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Sunday, January 12, 2014

जीएसएलवी :भारतीय विज्ञान-गाथा का एक पन्ना

दुनिया के किसी भी देश के अंतरिक्ष अभियान पर नजर डालेंगे तो पाएंगे कि हर सफलता के पीछे विफलताओं की कहानी छिपी होती। हर विफलता को सीढ़ी की एक पायदान बना लें वह सफलता के दरवाजे पर पहुँचा देती है। यह बात जीवन पर भी लागू होती है। भारत के जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लांच वेहिकल (जीएसएलवी) के इतिहास को देखें तो पाएंगे कि यह रॉकेट कई प्रकार की चुनौतियों का सामना करते हुए तैयार हुआ है। इसकी सफलता-कथा ही लोगों को याद रहेगी, जबकि जिन्हें जीवन में चुनौतियों का सामना करना अच्छा लगता है, वे इसकी विफलता की गहराइयों में जाकर यह देखना चाहेंगे कि वैज्ञानिकों ने किस प्रकार इसमें सुधार करते हुए इसे सफल बनाया।

जीएसएलवी की चर्चा करने के पहले देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम पर नजर डालनी चाहिए। यह समझने की कोशिश भी करनी चाहिए कि देश को अंतरिक्ष कार्यक्रम की जरूरत क्या है। कुछ लोग मानते हैं कि जिस देश में सत्तर करोड़ से ज्यादा लोग गरीब हों और जहाँ चालीस करोड़ से ज्यादा लोग खुले में शौच को जाते हों उसे अंतरिक्ष में रॉकेट भेजना शोभा नहीं देता। पहली नजर में यह बात ठीक लगती है। हमें इन समस्याओं का निदान करना ही चाहिए। पर अंतरिक्ष कार्यक्रम क्या इसमें बाधा बनता है? नहीं बनता बल्कि इन समस्याओं के समाधान खोजने में भी अंतरिक्ष विज्ञान मददगार हो सकता है।

Sunday, December 22, 2013

'लोक' जाग जाता है तो लोकपाल आता है

लोकपाल विधेयक पास होने के बाद अब अनेक सवाल उठेंगे। क्या अब देश से भ्रष्टाचार का सफाया हो जाएगा? क्या हमें इतना ही चाहिए था? सवाल यह भी है कि यह काम दो साल पहले क्यों नहीं पाया था? जो राजनीतिक दल कल तक इस कानून का मज़ाक उड़ा रहे थे वे इसे पास करने में एकजुट कैसे हो गए? और अरविंद केजरीवाल और उनके साथी जो कल तक अन्ना हजारे के ध्वज वाहक थे आज इसे जोकपाल कानून क्यों कह रहे हैं? राहुल गांधी ने इस कानून को लेकर पहले गहरी दिलचस्पी नहीं दिखाई। वे अब इसे अपना कानून क्यों बता रहे हैं? इसे पास कराने में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच इतनी जबरदस्त सहमति कैसे बन गई?
दो साल पहले केजरीवाल कहते थे कि हम चुनाव लड़ने नहीं आए हैं। उन्होंने चुनाव लड़ा। ऐसी तमाम अंतर्विरोधी बातों से ही एक लोकतांत्रिक व्यवस्था विकसित होती है। इन दिनों अचानक एक नए किस्म की राजनीति ने जन्म लिया है। यह शुभ लक्षण है। जरूरी नहीं कि यह उत्साह बना रहे। संभव है कि निराशा का कोई और कारण हमारे भीतर पैदा हो। फिलहाल हमें धैर्य और समझदारी का परिचय देना चाहिए।

