भारत और पाकिस्तान के आपसी रिश्तों में कितनी तेजी से उतार-चढ़ाव आता है इसकी मिसाल पिछले चार महीनों में देखी जा सकती है। गत 25 फरवरी को दोनों देशों के बीच अचानक नियंत्रण रेखा पर युद्ध-विराम के एक पुराने समझौते को मजबूती से लागू करने का समझौता हुआ। इससे अचानक शांति का माहौल बनने लगा। पाकिस्तान की तरफ से एक के बाद एक बयान आए। भारतीय प्रधानमंत्री ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को शुभकामनाएं भेजीं।
केवल युद्ध-विराम ही
नहीं आपसी व्यापार फिर से शुरू करने की बातें होने लगीं। ऐसे संकेत मिले कि सऊदी
अरब और संयुक्त अरब गणराज्य के बीच में पड़ने से दोनों देशों के बीच ‘बैकरूम-बातचीत’ भी हो रही है।
इसके बाद जम्मू में भारतीय वायुसेना के हवाई अड्डे पर ड्रोन हमले की खबरें आईं और
सब कुछ अचानक यू-टर्न हो गया। उधर 23 जून को लाहौर में हाफिज सईद के घर के पास एक
बम धमाका हुआ, जिसके लिए पाकिस्तान ने भारत को जिम्मेदार ठहराया है।
पाकिस्तान के
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मोईद युसुफ ने कहा है कि लाहौर धमाके का मास्टर माइंड
एक भारतीय नागरिक है जो रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (भारतीय ख़ुफिया एजेंसी रॉ) से
जुड़ा है। पाकिस्तान
के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने सीधे-सीधे इसे 'भारत प्रायोजित आतंकवादी हमला' क़रार दिया है। इमरान खान ने ट्वीट किया, ‘मैंने अपनी टीम को निर्देश दिया कि वे जौहर
टाउन लाहौर धमाके की जाँच की जानकारी कौम को दें। मैं पंजाब पुलिस के आतंकवादी
निरोधक विभाग की तेज़ रफ़्तार से की गई जाँच की तारीफ़ करूंगा कि उन्होंने हमारी
नागरिक और ख़ुफ़िया एजेंसियों की शानदार मदद से सबूत निकाले।’
सवाल है कि क्या वास्तव में ऐसी कोई जाँच हुई? क्या पाकिस्तान के पास कोई सबूत है या वह इस दौरान बनी शांति की सम्भावनाओं से बाहर निकलना चाहता है? वह बाहर निकलना चाहता है, तो इन सम्भावनाओं में शामिल ही क्यों हुआ था? क्या वहाँ सेना और सरकार के बीच मतभेद हैं? या पाकिस्तान अपने बुने जाल में फँसता जा रहा है? ऐसे तमाम सवालों ने दक्षिण एशिया को अपनी गिरफ्त में ले लिया है। एक तरफ अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी हो रही है और दूसरी तरफ भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर में लोकतांत्रिक-प्रक्रियाओं को तेज कर दिया है। इससे पाकिस्तानी अंतर्विरोध खुलकर सामने आने लगे हैं।