मंगलवार 24 अक्तूबर को इस्लामाबाद हाईकोर्ट में पेशी के लिए जाते नवाज़ शरीफ़
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ की
स्वदेश-वापसी, स्वागत और उनके बयानों से लगता है कि कानूनी दाँव-पेच में फँसे होने
के बावजूद देश की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के इरादे से वे वापस आए
हैं और उससे जुड़े हर तरह के जोखिमों का सामना करने के लिए वे तैयार हैं. उन्होंने
वापस लौटकर कम से कम उन लोगों को ग़लत साबित किया है, जो कहते थे कि वे लौटकर नहीं
आएंगे, राजनीतिक दृष्टि से वे हाशिए पर जा चुके हैं और अप्रासंगिक हो चुके हैं.
अदालतों ने उन्हें अपराधी और ‘भगोड़ा’ घोषित कर रखा है. अब पहिया
उल्टा घूमेगा या नहीं, इसका इंतज़ार करना होगा. उनकी वापसी के तीसरे दिन ही लग रहा
है कि कानूनी बाधाएं ताश के पत्तों की तरह बिखरने
लगी हैं. बहुत कुछ उनके और सेना के रिश्तों पर और
अदालतों के रुख पर भी निर्भर करेगा. अतीत में वे कई बार कह चुके हैं कि उन्हें
बेदखल करने में सेना का हाथ था.
अलबत्ता उनके साथ मुर्तज़ा भुट्टो जैसा व्यवहार
नहीं हुआ, जो बेनजीर के प्रधानमंत्रित्व में 3 नवंबर, 1993
में कराची हवाई अड्डे पर उतरे थे और सीधे जेल भेजे गए थे. इसके बाद बेनज़ीर की
सरकार बर्खास्त कर दी गई थी और तीन साल बाद मुर्तज़ा भुट्टो मुठभेड़ में मारे गए
थे.
नए सपने
नवाज़ शरीफ़ का पहला भाषण आने वाले वक्त में उनकी राजनीति का प्रस्थान बिंदु साबित होगा. वे पाकिस्तान को नए सपने देना चाहते हैं, पर कहना मुश्किल है कि वे कितने सफल होंगे. भारत की दृष्टि से संबंधों को सुधारने की बात कहकर भी उन्होंने अपने महत्व को रेखांकित किया है.