Friday, December 20, 2013

सूचना की आँधी, बहस का शोर

तमाम विफलताओं के बावजूद विस्तार की राह पर है मीडिया

दिल्ली में विधानसभा चुनाव की गतिविधियाँ तब शुरू ही हुईं थीं। एक दिन अचानक मोबाइल फोन की घंटी बजी। ‘हेलो मैं अरविंद केजरीवाल बोल रहा हूँ। फोन काटिए मत यह रिकॉर्डेड मैसेज है.....।’ अपनी बात कहने का यह एक नया तरीका था। यह एक शुरुआत थी। इसके बाद इस किस्म के तमाम फोन और एसएमएस आए। ऐसे फोन भी आए, जिनमें अरविंद केजरीवाल या उनकी पार्टी के खिलाफ संदेश था। इसमें दो राय नहीं कि इन चुनावों में ‘न्यू मीडिया’ का जबरदस्त हस्तक्षेप था। ईआरआईएस ज्ञान फाउंडेशन और भारतीय इंटरनेट एवं मोबाइल संघ द्वारा कराए गए एक अध्ययन के मुताबिक वर्ष 2014 में होने वाले अगले आम चुनाव में सोशल मीडिया लोकसभा की 160 सीटों को प्रभावित करेगा। यह बात इन विधानसभा चुनावों में दिखाई भी दी। अध्ययन में कहा गया है कि अगले आम चुनाव में लोकसभा की कुल 543 सीटों में से 160 अहम सीटों पर सोशल मीडिया का प्रभाव रहने की संभावना है, जिनमें महाराष्ट्र में सबसे हाई इम्पैक्ट वाली 21 सीटें और गुजरात में 17 सीटें शामिल है। आशय उन सीटों से है, जहां पिछले लोकसभा चुनाव में विजयी उम्मीदवार के जीत का अंतर फेसबुक का प्रयोग करने वालों से कम है अथवा जिन सीटों पर फेसबुक का प्रयोग करने वालों की संख्या कुल मतदाताओं की संख्या का 10 प्रतिशत है।

Wednesday, December 11, 2013

अंतरिक्ष में कौन रहता है?

दुनिया का सबसे बड़ा अनुत्तरित सवाल

अमेरिका से एक साप्ताहिक पत्रिका निकलती थी वीकली वर्ल्ड न्यूज। इस पत्रिका की खासियत थी ऊल-जलूल, रहस्यमय, रोमांचकारी और मज़ाकिया खबरें। इन खबरों को वड़ी संजीदगी से छापा जाता था। यह पत्रिका सन 2007 में बंद हो गई, पर आज भी यह एक टुकड़ी के रूप में लोकप्रिय टेब्लॉयड सन के इंसर्ट के रूप में वितरित होती है। अलबत्ता इसकी वैबसाइट लगातार सक्रिय रहती है। इस अखबार की ताजा लीड खबर हैएलियन स्पेसशिप टु अटैक अर्थ इन डेसेम्बर दिसम्बर में धरती पर हमला करेंगे अंतरिक्ष यान। खबर के अनुसार सेटी (सर्च फॉर एक्स्ट्रा टेरेस्ट्रियल इंटेलिजेंस) के वैज्ञानिकों ने घोषणा की है कि सुदूर अंतरिक्ष से तीन यान धरती की ओर बढ़ रहे हैं, जो दिसम्बर तक धरती के पास पहुँच जाएंगे। इनमें सबसे बड़ा यान तकरीबन 200 मील चौड़ा है। बाकी दो कुछ छोटे हैं। इस वक्त तीनों वृहस्पति के नजदीक से गुजर रहे हैं और अक्टूबर तक धरती से नजर आने लगेंगे। यह खबर कोरी गप्प है, पर इसके भी पाठक हैं। पश्चिमी देशों में अंतरिक्ष के ज़ीबा और गूटान ग्रहों की कहानियाँ अक्सर खबरों में आती रहतीं हैं, जहाँ इनसान से कहीं ज्यादा बुद्धिमान प्राणी निवास करते हैं। अनेक वैबसाइटें दावा करती हैं कि दुनिया के देशों की सरकारें इस तथ्य को छिपा रही हैं कि अंतरिक्ष के प्राणी धरती पर आते हैं। आधुनिक शिक्षा के बावजूद दुनिया में जीवन और अंतरिक्ष विज्ञान को लेकर अंधविश्वास और रहस्य ज्यादा है, वैज्ञानिक जानकारी कम।

Sunday, December 8, 2013

चुनाव परिणाम जो भी कहें

जब आप इन पंक्तियों को पढ़ रहे होंगे तब तक पाँच राज्यों के चुनाव परिणाम या तो आने वाले होंगे या आने शुरू हो चुके होंगे। या पूरी तरह आ चुके हों। अब इस बात का कोई मतलब नहीं कि परिणाम क्या हैं। वस्तुतः यह लोकसभा चुनाव का प्रस्थान-बिंदु है। तारीखों की घोषणा बाकी है। सभी प्रमुख पार्टियों ने प्रत्याशियों को चुनने का काम शुरू कर दिया है। स्थानीय स्तर पर छोटे-मोटे गठबंधनों को छोड़ दें तो इस बार चुनाव के पहले गठबंधन नहीं होंगे, क्योंकि ज्यादातर पार्टियाँ समय आने पर फैसला और सिद्धांत और कार्यक्रमों का विवेचन करेंगी। आने वाला चुनाव राजनीतिक मौका परस्ती का बेहतरीन उदाहरण बनने वाला है।

