि पार्टी का गठन 1920 में हुआ था। माकपा के दावे के अनुसार भारत की इस सबसे पुरानी कम्युनिस्ट पार्टी का गठन 17 अक्टूबर 1920 को कम्युनिस्ट इंटरनैशनल की दूसरी कांग्रेस के तुरंत बाद हुआ था। इतना ज़रूर कहा जा सकता है कि 1920 से ही पार्टी के गठन की प्रक्रिया चल रही थी और उसे लेकर कई समूह भी उभर कर सामने आए थे, लेकिन औपचारिक रूप से 1925 में ही पार्टी का गठन हुआ। इसके शुरुआती नेताओं में मानवेन्द्र नाथ राय, अवनि मुखर्जी, मोहम्मद अली और शफ़ीक सिद्दीकी आदि प्रमुख थे।
आज के इंडियन एक्सप्रेस ने ‘100 years of the Communist Party of India — its role in freedom struggle and independent India’ शीर्षक के साथ सीपीआई के महासचिव डी राजा का विशेष लेख प्रकाशित किया है। उन्होंने लिखा है:
पिछले 100 वर्षों में सीपीआई का इतिहास हमारे देश के लिए संघर्ष और बलिदान की गाथा है। सीपीआई का स्थापना दिवस, 26 दिसंबर, 1925, भारत के इतिहास में अंकित है। भारत का स्वतंत्रता संग्राम और हमारे संविधान का मसौदा तैयार करना विविध वैचारिक आंदोलनों से जुड़ा हुआ है, जिनमें कम्युनिस्ट आंदोलन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1920 के दशक के उत्तरार्ध से मजदूरों, किसानों, महिलाओं और अन्य हाशिए के वर्गों के मुद्दों को आवाज़ देने के लिए एक अखिल भारतीय स्तर का संगठन बनाने के लिए ठोस प्रयास किए गए थे। कानपुर सम्मेलन (1925) से पहले भी, अंग्रेज कम्युनिस्ट विचारधारा के प्रति असहिष्णु थे। हालाँकि, कानपुर, मेरठ और पेशावर षडयंत्र मामलों जैसी कठिनाइयाँ विफल हो गईं क्योंकि कम्युनिस्टों ने लोगों के मुद्दों को बरकरार रखा।