पिछले डेढ़-दो महीने की चुनावी गतिविधियों को देखते हुए यह भी समझ में आ रहा है कि आरोप-प्रत्यारोप का स्तर आने वाले समय में और भी घटिया हो जाएगा। गटर राजनीति अपने निम्नतम रूप में सामने आने वाली है। स्टिंग ऑपरेशनों और भंडाफोड़ पत्रकारिता के धुरंधरों का बाज़ार खुलने वाला है। दिल्ली में ‘आप’ के प्रदर्शन के मद्देनज़र यह देखने की ज़रूरत होगी कि क्या कोई वैकल्पिक राजनीति भी राष्ट्रीय स्तर पर उभरेगी। क्या ‘आप’ लोकसभा चुनाव लड़ेगी? इससे जुड़े लोग दावा कर रहे हैं कि पार्टी की जड़ें देश भर में हैं। पर वह व्यावहारिक सतह पर नज़र नहीं आती। हाँ शहरी मध्य वर्ग की बेचैनी और उसकी राजनीतिक चाहत साफ दिखाई पड़ रही है। और यह भी कि यह मध्य वर्ग कांग्रेस के साथ नहीं है।

Tuesday, December 3, 2013

नेपाल में कट्टरपंथ की पराजय

नेपाल की संविधान सभा की 601 सीटों के लिए हुए चुनाव में किसी भी पार्टी को साफ बहुमत न मिल पाने के कारण संशय के बादल अब भी कायम हैं, पर इस बार सन 2008 के मुकाबले कुछ बदली हुई परिस्थितियाँ भी हैं। माओवादियों के दोनों धड़े किसी न किसी रूप में पराजित हुए हैं। पुष्प दहल कमल यानी प्रचंड की एकीकृत नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) तीसरे नम्बर पर रही है। वहीं उनके प्रतिस्पर्धी मोहन वैद्य किरण की भारत-विरोधी नेकपा-माओवादी और 33 अन्य दलों की चुनाव बहिष्कार घोषणा भी बेअसर रही। इसका मतलब है कि नेपाली जनमत शांतिपूर्ण तरीके से अपने लोकतंत्र को परिभाषित होते हुए देखना चाहता है। हालांकि नेपाल कांग्रेस और एमाले चाहें तो मिलकर सरकार बना सकते हैं। और अपनी मर्जी का संविधान भी तैयार कर सकते हैं। पर कोशिश होनी चाहिए कि बहु दलीय राष्ट्रीय सरकार बनाई जाए, क्योंकि देश को इस समय आम सहमति की ज़रूरत है। व्यवहारिक अर्थ में यह संसद भी है, पर वास्तव में यह संविधान सभा है। अभी इस मंच पर मतभेदों को राजनीतिक शक्ल नहीं देनी चाहिए। कोशिश होनी चाहिए कि फैसले आम राय से हों। इस बार पार्टियों ने विश्वास दिलाया है कि वे एक साल के भीतर देश को संविधान दे देंगी। यह तभी संभव है, जब वे अतिवादी रुख अख्तियार न करें।

Sunday, November 10, 2013

भारतीय विज्ञान का शोकेस मंगल अभियान

मंगलयान अभियान के बारे में मीडिया की अपेक्षाकृत बेहतर कवरेज के बावजूद बड़ी संख्या में लोग इसके बारे में काफी कम जानते हैं। जानते भी हैं तो यही कि कब यह धरती की कक्षा से बाहर निकलेगा और किस तरह से मंगल की कक्षा में प्रवेश करेगा। काफी लोगों को यह समझ में नहीं आता कि इस सब की ज़रूरत क्या है। मान लिया हमारे यान ने वहाँ मीथेन होने का पता लगा ही लिया तो इससे हमें क्या मिल जाएगा? हम पता नहीं लगाते तो अमेरिका और रूस वाले लगाते। मंगल के पत्थरों, चट्टानों और ज्वालामुखियों की तस्वीरें लाने के लिए 450 करोड़ फूँक कर क्या मिला? इससे बेहतर होता कि हम कुछ गरीबों के बच्चों की पढ़ाई का इंतज़ाम करते। पीने के पानी के बारे में सोचते। भोजन, दवाई का इंतज़ाम करते। यह सवाल भी उन लोगों के मन में आया है, जिन्हें सचिन तेन्दुलकर की हाहाकारी कवरेज से बाहर निकल कर कुछ सोचने-समझने की फुरसत है। भारत के बाहर कुछ लोगों को लगता है कि हमने चीन से प्रतिद्विंदता में यह अभियान भेजा है। देश की राजनीति से जुड़ा पहलू भी है। शायद यूपीए सरकार ने अपनी उपलब्धियाँ गिनाने के लिए मंगलयान भेजा है। पिछले साल जुलाई में इस अभियान को स्वीकृति मिली। 15 अगस्त को प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में इसकी घोषणा की और आनन-फानन इसे भेज दिया गया।

Wednesday, October 23, 2013

शटडाउन अंकल सैम

प्रसिद्ध पत्रिका इकोनॉमिस्टने लिखा है, आप कल्पना करें कि किसी टैक्सी में बैठे हैं और ड्राइवर तेजी से चलाते हुए एक दीवार की और ले जाए और उससे कुछ इंच पहले रोककर कहे कि तीन महीने बाद भी ऐसा ही करूँगा। अमेरिकी संसद द्वारा अंतिम क्षण में डैट सीलिंग पर समझौता करके फिलहाल सरकार को डिफॉल्ट से बचाए जाने पर टिप्पणी करते हुए पत्रिका ने लिखा है कि इस लड़ाई में सबसे बड़ी हार रिपब्लिकनों की हुई है। डैमोक्रैटिक पार्टी को समझ में आता था कि अंततः इस संकट की जिम्मेदारी रिपब्लिकनों पर जाएगी। उन्होंने हासिल सिर्फ इतना किया कि लाभ पाने वालों की आय की पुष्टि की जाएगी। पर क्या डैमोक्रेटों की जीत इतने भर से है कि बंद सरकार खुल गई और डिफॉल्ट का मौका नहीं आया? वे हासिल सिर्फ इतना कर पाए कि डैट सीलिंग तीन महीने के लिए बढ़ा दी गई। अब तमाशा नए साल पर होगा। यह संकट यों तो अमेरिका का अपना संकट लगता है, पर इसमें भविष्य की कुछ संभावनाएं भी छिपीं हैं। अमेरिकी जीवन की महंगाई हमारे जैसे देशों के लिए अच्छा संदेश लेकर भी आई है। कम से कम स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में हम न केवल विश्व स्तरीय है, बल्कि खासे किफायती भी हैं। इसके पहले अमेरिका में आर्थिक प्रश्नों पर मतभेद सरकार के आकार, उसके ख़र्चों और अमीरों पर टैक्स लगाने को लेकर होते थे, पर इस बार ओबामाकेयर का मसला था।

Saturday, September 14, 2013

सैर करनी है तो अंतरिक्ष में आइए

 आपकी जेब में पैसा है तो अगले साल गर्मियों की छुट्टियाँ अंतरिक्ष में बिताने की तैयारी कीजिए। रिचर्ड ब्रॉनसन की कम्पनी वर्जिन एयरलाइंस ने पिछले शुक्रवार को अपने स्पेसक्राफ्ट वर्जिन गैलेक्टिकका दूसरा सफल परीक्षण कर लिया। वर्जिन गैलेक्टिक पर सवार होकर अंतरिक्ष में जाने वालों की बुकिंग शुरू हो गई है। एक टिकट की कीमत ढाई लाख डॉलर यानी कि तकरीबन पौने दो करोड़ रुपए है, जो डॉलर की कीमत के साथ कम-ज्यादा कुछ भी हो सकती है। वर्जिन गैलेक्टिक आपको किसी दूसरे ग्रह पर नहीं ले जाएगा। बस आपको सब ऑर्बिटल स्पेस यानी कि पृथ्वी की कक्षा के निचले वाले हिस्से तक लेजाकर वापस ले आएगा। कुल जमा दो घंटे की यात्रा में आप छह मिनट की भारहीनता महसूस करेंगे। जिस एसएस-2 में आप विराजेंगे उसमें दो पायलट होंगे और आप जैसे छह यात्री। लगे हाथ बता दें कि इस यात्रा के लिए जून के महीने तक 600 के आसपास टिकट बिक चुके हैं। वर्जिन गैलेक्टिक की तरह कैलीफोर्निया की कम्पनी एक्सकोर ने लिंक्स रॉकेट प्लेन तैयार किया है। यह भी धरती से तकरीबन 100 किलोमीटर की ऊँचाई तक यात्री को ले जाएगा।

Saturday, August 31, 2013

सीरियाः पश्चिम एशिया में एक और ‘इराक’?

 कई सवाल एक साथ हैं? अमेरिकी सेना अगले साल अफगानिस्तान से हटने जा रही है, पर उससे पहले ही सीरिया में अपने पैर फँसाकर क्या वह हाराकीरी करेगी? या वह शिया और सुन्नियों के बीच झगड़ा बढ़ाकर अपनी रोटी सेकना चाहता है? क्या उसने ईरान पर दबाव बनाने के लिए सलाफी इस्लाम के समर्थकों से हाथ मिला लिया है, जिनका गढ़ पाकिस्तान है और जिसे सऊदी अरब से पैसा मिलता है? उधर रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने सऊदी अरब को धमकी दी है कि सीरिया पर हमला हुआ तो हम सऊदी अरब पर हमला बोल देंगे?  यह धमकी सऊदी शाहजादे बंदर बिन सुल्तान अल-सऊद की इस बात से नाराज होकर दी है कि रूस यदि सीरिया की पराजय को स्वीकार नहीं करेगा तो अगले साल फरवरी में होने वाले विंटर ओलिम्पिक्स के दौरान चेचेन चरमपंथियों खूनी खेल खेलने से रोक नहीं पाएगा। पुतिन की सऊदी शाहजादे से इसी महीने मुलाकात हुई है। पर इसका मतलब क्या है? यह अमेरिका की लड़ाई है या सऊदी अरब की?  अमेरिका इस इलाके में लोकतंत्र का संदेश लेकर आया है तो वह सऊदी अरब के साथ मिलकर क्या कर रहा है?

Friday, May 3, 2013

अमेरिका जाने का शौक है तो उसे झेलना भी सीखिए


अमेरिका के हवाई अड्डों से अक्सर भारतीय नेताओं या विशिष्ट व्यक्तियों के अपमान की खबरें आती हैं। अपमान से यहाँ आशय उस सामान्य सुरक्षा जाँच और पूछताछ से है जो 9/11 के बाद से शुरू हुई है। आमतौर पर यह शिकायत विशिष्ट व्यक्तियों या वीआईपी की ओर से आती है। सामान्य व्यक्ति एक तो इसके लिए तैयार रहते हैं, दूसरे उन्हें उस प्रकार का अनुभव नहीं होता जिसका अंदेशा होता है। मसलन एक पाकिस्तानी नागरिक ने अपने ब्लॉग में लिखा है कि मुझसे तकरीबन 45 मिनट तक पूछताछ की गई, पर किसी वक्त अभद्र शब्दों का इस्तेमाल नहीं हुआ। मेरी पत्नी को मैम और मुझे सर या मिस्टर सिद्दीकी कहकर ही सम्बोधित किया गया। उन्होंने सवाल भी मामूली पूछे, जिनमें मेरा कार्यक्रम क्या है, मैं करता क्या हूँ, अमेरिका क्यों आया हूँ वगैरह थे। दरअसल हमारे देश के नागरिक अपने देश की सुरक्षा एजेंसियों के व्यवहार से इतने घबराए होते हैं कि उन्हें अमेरिकी एजेंसियों के बर्ताव को लेकर अंदेशा बना रहता है।

Sunday, April 28, 2013

चीनी रिश्तों की जटिलता को समझिए


भारत और चीन के बीच जितने अच्छे रिश्ते व्यापारिक धरातल पर हैं उतने अच्छे राजनीतिक मसलों में नहीं हैं। लद्दाख का विवाद कोई बड़ी शक्ल ले सके पहले ही इसका हल निकाल लिया जाना चाहए। पर उसके पहले सवाल है कि क्या यह विवाद अनायास खड़ा हो गया है या कोई योजना है। हाल के वर्षों में चीन के व्यवहार में एक खास तरह की तल्खी नज़र आने लगी है। इसे गुरूर भी कह सकते हैं। यह गुरूर केवल भारत के संदर्भ में ही नहीं है। उसके अपने दूसरे पड़ोसियों के संदर्भ में भी है। जापान के साथ एक द्वीप को लेकर उसकी तनातनी काफी बढ़ गई थी। दक्षिण चीन सागर में तेल की खोज को लेकर वियतनाम के साथ उसके रिश्तों में तल्खी आ गई है। संयोग से भारत भी उस विवाद में शामिल है। दक्षिणी चीन सागर में अधिकार को लेकर चीन का वियतनाम, फिलीपींस, ताइवान, ब्रुनेई और मलेशिया के साथ विवाद है। चीन इस पूरे सागर पर अपना दावा जताता है जिसका पड़ोसी देश विरोध करते है। चीन के सबसे अच्छे मित्रों में पाकिस्तान का नाम है। यह इसलिए है कि हमारा पाकिस्तान के साथ विवाद है या पाकिस्तान ने चीन का साथ इसलिए पकड़ा है कि वह भविष्य में भी हमारा प्रतिस्पर्धी रहेगा, कहना मुश्किल है। 

Sunday, April 21, 2013

पप्पू बनाम फेकू यानी ट्विटरगढ़ की जंग


इस महीने चार अप्रेल को राहुल गांधी के सीआईआई भाषण के बाद ट्विटर पर पप्पूसीआईआई के नाम से कुछ हैंडल तैयार हो गए। इसके बाद 8 अप्रेल को नरेन्द्र मोदी की फिक्की वार्ता के बाद फेकूइंडिया जैसे कुछ हैंडल तैयार हो गए। पप्पू और फेकू का संग्राम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुँच गया और तमाम अंतरराष्ट्रीय वैबसाइटों पर पप्पू और फेकू का मतलब बताने वालों की लाइन लगी रही। ट्विटर से फेसबुक पर और फेसबुक से ब्लॉगों पर राजनीतिक घमासान शुरू हो गया है। लगता है अगली चुनावी लड़ाई सोशल मीडिया पर ही लड़ी जाएगी। वोटरों, लेखकों और पत्रकारों के नज़रिए से देखें तो ऐसा ही लगता है। पर राजनेता शायद अभी इसके लिए तैयार नहीं हैं।

Friday, April 12, 2013

बेकाबू क्यों हो रहा है उत्तर कोरिया?



जब हम विश्व समुदाय की बात करते हैं तो इसका एक मतलब होता है अमेरिका और उसके दोस्त। और जब हम उद्दंड या दुष्ट देश यानी रोग स्टेट्स कहते हैं तो उसका मतलब होता है उत्तर कोरिया, ईरान और सीरिया और एक हद तक वेनेजुएला। सन 1990 के दशक से दुनिया को शीत-युद्ध से भले मुक्ति मिल गई, पर अमेरिका और इन उद्दंड देशों के बीच तनातनी का नया दौर शुरू हो गया है। अमेरिका का कहना है कि उत्तर कोरिया किसी भी वक्त दक्षिण कोरिया या प्रशांत महासागर में स्थित अमेरिकी अड्डों पर मिसाइलों से हमला कर सकता है। सुदूर पूर्व पर नज़र रखने वालों का कहना है कि उत्तर कोरिया हमला नहीं करेगा। परमाणु बम का प्रहार करने की स्थिति में वह नहीं है। उसके पास एटमी ताकत है ज़रूर, पर डिलीवरी की व्यवस्था नहीं है। हो सकता है वह किसी मिसाइल का परीक्षण करे या एटमी धमाका। अलबत्ता यह विस्मय की बात है कि सायबर गाँव में तब्दील होती दुनिया में कोरिया जैसी समस्याएं कायम हैं। दोनों कोरिया एक भाषा, एक संस्कृति, एक राष्ट्र के बावजूद राजनीतिक टकराव के अजब-गजब प्रतीक है।

Tuesday, March 5, 2013

हम भी छू सकते हैं सूरज और चाँद बशर्ते...


बजट सत्र की शुरूआत करते हुए राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने घोषणा की कि भारत इस साल अपना उपग्रह मंगल ग्रह की ओर भेजेगा। केवल मंगलयान ही नहीं। हमारा चन्द्रयान-2 कार्यक्रम तैयार है। सन 2016 में पहली बार दो भारतीय अंतरिक्ष यात्री स्वदेशी यान में बैठकर पृथ्वी की परिक्रमा करेंगे। सन 2015 या 16 में हमारा आदित्य-1 प्रोब सूर्य की ओर रवाना होगा। और सन 2020 तक हम चन्द्रमा पर अपना यात्री भेजना चाहते हैं। किसी चीनी यात्री के चन्द्रमा पहुँचने के पाँच साल पहले। देश का हाइपरसोनिक स्पेसक्राफ्ट अब किसी भी समय सामने आ सकता है। अगले दशक के लिए न्यूक्लियर इनर्जी का महत्वाकांक्षी कार्यक्रम तैयार है। एटमी शक्ति से चलने वाली भारतीय पनडुब्बी अरिहंत नौसेना के बेड़े में शामिल हो चुकी है। हमारा अपना बनाया तेजस विमान तैयार है। युद्धक टैंक अर्जुन-2 दुनिया के सबसे अच्छे टैंकों से भी बेहतर बताया जा रहा है। भारत के डिज़ाइन से तैयार हो रहा है अपना विमानवाहक पोत। हम रूस के साथ मिलकर पाँचवी पीढ़ी का युद्धक विमान विकसित कर रहे हैं। रूस के साथ मिलकर ही बहुउद्देश्यीय माल-वाहक विमान भी हम डिज़ाइन करने जा रहे हैं।

Wednesday, February 27, 2013

पवन बंसल का राम भरोसे रेल बजट

रेल किराए या इसी किस्म की लोकलुभावन बातों पर गौर न करें तो भारत के आधुनिकीकरण में रेलवे की भावी भूमिका और अंदेशों का संकेत तो इस बार के रेल बजट में मिलता है, पर जवाब कहीं नहीं मिलता। रेल बजट को लोकलुभावन बनाने का ममता बनर्जी का फ़र्मूला किराया न बढ़ाना था तो पवन बंसल का फ़ॉर्मूला विकास के कार्यों को रोक देने का है। लगता है सरकार ने सारे काम भविष्य पर छोड़ दिए हैं। रेलवे की सबसे बड़ी ज़रूरत है माल ढोने के लिए आधार ढाँचे को तैयार करना, यात्रियों की सुरक्षा और सहूलियतों में इज़ाफा, विद्युतीकरण, आमान परिवर्तन और नई लाइनों का निर्माण। हमें अपने बजट को इसी लिहाज से देखना चाहिए। और यह देखना चाहिए कि सरकार कितना निवेश इन कामों पर करने जा रही है। इसके लिए पाँचवीं पंचवर्षीय योजना में रेलवे के लिए 5.19 लाख करोड़ रुपए के निवेश की ज़रूरत है। इसमें से आंतरिक साधनों से 1.05 लाख करोड़ की व्यवस्था करने का निश्चय किया गया है। इसमें से केवल 10,000 करोड़ रुपए की व्यवस्था पिछले साल के बजट में की गई थी। यानी 95,000 करोड़ रुपए का इंतज़ाम अगले चार साल पर छोड़ दिया गया। पिछले साल रेलवे का योजनागत व्यय 60,100 करोड़ रुपए था, जो संशोधित कर 52,265 करोड़ रु कर दिया गया। यानी वह व्यवस्था भी नहीं हो पाई। इस साल 63, 363 करोड़ रु की व्यवस्था बजट में की गई है। यानी दो साल में योजनागत व्यय एक लाख 15, 628 करोड़ रु हुआ। यानी अगले तीन साल में 4.04 लाख करोड़ रु की व्यवस्था करनी होगी। यानी अगले तीन साल तक रेलवे को योजनागत व्यय में इस साल के व्यय का तकरीबन ढाई गुना खर्च करना होगा। यह काम लगभग असम्भव है।

Wednesday, February 20, 2013

खतरा ! वीआईपी आ रहा है


वीआईपीवाद से मुक्ति चाहती है जनता
इंटरनेट ने सामान्य व्यक्ति के दुख-दर्द को उजागर करने का काम किया है। एक ब्लॉगर ने लिखा, लगता है कि वीआईपी होने का सुख जिसे भी मिलता हो, पर उसका दुख पूरा शहर सहन करता है। कुछ साल पहले कानपुर में प्रधानमंत्री के दौरे के दौरान ट्रैफिक में फँसा एक घायल बच्चा समय पर अस्पताल नहीं पहुंच सका और उसकी मौत हो गई। इसी तरह प्रधानमंत्री का चंड़ीगढ़ दौरा एक मरीज का मौत का कारण बन गया था। गम्भीर रूप से बीमार व्यक्ति को पुलिस वालों ने इसलिए नहीं जाने दिया क्योंकि प्रधानमंत्री का काफिला उधर से गुजरने वाला था। गुर्दे का मरीज होने की वजह से वह हर महीने पीजीआई खून बदलवाने के लिए जाया करता था। उसके परिजनों ने पुलिस वालों को लाख समझाया, पर उनकी नहीं सुनी गई। भारत जैसी वीआईपी सुरक्षा शायद दुनिया के किसी देश में नहीं होगी। एम्बुलेंस को रास्ता देना आधुनिकता का प्रतीक है, पर आप देश की राजधानी में अक्सर वीआईपी मूवमेंट के कारण रोके गए ट्रैफिक में फँसी एम्बुलेंसों को देख सकते हैं। इंडिया गेट के पास से गुजरते वीआईपी के लिए रुके ट्रैफिक के कारण कनॉट प्लेस में लगे जाम को देख सकते हैं। आम जनता के जरूरी काम, इंटरव्यू, डॉक्टरों से अपॉइंटमेंट, मीडिंग सब बेकार हैं। सबसे ज़रूरी है साहब बहादुर की सवारी।

Wednesday, February 6, 2013

यह उजाले पर अंधेरों का वार है

अक्टूबर 2011 में बीबीसी हिन्दी की वैबसाइट पर संवाददाता समरा फ़ातिमा की रपट में बताया गया था कि अलगाववादी आंदोलन और हिंसा के दृश्यों के बीच कश्मीर में इन दिनों सुरीली आवाजें सुनाई दे रही हैं। उभरते युवा संगीतकार चार से पाँच लोगों का एक बैंड बना कर ख़ुद अपने गाने लिखने और इनका संगीत बनाने लगे हैं। चूंकि इनके गीतों में तकलीफों का बयान था, इसलिए पुलिस की निगाहें इनपर पड़ीं। 'एम सी कैश' के नाम से गाने बनाने वाले 20 वर्षीय 'रोशन इलाही' ने बताया कि 2010 के सितंबर में पुलिस ने उनके स्टूडियो में छापा मारा और उसे बंद कर दिया। इन कश्मीरी बैंडों में अदनान मट्टू का ब्लड रॉक्ज़ भी है, जिनकी प्रेरणा से तीन लड़कियों का बैंड प्रगाश सामने आया।
प्रगाश के फेसबुक पेज पर जाएं तो आपको समझ में आएगा कि कट्टरपंथी उनका विरोध क्यों कर रहे हैं। जैसे ही वे चर्चा में आईं उनके फ़ेस बुक अकाउंट पर नफरत भरे संदेशों का सिलसिला शुरू हो गया। सबसे पहले उनका पेज खोजना मुश्किल है, क्योंकि इस नाम से कई पेज बने हैं। असली पेज का पता इन लड़कियों के बैंड छोड़ने की घोषणा से लगता है। प्रगाश के माने हैं अंधेरे से रोशनी की ओर। रोशनी की ओर जाना कट्टरपंथियों को पसंद नहीं है। पिछले रविवार को कश्मीर के प्रधान मुफ़्ती ने उनके गाने को ग़ैर इस्लामीकरार दिया, पर उसके दो दिन पहले मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट किया था कि थोड़े से पागल लोग इनकी आवाज़ को खामोश नहीं कर पाएंगे। पर तीनों लड़कियों को बैंड छोड़ने का फैसला करना पड़ा। इससे पहले हुर्रियत कांफ़्रेंस ने भी इन उनकी यह कह कर आलोचना की थी कि वह पश्चिमी मूल्यों का अनुसरण कर रही हैं। कश्मीर के ये बैंड सन 2004 के बाद से सक्रिय हुए हैं। कश्मीर में ही नहीं पाकिस्तान में संगीत का खासा चलन है। हाल में दिल्ली आया पाकिस्तानीलाल बैंडकाफी लोकप्रिय हुआ। लाल बैंड प्रगतिशील गीत गाता है। इन्होंने रॉक संगीत में फैज अहमद फैज जैसे शायरों के बोल ढाले और उन्हें सूफी कलाम के नज़दीक पहुंचाया। पाकिस्तान और कश्मीर में सूफी संगीत पहले से लोकप्रिय है। ऐसा क्यों हुआ कि जब लड़कियों ने बैंड बनाया तो फतवा ज़ारी हुआ?